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आसान नहीं है ट्रंप का चुनावी सफर

डेलावर के विलमिंग्टन में आयोजित डेमोक्रेटिक पार्टी के तीन दिवसीय सम्मेलन में जो बाइडेन को आधिकारिक रूप से उम्मीदवार घोषित कर दिया गया है. सीनेटर कमला हैरिस उनके साथ उपराष्ट्रपति पद का चुनाव लड़ेंगी. रिपब्लिकन पार्टी का सम्मेलन 21 से 24 अगस्त तक नॉर्थ कैरोलाइना के शारलट में है, जहां मौजूदा राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप और उपराष्ट्रपति माइक पेंस की उम्मीदवारी पर पार्टी की मुहर लगेगी. डेमोक्रेटिक पार्टी का सम्मेलन मुख्य रूप से ऑनलाइन और वीडियो के जरिये संचालित किया है और कमोबेश यही हाल रिपब्लिकन सम्मेलन में भी रहेगा, हालांकि ऐसा भी कहा जा रहा है कि कोरोना संक्रमण से बचाव के उपायों के साथ भी कुछ कार्यक्रम हो सकते हैं.

इस बार का अमेरिकी चुनाव हालिया इतिहास के शायद सबसे अधिक विवादित, विभाजित और तनावपूर्ण माहौल में हो रहा है. राष्ट्रपति ट्रंप के कार्यकाल में जहां एक ओर अमेरिकी समाज में दरारें बढ़ी हैं, वहीं कोरोना संकट ने आर्थिकी को बहुत ज़्यादा नुक़सान पहुंचा दिया है. साल 2016 के चुनाव में विदेशी मदद लेने के मामले में अमेरिकी कांग्रेस में उनके ऊपर महाभियोग लगाने की असफल कार्रवाई भी हो चुकी है. करों की चुकौती के बारे में जानकारी सार्वजनिक न करने का मसला भी लंबे समय तक चर्चा में रहा था. उन्होंने अपनी पार्टी के बहुत से लोगों को अपनी बातों, हरकतों और नीतियों से नाराज़ किया है. आबादी के ग़ैर-गोरे तबके में भी वे ख़ासा अलोकप्रिय हैं. देश के भीतर राष्ट्रपति की गरिमा और देश से बाहर अमेरिका के वर्चस्व में गिरावट से बहुत से उनके वोटर भी ख़फ़ा हैं.

उनके अनेक नज़दीकी सलाहकार और सहयोगी या तो जेल में हैं या मुक़दमों का सामना कर रहे हैं. कुछ उनके ख़िलाफ़ गवाह भी बने हैं. ताज़ा उदाहरण स्टीव बैनन का है, जो पिछले चुनाव के आख़िरी दौर में ट्रंप अभियान के मुखिया थे और राष्ट्रपति बनने के बाद ट्रंप ने उन्हें अपने प्रशासन का प्रमुख रणनीतिक सलाहकार बनाया था. धोखाधड़ी के मामले में बैनन की गिरफ़्तारी अनेक वजहों से अहम है. एक तो यह है कि यह मसला सीमा पर दीवार बनाने से जो जुड़ा हुआ है, जो ट्रंप अभियान का सबसे बड़ा मुद्दा था. दूसरी वजह है कि फ़ेसबुक के डेटा को आपराधिक रूप से कैंब्रिज़ एनालाइटिका द्वारा इस्तेमाल करने और ऑनलाइन वेबसाइट ब्रीटबार्ट के प्लेटफ़ॉर्म से नफ़रत व झूठ से भरीं ख़बरें व लेख छापने तथा सोशल मीडिया के माध्यम से भ्रामक विज्ञापन देने जैसी गतिविधियों के आरोप स्टीव बैनन पर लगे.

