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पटना का दैनिक जागरण कोरोना का नया मरकज
दैनिक जागरण के पटना कार्यालय में बुधवार, 22 जुलाई को “कोरोना आउटब्रेक” से हड़कंप मच गया. आधिकारिक आंकड़ों के मुताबिक़, 20 कर्मचारियों की जांच हुई, जिनमें से 9 कर्मचारी कोरोना पॉज़िटिव मिले.
पूरे प्रकरण की क्रोनोलॉजी कुछ यूं है:
बुधवार यानि 22 जुलाई को दैनिक जागरण प्रबंधन ने अपने कर्मचारियों की कोरोना जांच के लिए एक टीम बुलाई थी. दैनिक जागरण के वाट्सऐप ग्रुप में भी इसकी चर्चा थी. कर्मचारियों से कहा जा रहा था कि वे दफ़्तर आकर जांच करा लें. जांच टीम बिहार स्वास्थ्य विभाग की ओर से भेजी गई थी. स्वास्थ्य विभाग के दो कर्मचारी 60 रैपिड टेस्टिंग किट लेकर दफ़्तर पहुंचे. इतने ही कर्मचारियों ने जांच के लिए रजिस्ट्रेशन करवाया. जांच का कारवां 20 से 22 ही कर्मचारियों तक ही पहुंचा था, इनमें से 9 कर्मचारियों का रिजल्ट पॉज़िटिव आ गया. लगभग 48 प्रतिशत की पॉजिटिविटी रेट!
जागरण प्रबंधन इससे सकते में आ गया. जागरण के पटना दफ्तर में उस समय मौजूद कर्मचारियों के मुताबिक इतनी बड़ी संख्या में कोरोना पॉजिटिव आने से हड़बड़ाए प्रबंधन ने तत्काल ही जांच कर रही मेडिकल टीम को जांच रोकने का निर्देश दिया और कर्मचारियों को बताया गया कि रैपिड टेस्ट की जांच रिपोर्ट विश्वसनीय नहीं होती है, इसलिए हम इसे रोक रहे हैं, लेकिन चिंता की कोई बात नहीं है.
जागरण पटना के सूत्रों के मुताबिक प्रबंधन की बात पर यक़ीन कर या यूं कहा जाए कि प्रबंधन के डर से इस जांच में पॉजिटिव आए कई कर्मचारी फिर से पहले की तरह दफ़्तर में काम करने लगे. इसे लेकर बाकी कर्मचारियों में भय का माहौल पैदा हो गया. बाहर से दूसरे पत्रकार इस मामले में पूछताछ करने लगे तब दबाव में आकर प्रबंधन ने देर शाम पाज़िटिव आए संक्रमित कर्मचारियों को होमआइसोलेशन में जाने को कहा.
कोविड-19 की जांच में दैनिक जागरण प्रबंधन की हीलाहवाली की ये जानकारी न्यूज़लॉन्ड्री को दैनिक जागरण पटना के ही कुछ कर्मचारियों ने दी. न्यूज़लॉन्ड्री ने पटना जागरण में कार्यरत कई कर्मचारियों से इस संबंध में बात की. बातचीत में कर्मचारियों ने जांच और पॉज़ीटिव आए लोगों की संख्या अलग-अलग बताई, लेकिन सभी ने एक सुर में स्वीकार किया कि लगातार पॉज़ीटिव केसेस आने के चलते ही प्रबंधन ने बीच में ही जांच बंद करा दी.
एक कर्मचारी ने नाम जाहिर नहीं करने की शर्त पर बताया कि कुल 25 कर्मचारियों की जांच हुई और 12 पॉजिटिव पाए गए. वहीं, एक दूसरे कर्मचारी जो संपादकीय विभाग से संबंद्ध हैं, के मुताबिक 20 में से 9 लोग पॉज़िटिव आए थे.
हमने बातचीत में पाया कि संक्रमितों की संख्या अलग-अलग कर्मचारी इसलिए अलग-अलग दे रहे हैं क्योंकि किसी को जांच रिपोर्ट दी नहीं गई थी, मौखिक ही सबको बताया गया था. एक कर्मचारी से न्यूज़लॉन्ड्री ने जब पूछा कि अलग अलग आंकड़े क्यों आ रहे हैं, तो उन्होंने बताया, "जब सीजीएम ने हंगामा खड़ा कर दिया और सबको भगाने लगे, तब मेडिकल टीम में शामिल एक अधिकारी सारी रिपोर्ट लेकर निकल गया."
