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सुशील मोदी के आवास से पांच सौ मीटर दूर जारी है खुले में शौच करने की परंपरा, लेकिन यह चुनावी मुद्दा नहीं है

बिहार में चुनाव की सरगर्मियां तेज हो गई हैं. तमाम पार्टी कार्यालयों के बाहर टिकट की उम्मीद लगाए नेता अपने कार्यकर्ताओं के साथ पहुंचे हुए हैं. आरोप-प्रत्यारोपों का दौर जारी है. बिहार के उपमुख्यमंत्री और भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) के वरिष्ठ नेता सुशील कुमार मोदी लगातार विपक्ष को विकास के मुद्दे पर चुनाव लड़ने के लिए ललकार रहे हैं.

सुशील मोदी और बीजेपी जिस विकास की चर्चा कर रही है उसमें घर-घर शौचालय बनाने का दावा भी किया जा रहा है. बीजेपी बिहार के फेसबुक पेज पर यहां के 40 हज़ार गांवों में शौचालय निर्माण कराकर बिहार को खुले में शौच से मुक्त होने का दावा कर रही है, लेकिन इस दावे की पोल पटना के राजेंद्र नगर स्थित सुशील कुमार मोदी के आवास से महज पांच सौ मीटर दूर ही खुलती दिखी.

राजेंद्र नगर के पास नाला रोड से गुजरते हुए अंबेडकर भवन नाम की एक कॉलोनी है. यहां कुछ बच्चे हमें गंदी नालियों के पास खेलते और नहाते हुए दिखे. उनके आसपास बीच-बीच में कीचड़ में लोटते सूअर थे. उनके बगल में जर्जर दीवार के ऊपर पटना नगर निगम का स्वच्छता अभियान का बोर्ड लगा हुआ था, जिसपर लिखा है- हम खुले में शौच के लिए नहीं जाएंगे. हम बनाएंगे अपने शहर को नंबर-1. थोड़ा आगे बढ़ने पर महिलाएं कमरों के बाहर नाली के पास झुंड में बैठी मिलीं.

यहां हमारी मुलाकात 30 वर्षीय पूजा देवी से हुई. वो बताती हैं, ‘‘आपको क्या बताएं. यहां तो सब जगह गंदगी ही है. यहां गंदगी, वहां गंदगी. शौच के लिए जहां जाते हैं वहां भी गंदगी ही है. खुले में शौच के लिए बैठते है तो सब ऊपर से झांकता है. क्या करें.’’

लालू प्रसाद यादव ने कराया इस भवन का निर्माण

अंबेडकर भवन का निर्माण साल 1995 में बिहार के तत्कालीन मुख्यमंत्री और राष्ट्रीय जनता दल के प्रमुख लालू प्रसाद यादव ने करवाया था.

पटना क्षेत्रीय विकास प्राधिकरण द्वारा बनवाये गए इस भवन में मुसहर-डोम समुदाय के लोग रहते हैं. महादलित डोम समुदाय आर्थिक और शैक्षणिक रूप से ही नहीं बल्कि राजनीतिक रूप से भी काफी पिछड़ा हुआ है. शहर में इस समुदाय के ज़्यादातर लोग साफ-सफाई का काम करते हैं, वहीं ग्रामीण इलाकों में टोकरी और डलिया बनाते है. हैरानी की बात है कि शहर भर की सफाई करने वाले खुद गंदगी के बीच में रहते हैं.

70 वर्षीय शौकी राम यहां सालों से रह रहे हैं. वे बताते हैं, ‘‘पहले यहां हम लोगों का झोपड़ी का घर था. महिलाएं और बच्चे सड़कों पर पड़े रहते थे. जब लालू जी जीते तो उनको यह सब देखना सही नहीं लगा, तो उन्होंने हमें घर बनाकर दिया है. उन्होंने बना तो दिया, लेकिन उसके बाद से कोई देखने और सुनने वाला नहीं है. लालू जी जो बनवाये उसके बाद तो कुछ नहीं हुआ. दीवार टूटकर गिर रही है. बीते साल एक लड़की के ऊपर छज्जा टूटकर गिर गया था. कई बार पार्षद प्रमिला वर्मा से टूटती दीवारों और नालियों को सही कराने की मांग की, लेकिन कोई सुनता नहीं है हुजूर.’’

तीन हिस्सों में बने अंबेडकर भवन में दो मंजिला इमारत बनी हुई है. यहां पहले तो कम ही लोग रहते थे, लेकिन धीरे-धीरे लोगों का परिवार बढ़ा और आज यहां एक हज़ार परिवार रह रहे हैं.