पिछले चुनाव में राजनीतिक नैतिकता और भद्रता की सीमाओं को जिस तरह से ट्रंप अभियान ने लांघा था, वह सब बैनन की ही रणनीति थी. बैनन यूरोप, एशिया और लातिन अमेरिका में धुर दक्षिणपंथी, संकीर्ण राष्ट्रवादी, नव-फ़ासीवादी राजनीति के न केवल समर्थक हैं, बल्कि उन्हें मदद करने और एक वैचारिक मंच पर लाने की कोशिश भी करते रहे हैं.

तीसरा कारण यह है कि पहले मानाफ़ोर्ट, कोहेन, रॉजर स्टोन जैसे ट्रंप के सहयोगियों के अपराधी साबित होने के बाद बैनन का गिरफ़्तार होना धुर दक्षिणपंथी राजनीति के लिए बड़ा झटका है तथा उनकी रही सही साख को इससे बहुत नुक़सान होगा. शायद ही उनकी कीचड़ उछालने और नफ़रत फैलाने की कोशिशों के लिए इस बार मौक़ा बन सकेगा. धुर दक्षिणपंथी पैंतरा इस दफ़ा काठ की हांडी साबित हो सकता है.

बहरहाल, तीन नवंबर में अभी कई दिन बाक़ी हैं. कई लोग कह रहे हैं कि अभी ट्रंप की हार और बाइडेन की जीत की भविष्यवाणी करना जल्दबाज़ी होगी. ऐसा कहने का बड़ा कारण यह है कि लोगों के ज़ेहन में 2016 की याद ताज़ा है, जब मतदान के दिन तक हिलेरी क्लिंटन तमाम सर्वेक्षणों में आगे थीं और बड़े-बड़े पॉलिटिकल पंडित मानकर बैठे थे कि बड़बोले डोनाल्ड ट्रंप के व्हाइट हाउस पहुंचने की कोई गुंजाइश ही नहीं है. लेकिन, आठ नवंबर को 304 डेलिगेट वोटों के साथ डोनाल्ड ट्रंप को जीत हासिल हुई. यह जुमला भी उछाला जाता है कि राजनीति संभावनाओं का खेल है, लेकिन हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि संभावनाएं भी संदर्भ और पृष्ठभूमि में ही घटित होती हैं.

पिछले चुनाव में हिलेरी क्लिंटन को ट्रंप से तीस लाख वोट ज़्यादा मिले थे और वे अमेरिकी चुनावी इतिहास में सबसे अधिक वोट पानेवाले उम्मीदवारों में दूसरे पायदान पर हैं. उन्हें 48 फ़ीसदी वोट मिले थे, जबकि ट्रंप के खाते में 46 फ़ीसदी वोट गए थे. लेकिन अमेरिका में राष्ट्रपति वह व्यक्ति चुना जाता है, जिसे इलेक्टोरल कॉलेज के डेलीगेट वोट अधिक मिलते हैं.

साल 2016 में कुल 538 वोटों में से ट्रंप को 304 (306) वोट मिले थे और क्लिंटन को 227 (232) डेलीगेट वोटों से संतोष करना पड़ा था. अब तक हुए 54 चुनावों के डेलीगेट वोटों के आंकड़े देखें, तो उसमें ट्रंप के वोट 44वें स्थान पर हैं. आम तौर पर नतीजों में वही राष्ट्रपति बनता आया है, जिसे दोनों ही श्रेणियों में अधिक वोट मिलते हैं. लेकिन 2016 के अलावा 2000 में भी जॉर्ज डब्ल्यू बुश डेमोक्रेटिक उम्मीदवार अल गोर से 5.44 लाख वोट कम पाकर भी डेलीगेट वोटिंग सिस्टम की वजह से राष्ट्रपति बन गए थे.

इससे पहले ऐसा संयोग 1888 के चुनाव में हुआ था. इस सिस्टम में हर राज्य के सीनेट और हाउस ऑफ़ रिप्रेजेंटेटिव के सदस्यों की संख्या के बराबर डेलीगेट होते हैं. माना जाता है कि अमेरिकी संविधान में इसकी व्यवस्था सीधे मतदान और कांग्रेस में प्रतिनिधित्व के बीच संतुलन साधने के लिए की गयी थी.

