Newslaundry Hindi
यूपी पुलिस का कारनामा: बीबीसी के पत्रकार को 6 घंटे तक बनाया बंधक
यूपी में पत्रकारों के साथ पुलिस की बदसलूकी रुकने का नाम नहीं ले रही है. पुलिस के कोपभाजन का ताजा शिकार बीबीसी के पत्रकार दिलनवाज पाशा बने हैं. उन्हें लगभग 6 घंटे तक पुलिस ने हवालात में बंद रखा और इस दौरान लगातार उनको परेशान किया. बाद में पता चलने पर कि दिलनवाज बीबीसी के पत्रकार हैं, पुलिस ने उनसे माफी भी मांगी. फिलहाल दिलनवाज ने पुलिसवालों के खिलाफ कोई केस दर्ज नहीं कराने का फैसला किया है.
उत्तर प्रदेश के सम्भल जिले में स्थित बहजोई थाने में एक व्यक्ति को पुलिस ने थाने में पूछताछ के लिए रखा हुआ था. यह जानकारी मिलने पर दिलनवाज पाशा इस घटना की जानकारी लेने थाने पहुंचे थे. उनके पूछते ही पुलिसवालों ने बदतमीजी शुरू कर दी और गाली-गलौज करने लगे. कुछ देर बाद उनका फोन छीन कर हवालात में बंद कर दिया. इसके चलते वे किसी से भी संपर्क करने में नाकाम रहे. दिलनवाज के मुताबिक थाने के सिपाही हवालात में गंदी-गंदी गालियों और धमकियों के जरिए लगभग 6 घंटे तक उन्हें प्रताड़ित करते रहे.
समाचार वेबसाइट भड़ास फॉर मीडिया की ख़बर कहती है कि जिस व्यक्ति को थाने में रखा गया था, उसे छोड़ने के एवज में पुलिस लेनदेन कर रही थी. दिलनवाज के पहुंचने से यह डील बिगड़ती देख पुलिस वालों का पारा चढ़ गया और उन्होंने बीबीसी संवाददाता को हवालात में डाल दिया.
वेबसाइट के मुताबिक, पत्रकार दिलनवाज को तभी छोड़ा गया, जब उनके बारे में पुलिस को जानकारी मिल गई कि वो बीबीसी के ही संवाददाता हैं. बीबीसी के पत्रकार को बंधक बनाने के मामले की जानकारी लखनऊ में शासन-सत्ता में बैठे लोगों में भी फैल गई. इस पर सीएम योगी के खास अधिकारी और सूचना विभाग के सर्वेसर्वा अवनीश अवस्थी ने फोन कर दिलनवाज पाशा से कुशलक्षेम पूछा और दोषियों को दंडित करने का भरोसा दिया.
दिलनवाज पाशा ने खुद सोमवार को अपने फेसबुक पोस्ट लिखकर सारे वाकए की जानकारी दी. पाशा ने लिखा,“मैंने अपने बारे में अपने साथ उत्तर प्रदेश के संभल जिले के बहजोई थाना क्षेत्र में हुई घटना से जुड़ी कई पोस्ट पढ़ी हैं. मैं वहां पूछताछ के लिए हिरासत में लिए गए एक व्यक्ति के बारे में जानकारी लेने के लिए निजी हैसियत से गया था. मैंने अपना परिचय बीबीसी पत्रकार के तौर पर नहीं दिया था. थाने में ये पूछते ही कि संबंधित व्यक्ति को किस कारण या किस मामले में पूछताछ के लिए बुलाया गया है, वहां मौजूद पुलिसकर्मी ने मेरे फोन छीन लिए और मुझे वहीं बैठने को मजबूर किया.
कई बार मांगने पर भी मेरे फोन नहीं दिए गए और मेरे साथ बदसलूकी की. बाद में जब मेरे पहचान पत्र से मेरी पत्रकार के तौर पर पहचान पुलिस को पता चली तो सब माफी मांगने लगे. संभल के पुलिस अधीक्षक को जब इस बारे में पता चला तो उन्होंने मुझसे बात की और जोर दिया कि मैं संबंधित पुलिसकर्मियों के खिलाफ मुकदमा दर्ज कराऊं.यूपी पुलिस और प्रशासन के कई शीर्ष अधिकारियों ने भी मुझसे संपर्क करके जोर दिया कि मैं शिकायत दर्ज कराऊं. लेकिन मैंने इस संबंध में कोई कार्रवाई न करने का फैसला लिया. आप सभी के संदेशों के लिए शुक्रिया.”
