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तबलीगी जमात: गणित से अंजान आजतक के पत्रकार!
भारत में कोरोना के आगमन के साथ ही मीडिया के बड़े हिस्से को तबलीगी जमात नाम का नया दुश्मन मिल गया था. मीडिया ने तबलीगी जमात पर ही देश में कोरोना फैलाने का सारा ठीकरा फोड़ दिया था. किसी ने इन्हें 'कोरोना बम' कहा तो किसी ने 'कोरोना जिहादी' बताया. इस दौरान कई गलत और मनगढ़ंत खबरें भी दिखाई गई. इन खबरों को कभी प्रशासन द्वारा ही गलत बताया गया तो कभी फैक्ट चेक में गलत पाया गया.
4 और 5 अप्रैल को आज तक ने दिल्ली में कोरोना मरीजों में तबलीगियों की संख्या और कुल मरीजों में इनकी प्रतिशत को लेकर एक खबर दिखाई थी. इसके खिलाफ बिहार के दरभंगा के रहने वाले 24 वर्षीय युवक फारूक इमाम ने ब्रॉडकास्ट कंटेंट कंप्लेंट्स काउंसिल (बीसीसीसी) में शिकायत की. बीसीसीसी ने इसे एनबीएसए को रेफर कर दिया.
क्या है पूरा मामला
दिल्ली के निजामुद्दीन इलाके के मरकज में तबलीगी जमात के लोगों के ठहरे होने का मामला जैसे ही सामने आया, इस पर मीडिया हमलवार हो गया. इन्होंने तबलीगी जमात से जुड़े लोगों के पॉजिटिव मामलों को अलग से बताना शुरू कर दिया गया. ऐसा करने वालों में दिल्ली की अरविंद केजरीवाल सरकार भी थी.
पांच अप्रैल को अपनी शिकायत में शिकायतकर्ता फारूक ने आज तक पर 4 और 5 अप्रैल को उस बारे में भ्रामक जानकारी देने का आरोप लगाया है.
फारूक अपनी शिकायत में लिखते हैं, ‘‘4 अप्रैल की दोपहर के 3 बजे तक दिल्ली में कोरोना के कुल केस 386 था जिसमें मीडिया के हिसाब से मरकज के 256 लोग थे. शाम के सात बजे दिल्ली में कुल केस 445 हो गए यानि 59 नए मरीज बढ़ गए. अगर नए आए सारे मामले तबलीगी समर्थकों के मान लिए जाएं तो 256 और 59 मिलाकर हुआ 315. लेकिन आज तक ने बताया कि तबलीगियों के कुल मामले 405 हैं, जबकि दिल्ली सरकार द्वारा 4 अप्रैल को जारी बुलेटिन में मरकज के नए 42 मामलों सहित कुल संख्या 301 बताई.’’
फारूक अपनी शिकायत में लिखते हैं, ‘‘पांच अप्रैल को आजतक ने शाम सात बजकर 31 मिनट पर बताया की दिल्ली में 503 मरीजों में से 320 तबलीगी जमात के हैं. इसके बाद आजतक ने कुल मरीजों में से मरकज में शामिल हुए लोगों का प्रतिशत बताते हुए कहा कि दिल्ली में कुल 90 प्रतिशत मरीज तबलीगी जमात से हैं. अगर दिल्ली के कुल मरीजों की संख्या 503 है और उसमें तबलीग के 320 मरीज थे तो यह 90 प्रतिशत कैसे हुआ? यह होता है 63.61 प्रतिशत. इन दोनों आंकड़ों में लगभग 27 प्रतिशत का अंतर है.’’
इस गैरजिम्मेदार रवैये की शिकायत 5 अप्रैल को फारूक इमाम ने बीसीसीसी में की थी. अगले ही दिन यानि छह अप्रैल को बीसीसीसी ने शिकायत एनबीएसए को ट्रांसफर कर दिया. उसी दिन एनबीएसए ने आज तक को इस संबंध में मेल किया.