तो 2016 की स्थिति फिर बन सकती है, लेकिन इस साल के अमेरिकी चुनाव की तुलना 2016 से करना बहुत हद तक ठीक नहीं है. हालांकि डेमोक्रेटिक पार्टी के सम्मेलन में ख़ुद हिलेरी क्लिंटन ने वोट डालने की अहमियत पर ज़ोर देते हुए कहा है कि जो बाइडेन और कमला हैरिस की जोड़ी तीस लाख वोट अधिक लाकर भी चुनाव हार सकती है. एक तो यह है कि ओबामा और क्लिंटन से जुड़ी शिकायतों तथा ट्रंप से जुड़ी उम्मीदों का समीकरण बदला है. पिछले चुनाव में डेमोक्रेटिक सम्मेलन के बाद हिलेरी क्लिंटन ने सर्वेक्षणों में जो ऊंची छलांग लगायी थी, उस स्तर को बाइडेन सम्मेलन से पहले ही पार कर चुके हैं. फ़ाइव थर्टी एट ने विभिन्न सर्वेक्षणों का जो औसत निकाला है, उसके मुताबिक 19 अगस्त तक राष्ट्रीय स्तर पर बाइडेन 51.1 फ़ीसदी के साथ ट्रंप से 8.6 फ़ीसदी आगे थे.

इस साल बाइडेन को कुछ महत्वपूर्ण रिपब्लिकन नेताओं का समर्थन भी हासिल है. ओहायो के पूर्व गवर्नर और 2016 में पार्टी की ओर से राष्ट्रपति की उम्मीदवारी के इच्छुक जॉन कसिच, न्यू जर्सी की पूर्व गवर्नर क्रिस्टीन व्हिटमैन, न्यूयॉर्क से पूर्व हाउस सदस्य सुज़न मोलिनरी, ट्रंप प्रशासन के पूर्व वरिष्ठ अधिकारी माइल्स टेलर, पेंसिलवेनिया से पूर्व हाउस सदस्य चार्ली डेंट तथा राष्ट्रपति जॉर्ज बुश के कार्यकाल में विदेश सचिव रहे कॉलिन पॉवेल ने कहा है कि देश को आज बाइडेन जैसे राष्ट्रपति की आवश्यकता है.

डेमोक्रेटिक सम्मेलन में रिपब्लिकन पार्टी की ओर से राष्ट्रपति उम्मीदवार रहे जॉन मैक्केन के परिवार ने दोनों नेताओं व परिवारों की दशकों की घनिष्ठता का हवाला देते हुए बाइडेन का समर्थन किया है. ट्रंप के चुनाव के बाद से बुश परिवार के सदस्य, पॉल रेयान और मिट रोमनी जैसे कई प्रभावशाली रिपब्लिकन दूरी बनाकर चल रहे हैं. वरिष्ठ रिपब्लिकनों द्वारा संचालित मंच ‘द लिंकन प्रोजेक्ट’ भी बाइडेन के समर्थन में है. यह मंच लगातार ट्रंप को निशाना बनाता रहता है और वे भी इसकी आलोचना करते रहते है.

गणित का हिसाब लगाने से पहले यह भी उल्लेखनीय है कि ट्रंप द्वारा जीते गए राज्यों- विस्कोंसिन, मिशिगन और पेंसिलवेनिया- में 2018 के चुनावों में डेमोक्रेट पार्टी ने भारी जीत हासिल की थी. इन राज्यों के महत्व को इस तथ्य से समझा जा सकता है कि इनमें मिले 77,744 वोटों की बदौलत ही ट्रंप राष्ट्रपति बन सके थे. इन राज्यों से उन्हें कुल 46 डेलीगेट वोट हासिल हुए थे, जबकि इनमें हिलेरी क्लिंटन से उनकी जीत का अंतर एक फ़ीसदी से भी कम था.