यहां के लोग आपस में ही मुखिया चुनते हैं. जिनका कार्यकाल तय नहीं होता. जब यहां के लोगों को लगता है कि मुखिया काम नहीं कर रहा तो उसे हटा देते हैं. अभी यहां के मुखिया राजेंद्र राम है. न्यूज़लॉन्ड्री से बात करते हुए राजेंद्र राम कहते हैं, ‘‘जब यह बना था तो सारी व्यवस्था थी, लेकिन आगे की सरकारों ने कभी ध्यान नहीं दिया. तब शौचालय भी बना था. वो भर गया उसके बाद उसकी सफाई तक नहीं हुई जिसके बाद वह भर गया. हम लोग गरीब आदमी हैं तो शौचालय कैसे बनाएंगे.’’

राजेंद्र राम आगे बताते हैं, ‘‘यहां लालू जी ने 60 फ़्लैट बनवाकर दिए थे. आज यहां लगभग तीन सौ घर हैं जिसमें एक हज़ार परिवार रहते हैं. करीब दो से ढाई हज़ार लोग .यहां कुल 30 घरों में शौचालय है, लेकिन बाकी के लोग बाहर ही जाते है. पुरुष लोग तो नगर निगम के शौचालय में चले जाते हैं, लेकिन महिलाएं और बच्चे खुले में शौच करने जाते हैं. नगर निगम के शौचालय में प्रति व्यक्ति पांच रुपए चार्ज लिया जाता है. गरीबी के कारण लोग उसमें नहीं जाते हैं.’’

40 वर्षीय अभिमन्यु आज़ाद बताते हैं, ‘‘पटना में रहने के बावजूद इस कालोनी के 60 प्रतिशत बच्चे पढ़ाई नहीं कर पाते हैं. कुछ यहां के लोगों की कमी भी है और कुछ सरकारी लापरवाही भी. यहां एक स्कूल खुला है जहां छोटे बच्चे पढ़ने के लिए जाते हैं. एक तो शिक्षक नियमित नहीं आते और अगर आते है तो भी आपस में बैठकर बात करते रहते हैं. बच्चे सड़कों पर खेलते और भटकते रहते हैं. ज़्यादातर लोग गरीब हैं तो बच्चों को प्राइवेट स्कूल में पढ़ा नहीं सकते हैं.’’

यहां ज़्यादातर महिलाएं बात करने से हिचकती हैं वहीं सातवीं क्लास में पढ़ने वाली रिंकू कुमारी खुद ही अपनी बात कहने के लिए आगे आई. वो कहती हैं, ‘‘यहां कोई भी सुविधा नहीं है. हम लोग खुले में शौच करने जाते हैं. वो भी किसी साफ जगह पर नहीं बल्कि गंदी जगह पर. अजीब लगता है, लेकिन क्या कर सकते हैं. यहां पर कुछ भी हो जाए कोई सुनने वाला नहीं है. यहां आग लग जाए तब भी कोई नहीं सुनता. खुद से ही सब इंतज़ाम करना पड़ता है.’’

जब हम उससे बात कर रहे थे तभी एक बच्चा कमरों के आगे से गुजर रही पतली नाली के ऊपर शौच करने बैठ जाता है. यहां हम जितनी देर रहे ऐसे दृश्य कई बार देखने को मिले. स्थानीय निवासी कहते हैं कि इनको कहां भेजें? व्यवस्था ही नहीं है.

डोम समुदाय के अधिकारों के लिए संघर्ष करने वाले संगठन डोम विकास समिति के राष्ट्रीय अध्यक्ष सुनील कुमार राम बताते हैं, ‘‘सिर्फ अंबेडकर भवन ही नहीं पटना शहर में हम आपको 30 से 35 मोहल्ला दिखा देंगे जहां लोग खुले में शौच कर रहे हैं. उनकी हालत जो है वो एकदम दयनीय स्थिति में है. जैसे, मंगल तालाब, मसलमपुर हाट, गाय घाट, यहां तक की हज भवन के पीछे और पूर्व मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी के आवास के ठीक बाहर में लोग खुले में शौच करने जाते हैं.’’

एक तरफ जहां देश में स्वच्छ भारत का नारा दिया जा रहा है. सरकार दावा कर रही है कि करोड़ों की संख्या में शौचालय बनाए गए. राज्य खुले में शौच मुक्त हो चुका है. खुद सुशील कुमार मोदी ने साल 2019 में दो अक्टूबर को पटना में गांधी जयंती पर बोलते हुए बताया था कि बिहार समेत पूरा देश खुले में शौच से मुक्त हो चुका है. उन्होंने कहा था कि बीते पांच साल में स्वच्छता दुनिया का सबसे बड़ा जन आंदोलन बना है. यह सामान्य बात नहीं है कि अब गरीब आदमी भी अपने घरों में शौचालय बना रहा है. जनसहभागिता से पांच साल में 10 करोड़ से अधिक शौचालय का निर्माण कर खुले में शौच से मुक्ति का लक्ष्य हासिल किया गया है जो बापू की 150वीं जयंती की सबसे बड़ी उपलब्धि है.’’