एनबीएसए की तरफ से एनी जोसेफ ने आज तक के जवाबदेह अधिकारी एमएन नसीर कबीर को लिखा, ‘‘बीसीसीसी द्वारा भेजी गई शिकायत आज एनबीएसए को मिली. एनबीएसए की प्रक्रिया के अनुसार अगले सात दिन के अंदर आप जवाब दें. यह एनबीएसए की प्रक्रिया का पहला लेवल है. यह जवाब शिकायकर्ता को भी भेजी जाए.’’
फारूक कहते हैं, ‘‘एनबीएसए ने आज तक को सात दिन में जवाब देने के लिए कहा, लेकिन आज तक शांत बैठ गया. लगभग एक महीने बाद 11 मई को हमने फिर से एनबीएसए को मेल करके शिकायत की याद दिलाई और साथ में आज तक को मेल में सीसी किया.’’
11 मई को एनी जोसेफ को लिखे अपने मेल में फारूख लिखते हैं, ‘‘5 अप्रैल को मेरे द्वारा की गई शिकायत पर आपने आजतक को सात दिनों के अंदर जवाब देने के लिए कहा था, लेकिन शिकायत के 35 दिन हो गए, उनकी कोई प्रतिक्रिया नहीं आई.’’
इस शिकायत के बाद आज तक ने 12 मई को एक मेल किया और बताया, ‘‘हमने आपको 22 अप्रैल को ही जवाब भेज दिया था, लेकिन हमने जो जवाब भेजा था वो आपके गलत मेल आईडी पर था. इसके लिए हम माफ़ी चाहते है.’’
इसी जवाब के साथ 22 अप्रैल को भेजा जवाब आज तक के अधिकारी ने जोड़ दिया. आज तक ने शिकायत के जवाब में एक लम्बा चौड़ा मेल लिखा. जिसमें मीडिया की नैतिकता, लोकतंत्र के चौथा स्तम्भ, जाति, रंग, वर्ग और धर्म में भेदभाव नहीं करने वाला बताने के साथ सबसे आखिरी में बताया गया, ‘‘आपने अपनी शिकायत में जिस कार्यक्रम का जिक्र किया है उसका पता हम नहीं लगा पाए. जिस कारण आपके आरोपों को सत्यापित करने में हम असमर्थ है. हमें उम्मीद है कि हमारा जवाब पर्याप्त होगा.’’
आज तक के अधिकारी ने एक जगह अपने मेल में लिखा कि अपनी शिकायत में आपने जो आंकड़ा बताया है वह मिस कैलकुलेशन से हुआ होगा. हम आप को सुनिश्चित करना चाहते है कि हमसे यह गलत कैलकुलेशन हुआ है, हमारा गलत आंकडे दिखाने का कोई इरादा नहीं था.
12 मई को ही फारूक ने आज तक के मेल का जवाब दिया और दोबारा अपनी शिकायत दोहराते हुए उस दिन के खबर का स्क्रीन शॉट साझा करते बताया कहा, ‘‘यह महज मिसकैलकुलेशन की गलती है. जिसे बार-बार दिखाया गया.’’
इस मेल में फारूक आगे लिखते हैं, ‘‘एनबीएसए में मेरे द्वारा शिकायत दर्ज कराने के बाद आज तक ने अपने सभी प्लेटफॉर्म (फेसबुक, ट्विटर, यूट्यूब और वेब पोर्टल) से पांच अप्रैल की शाम 07:23 से 07:59 तक का वीडियो हटा दिया. आख़िरकार आजतक ने इसी समय का वीडियो क्यों हटाया? क्या कारण था? ऐसा क्यों हुआ कृपया बताएं? क्या आज तक डिलीट किए हुए अपने वीडियो को अपने सभी प्लेटफॉर्म पर दोबारा लगाएगा? अगर नहीं तो आखिर क्यों?''