हमने दिलनवाज पाशा से फोन कर इस घटना के बारे में विस्तार से जानने की कोशिश की. दिलनवाज ने हमें बताया, “एक हमारे जानकार व्यक्ति को पुलिस ने पूछताछ के लिए बुलाया था तो उनकी फेमिली को पता नहीं चल पा रहा था कि आखिर वो कैसे हैं और क्या मामला है तो मैं उसी सिलसिले में पूछताछ के लिए गया था. तब ये सब हुआ, वहां मेरे साथ पुलिस ने बहुत बदतमीजी की. बाकि जब बाद में उन्हें पता चला तो पुलिस जोर देने लगी कि मैं दोषी पुलिसवालों पर एफआईआर दर्ज कराऊं. लेकिन मैंने पर्सनली ये निर्णय लिया किमैं इन लोगों को माफ कर देता हूं. मैंने कहा कि मैं कोई कार्यवाही करना नहीं चाहता.”
प्रशासन से इस घटना के बारे में उसका पक्ष जानने के लिए हमने संभल के एसपी यमुना प्रसाद को फोन किया तो उन्होंने हमें मीटिंग में होने की बात कह कर बाद में बात करने को कहा.
गौरतलब है कि यूपी में पिछले कुछ दिनों में पत्रकारों पर पुलिस द्वारा उत्पीड़न और मामले दर्ज करने की घटनाओं में खासी तेजी दर्ज की गई. पिछले महीने भी न्यूज पोर्टल स्क्रॉल की एक्जीक्यूटिव एडीटर सुप्रिया शर्मा के खिलाफ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के संसदीय क्षेत्र वाराणसी से पीएम के गोद लिए गांव के लोगों को लॉकडाउन के दौरान हुई परेशानियों की ख़बर करने के कारण कई धाराओं में केस दर्ज किया गया था. जिसकी काफी आलोचना भी हुई थी.
दिल्ली के ‘राइट्स एंड रिस्क एनालिसिस ग्रुप’ की जून के मध्य में ‘इंडिया: मीडिया क्रैकडाउन ड्यूरिंग कोविड-19 लॉकडाउन’ नाम से जारी रिपोर्ट बताती है कि बीते 25 मार्च से 31 मई, 2020 के बीच राष्ट्रव्यापी लॉकडाउन के दौरान कोरोना वायरस पर ख़बर करने या अभिव्यक्ति की आजादी के इस्तेमाल पर देशभर के कम से कम 55 पत्रकारों को गिरफ्तारी, मुकदमे, समन, कारण बताओ नोटिस, शारीरिक प्रताड़ना, कथित तौर पर संपत्ति के नुकसान या धमकियों का सामना करना पड़ा.
रिपोर्ट बताती है कि मीडियाकर्मियों पर सर्वाधिक 11 हमले उत्तर प्रदेश में ही दर्ज हुए हैं. यहां बीजेपी की सरकार है.
रिपोर्ट के मुताबिक, कोविड-19 महामारी के दौरान विभिन्न पत्रकारों के ख़िलाफ़ 22 एफआईआर दर्ज की गईं, जबकि कम से कम 10 को गिरफ़्तार भी किया गया.
गौरतलब रहे कि विश्व प्रेस सूचकांक में भारत की स्थिति लगातार गिरती जा रही है. पेरिस स्थित रिपोर्टर्स विदाउट बॉर्डर्स द्वारा जारी साल 2020 के सूचकांक में भारत 180 देशों मे 142वें स्थान पर है.
Also Read
-
How Muslims struggle to buy property in Gujarat
-
A flurry of new voters? The curious case of Kamthi, where the Maha BJP chief won
-
Scapegoat vs systemic change: Why governments can’t just blame a top cop after a crisis
-
Delhi’s war on old cars: Great for headlines, not so much for anything else
-
डिस्टर्ब्ड एरिया एक्ट: गुजरात का वो कानून जिसने मुस्लिमों के लिए प्रॉपर्टी खरीदना असंभव कर दिया