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कारवां के पत्रकारों पर हमला: ‘‘यह सरकार की विचारधारा का सड़क पर रिफ्लेक्शन है’’

‘‘दो-तीन छोटे मीडिया संस्थान ही है जिनकी रीढ़ में अभी भी ताकत है. पर इस बड़े से जेल में अगर उनको ऐसी छोटी खिड़की भी नज़र आती है तो उसे बंद करने की कोशिश कर रहे हैं. उन्हें वे लोग बर्दाश्त ही नहीं जो मेनस्ट्रीम नैरेटिव के खिलाफ लिखें. ऐसा करने वालों का सड़क पर शोषण हो रहा है. हमारी सड़कें भी हमारे हाथों से चली गई है. यह घृणा से भरी विचारधारा अब आम लोगों के बीच पहुंच गई है.’’

यह कहना था मशहूर लेखिका और सामाजिक कार्यकर्ता अरुंधति राय का. राय गुरुवार को दिल्ली में ‘कारवां’ पत्रिका के पत्रकारों पर हुए हमले को लेकर प्रेस क्लब ऑफ़ इंडिया में आयोजित सभा में बोल रही थीं.

इस सभा में सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ वकील प्रशांत भूषण, कारवां के राजनीतिक संपादक हरतोष सिंह बल और हमले के शिकार हुए दो पत्रकारों ने अपनी बात रखीं वहीं तीसरी महिला पत्रकार वहां नहीं पहुंची. उनका लिखित बयान पढ़कर सुनाया गया.

प्रेस क्लब में आयोजित हुआ कार्यक्रम

पत्रकारों पर हमला: कब, कहां और क्यों

उत्तर-पूर्वी दिल्ली के भजनपुरा में एक जगह है सुभाष मुहल्ला. फरवरी महीने में हुए दंगे में यह इलाक़ा भी काफी प्रभावित हुआ था. यहां सीएए समर्थक भीड़ ने मारुफ़ अली और शमशाद को गोली मार दी थी. जिसमें मारुफ़ की मौत हो गई थी. वहीं एक दुसरे युवक रेहान को भी दंगे के वक़्त भीड़ ने गोली मार दी थी.

कारवां पत्रिका के तीन पत्रकार, प्रभजीत सिंह, शाहिद तांत्रे और एक महिला पत्रकार 11 अगस्त को रिपोर्टिंग के सिलसिले में वहां गए थे. वहां स्थानीय लोगों ने ना ही सिर्फ इन्हें काम करने से रोका बल्कि शाहिद तांत्रे का नाम पूछने के बाद उन्हें मारना शुरू कर दिया. उनका कैमरा छीनने की कोशिश की गई. वहीं महिला पत्रकार के साथ शारीरिक छेड़छाड़ की गई. दुर्भाग्य से यह सब कुछ स्थानीय महिलाओं की उपस्थिति में हुआ. एक घंटे से ज्यादा समय तक यह सब सुभाष मुहल्ला में चलता रहा.

हाल के दिनों में पूरे देश में पत्रकारों पर हमले में तेजी आई है. कही सरकारी मशीनरी द्वारा तो कहीं बड़े बिल्डरों और माफियाओं द्वारा पत्रकारों पर हमले कराए जा रहे हैं. ऐसे हमलों में कई दफा पत्रकारों की जान तक चली गई है.

उत्तर प्रदेश से हर महीने दो-तीन ऐसी ख़बरें आती हैं जहां पत्रकार को ख़बर रिपोर्ट करने के कारण प्रशासन द्वारा मामला दर्ज करा दिया गया और कारण शासन की छवि खराब करना बताया गया.

