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नाबालिग पर राजद्रोह, चार महीने रहा सामान्य कैदियों की जेल में
सीएए-एनआरसी का मसला कोरोना वायरस की चपेट में आकर थमता दिख रहा है. लेकिन इसके खुरदरे निशान जहां-तहां देखने को मिल रहे हैं. उत्तर प्रदेश के आज़मगढ़ जिले में एक जगह का नाम है बिलरियागंज. यहां भी 5 फरवरी को शाहीन बाग़ के समर्थन में और नागरिकता संशोधन क़ानून (सीएए) के ख़िलाफ़ लोगों ने धरने का आयोजन किया था. इस प्रदर्शन के चलते गिरफ़्तार किए गए16 वर्षीय नाबालिग सुल्तान अहमद (बदला हुआ नाम) को इलाहाबाद हाईकोर्ट ने 4 महीने बाद 2 जून को जमानत दे दी.
इससे पहले राष्ट्रीय उलेमा काउंसिल के महासचिव ताहिर मदनी सहित कुछ अन्य लोगों को भी इस मामले में जमानत मिल चुकी है. जबकि कुछ लोग अभी भी जेल में बंद हैं.
पुलिस ने बिलरियागंज में प्रदर्शन के लिए जुटे लोगों में से 35 नामजद और सैकड़ों अज्ञात लोगों के खिलाफ राजद्रोह का मामला दर्ज किया था. इनमें से 19 लोगों को पुलिस ने कथित रूप से देश विरोधी नारे लगाने और हिंसा करने के आरोप में गिरफ़्तार भी किया था. गिरफ्तार किए गए लोगों में राष्ट्रीय उलेमा काउंसिल के महासचिव 62 वर्षीय ताहिर मदनी सहित तमाम छात्र, टीचर के अलावा नाबालिग सुल्तान भी शामिल था.
दरअसल विवादित नागरिकता संशोधन कानून (सीएए) के संसद में पास होने के साथ ही इसके खिलाफ देश भर में प्रदर्शन शुरू हो गए थे. इन प्रदर्शनों ने तब जोर पकड़ लिया जब 15 दिसम्बर को दिल्ली पुलिस ने जामिया मिल्लिया इस्लामिया विश्वविद्यालय में घुसकर छात्रों पर बर्बरतापूर्वक हमला कर दिया और लाइब्रेरी में जमकर तोड़फोड़ की. इससे कई छात्रों को गंभीर चोटें आईं और एक छात्र को अपनी आंख भी गंवानी पड़ी. कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी के नेतृत्व में विपक्षी दलों के नेताओं ने राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद से मुलाकात कर जामिया मिल्लिया इस्लामिया में पुलिस कार्रवाई को लेकर न्यायिक जांच की मांग की थी.
इस कार्यवाही के बाद देश भर में नागरिकता संशोधन कानून (सीएए) के खिलाफ लोग खुलकर सड़कों पर उतर आए. और इनका रोल मॉडल बना दिल्ली का “शाहीन बाग. ”शाहीन बाग में लोगों ने मुख्य सड़क जाम कर प्रदर्शन शुरू कर दिया. जिसकी कमान किसी राजनीतिक पार्टी नहीं बल्कि 3 दादियों के हाथ में थी. इसने पूरी दुनिया का ध्यान अपनी तरफ खींचा. साथ ही देश-दुनिया के कोने- कोने से इसे समर्थन मिला. इसी की तर्ज पर देश के कोने-कोने में ‘शाहीन बाग’ बनने शुरू हो गए.
इसी तरह का एक प्रदर्शन उत्तर प्रदेश के आजमगढ़ जिले में स्थित बिलरियागंज में भी शुरू हुआ. वहां औरतें नागरिकता संशोधित कानून और राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर का विरोध कर रहीं थीं. इस दौरान गणतंत्र दिवस कार्यक्रम का भी आयोजन यहीं किया गया था. खबरों के मुताबिक, इन्होंने कई बार जिलाधिकारी एनपी सिंह से धरने के बाबत अनुमति मांगी, पर जिलाधिकारी ने अनुमति देने से इंकार कर दिया. इसके बाद लोग वहां धरने पर बैठ गए.