हैरानी की बात ये है कि पॉज़ीटिव आने वाले कर्मचारियों को तत्काल घर नहीं भेजा गया. वे दफ़्तर में ही मौजूद रहे. एक अन्य कर्मचारी ने नाम नहीं बताने की शर्त पर कहा कि सीनियर कह रहे थे कि घबराने की कोई बात नहीं है. शाम को सबको ऑफ़िस आना होगा. हालांकि, संपादकीय प्रभाग के एक वरिष्ठ कर्मचारी ने इस बाबत अलग ही कहानी बताई. उन्होंने कहा, “ऐसा (ऑफ़िस आने की बात) पॉज़ीटिव आए कर्मचारियों का आत्मविश्वास बढ़ाने के लिए कहा गया था.”
बिहार सरकार की गाइडलाइन के मुताबिक, रैपिड टेस्ट किट से जांच में जो लोग पॉज़ीटिव पाए जाते हैं, उन्हें कोरोना पॉज़ीटिव मानकर उचित आइसोलेशन में जाने की सलाह दी जाती है. वहीं, जो लोग रैपिड टेस्ट में निगेटिव पाए जाते हैं, उनकी आरटी-पीसीआर जांच होती है. रैपिड टेस्ट में निगेटिव आने वालों के संक्रमण का सही पता आरटी-पीसीआर से चल जाता है. लेकिन, दैनिक जागरण ने ऐसी कोई व्यवस्था सुनिश्चित नहीं की.
एक ही दफ़्तर में इतनी बड़ी संख्या में कोविड पॉजिटिव कर्मचारियों के बावजूद जागरण ने अपने सारे कर्मचारियों की जांच को तवज्जो नहीं दी. जबकि, कॉन्टैक्ट ट्रेसिंग वायरस के संक्रमण की चेन को तोड़ने का सबसे प्रभावी कदम माना जाता है.
टेस्टिंग के दौरान मौक़े पर मौजूद रहे एक कर्मचारी ने हमसे कहा, "प्रबंधन की सहमति से ही टेस्ट के लिए कैंप आयोजित किया गया था. ख़ुद वरिष्ठ अधिकारी वहां बैठकर टेस्ट कराने वालों का रजिस्ट्रेशन करा रहे थे. लेकिन, प्रबंधन ने देखा कि मामला 50-50 का हो रहा है. यानी टेस्ट कराने वालों में से क़रीब 50 प्रतिशत लोग कोरोना पॉज़ीटिव निकल रहे थे. उन्हें लगा होगा कि इस तरह से अगर सबको आइसोलेशन में भेज दिया तो यूनिट ही बंद हो जाएगी, इसलिए शायद उन्होंने हड़बड़ी में टेस्ट बंद करवा दिया."
"स्वास्थ्य विभाग के कर्मचारी हतप्रभ थे कि टेस्ट करने के लिए बुलाया गया और अब टेस्ट से ही इनकार कर रहे हैं. कर्मचारियों ने 30-35 टेस्टिंग किट निकाल ली थी. वे बारी-बारी से सैंपल ले रहे थे और कुछ सेकेंडों में ही रिजल्ट दे रहे थे. टेस्ट बंद करा देने से वे नाराज़ थे और कह रहे थे कि टेस्ट किट खोल दिए गए हैं, अब ये बर्बाद हो जाएंगी" उन्होंने कहा.
जागरण के एक कर्मचारी ने बताया कि 14-15 लोगों का टेस्ट हुआ था, जिसमें 50 प्रतिशत लोग पॉज़ीटिव आए थे, तभी हो-हल्ला होने लगा. यह सब सुनकर सीजेएम आनंद त्रिपाठी आ गए और उन्होंने टेस्ट बंद करवा दिया.
एक अन्य कर्मचारी ने बताया, "संपादकीय प्रभारी भी कोरोना पॉजिटिव मिले थे, लेकिन वह घर नहीं गए, बल्कि दफ़्तर में काम करने लगे. शाम को दबाव बनने पर संपादकीय प्रभारी समेत सभी लोग जो पॉज़ीटिव थे, उन्हें होम क्वारंटीन में भेज दिया गया.”