मार्च महीने में कमेटी अगेन्स्ट असॉल्ट ऑन जर्नलिस्ट द्वारा जारी द्वारा जारी एक रिपोर्ट के मुताबिक नागरिकता संशोधन कानून (सीएए) पास होने के बाद उसके खिलाफ शुरू हुए प्रदर्शन, उसके समर्थन में निकाली गई रैलियों और बीते दिनों दिल्ली में हुए दंगे के दौरान 32 ऐसे मामले सामने आए हैं जिनमें पत्रकारों के साथ मारपीट या उन्हें अपना काम करने से रोकने की कोशिश हुई है.

इन तमाम मामलों से कारवां के पत्रकारों के ऊपर हुआ हमला अलग है क्योंकि यह सिर्फ पत्रकारों के ऊपर हमला नहीं बल्कि धर्म के आधार पर हमला किया गया. शाहिद को कटुआ मुल्ला बुलाया गया. सांप्रदायिक गालियां दी गई. शाहिद उस दिन को याद करते हुए कहते हैं, ‘‘जिन महिलाओं को मैं आंटीजी और माताजी कहकर बात कर रहा था वो मुझे मार रही थी. मेरे कैमरे के पट्टे से मेरा गर्दन दबाने की कोशिश कर रही थी.’’

5 अगस्त को अयोध्या में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा राम मन्दिर भूमि पूजन का जश्न देशभर में मनाया गया. कई जगह लोगों ने दीये जलाए थे तो कई जगहों पर पटाखे छोड़े गए. सुभाष मुहल्ला में भी इसका जमकर जश्न मनाया गया था. जिसकी तस्दीक घरों के बाहर मौजूद भगवा झंडे से होती है. लेकिन उस रात यहां कुछ लड़कों ने मुस्लिम बाहुल्य इलाकों की गलियों के गेट पर भगवा झंडा लगा दिया. सिर्फ इतना ही नहीं बल्कि मुल्लो बाहर जाओ.. सुअरों बाहर जाओ के नारे लगाते रहे. गेट पर पटाखे भी फोड़े, जिसकी शिकायत स्थानीय महिलाओं ने डीसीपी उत्तर-पूर्वी दिल्ली से की है. इस मामले को कवर करने कारवां की टीम पहुंची हुई थी.

शाहिद घटना के बारे में बताते हैं, ‘‘गली नम्बर दो में हम शूट कर रहे थे. तभी एक बंदा भगवा रंग का कुर्ता पहने हुए आया. उसने पूछा तुम लोग कौन हो. हमने बताया तो बोला कि घरों की कैसे वीडियो बना रहे हो. हमने बोला कि हम घर के अंदर नहीं जा रहे हैं. हम तो बाहर से शूट कर रहे हैं. हम इस फ्लैग ( भगवा झंडा ) को शूट कर रहे हैं. फिर वो चिल्लाने लगे कि नहीं, नहीं तुम घर में जा रहे हो. फिर उन्होंने मुझे पहचान पत्र की मांग की. मैंने जब अपना पहचान पत्र दिखाया तो उन्होंने कहा कि अरे तू तो कटुआ मुल्ला है. हमने बोला कि यहां पर क्या हुआ यह आप ही बता दो तो उन्होंने कहा मैं तुम जैसे टुच्चे पत्रकारों से बात नहीं करता. वो फोन करके लोगों को बुलाता रहा. देखते-देखते सैकड़ों की भीड़ जमा हो गई. ये हमें लगातार पीट रहे थे. मुझे तो 10-10 मिनट के ब्रेक के बाद मार रहे थे. उसके बाद दो पुलिस वाले आए. वे किसी भी तरह से हमारी मदद करने की स्थिति में नहीं थे. क्योंकि भीड़ बढ़ गई थी. बाद में पुलिस की गाड़ी आई और हमें लेकर थाने गई.’’

