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उत्तर प्रदेश: यहां के बीमार स्वास्थ्य तंत्र को सबसे पहले इलाज की दरकार है

लखनऊ में बीते आठ साल से पत्रकारिता कर रहे प्रेस ट्रस्ट ऑफ़ इंडिया (पीटीआई) के 48 वर्षीय पत्रकार अमृत दुबे को बुखार हुआ. उन्होंने मौसमी बुखार समझकर इस उम्मीद में दवाई ली की एक-दो दिन में सब ठीक हो जाएगा. दूसरे दिन उनकी स्थिति ठीक होने के बजाय और बिगड़ गई. तब उनके परिजन दो-तीन प्राइवेट अस्पताल में लेकर भागे, लेकिन उन्होंने बिना कोविड रिपोर्ट के भर्ती करने से इनकार कर दिया. रात होने पर परिजन उन्हें लेकर घर लौट आए.

अगली सुबह अमृत की स्थिति और बिगड़ गई. उन्हें खून की उलटी होने लगी. परिजनों ने सुबह साढ़े छह बजे के करीब आनन-फानन में एंबुलेंस के लिए फोन किया. आठ बजे के करीब एंबुलेंस वाला पहुंचा और अमृत की स्थिति देखकर कोरोना के शक में ले जाने से मना करते हुए वहां से चला गया. फिर पत्रकारों ने स्थानीय जिलाधिकारी को फोन करके एम्बुलेंस भेजने के लिए बोला. जिलाधिकारी के हस्तक्षेप के बावजूद लगभग दो घंटे बाद एम्बुलेंस उनके घर पहुंची. एम्बुलेंस से उन्हें स्थानीय लोकबंधु अस्पताल ले जाया गया जहां उनका कोरोना टेस्ट तो निगेटिव आया, लेकिन तब तक उनकी मौत हो चुकी थी. अमृत की बहन सीमा ने न्यूजलॉन्ड्री को बताया, ‘‘एम्बुलेंस आने से पहले ही उनकी मौत हो चुकी थी.’’

अमृत के साथी पत्रकारों की माने तो सरकारी लापरवाही की वजह से उन्हें नहीं बचाया जा सका. समय पर इलाज मिल जाता तो शायद उन्हें बचाया जा सकता था. लेकिन इस तरह सरकारी लापरवाही से मरने वाले अकेले अमृत नहीं हैं. लखनऊ के एक अंग्रेजी अख़बार के संवाददाता बताते हैं, ‘‘आये दिन ऐसी ख़बरें आती ही रहती है कि लोग बेड नहीं मिलने के कारण एम्बुलेंस में ही मर गए. लोगों को घंटों एम्बुलेंस का इंतज़ार करना पड़ रहा है. कई दफा एम्बुलेंस वाले मरीज को लेने नहीं पहुंचते हैं. सबसे ज़्यादा परेशानी नॉन-कोविड मरीजों को आ रही है. यहां कोविड टेस्ट के नतीजे के बगैर सरकारी या प्राइवेट अस्पताल मरीज़ों का इलाज ही शुरू नहीं कर रहे हैं. भले ही उसकी स्थिति कितनी भी खराब क्यों न हो. यहां अभी ही स्थिति बदहाल नज़र आ रही है, आगे क्या होगा इसका अंदाजा लगाना मुश्किल नहीं है.’’

अमृत के मौत से एक दिन पहले ही लखनऊ में इंडिया टुडे के पत्रकार नीलांशु शुक्ला की मौत हो गई थी. उन्हें कोविड संक्रमण था और वे होमआइसोलेशन में थे.

उत्तर प्रदेश और कोरोना

शनिवार, 5 सितंबर तक उत्तर प्रदेश में कोरोना मरीजों की संख्या 2,59,765 हो चुकी है, जिसमें से 3,843 लोगों की मौत हुई है. प्रदेश में अभी सक्रिय मरीज़ों की संख्या 59,963 है. कोरोना मरीजों की संख्या के मामले में यूपी अभी पांचवें नंबर है, वहीं टेस्टिंग के मामले में नंबर एक पर है. 23 करोड़ आबादी वाले राज्य में अब तक 63 लाख लोगों का टेस्ट हो चुका है. यहां कुल टेस्ट में से पॉजिटिव आने का प्रतिशत 4.1 है.