एक दूसरे कर्मचारी ने न्यूज़लॉन्ड्री से कहा, "स्वास्थ्य विभाग के कर्मचारी 60 किट लेकर आए थे. टेस्ट शुरू हुआ, तो संपादकीय प्रभारी समेत 15 लोग कोविड पॉज़ीटिव आ गए. ये देखकर प्रबंधन ने टेस्ट ही बंद करा दिया और कहा कि अब जांच नहीं होगी. पाजिटिव आए लोगों में रिपोर्टर, संपादकीय प्रभारी, 2 डिप्टी न्यूज़ एडिटर, डेस्क पर काम करने वाले कर्मचारी, कैंटीन स्टाफ और चपरासी शामिल हैं."
आधिकारिक पुष्टि के लिए न्यूज़लॉन्ड्री ने दैनिक जागरण के दफ्तर में संपर्क किया. रिसेप्शन से आग्रह करने पर फ़ोन संपादकीय प्रभारी को फॉरवर्ड किया गया. कॉल जिसके पास पहुंची उन्होंने कोविड-19 जांच की पुष्टि की. उन्होंने कहा, “आज कोविड-19 जांच तो हुई है, लेकिन वह रैपिड टेस्ट किट से नहीं हुई. जांच रिपोर्ट आने में एक-दो दिन लग जाएंगे.” उन्होंने आगे कहा कि वैसे भी रैपिड किट की रिपोर्ट भरोसे के लायक नहीं होती. इतना कहकर उन्होंने फोन काट दिया.
दैनिक जागरण के प्रधान संपादक और प्रबंधन को सवालों की एक सूची हमने भेजी है. फिलहाल उनकी ओर से कोई जवाब नहीं मिल सका है. जवाब मिलने पर स्टोरी अपडेट की जाएगी.
दैनिक जागरण प्रबंधन की तरफ़ से कोविड-19 की जांच में कोताही की यह पहली घटना नहीं है. इसके पहले मई 2020 में दैनिक जागरण के आगरा संस्करण में डिप्टी न्यूज़ एडिटर के पद पर कार्यरत पंकज कुलश्रेष्ठ की कोरोना से मृत्यु हो गई थी. 52 वर्षीय पंकज लगभग 25 वर्षों तक दैनिक जागरण के जुड़े रहे थे. उस वक्त भी दैनिक जागरण के आगरा प्रबंधन पर आरोप लगे थे कि मीडियाकर्मियों को ज़बरदस्ती ऑफ़िस में बुलाकर काम लिया जा रहा है.
दैनिक जागरण की भागलपुर यूनिट से भी ऐसी ही शिकायत आई है. इस यूनिट में कम से कम पांच मीडियाकर्मी इसी महीने के पहले हफ़्ते में कोरोना संक्रमित पाए गए थे. आरोप है कि दफ़्तर में कोरोना वायरस का मरीज़ मिलने के बावजूद प्रबंधन कर्मचारियों पर दफ़्तर आने का दबाव बना रहा था.
प्रबंधन की तरफ़ से दावा किया गया है कि कोरोनावायरस के लक्षण वाले लोगों को एहतियातन दूसरे दफ़्तर में रखा गया था. लेकिन, कम से कम दो कर्मचारियों ने प्रबंधन के इस दावे को खारिज किया है. एक कर्मचारी ने कहा कि दफ़्तर में ऐसी कोई व्यवस्था नहीं थी. वहीं दूसरे कर्मचारी ने कहा, “केवल पीटीएस के 10 कर्मचारियों को अलग रखा गया था, लेकिन 22 जुलाई को जिन लोगों का टेस्ट हुआ, उनमें ये लोग शामिल नहीं थे.”
बताया जाता है कि जागरण की पटना यूनिट में कोविड-19 के संक्रमण का पहला मामला इस महीने के पहले हफ्ते में सामने आ गया था, लेकिन प्रबंधन इसे पचा गया.
एक कर्मचारी ने न्यूज़लॉन्ड्री को बताया, “इसी महीने के पहले हफ़्ते में दफ़्तर में चर्चा चली थी कि कुछ लोग पॉज़ीटिव मिले हैं, लेकिन प्रबंधन ने अन्य कर्मचारियों की जांच नहीं कराई. उल्टे उसने इस मामले को ये कहकर दबा दिया कि जिसके बारे में कोरोना पॉज़ीटिव होने की अफ़वाह है, दरअसल उसके मकान में रहने वाला किराएदार कोरोना पॉज़ीटिव मिला है. हमारे भीतर डर तो था ही, लेकिन हम लोग दफ़्तर आने लगे. एहतियातन बाहरी लोगों को केबिन में आने नहीं देते थे. फिर भी बहुत सारे लोग पॉज़ीटिव निकल गए हैं, तो हम लोग डरे हुए हैं.”
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