फिर भी ये स्थिति क्यों है? इस सवाल के जवाब में सुनील राम कहते हैं, ‘‘'यहां की सरकार ध्यान ही नहीं दे रही है. इन मोहल्लों में दलित और महादलित समुदाय के लोग रहते हैं. सबसे ज़्यादा इसमें डोम समुदाय के लोग है उसके बाद मेस्तर और मुसहर समुदाय के रहते हैं. शायद यहीं कारण हो. आप आकर देखिए तो यहां कोई विकास का काम नहीं हुआ है.’’

'सुशील मोदी जी तो पलटकर देखते तक नहीं'

सुशील कुमार मोदी का आवास अंबेडकर भवन से महज पांच सौ मीटर की दूरी पर है. साल 2019 में जब लगातार हो रही बारिश के कारण पटना जलमग्न हो गया था तब सुशील कुमार मोदी के घर में भी पानी भर गया था. वहां से उन्हें रेस्क्यू करके निकाला गया. हाफ पेंट और टीशर्ट पहनकर घंटों सड़क पर अधिकारियों के साथ खड़े मोदी की वह तस्वीर खूब वायरल हुई थी.

राजेंद्र राम बताते हैं, ‘‘मोदी साहब को तो उनके अधिकारियों ने निकाल लिया, लेकिन हमलोग यहीं फंसे रहे. रोड पर कमर तक पानी भरा हुआ था. हमारे घरों में बारिश का पानी नाली के पानी के साथ घुस गया था. घर पर खाने तक को नहीं था. बच्चे रो रहे थे, लेकिन कोई पूछने तक नहीं आया. पप्पू यादव ही ट्रैक्टर पर बैठकर हमारे लिए कुछ-कुछ देकर गए. तब हम लोग बचे. सुशील मोदीजी रोज इधर से ही जाते हैं, लेकिन हमलोगों की तरफ झांकते तक नहीं हैं.’’

राजेंद्र राम ही नहीं बाकी तमाम लोग भी सुशील कुमार मोदी पर अनदेखी का आरोप लगाते हैं. स्थानीय लोगों का कहना है कि लालू प्रसाद यादव ने हमें खुले में सोए देखकर घर दिया. ये रोज इधर से जाते हैं इनको दिखता नहीं होगा कि दीवारें जर्जर हो चुकी हैं. कभी भी टूट सकती हैं. चारों तरफ गंदगी है. दिखता तो जरूर होगा, लेकिन वे आंख बंद किए हुए हैं. शायद वो किसी बड़े हादसे का इंतज़ार कर रहे हैं.

अभिमन्यु आज़ाद, मोदी और बाकी नेताओं की अनदेखी को लेकर कहते हैं कि वो लोग हमें इंसान ही नहीं मानते हैं. इंसान मानते तो इस तरह हमलोगों को नहीं रहना पड़ता. हम लोगों के साथ सौतेला व्यवहार होता है. शायद इसलिए क्योंकि हम वोट बैंक नहीं हैं. उनके वोटर नहीं हैं. हम लोग दलित समुदाय से हैं इसलिए हमारे साथ भेदभाव होता है.

राजनीतिक अनदेखी का आरोप लगाते हुए राजेंद्र राम कहते हैं, ‘‘16 साल से अरुण सिन्हा हमारे विधायक हैं. शत्रुध्न सिन्हा दस साल सांसद रहे. अब रविशंकर प्रसाद यहां से सांसद हैं, लेकिन कोई भी हमें देखने नहीं आया. चुनाव के समय वोट मांगने आते हैं. मीठी-मीठी बातें करते हैं लेकिन उसके बाद कभी देखने तक नहीं आते.’’

वे नेताओं से सवाल पूछते हुए कहते हैं, ‘‘हम लोगों से वोट लेकर आपलोग हमारे बीच में क्यों नहीं आते हैं. हमारे पीछे परती जमीन है. हमने कई बार कहा की हमारे बच्चों के खेलने के लिए कुछ बना दीजिए क्योंकि बड़े-बड़े लोगों के बच्चों के लिए सुविधा दिया जाता है, लेकिन हमें क्यों नहीं दिया जाता है. हर जगह स्ट्रीट लाइट लग गया, लेकिन हम लोगों के घर के बाहर नहीं लगा है. ऐसा इसलिए हो रहा क्योंकि हम दलित हैं?’’