कोरोना के शुरुआती दौर में यहां सबसे ज़्यादा मामले आगरा और नोएडा जिले में आए थे, लेकिन अब नंबर एक पर राजधानी लखनऊ है. यहां अब तक 3 लाख 60 हज़ार लोगों का टेस्ट हुआ हैं जिसमें से 31,502 लोग पॉजिटिव आए हैं. वहीं इसमें से 420 लोगों की मौत हो चुकी है. लखनऊ में आए दिन आठ सौ से नौ सौ नए कोरोना के मामले सामने आ रहे हैं.

सबसे ज़्यादा टेस्ट लखनऊ में ही हुआ है. बाकी कई जिलों में टेस्ट की संख्या कुछ हजार है. मसलन रामपुर जहां की आबादी 23 लाख है, लेकिन वहां टेस्ट हुआ महज 45 हज़ार. ऐसे ही लखीमपुर खीरी की आबादी 40 लाख है वहां अब तक सिर्फ 35 हज़ार टेस्ट हुआ है. वहीं बात आगरा की करें तो वहां स्थिति हैरान करने वाली है. यहां आबादी 43 लाख है, लेकिन टेस्ट हुए महज एक लाख तीन हज़ार. जबकि आगरा में कोविड के मामले शुरुआती दौर में खूब आए थे.

फतेहपुर जिला की आबादी 26 लाख है, लेकिन वहां अब तक महज 20 हज़ार टेस्ट हुए है. मुरादाबाद की आबादी 47 लाख के करीब है लेकिन वहां टेस्ट हुए महज एक लाख. सबसे बुरी स्थिति प्रयागराज की है. यहां की कुल आबादी 60 लाख के करीब है लेकिन टेस्ट एक लाख दो हज़ार हुआ है. ये स्थिति तब है जब सरकार टेस्टिंग बढ़ाने को लेकर रोज दावा कर रही है.

प्रदेश में कोरोना की स्थिति भयावह हो रही है इसका अंदाजा दो वजहों से लगता है. पहला सरकार के मंत्रियों के पॉजिटिव होने और उनकी मौत होने से और दूसरा समाजवादी पार्टी के नेता सुनील सिंह साजन द्वारा विधान परिषद में दी गई जानकारी से.

उत्तर प्रदेश सरकार के अब तक 14 मंत्री कोरोना पॉजिटिव हो चुके हैं जिसमें से दो का निधन भी हो गया. जिन मंत्रियों का निधन हुआ वे पूर्व क्रिकेटर और खेल मंत्री चेतन चौहान और कमल रानी वरुण हैं.

सपा नेता सुनील सिंह साजन ने दावा किया था कि पीजीआई में मंत्री चेतन चौहान के साथ डॉक्टर्स ने इलाज के दौरान दुर्व्यवहार किया था. उनके अनुसार वे तब चौहान के बगल के बेड पर थे. उन्हें भी कोविड हुआ था. सुनील ने दावा किया था, ‘‘डॉक्टर्स चेतन चौहान को नहीं पहचान रहे थे. उनसे पूछा की चेतन आप कौन है? उनके खुद को कैबिनेट मंत्री बताने पर भी डॉक्टर्स तमीज से पेश नहीं आए. बाद में उनका निधन हो गया.’’

बदहाल और लापरवाह स्वास्थ्य व्यवस्था

प्रदेश में प्रशासन की लापरवाही का एक नमूना तो पत्रकार अमृत दुबे के मामले में दिखा ही, लेकिन यह इस तरह का इकलौता मामला नहीं है. बीबीसी हिंदी के लिए उत्तर प्रदेश से लिखने वाले वरिष्ठ पत्रकार समीरात्मज मिश्र एक घटना का जिक्र करते हैं. ये घटना प्रदेश में बदहाल व्यवस्था की पोल खोलती है. वे बताते हैं, ‘‘प्रयागराज से बीजेपी सांसद रीता बहुगुणा जोशी के पति पूरन चन्द्र जोशी का कोरोना टेस्ट हुआ, जिसका नतीजा अस्पताल वालों ने पॉजिटिव बताया. आनन-फानन में परिजन उन्हें लेकर दिल्ली के लिए निकल गए, लेकिन तब अस्पताल से फोन आया की उनका टेस्ट निगेटिव है.’’