फारूक मेल में आगे कहते हैं, ‘‘इन तथ्यों से लगता है कि आज तक का मकसद एक खास समुदाय को लेकर लोगों के मन में नफरत भरना था. इस तरह की स्थिति के कारण कोरोना महामारी के दौर में एक समुदाय के लोगों को कई तरह के सामाजिक बहिष्कार का सामना करना पड़ा. हमने देखा की एक खास समुदाय के सब्जी वालों के साथ किस तरह का बर्ताव किया गया.’’
अपने मेल के आखिरी में फारुक आज तक से माफ़ी मांगने की बात करते हैं. वे लिखते हैं, ‘‘अगर यह बिना किसी खास मकसद और मिसकैलकुलेशन की वजह से हुआ था तो क्या आज तक लिखित में इसके लिए माफ़ी मांगेगा और साथ ही कम से कम 60 सेकेंड तक टेलीविजन पर माफ़ी का टिकर चलाएगा?’’
फारूक न्यूज़लॉन्ड्री से बात करते हुए कहते हैं, ‘‘आज तक ने अपने जवाब में बताया कि जिस कार्यक्रम का मैंने जिक्र किया था उसका वे पता नहीं लगा पाए. यह दरअसल सिर्फ टालने का बहाना था. मैंने तो अपनी शिकायत में कार्यक्रम का दिन और समय तक बताया था.’’
11 मई को फारुक द्वारा जवाब देने के बाद से कोई जवाब नहीं आया. ना ही आज तक और ना ही एनबीएसए का. फारूक कहते हैं, ‘‘जवाब नहीं आने पर मैं एनबीएसए की वेबसाइट पर गया. वहां मुझे सेकेंड लेवल शिकायत के बारे में पता चला. वहां से इसका फॉर्म डाउनलोड करके 16 मई को मैंने दोबारा शिकायत दर्ज किया. दो दिन बाद 18 मई को एनबीएसए का जवाब आया. उन्होंने लिखा, ‘‘चूंकि आप प्रसारक द्वारा दी गई प्रतिक्रिया से संतुष्ट नहीं हैं, इसलिए आपने सेकेंड लेवल शिकायत दर्ज कराया है. शिकायत और शिकायत पर आए जवाब को एनबीएसए की मीटिंग में रखा जाएगा. लॉकडाउन के कारण एनबीएसए की अगली मीटिंग कब होगी, इसकी जानकारी हम आपको अभी नहीं दे सकते हैं.’’
इसके बाद फारूक एनबीएसए की अगली मीटिंग होने का इंतज़ार करने लगे. वे बताते हैं, ‘‘लगभग तीन महीने बाद 19 अगस्त को एनबीएसए का मेल आया. जिसमें सूचना दी गई कि इस मामले के सुनवाई सात सितंबर को होगी.’’
19 अगस्त को एनी जोसेफ ने जो मेल लिखा. उसमें उन्होंने अब तक जो कुछ हुआ है उसका जिक्र किया और साथ ही एनबीएसए का फैसला सुनाया. जिसमें एनी लिखती हैं, ‘‘शिकायत देखने के बाद एनबीएसए ने पहली नज़र में इसे खास समुदाय को निशाना बनाते पाया. जो हमारे दिशानिर्देश नंबर नौ नस्लीय और धार्मिक सद्भाव का उल्लंघन हैं. ऐसी रिपोर्टिंग दो समुदायों के बीच कम्युनल हार्मोनी को प्रभावित कर सकती है और साथ ही कानून व्यवस्था की भी समस्या खड़ी हो सकती है.’’
