Newslaundry Hindi
शुरुआती तजुर्बाती कोरोना वायरस के टीके फेल हो गए तो दूसरे रास्ते क्या होंगे?
दुनिया भर के दर्जनों शोध समूह एक बड़ी जुए की बाज़ी खेल रहे हैं. वे हम सबको ये भरोसा दे रहे हैं कि उनके प्रायोगिक टीके अन्य की तुलना में सस्ते और अधिक प्रभावी होंगे. महामारी के इन सात महीनों में, 130 से अधिक प्रयोगात्मक टीको के बारे में पता चला है. पिछले हफ्ते न्यूयॉर्क टाइम्स ने पुष्टि की है कि दुनिया भर की प्रयोगशालाओं में कम से कम 88 टीके इस समय प्रीक्लीनिकल चरण में हैं. इनमें से 67 पर 2021 के अंत तक क्लीनिकल परीक्षण पूरा कर लिए जाने की उम्मीद है.
संभव है कि तब तक लाखों लोग इन टीकों की पहली खुराक प्राप्त कर चुके होंगे.लेकिन यह पूरी तरह से सिद्ध होने में कई महीने लग जाएंगे कि उनमें से कौन सा टीका सुरक्षित और प्रभावी दोनों है. इन सभी टीकों को विकसित करने वाले वैज्ञानिक अपने-अपने टीके के मॉडल को सबसे अधिक शक्तिशाली प्रतिरक्षा प्रतिक्रियाओं को प्रेरित करने में सक्षम, या उत्पादन करने के लिए सबसे सस्ता, या दोनों विशेषताओं से लैस बता रहे हैं. यही विशेषताएं उनमें से कुछ को कोरोनोवायरस के खिलाफ इस दौड़ में विजेता बनाएंगी. "हो सकता है कि जो पहला टीका बने वो सबसे ज़्यादा प्रभावी न हो," जॉर्जिया विश्वविद्यालय में वैक्सीन और इम्यूनोलॉजी केंद्र के निदेशक टेड रॉस ने यह बात कही. उनका बनाया हुआ टीका 2021 में क्लिनिकल परीक्षण के चरण में जायेगा.
इस दौड़ में शामिल टीकों में से जो सबसे आगे नज़र आ रहे हैं, वे सभी एक ही जैव-चिकित्सीय सिद्धांत पर काम कर रहे हैं. इसमें एक प्रोटीन- जिसका नाम स्पाइक प्रोटीन है-जो कि प्राकृतिक रूप से कोरोनावायरस के ऊपरी कवच पर पायी जाती है. शरीर के अंदर जाने पर हमारी प्रतिरक्षा प्रणाली को खुद के खिलाफ एंटीबॉडी बनाने के संकेत देगी, और अंततः सैद्धांतिक रूप से इससे बनने वाली एंटीबाडी, कोरोनावायरस को ब्लॉक करके नष्ट करेगी.लेकिन कुछ शोधकर्ताओं की चिंता ये है कि हमें एक ही तरह की रणनीति से बहुत अधिक उम्मीदें नहीं लगानी चाहिए, वो भी ऐसी रणनीति जिसे अभी सफल साबित होना बाकी है.
डेविड वीस्लर जो कि वाशिंगटन विश्वविद्यालय में वायरोलॉजिस्ट हैं, कहते हैं,"अपने सभी अंडों को एक ही टोकरी में रखना बुद्धिमत्ता नहीं."
‘स्पाइक-नोक नैनोकण’ टीका
मार्च के महीन में, डॉ. वीस्लर और उनके सहयोगियों ने एक नैनोकण वाला टीका तैयार किया, जिसमें हर एक नैनोकण पर स्पाइक प्रोटीन की नोक की 60 प्रतियां एक साथ मौजूद थीं. इन नैनोकणों में पूरी स्पाइक प्रोटीन के बजाय उसका बाहर निकलता हुआ नोकीला भाग जो कि कोरोनावायरस के मानव शरीर में घुसने के बाद हमारी कोशिकाओं से सबसे ज़्यादा संपर्क में आता है, उसका इस्तेमाल किया गया है. यह एक मज़बूत प्रतिरक्षा प्रतिक्रिया को प्रेरित कर सकता है. जब इन नैनोकणों को चूहों में इंजेक्ट किया गया, तो उनमें कोरोनावायरस के खिलाफ बड़ी मात्रा में एंटीबॉडी उत्पन्न होने की प्रतिक्रिया हुई. पूरे स्पाइक प्रोटीन वाले एक टीके द्वारा उत्पादित एंटीबाडी प्रतिक्रिया की तुलना में बहुत अधिक.