दैनिक भास्कर की रिपोर्ट के अनुसार सांसद इस लापरवाही पर नाराज़ हो गई जिसके बाद प्रयागराज के चीफ मेडिकल ऑफिसर डाॅ. जीएस बाजपेई को सफाई देनी पड़ी. बाजपेई ने इसे मानवीय भूल बताते हुए कहा था, ‘‘यह क्लैरिकल गलती है, जिसे सुधार लिया गया है.’’

समीरात्मज मिश्र कहते हैं, ‘‘प्रदेश के टेस्टिंग में काफी गड़बड़ी आ रही है. आप एक ही समय में दो बार टेस्ट कराए. एक में वे निगेटिव दे देंगे और दूसरे में वे पॉजिटिव बता देंगे.’’

51 वर्षीय राधेश्याम दीक्षित न्यूज़ टाइम्स के स्थानीय संपादक हैं. वो हैरान करने वाली जानकारी देते हैं, ‘‘मैं यहां के एक निजी अस्पताल टीएस मिश्रा में भर्ती हुआ था. वहां की अव्यवस्था देखकर मैंने नाराज़गी जताई. वहां पता किया तो मालूम चला कि जो शख्स मेरा इलाज कर रहा है वो दरअसल डॉक्टर ही नहीं है. वे सुरक्षा गार्ड है. इस अस्पताल में डॉक्टर्स कोरोना की डर से नहीं आ रहे. जिसके बाद इलाज सुरक्षा गार्ड, वार्ड बॉय और और नर्स कर रहे थे. प्रोटोकॉल के अनुसार ये दवाई दे रहे थे, बाकी किसी भी तरह की कोई दवाई नहीं दी जा रही थी. रात में वहां कोई नहीं होता था. अगर किसी मरीज को कोई परेशानी हुई तो कोई देखने वाला नहीं था.''

राधेश्याम दीक्षित आगे कहते हैं, ''जब मैंने अस्पताल की अव्यवस्था का खुलासा किया तो मुझे मारने की कोशिश की गई लेकिन मैं जैसे-तैसे बच गया. इस मामले की मजिस्टेरियल जांच हुई और प्रशासन ने मुझे ही अवांछित बता दिया. ये जांच हैरान करने वाला हैं. वे जांच में अस्पतालों को बचाने की कोशिश कर रहे हैं. मेरे पास मेरे हर आरोप का वीडियो मौजूद हैं.’’

इसी तरह लापरवाही की कई कहानियां स्थानीय पत्रकार साझा करते हैं.

जब भारतीय जनता पार्टी से जुड़े वरिष्ठ नेताओं के साथ इस तरह की लापरवाही हो सकती है. एक सम्मानित मीडिया संस्थान के पत्रकार को समय पर एम्बुलेंस नहीं मिल पाता जिस वजह से उसकी मौत हो गई. ऐसे में आम लोगों की क्या स्थिति होगी. इसपर भारत समाचार के स्टेट ब्यूरो हेड वीरेंद्र सिंह कहते हैं, ‘‘जिस प्रदेश में लोगों के सामने रोजगार का संकट है, भोजन का संकट है. वहां पर कोरोना भी एक महामारी के रूप में आया है. जो बच गया उसकी किस्मत. यहां पर इलाज किस्मत के भरोसे है. सरकारी स्वास्थ्य व्यवस्था अपने यहां सही नहीं है, यह सबको पता है. बच गए तो बच गए नहीं तो कोई बात नहीं.’’

योगी सरकार ने कोरोना से लड़ने के लिए टीम 11 का गठन किया है. जो लगभग हर रोज मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को प्रदेश में कोरोना की स्थिति की जानकारी देती है. इस टीम में सभी प्रशासनिक अधिकारी हैं. कई पत्रकार टीम 11 पर मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को गलत सूचना देने का आरोप लगाते हैं. वे बताते हैं कि टीम के सदस्य मुख्यमंत्री को वास्तविक स्थिति से अवगत नहीं करा रहे हैं. ऐसे में उन तक समस्याएं पहुंच नहीं पा रही है. जिससे प्रदेश की स्थिति दिन प्रतिदिन खराब हो रही है.

आम आदमी पार्टी के नेता और राज्यसभा सांसद संजय सिंह एक तस्वीर के जरिए टीम इलेवन पर सवाल उठा चुके हैं.