इस पर 5 फरवरी को पुलिस ने रात में महिलाओं पर कार्यवाही करते हुए आंसू गैस के गोले दागे और लाठीचार्ज और पथराव किया, जिसमें कुछ महिलाएं गंभीर रूप से घायल भी हुई थीं. रातोंरात पार्क को खाली करा कर उसमें टैंकर से पानी भरवा दिया गया.
इसके बाद सुबह होते-होते पुलिस ने 19 लोगों को हिरासत में ले लिया. इनमें एक नाम सुल्तान का भी था, जो नाबालिग था. उसकी जन्मतिथि उसके स्कूल के मार्कशीट में 4 जुलाई, 2004 है. इन सभी पर पुलिस ने आईपीसी की धारा 124-ए (राजद्रोह), 147 (दंगा), 153-ए (विभिन्न समूहों के बीच दुश्मनी को बढ़ावा देना), 504 (शांति भंग करने के इरादे से अपमान), 307 (हत्या का प्रयास), 120-बी (आपराधिक साजिश) सहित कई ओर आरोप भी लगाए थे. साथ ही सार्वजनिक संपत्ति को नुकसान की रोकथाम अधिनियम और आपराधिक कानून संशोधन अधिनियम की धाराओं के तहत आरोप लगाकर गिरफ्तार लोगों को जेल भेज दिया. साथ में नाबालिग सुल्तान को भी इन्हीं संगीन आरोपों में जेल में डाल दिया गया.
पुलिसिया लापरवाही की हद ये रही कि उसने नाबालिग सुल्तान को भी सामान्य लोगों के साथ जेल भेज दिया. कानूनन पुलिस ने ‘जुवेनाइल जस्टिस ऑफ प्रोटेक्शन एक्ट-2015’ का उल्लंघन किया. नियमों के मुताबिक नाबालिग के साथ पुलिस वयस्क आरोपियों की तरह बर्ताव नहीं कर सकती. इसके लिए जेजेबी यानि जुवेनाइल जस्टिस बोर्ड है. वही इसका निर्णय करता है कि नाबालिग के मामले में क्या कार्रवाई होगी. पुलिस की मनमानी इससे भी झलकती है कि जब सुल्तान के घर वालों और वकील ने इस बारे में बताया तो पुलिस ने उसे नज़रअंदाज कर दिया.
पुलिसिया कार्रवाई को लेकर जिले का राजनैतिक माहौल उस समय काफी गर्म हो गया जब कांग्रेस की राष्ट्रीय महासचिव प्रियंका गांधी घायल हुई प्रदर्शनकारी महिलाओं से मिलने 12 फरवरी को बिलरियागंज जा पहुंची. प्रियंका ने केंद्र और राज्य सरकार पर निशाना साधते हुए कहा, “शांतिपूर्ण ढंग से धरना दे रही महिलाओं को जबरदस्ती उठाया गया. पार्क को खोदकर पानी भर दिया गया. हमने जुल्म और ज्यादती के खिलाफ हर जगह की रिपोर्ट तैयार कर मानवाधिकार आयोग को भेजी है और यहां की रिपोर्ट भी भेजूंगी. जो भी पुलिसकर्मी और अधिकारी दोषी हैं, उन्हें बख्शा नहीं जाएगा.”
इस मामले की सुनवाई जिला सेशन कोर्ट में चल रही थी. 18 मार्च को गिरफ्तार हुए लोगों की जमानत की याचिका पर सुनवाई करते हुए न्यायाधीश प्रमोद कुमार शर्मा ने सभी 19 आरोपियों की याचिका खारिज कर दी. उनका तर्क था कि अपराध की गंभीरता को ध्यान में रखते हुए जमानत देने का कोई आधार नहीं है.
इसके बाद आरोपियों ने जमानत के लिए इलाहाबाद हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया. लेकिन लॉकडाउन के कारण कोर्ट बंद हो गए. और यह मामला अधर में लटक गया. बाद में इस पर मई में सुनवाई शुरू हुई. सुल्तान की याचिका पर सुनवाई करते हुए कोर्ट ने आखिरकार 2 जून को उसे जमानत दे दी. इसके अलावा मौलाना ताहिर मदनी सहित कई अन्य लोग भी जमानत पर बाहर आ चुके हैं.