आज तक द्वारा अपने सभी प्लेटफॉर्म से वीडियो हटाने पर भी एनी ने अपने मेल में नाराज़गी जाहिर की. उन्होंने लिखा, ‘‘एनबीएसए शिकायत और उसपर ब्रॉडकास्टर द्वारा दी गई प्रतिक्रिया को स्वीकार किया. हमने उस सीडी को भी देखा जिसको लेकर शिकायत की गई है. एनबीएसए ने पाया कि शिकायकर्ता को चैनल पर कोरोना वायरस मामलों के आंकड़ों के लिए जस्टिफिकेशन देने के बाद कहा गया कि हम उस कार्यक्रम को पता नहीं लगा पाए, जिससे हम आपकी शिकायत को सत्यापित नहीं कर सकते हैं. और साथ ही तमाम प्लेटफॉर्म से इस वीडियो को हटा दिया गया. यह अस्वीकार्य था. एनबीएसए ने पहली नज़र में पाया की जो फैसला ब्रॉडकास्टर ने लिया वह सही नहीं था.’’
मेल में आगे लिखा गया कि एनबीएसए ने फैसला लिया है कि ब्रॉडकास्टर और शिकायतकर्ता एनबीएसए की अगली मीटिंग में सीधे तौर पर सुनवाई के लिए आएं. यह सुनवाई सात सितंबर को वीडियो कॉन्फ्रेंसिग के जरिए होगी.
सात सितंबर को लेकर क्या सोच रहे हैं. इस सवाल के जवाब में फ़ारूक़ कहते हैं, ‘‘हमारे पास तमाम सबूत है. हम इसको कायदे से रखेंगे.’’
आज तक का वीडियो
न्यूज़लॉन्ड्री आज तक के यूट्यूब चैनल पर शिकायत वाले दिनों का वीडियो तलाशने की कोशिश की, लेकिन हमें वो वीडियो नहीं मिला. हालांकि एनबीएसए को जो वीडियो आजतक द्वारा उपलब्ध कराया गया वे हमारे पास मौजूद है.
हमने उस दिन का वीडियो देखा. जहां तक चार अप्रैल वाली वीडियो की बात है. शाम सात बजे एंकर चित्रा त्रिपाठी 'देश तक' शो कर रही थी. सबसे पहले चित्रा भारत में कोरोना की स्थिति पर अपडेट देती है. देश में कोरोना पॉजिटिव मरीजों की संख्या बताते हुए चित्रा कहती हैं कि दिल्ली में कोरोना के 445 केस है, मरकज के 405. जब चित्रा बोल रही होती है उस वक़्त स्क्रीन पर इसकी जानकरी भी दी जा रही होती है.
चित्रा त्रिपाठी एक बार नहीं दो बार यह जानकरी देती हैं दोनों बार यह संख्या 405 ही बताती हैं. हालांकि न्यूज़लॉन्ड्री ने चार अप्रैल को दिल्ली सरकार द्वारा जारी हेल्थ बुलेटिन को देखा जिसमें कुल पॉजिटिव मरीजों की संख्या 445 थी, जिसमें से 301 तबलीगी जमात के लोग थे. आज तक ने 301 को 405 कर दिया.
अगर पांच अप्रैल की बात करें तो शिकायतकर्ता ने जिस शो का जिक्र किया उस वक़्त स्क्रीन पर श्वेता सिंह मौजूद थीं. प्रधानमंत्री द्वारा दिया जलाने की अपील को लेकर आजतक शो कर रहा था जिसका नाम, 'कोरोना का अंधेरा मिटाना है' था. इसी दिन प्रधानमंत्री ने दिया जलाने के लिए कहा था.
श्वेता कहती हैं, पूरा देश कोरोना के खिलाफ एक रौशनी फ़ैलाने की मुहीम में प्रधानमंत्री के आह्वान पर आज रात नौ बजे जुटने वाला है, लेकिन उससे पहले आपको इस समय की बड़ी खबर बता देते हैं. दिल्ली में कुल 58 और कोरोना के मरीज सामने आए हैं. जिसमें से 19 सीधे तौर पर मरकज से जुड़े हुए थे. अब कुल मिलाकर कोरोना पीड़ितों की संख्या 503 हो गई है. 320 लोग तबलीगी जमात के मरकज से जुड़े हुए है.
