Newslaundry Hindi
बहुमुखी अर्नब गोस्वामी और एकमुखी सुधीर चौधरी
पिछले हफ्ते टीआरपी पर कब्जे को लेकर नोएडा फिल्मसिटी की बैरकों में भारी गोलीबारी हुई है. पिछली टिप्पणी में हमने आपको उसकी एक झलक भी दिखाई थी. मुंबई पुलिस द्वारा ऐसे कुछ लोगों को ढूंढ़ निकालने के बाद एक बड़ा विवाद शुरू हुआ जिसमें खुलासा हुआ कि रिपब्लिक टीवी वाले अर्णब गोस्वामी और दो अन्य स्थानीय भाषा के चैनल टीआरपी के लिए बार्क मीटर लगे घरों में सेंध लगाकर टीआरपी को अपने पक्ष में प्रभावित कर रहे थे.
इसे लेकर अन्य चैनलों के एंकर-एंकराओं ने रिपब्लिक टीवी पर नैतिक हमला बोल दिया. लेकिन इस आपसी कतरब्यौंत में दर्शकों को कतई भटकना नही चाहिए. इस घटना से खबरों और पत्रकारिता के लिए एक धुंधली सी उम्मीद पैदा हुई है. यह उम्मीद है टेलीविज़न न्यूज़ के खामियों भरे रेवेन्यू मॉडल और रेटिंग सिस्टम में सुधार की.
इस बार की टिप्पणी में हमने टीआरपी की इस व्यवस्था को नए सिरे से समझाने की कोशिश की है.
भारत में एक भरोसेमंद सर्वे की राह में सबसे बड़ी दिक्कत है इसकी विविधता. 44000 बैरोमीटर के जरिए अमेरिका या यूरोप के देशों में कहीं ज्यादा सटीक अनुमान दिए जा सकते हैं क्योंकि वहां भाषा, धर्म संस्कृति और सियासत की जटिलताएं भारत के मुकाबले बहुत कम हैं. भारत में 44000 बैरोमीटर के दायरे में 25 भाषाओं के चैनल आते हैं, तमाम तरह की धार्मिक-सांस्कृतिक पसंद-नापसंद है. लिहाजा किसी एक भाषा के लिए सैंपल साइज लगातार छोटा होता जाता है ऐसे में किसी सर्वे या पोल के आंकड़ों की विश्वसनीयता और सटीकता भी कम होती जाती है.
बीते हफ्ते खबरिया चैनलों के अंडरवर्ल्ड में जो कुछ हुआ उसने अर्नब गोस्वामी की तमाम देखी-अनदेखी प्रतिभाओं को उजागर किया. यूं तो हम सब जानते हैं कि अर्नब बहुमुखी प्रतिभा के धनी हैं. बहुमुखी से मेरा अर्थ यह नहीं था कि उनके रावण की तरह बहुत सारे मुख हैं, मेरे कहने का मतलब है वो मल्टी टैलेंटेड हैं. तो इसका लुत्फ उठाइए और साथ में जोर से नारा लगाइए- मेरे खर्च पर आज़ाद हैं, खबरें.
Also Read
-
‘Why can’t playtime be equal?’: A champion’s homecoming rewrites what Agra’s girls can be
-
Pixel 10 Review: The AI obsession is leading Google astray
-
Do you live on the coast in India? You may need to move away sooner than you think
-
TV Newsance 321: Delhi blast and how media lost the plot
-
Bihar’s verdict: Why people chose familiar failures over unknown risks