समीरात्मज मिश्र भी प्रदेश में आने वाले समय को बदहाल ही बताते हैं. वे कहते हैं, ‘‘टेस्टिंग की संख्या प्रदेश में ज़रूर बढ़ाई गई है जिस वजह से यहां कोरोना के मामलों में इज़ाफा दिख रहा है, लेकिन अभी भी जो संख्या होनी चाहिए वो नहीं है. जैसे-जैसे टेस्टिंग की संख्या बढ़ती जाएंगी पॉजिटिव लोगों की संख्या बढ़ेगी और स्थिति भयावह होती जाएगी. क्योंकि अभी ही जीतने पॉजिटिव लोग है उन्हें ये लोग होम आइसोलेशन में रखने लगे हैं. गंभीर रूप से जो बीमार लोग है उनके लिए न सरकारी अस्पतालों में जगह है और नहीं प्राइवेट अस्पतालों में. अगर यह संख्या लगातार बढ़ती रही तो आने वाले समय में स्थिति बहुत भयावह होने वाली है. जानकर लोग बता रहे कि मरीजों की संख्या कम होने की कोई संभावना अभी नज़र नहीं आ रही है.’’

आज लखनऊ की स्थिति सबसे ज़्यादा खराब बताई जा रही है. इसको लेकर वीरेंद्र सिंह कहते हैं, ‘‘मरीजों की संख्या ज़्यादा है, लेकिन बेड है ही नहीं. जो बेड उपलब्ध है वो हर जगह भरा हुआ है. मान लीजिए लखनऊ मरीजों को उठाने के लिए 25 एम्बुलेंस दौड़ रही है. यहां एक दिन में पांच सौ से सात सौ निकल रहा है. ऐसे में उसे उसी दिन एम्बुलेंस नहीं उठा पाएगी.अगर एक एम्बुलेंस एक दिन में चार-चार मरीजों को भी उठाती है तो ऐसे में वह सौ मरीजों को ही उठा पाएगी. ऐसी ही स्थिति यहां आ रही है कि चार-चार दिन तक एम्बुलेंस लोगों तक नहीं पहुंच पा रही है. मरीजों की संख्या ज़्यादा होने के कारण परेशानी तो है ही.’’

वहीं लखनऊ की स्थिति पर समीरात्मज मिश्र कहते हैं, ‘‘जैसे की मैंने बताया कि स्थिति तो खराब पूरे उत्तर प्रदेश की है, लेकिन राजधानी लखनऊ की कुछ ज़्यादा ही खराब है. इसका एक बड़ा कारण यहां ज़्यादा टेस्ट होना भी है. ये (अमृत) पत्रकार थे इनका मामला सामने आ गया, लेकिन इनके साथ जो लापरवाही हुई वैसी लापरवाही की जानकारी हमें आए दिन मिलती है. ऐसी घटनाएं सिर्फ एक नहीं है. यहां के ज़्यादातर अस्पतालों में अव्यवस्था फैली हुई है. लखनऊ का सबसे बड़ा अस्पताल पीजीआई है. वहां चेतन चौहान के साथ क्या हुआ उसे समाजवादी पार्टी के एक नेता ने बताया था. मैं मानता हूं कि वह विपक्षी दल का नेता है, लेकिन जो व्यवहार चेतन चौहान के साथ हुए वैसा वहां कई लोगों के साथ हो चुका है.’’

प्रदेश में 50 प्रतिशत से ज़्यादा मरीजों को होम आइसोलेशन में रखा गया है. पांच सितंबर को एडिशनल चीफ सेकेट्री, चिकित्सा एवं स्वास्थ्य, अमित मोहन प्रसाद ने बताया, ‘‘विगत 24 घंटे में कोरोना के 6,692 नए मामले आए हैं. प्रदेश में 59,963 कोरोना के एक्टिव मामले हैं. होम आइसोलेशन में 30,848 लोग हैं जो कि 50 प्रतिशत से अधिक हैं.’’