ट्रंप पेंसिलवेनिया में 0.7 फ़ीसदी (44,292 वोट), विस्कोंसिन में 0.7 फ़ीसदी (22,748 वोट) तथा मिशिगन में 0.2 फ़ीसदी (10,704 वोट) से जीते थे. वाशिंगटन एक्ज़ामिनर के विश्लेषण में 2016 में बदलाव को रेखांकित करते हुए बताया गया था कि 2012 में इन तीन राज्यों में बराक ओबामा अच्छे अंतर से जीते थे, लेकिन 2016 में जहां राष्ट्रीय स्तर पर रिपब्लिकन पार्टी की तरफ तीन फ़ीसदी का झुकाव बढ़ा था, वहीं इन राज्यों में यह झुकाव छह से 10 फ़ीसदी बढ़ गया था. लेकिन 2018 में इन राज्यों में सीनेट की तीन सीटों और गवर्नरों के चुनाव में सभी सीटें डेमोक्रेट पार्टी ने अच्छे अंतर से जीत लीं. स्थानीय चुनाव में भी पार्टी ने शानदार प्रदर्शन किया था और राष्ट्रीय स्तर पर भी हाउस में बहुमत हासिल किया था. सर्वेक्षणों में इन तीन राज्यों में और कुछ अन्य बैटलग्राउंड/स्विंग राज्यों में बाइडेन बहुत बढ़त बनाये हुए हैं और 2016 का चमत्कार इस बार घटित होने की आशा बहुत क्षीण है. बैटलग्राउंड/स्विंग राज्य उनको कहा जाता है, जहां पलड़ा कभी रिपब्लिकन, तो कभी डेमोक्रेट के पाले में झुकता रहता है.

ऊपर के विवरण के साथ अगर आप बैटलग्राउंड/स्विंग राज्यों का विस्तार से हिसाब लगाएं, तो लड़ाई राज्यों में भी नहीं, बल्कि उनके कुछ काउंटी यानी इलाकों में तय होगी. द हिल ने कई विशेषज्ञों से चर्चा के आधार पर निष्कर्ष निकाला है कि ऐसे 10 इलाकें हैं, जहां के मतदाता अमेरिका के अगले राष्ट्रपति का निर्णय करेंगे और इनमें से ज़्यादातर जगहों में अभी बाइडेन आगे चल रहे हैं. द हिल की एक अन्य रिपोर्ट में रेखांकित किया है कि इस चुनाव में ट्रंप के पाले में 126 सुरक्षित और 78 ठोस झुकाव के वोटों के साथ 204 डेलीगेट वोट हैं और बाइडेन के पास 183 सुरक्षित और 18 ठोस झुकाव के वोटों के साथ 201 डेलीगेट वोट हैं. जीतने के लिए 538 में से कम-से-कम 270 वोटों की दरकार होगी.

तीन नवंबर को राष्ट्रपति के साथ हाउस ऑफ़ रिप्रेज़ेंटेटिव की सभी सीटों तथा सीनेट की 35 सीटों के लिए भी चुनाव होंगे. साल 2018 में 435 में से 235 सीटें जीतकर डेमोक्रेट ख़ेमे ने हाउस में बहुमत हासिल किया था. उसे बेदख़ल करने के लिए रिपब्लिकन पार्टी को अभी की सीटों के अलावा 20 और सीटों को जीतना होगा. सीनेट में रिपब्लिकन का बहुमत है. वहां अब बहुमत के लिए डेमोक्रेट को तीन-चार सीटें जीतनी होंगी. इस बार रिपब्लिकन पार्टी अपनी 23 सीटें और डेमोक्रेटिक पार्टी अपनी 12 सीटें बचाने के लिए मैदान में है. जिस तरह के सर्वेक्षण आ रहे हैं और जैसा विशेषज्ञ बता रहे हैं, सीनेट में भी कड़ा मुक़ाबला हो सकता है तथा हाउस में डेमोक्रेटिक पार्टी अपना बहुमत बचा लेगी. कुल मिलाकर, अभी यह कहा जा सकता है कि राष्ट्रपति ट्रंप और रिपब्लिकन पार्टी के लिए मुसीबत बड़ी है.

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