शाहिद आगे कहते हैं, ‘‘जब हम मेडिकल कराने जगप्रवेश चन्द्र अस्पताल में पहुंचे तो वहां इस भीड़ में शामिल लोग फिर नज़र आए. उनका मकसद शायद हमें और पीटना था. इसके अलावा वो हमें एक मैसेज दे रहे थे कि तुम हमारा कुछ नहीं बिगाड़ सकते हो. वे घूरकर देख रहे थे. मैंने पुलिस वालों से बोला तो उन्होंने कहा जाने दीजिए. वो कुछ नहीं करेंगे.’’

प्रभजीत सिंह और शाहिद तांत्रे

प्रभजीत सिंह ने घटना के तुरंत बाद न्यूज़लॉन्ड्री को बताया था, ‘‘भीड़ में शामिल लोग कह रहे थे कि इस इलाके में हमने जो कुछ शूट किया है उसे डिलीट कर दें. हम उनसे बात करना चाह रहे थे और मजबूर न करने के लिए कह रहे थे. फिर उन्होंने आईडी कार्ड की मांग की. शाहिद ने जैसे आईडी कार्ड दिखाया उसे मारने लगे. मैं इसे विश्वास के साथ कह रहा हूं क्योंकि उन्होंने मुझे नहीं मारा. अगर मैं वहां नहीं होता तो वे लोग इसे मार ही देते.’’

महिला पत्रकार के साथ यौन हिंसा

कारवां की टीम के साथ रिपोर्टिंग पर गई महिला पत्रकार के साथ भीड़ ने शारीरिक छेड़छाड़ की. इसका जिक्र उन्होंने अपनी शिकायत में भी किया है.

महिला पत्रकार ने अपनी शिकायत में लिखा है, “जैसे ही मैं वहां से निकलने लगी, एक अधेड़ उम्र का आदमी, जिसने धोती और टीशर्ट पहन रखा थी और उसके गंजे सिर पर एक चोटी थी, वह मेरे सामने आकर खड़ा हो गया. उस आदमी ने अपनी धोती खोली और अपना गुप्तांग दिखाने लगा. वह आपत्तिजनक और अश्लील इशारे करने लगा और मुझ पर हंसने लगा.”

उस आदमी से बचकर भागते समय महिला पत्रकार को शाहिद का फोन आया और शहीद ने उन्हें भजनपुरा पुलिस स्टेशन पहुंचने को कहा. जब वह महिला पत्रकार लोगों से पुलिस स्टेशन का रास्ता पूछ रही थीं तब भीड़ ने उन्हें फिर घेर लिया और पिटाई करने लगी.

शाहिद अपने साथी पत्रकार की स्थिति बताते हुए कहते हैं, ‘‘जब हम मिले तब वह बिलकुल डरी हुई थी. वो लगातार रो रही थी. वो अपनी शिकायत लिख नहीं पा रही थी.’’

अरुंधति रॉय ने प्रेस क्लब में अपने संबोधन मे कहा, ‘‘जाति और धर्म देखकर ही तो लोगों को मारा जा रहा है. आप देख लीजिए किसी रोज मुसलमान को मारा जा रहा है तो किसी रोज दलित को मारा जा रहा है. बेइज्जती करके मार रहे है. मारने का वीडियो सोशल मीडिया पर डाल रहे है. उससे इन लोगों को समर्थन मिल रहा है.’’

राय आगे कहती हैं, ‘‘जिस देश में आप मीडिया को चुप कराते है, विपक्ष को चुप कराते है. विश्वविद्यालयों से लोगों को निकाला जाता है. ऐसे देश का कोई भविष्य नहीं है. और जो इसका समर्थन कर रहे उनका भी कोई भविष्य नहीं है.’’

कारवां पत्रिका द्वारा शिकायत दर्ज कराने के बावजूद अभी तक इस मामले में दिल्ली पुलिस ने एफ़आईआर दर्ज नहीं की है. इस पर कार्यक्रम में पहुंचें सुप्रीम कोर्ट के वकील प्रशांत भूषण ने कहा, ‘‘इस मामले में तत्काल एफ़आईआर दर्ज होनी चाहिए, लेकिन आज तक ऐसा नहीं हुआ यह साफ़ इशारा करता है कि पुलिस बीजेपी के लोगों के खिलाफ एफ़आईआर दर्ज करने की हिम्मत नहीं दिखा रही है.’’