जब इन टीकाकृत चूहों को कोरोनावायरस से एक्सपोज़ कराया गया, तो ये चूहे संक्रमण से सुरक्षित पाए गए.डॉ. वेस्लर के सहयोगी, नील किंग द्वारा सह-स्थापित एक कंपनी, आइकोसावैक्स, जल्द ही ‘नैनोकण टीके’ का क्लीनिकल परीक्षण शुरू करेगी. अमेरिकी सेना के वाल्टर रीड आर्मी इंस्टीट्यूट के शोधकर्ताओं ने एक और ‘स्पाइक-नोक नैनोकण’ वाला टीका बनाया है, जिसका क्लीनिकल परीक्षण भी चल रहा है. कुछ अन्य कंपनियां और विश्वविद्यालय भी ‘स्पाइक-नोक नैनोकण’ वाले टीके पर काम कर रहे हैं.
टी-कोशिकाओं पर आधारित टीके
शरीर के प्रतिरक्षा शस्त्रागार में कई दूसरे अस्त्रों के साथएंटीबॉडी भी एक प्रतिरोधी हथियार है. टी-रक्त-कोशिकायें भी उन्हीं में से एक हैं, जो वायरस द्वारा संक्रमित की गई कोशिकाओं को खा जाती हैं. ब्राजील के साओ पाउलो के इंस्टीट्यूटो बुटानन की टीका शोधकर्ता लुसियाना लेईटकहते हैं, "हम अभी भी नहीं जानते हैं कि किस तरह की प्रतिरक्षा प्रतिक्रिया सुरक्षा के लिए महत्वपूर्ण होगी." केवल एंटीबाडी प्रतिक्रिया प्रेरित करने वाले टीके दीर्घावधि में बेअसर हो सकते हैं.
डॉ. लेईट कोरोनोवायरस के विभिन्न हिस्सों से बने टीकों का परीक्षण कर रहीं हैं, इसका तुलनात्मक अध्ययन बताएगा कि कौन से हिस्से टी-कोशिकाओं को कोरोनावायरस से लड़ने के लिए सबसे मजबूती से उत्तेजित कर पाता है.एनी डी ग्रोट जो कि रोड आईलैंड स्थित एपिवाक्स कंपनी की सीईओ हैं, कहती हैं, "यह शारीरिक प्रतिरक्षा की दूसरी पंक्ति है, जो एंटीबॉडी से बेहतर काम कर सकती है."
उन्होंने स्पाइक प्रोटीन के कई टुकड़ों को साथ मिलाकर उसमें अन्य वायरसों से प्राप्त प्रोटीन को जोड़कर एक प्रयोगात्मक टीका बनाया है, जिस पर दिसंबर में क्लिनिकल परीक्षण होगा.
नाक के स्प्रे वाले टीके
एक टीके की प्रभावशीलता इससे भी तय होती है, कि ये हमारे शरीर में किस रास्ते भेजा जाता है. सभी टीके, जो कि क्लीनिकल परीक्षण में हैं, इसको मांसपेशियों में इंजेक्ट करना है. पहले आया इन्फ्लूएंजा का सफलतम टीका जिसका नाम फ्लुमिस्ट है, उसे नाक के रास्ते स्प्रे किया जाता है- ये प्रणाली कोरोनावायरस के लिए भीकारगरहोगी, क्योंकि ये वायरस भी वायुमार्ग से हमारे शरीर में आताहै. नाक-स्प्रे वाले टीकों में सबसे कल्पनाशील पहल न्यूयॉर्क की एक कंपनी, कोडॉजेनिक्स की है. वे एक ऐसे टीके का परीक्षण कर रहे हैं जिसमें वे कोरोनावायरस का सिंथेटिक संस्करण प्रयोग कर रहे है. दशकों से, टीकों के निर्माताओं ने चिकनपॉक्स और यलो फीवर (पीत-ज्वर) जैसे रोगों के लिए कमजोर जीवित वाइरस को सफलता से प्रयोग किया है.