खुले में शौच के सवाल पर स्थानीय पार्षद प्रमिला वर्मा कहती हैं, ‘‘ये इन लोगों की आदत है. कितना भी साफ़-सफाई करके दीजिए, लेकिन ये लोग वैसे ही रहेंगे. वहां विधायक फंड से दस-दस सीट का दो शौचालय का निर्माण हुआ, लेकिन इन लोगों ने उसका दरवाजा तोड़कर बेच दिया और (शराब) पी गए. हर साल तो नहीं बनवाया जा सकता ना. इतना तो फंड नहीं होता है. एक शौचालय बनाने में मुझे एक साल लगा. ठेकेदार हर शाम को बनाकर जाता था और दूसरे दिन वे उसे गंदा कर जाते हैं. उन लोगों की मानसिकता ऐसी ही है.’’

घर जर्जर होने के सवाल पर प्रमिला वर्मा कहती हैं, ‘‘उनके घर का आगे का हिस्सा गिर गया था तो विधायक जी ने कहा कि आवेदन लिखकर दो लेकिन यहां से किसी ने आवेदन तक नहीं दिया. इसका नगर निगम करा भी नहीं सकता है.’’

प्रमिला वर्मा ने जो हमें बताया उसको लेकर हमें अभिमन्यु आज़ाद से बात की तो उन्होंने कहा, ‘‘वो झूठ बोल रही हैं. हम लोगों को शौक लगा है खुले में जाने का. यहां शौचालय बना था, लेकिन उसमें इतना कम बालू और सीमेंट लगा की वो धस गया. उसमें जमकर घोटाला हुआ और टूट गया. कोई हम लोगों को सुविधा देगा तो हम उसे तोड़ देंगे. हमलोग जानवर हैं कि हमको नाले में ही रहना है. उन्होंने पीने के पानी के लिए पम्प लगाया है तो वो अभी बचा हुआ है. हम उसे क्यों नहीं तोड़ दिए.’’

वहीं आवेदन लिखकर नहीं देने के आरोप पर अभिमन्यु कहते हैं, ‘‘हमने उन्हें आवेदन दिया. हाथ पैर भी जोड़े लेकिन कुछ भी नहीं हुआ.’’

बिहार में जहां चुनाव की चहल-पहल शुरू हो चुकी है वहीं यहां लोगों में खास उत्सुकता नज़र नहीं आती है. यह इलाका बीजेपी का गढ़ कहा जाता है. बीजेपी के अरुण सिन्हा बीते 15 साल से विधायक हैं. इस बार भी पार्टी ने उन्हें ही उम्मीदवार बनाया है. शत्रुध्न सिन्हा जब तक बीजेपी में रहे यहां से सांसद बनते रहे, लेकिन बीते चुनाव में रविशंकर प्रसाद ने उन्हें हरा दिया. मुख्यमंत्री आवास भी अंबेडकर भवन से सिर्फ पांच किलोमीटर की दूरी पर है.

‘राजनीतिक पकड़ नहीं होने के कारण डोम समाज की हो रही अनदेखी’

बिहार की राजनीति में जाति की भूमिका सबसे ज़्यादा मानी जाती है. उम्मीदवारों को टिकट उस इलाके के जातीय समीकरण को देखकर दिया जाता है. कई नेताओं को इस जाति का या उस जाति के नेता के रूप में जाना जाता है. सुनील कुमार राम के मुताबिक डोम और उसकी बाकी सात उपजातियों को मिलाकर इनकी संख्या पूरी आबादी का 4 प्रतिशत से ऊपर है. वहीं मुसहर समुदाय की इतनी ही आबादी है जिसके नेता जीतनराम मांझी माने जाते हैं और इस बार एनडीए गठबंधन के साथ चुनाव मैदान में हैं. ऐसे में डोम समुदाय को किसी की फ़िक्र क्यों नहीं है?

इस सवाल के जवाब में सुनील कहते हैं, ‘‘इसके पीछे सबसे बड़ा कारण राजनीतिक रूप से नेतृत्वविहीन होना है. आज भारत के दोनों सदन हो या बिहार के दोनों सदन, इसमें एक भी डोम जाति का प्रतिनिधि नहीं है. देश में या बिहार में कोई भी डोम समुदाय का व्यक्ति ऐसा नहीं जो इन जगहों पर जा सके?’’

सुनील आगे बताते हैं, ‘‘इस समाज को लोग नेतृत्व देने के लिए तैयार ही नहीं हैं. अभी बिहार चुनाव में ही देख लीजिए, ना ही राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन ने और ना ही महागठबंधन में किसी ने भी एक भी डोम जाति के व्यक्ति को टिकट नहीं दिया है. पिछले दो साल से हम सरकार को घेर रहे हैं. उसे बोल रहे हैं, लेकिन कोई सुन ही नहीं रहा है. आज तक इस समुदाय से सिर्फ एक व्यक्ति रामधनी राम इंदिरा गांधी के समय में राज्यसभा के सदस्य थे. वे कांग्रेस के सदस्य थे. उसके बाद इस समाज का एक सदस्य सदन में नहीं पहुंचा.’’

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