भूषण पत्रकारों पर हमले के बारे में कहते हैं, ‘‘इस समय दिल्ली में पूरी तरह कानून-व्यवस्था का ब्रेकडाउन है. ये बीजेपी के गुंडे जहां चाहे जो कुछ कर सकते है पुलिस उनके खिलाफ कोई कार्रवाई ही नहीं करती है. यहां बीजेपी के लोगों ने ऐसी गुंडागर्दी शुरू कर रखी है कि यहां कानून का राज बचा ही नहीं है. कपिल मिश्रा के बयान सारे दंगे शुरू हुए, लेकिन उसके खिलाफ भी कोई कार्रवाई नहीं हुई. आज भीड़ उन पत्रकारों को सड़कों पर मार रही है जिनका काम उन्हें पसंद नहीं. वे अल्पसंख्यक समुदाय के लोगों को मार रहे है. वे उन लोगों को भी मार रहे हैं जो सरकार के खिलाफ बोल रहे है. ऐसी ही भीड़ सोशल मीडिया पर भी मौजूद है. हम लोग देखते हैं कि किस तरह की भद्दी-भद्दी गलियां और धमकियां दी जाती है.’’

भूषण ने आखिर में कहा, ‘‘यह एक गंभीर स्थिति है. अगर हम लोग अब नहीं जगे तो सब गड़बड़ हो जाएगी. कानून-व्यवस्था की स्थिति बुरी हो ही चुकी है. ऐसे में सभी लोग इससे प्रभावित होंगे जैसे की राहत इंदौरी ने कहा है, लगेगी आग तो आएंगे घर कई ज़द में, यहां पे सिर्फ़ हमारा मकान थोड़ी है.’’

मीडिया संस्थानों की चुप्पी..

पत्रकारों पर हुए हमले को लेकर ज्यादातर मीडिया संस्थानों में चुप्पी दिखी. इस पर कारवां के राजनीतिक संपादक हरतोष बल ने न्यूजलॉन्ड्री से बात करते हुए कहा, ‘‘ इंडिया में मीडिया बहुत बड़ा है, पत्रकारिता बहुत छोटी है. मीडिया वाले नहीं बोलते तो उससे हमें क्या लेना देना है. वे पत्रकार तो हैं ही नहीं.’’

वहीं पुलिस के लापरवाही भरे रवैये के सवाल पर बल कहते हैं, ‘‘फरवरी से हमलोग देखते आ रहे है. पुलिस का काम आजकल सिर्फ पुलिसिंग से जुड़ा नहीं रह गया. उसका काम हो गया है कि सरकार के साथ कैसे काम करे. सरकार की विचारधारा को कैसे आगे बढाए. एंटी मुस्लिम वायलेंस में पुलिस की जो भूमिका रही है वो भी देखा गया. अब वहीं पुलिस अब उन लोगों को, जो उनके खिलाफ आलोचनात्मक ढंग से लिख रहे है अगर उनके बारे में एक्शन लेना है तो भी हमें दिख रहा है कि वे क्या एक्शन ले रहे है.’’

शाहिद का नाम जानकर पिटाई के सवाल पर बल कहते हैं, ‘‘यह हिंसा क्यों हुई? सिर्फ इसलिए न कि आप (शाहिद) मुसलमान है यहां कैसे आए. एक धार्मिक पहचान के आधार पर आप किसी को भी पीट सकते है. ना कोई सवाल पूछने की ज़रूरत है और ना यह यह जानने के लिए ज़रूरत की आप यहां क्या करने आए थे. यह सरकार की विचारधारा का सड़कों पर रिफ्लेक्शन है.’’

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