परंपरागत रूप से, वैज्ञानिक कमज़ोर वायरस को प्राप्त करने के लिए उनको मुर्गियों या अन्य जानवर की कोशिकाओं में वंश-वृद्धि करते हैं. वायरस अपने नए मेजबान जानवर (मुर्गी इत्यादि) में डाले जाने पर पहले अनुकूलन करते हैं, और इस प्रक्रिया में वे मानव शरीर में बढ़ने के लिए अनुपयुक्त बन जाते हैं. लेकिन ये वायरस अभी भी मानव कोशिकाओं में घुस पाने में सक्षम होते हैं. हालांकि, उनका प्रजनन बहुत धीमा हो जाता है. परिणामस्वरूप, वे हमें बीमार नहीं कर पाते.
इन कमजोर वायरसों की छोटी खुराक प्रतिरक्षा प्रणाली के लिए एक शक्तिशाली उत्प्रेरक होती है. अपेक्षाकृत कमज़ोर जीवित वायरस वाले सफल टीकों की संख्या कम है, क्योंकि उन्हें बनाना एक बड़ा संघर्ष है. "यह वास्तव में परीक्षण और त्रुटि (हिट एंड ट्रायल) पर आधारित होता है," जे रॉबर्ट कोलमैन ने कहा, जो कोडॉजेनिक्स के सीईओ हैं.वो आगे कहते हैं, "आप कभी नहीं कह सकते कि उनके जीन में म्युटेशन क्या कर रहे हैं."
कोडॉजेनिक्स के वैज्ञानिकों ने कंप्यूटर के द्वारा कोरोनावायरस के जीनोम को संपादित किया, जिससे उसके सीक्वेंस में 283 म्युटेशन पैदा हुए. फिर उन्होंने इस बदले हुए जीनोम को बंदरों की कोशिकाओं में डाल दिया. कोशिकाओं ने फिर इस बदले हुए जीनोम वाले सम्पादित वायरस बनाए. इन सम्पादित वायरसों को हैम्स्टर्स पर प्रयोग किया गया.इसमें सामने आया कि सम्पादित वायरसों वाला टीका जानवरों को बीमार नहीं करता है- लेकिन उन्हें कोरोनावायरस से बचाता है.कोडॉजेनिक्स सितंबर के शुरू में इन सम्पादित वायरस वाले टीकों को ‘नाक-स्प्रे’ वाले टीके के रूप में क्लीनिकल परीक्षण शुरू करेगी.
पारंपरिक कमज़ोर वायरस वाले टीके और तेज़ एवं सस्ता उत्पादन
फ्रांसीसी कंपनी वल्नेवा नवंबर में इस टीके का क्लीनिकल परीक्षण शुरू करेगी. "हम एक पारंपरिक कार्यप्रणाली के साथ महामारी से निपटने का प्रयत्न कर रहें हैं," थॉमस लिंगेलबैक ने कहा, जो कि वल्नेवा के सीईओ हैं. वैल्नेवा निष्क्रिय करने वाले रसायनों से टीके बनाती है. 1955 में जोनास साल्क (पोलियो टीका) ने इसी नुस्खे से अभूतपूर्व सफलता प्राप्त की थी.
चीनी कोरोनावायरस टीके के निर्माताओं के ऐसे तीन टीके क्लिनिकल परीक्षण में हैं. निष्क्रिय वायरस के टीकों को शुद्धिकरण के लिए, बहुत उच्च मानकों को पूरा करना पड़ता है, यह सुनिश्चित करने के लिए कि टीकों में सभी वायरस कमज़ोर/निष्क्रिय ही हों. वाल्नेवा का टीका पहले ही उन मानकों को पूरा कर चुका है. लेकिन चीनी टीकों की जानकारी किसी के पास उपलब्ध नहीं है.
यूनाइटेड किंगडम ने वाल्नेवा के टीके की 60 मिलियन खुराक अग्रिम में खरीद ली है. अगर टीकों के शुरुआती प्रयत्न काम भी कर जाते हैं, तो विशालकाय वैश्विक मांग से निपटने के लिए उन्हें तेजी से बनाना होगा. मॉडेर्ना और फ़ाइज़र, जो कि आरएनए आधारित टीकों का क्लिनिकल परीक्षण कर रहे हैं, और वैज्ञानिक रूप से सबसे उन्नत हैं, इस पद्धति पर बने किसी भी टीके का पहले कभी भी उत्पादन नहीं किया गया है.