नॉन कोविड मरीजों की समस्या

लखनऊ में कोरोना के मरीज तो परेशान हैं ही, नॉन कोविड मरीजों की समस्याएं भी कम नहीं है. यहां का कोई भी सरकारी या प्राइवेट अस्पताल बिना कोरोना टेस्ट रिपोर्ट के किसी भी मरीज का इलाज नहीं कर रहे हैं. समय पर इलाज नहीं मिलने की स्थिति में कई मरीजों की मौत हो गई. पत्रकार अमृत दुबे के मामले में ऐसा ही देखने को मिला. ऐसे कई मामले अब तक सामने आ चुके हैं जब किसी का टेस्ट के बगैर इलाज नहीं किया गया. उसकी मौत हो गई. मौत के बाद टेस्ट हुआ तो रिपोर्ट निगेटिव आई.

अमृत दुबे की बहन सीमा ने न्यूज़लॉन्ड्री को बताया, ‘‘उन्हें हम दो निजी अस्पतालों में ले गए, लेकिन उन्होंने बुखार देखकर ही इलाज करने से मना कर दिया. वे सिर्फ हमारे साथ ही नहीं किए बल्कि किसी का भी बिना टेस्ट का इलाज नहीं कर रहे हैं.’’

नॉन कोविड मरीजों की समस्याओं को लेकर वीरेंद्र सिंह कहते हैं, ‘‘यहां सबसे ज़्यादा समस्या नॉन कोविड मरीजों को आ रही है. आप उन्हें किसी भी अस्पताल में भर्ती नहीं करा सकते हैं. चाहे केजीएमसी, चाहे लोहिया या कोई भी हो. आप गुजारिश करके मर जाइये, लेकिन भर्ती नहीं करेंगे भले ही कोई प्राइवेट वाला कर ले.’’

अमृत दुबे और पंडुरंग रायकर. लखनऊ में पत्रकार अमृत दुबे की एंबुलेंस देरी से आने की वजह से मृत्यू हो गई.

एक अंग्रेजी अख़बार के मेडिकल रिपोर्ट बताते हैं, ‘‘इसके पीछे कारण ओपीडी का ठीक तरह से नहीं खुला होना है. समान्य दिनों में लखनऊ के अलग-अलग अस्पतालों के ओपीडी में 50 हज़ार से ज़्यादा मरीजों को देखा जाता है, लेकिन अभी 25 हज़ार भी नहीं देखा जा रहा है. जिसके कारण लोग परेशान है. इसके पीछे एक और कारण है जिन अस्पतालों के डॉक्टर्स थोड़े उम्रदराज हैं उन्होंने बिलकुल अपना अस्पताल बंद कर दिया है. सरकार को चाहिए की जिन सरकारी अस्पतालों में कोरोना का इलाज नहीं हो रहा वहां कुछ एहतियात के साथ ओपीडी को खोला जाए. ऐसा नहीं होने पर लोग इलाज के आभाव में मरते रहेंगे.’’

तमाम पत्रकारों से हमने योगी सरकार की तैयारी को लेकर सवाल किया. अमूमन सबने एक ही बात बताई कि सरकार काम करने की कोशिश करते हुए नज़र तो आ रही है, लेकिन जमीन पर कोई खास बदलाव नज़र नहीं आ रहा है. टेस्ट की संख्या में ज़रूर इजाफा हुआ है, लेकिन वो भी कुछेक शहरों में ही. अगर सरकार लगातार टेस्ट बढ़ाती है तो मामले और बढ़ेंगे और फिर अस्पतालों में भीड़ बढ़ेगी जिसे संभलना मुश्किल होगा. लखनऊ राजधानी है, वहां जब ये स्थिति है तो ग्रामीण क्षेत्रों में पहुंचने पर हालात क्या होंंगे.

पूरे भारत की बात करें तो शनिवार को लगभग 90 हज़ार मामले सामने आए. यह अब तक का सबसे ज़्यादा नंबर है. भारत हर रोज ज़्यादा संख्या आने के मामले में अपना ही रिकॉर्ड तोड़ रहा है. शनिवार को भारत कुल संख्या के मामले ब्राजील को पीछे छोड़ नंबर दो पर पहुंच गया है. अब भारत से आगे सिर्फ अमेरिका है. भारत में कोरोना मरीजों की संख्या 41,18,583 हो गई. जिसमें से 70 हज़ार मरीजों की मौत हो चुकी है. भारत में अभी सक्रिय मरीजों की संख्या आठ लाख 66 हज़ार है.

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