इसके थोड़ी देर बाद स्क्रीन पर एक प्लेट आता है. जिसपर लिखा होता है, ''जमातियों ने क्या कर डाला. दिल्ली के कोरोना पॉजिटिव में जमाती 90 प्रतिशत.' 90 को बड़ा करके दिखाया जाता है. इस प्लेट के पीछे वॉइस ओवर चल रहा होता है, जिसमें बताया जाता है, ‘‘दिल्ली के कुल कोरोना संक्रमितों में से करीब 90 फीसदी तो मरकज वाले ही है. चूंकि आम लोगों की संख्या कम है, इसलिए गम थोड़ा कम कर सकते हैं.’’
जिस आज तक ने चार अप्रैल को दिल्ली में 445 कोरोना मरीजों में से 405 को जमाती बताया था उसी ने अगले दिन 503 मरीजों में से 320 को मरकज का बताया. एक दिन बाद मरीज कम कैसे हो गए? यह हैरान करने वाला है. हालांकि आज तक ने दिल्ली में कुल कोरोना मरीजों में से 90 प्रतिशत को मरकज से जुड़ा बताया यह भी गलत आंकड़ा है. अगर हम यहां कुल मरीजों में से मरकज के मरीजों का प्रतिशत निकाले तो यह 90 नहीं लगभग 64 प्रतिशत होगा.
इससे मालूम चलता है कि आजतक ने गलत सूचना दर्शकों तक पहुंचाई है. इस मामले में आज तक का पक्ष जानने के लिए उसके मैनेजिंग एडिटर सुप्रियो प्रसाद को हमने सवाल भेजा है, लेकिन उसका जवाब नहीं आया. अगर जवाब आता है तो उसे खबर में जोड़ दिया जाएगा.
इस पूरे विवाद को लेकर मीडिया आलोचक और मंडी में मीडिया के लेखक विनीत कुमार कहते हैं, ‘‘इसे महज गणितीय भूल कहना सही नहीं होगा. आपको कार्यक्रम की भाषा और उस वक़्त चल रहा विजुअल भी देखना होगा. उस दौरान दर्शकों पर इसका असर क्या हुआ? मैंने उस शो की जो तस्वीरें देखी उससे साफ़ है कि इसको (तबलीगी जमात के लोगों को) हमें खलनायक बनाना है. उनकी छवि को खराब करना है.’’
ऐसे मामले में एनबीएसए क्या फैसला ले सकता है, इसको लेकर विनीत कहते हैं, ‘‘एनबीएसए चाह ले तो वह इस मामले को सूचना मंत्रालय तक ले जा सकता है, लेकिन अपनी सीमा में वो ज़्यादा से ज़्यादा माफ़ी मांगने की बात कह सकता है. आज तक के लिए बहुत बड़ी बात होगी कि वो प्राइम टाइम में वह माफ़ी मांगे.’’
तबलीगी जमातियों बॉम्बे हाईकोर्ट का फैसला और मीडिया की चुप्पी
हाल ही में बॉम्बे हाईकोर्ट के तबलीगी जमातियों के मामले पर सुनवाई करते हुए मीडिया को जमकर फटकार लगाई थी. कोर्ट ने कहा था कि मरकज में आए देशी और विदेशी तबलीगी जमातियों के खिलाफ प्रिंट और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में प्रोपेगैंडा चलाया गया. कोर्ट ने यह भी कहा था कि जमात के लोगों को 'बलि का बकरा' बनाया गया था.
जिन देशी-विदेशी जमातियों को जगह-जगह जेल में डाला गया था उन्हें अब छोड़ा जा रहा है. जमातियों से जुडी एक-एक खबर दिखाने वाली ज़्यादातर मीडिया संस्थानों ने बॉम्बे हाईकोर्ट के इस फैसले को सिरे से नज़रअंदाज़ कर दिया.
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