कोडॉजेनिक्स के मुख्य वैज्ञानिक, स्टीफेन मुलर कहते हैं, "विनिर्माण गणित के हिसाब से इसका उत्पादन मुश्किल लगता है." कई पारंपरिक टीके बड़े पैमाने पर उत्पादित किये जा सकते हैं, जिनका उपयोग सुरक्षित और प्रभावी ढंग से दशकों से हो रहा है. कोडॉजेनिक्स ने सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया के साथ अपने सम्पादित वायरस वाले टीके के उत्पादन की साझेदारी की है. कंपनी पहले से ही खसरा, रोटावायरस और इन्फ्लूएंजा के लिए जीवित-कमजोर वायरस के टीकों की अरबों खुराक बनाती है.
स्थापित कार्यप्रणाली का इस्तेमाल करने से टीके की लागत में भी भारी कटौती होगी, जिससे इसे निर्धन देशों में वितरित करना आसान होगा. बैलर कॉलेज ऑफ मेडिसिन के शोधकर्ता, एक सस्ते टीके पर काम कर रहे हैं जिसकी लागत 2 डॉलर प्रति खुराक है. जबकि फ़ाइज़र ने अमेरिकी सरकार के साथ सौदा 19 डॉलर प्रति खुराक में किया है. अन्य कंपनियां भी भारी मुनाफाखोरी कर रही हैं. इस टीके के लिए, बैलर की टीम ने कोरोनोवायरस ‘स्पाइक-नोक’ बनाने के लिए खमीर को इंजीनियर किया है. यह ठीक उसी तरह की विधि है जिससे 1980 से ही हेपेटाइटिस-बी का टीका बनाया जाता है. भारतीय टीका निर्माता बायोलॉजिकल-ई इसे बनाएगा और यह क्लिनिकल परीक्षणों के करीब है.
भले ही दुनिया को कोविड -19 के लिए सस्ते और प्रभावी टीके मिल जाएं, लेकिन इसका यह बिल्कुल भी मतलब नहीं है कि हमारी आने वाली महामारियों की चिंताएं खत्म हो गईं. जंगली-जानवरों में छिपे बैठे अन्य तमाम वायरस के जरिए कोविड-19 जैसी महामारी कभी भी प्रकट हो जाएगी. कई कंपनियां- जिनमें चीन की अनहुइ ज़ोइफ़ी, फ्रांस की ओसिवैक्स और अमेरिका की वीबीआई है, "सार्वभौमिक" कोरोनवायरस वायरस टीके का विकास कर रही हैं. ये ऐसे वायरस समूह से सुरक्षा देंगे, जिन्होंने मानव जाति को अब तक संक्रमित नहीं किया है.
कई वैज्ञानिक टीकों पर अपने काम को एक महान कार्य की तरह देखते हैं- जो पूरे राष्ट्र की भलाई करेगा. उदाहरण के लिए, थाईलैंड, विदेश में विकसित कोविड-19 टीकों को खरीदने की तैयारी कर रहा है, लेकिन वहां के वैज्ञानिक सीमित संसाधनों में भी टीका विकास पर शोध कर रहे हैं, चुललॉन्गकोर्न विश्वविद्यालय में कई संभावित टीकों पर शोधकार्य प्रगति पर है.इसमें एक आरएनएआधारित टीका भी शामिल है जिसके 2021 में क्लिनिकल परीक्षण की संभावना है. ये टीका फ़ाइज़र द्वारा बनाये गए टीके के समान है जो की अब उन्नत-चरणीय क्लिनिकल परीक्षण में है.सभी देशों के वैज्ञानिक अपने स्वयं के संस्करण बना कर भविष्य की ऐसी महामारियों से अपने देश को सुरक्षा प्रदान करना चाहते हैं.
(लेखक बाबासाहेब भीमराव अंबेडकर केद्रीय विश्वविद्यालय, लखनऊ में बायोटेक्नोलॉजी विभाग में असिस्टेंट प्रोफेसर हैं.)
Also Read
-
TV Newsance 321: Delhi blast and how media lost the plot
-
Hafta 563: Decoding Bihar’s mandate
-
Bihar’s verdict: Why people chose familiar failures over unknown risks
-
On Bihar results day, the constant is Nitish: Why the maximiser shapes every verdict
-
Missed red flags, approvals: In Maharashtra’s Rs 1,800 crore land scam, a tale of power and impunity