जमानत पर छूट कर आए सुल्तान के भाई, नईम से हमने बात की. नईम ने बताया, “5 फरवरी को पुलिस ने प्रदर्शनकारियों पर आंसू गैस के गोले और लाठीचार्ज के बाद घटनास्थल को खाली करा दिया था. सुबह मेरा भाई काम पर जा रहा था. वह एक होटल में काम करता है. तभी पीछे से एक लेडीज पुलिस ने आकर उसे पकड़ लिया और गाड़ी में बैठा लिया. उसके बाद 4 महीने तक उसे जेल में रखा.अभी 10-12 दिन पहले वह जमानत पर छूटकर आया है.”
नईम आगे बताते हैं, “सुल्तान की उम्र 16 साल है. इसे भी सामान्य कैदियों के साथ ही रखा गया.”
इस मामले से जुड़े आज़मगढ़ के एक वकील तल्हा रशीदी ने हमें इस मामले की विस्तार से जानकारी दी. तल्हा ने बताया, “4 फरवरी को मौलाना जौहर पार्क में औरतों का शांतिपूर्ण प्रदर्शन चल रहा था. शाहीन बाग की तर्ज पर औरतें बैठी हुई थीं. ये प्रदर्शन किसी पार्टी के बैनर तले न होकर बिल्कुल रैंडम था. शाम होते-होते पुलिस ने पहले लोगों को समझाने की कोशिश की, स्थानीय विधायक के साथ-साथ राष्ट्रीय उलेमा काउंसिल के महासचिव मौलाना ताहिर मदनी को भी बुलाया गया.
अब क्योंकि ये दिसम्बर से ही परमिशन मांग रहे थे और प्रशासन दे नहीं रहा था. बार-बार टाल देता था. तो इस बार उन्होंने बोल दिया कि हम नहीं हटेंगे. फिर रात में 12 बजे के बाद पुलिस ने मौलाना ताहिर मदनी को यह कहते हुए गिरफ्तार कर लिया कि आप ये धरना जानबूझ कर खत्म नहीं करा रहे हो. इसके बाद रात में 3 बजे पुलिस ने वहां लाठीचार्ज, टियर गैस और पत्थर वगैरह फेंके और पार्क को खाली करा कर उसमें पानी भरवा दिया. इसमें कुछ औरतें तो गंभीर रूप से घायल भी हो गईं थी जिनकी सर्जरी हुई.”
इसके बाद पुलिस ने 35 नामजद और बाकि अज्ञात लोगों के खिलाफ एफआईआर कर ली. 19 लोगों को गिरफ्तार कर लिया.
तल्हा के मुताबिक, “जो जहां से मिला, चाहे पार्क के बाहर हो, फजर की नमाज को जा रहा हो या घर में हो, छात्र, टीचर जो मिला उसे उठा लिया. गिरफ्तार लोगों में ज्यादातर लोग प्रोटेस्ट में शामिल भी नहीं थे. प्रोटेस्ट तो वैसे भी औरतें कर रही थीं, मर्दों का कोई मतलब ही नहीं था.”
तल्हा कहते हैं, “सब पर राजद्रोह सहित कई अन्य गंभीर धाराओं में मुकदमा दर्ज किया गया. नाबालिगों पर भी व्यस्कों की तरह ही केस किया. हमने ज्यूवेनाइल कोर्ट में याचिका डाली हुई है जो अभी तक कन्फर्म नहीं हुई है, ये लंबा प्रोसेस है.”
प्रशासन का इस बारे में पक्ष जानने के लिए हमने बिलरियागंज थाने के एसओ राजकुमार सिंह से फोन पर बात की.उन्होंने कहा, “अभी उसकी विवेचना चल रही है. थाना रौनापार में उसकी जांच चल रही है. बाकि कुछ लोगों की जमानत हो गई है.आप थाना रौनापार के एसओ से बात कीजिए वही आपको सारी बात बताएंगे.” यह कहकर उन्होंने फोन काट दिया.
हमने रौनापार थाना के एसओ नवल किशोर सिंह से इस केस की वर्तमान स्थिति के बारे में जानने के लिए फोन किया. उनसे बातचीत में हमें पता चला कि मामले की जांच तो उनके थाने के तहत ही हो रही है लेकिन केस की वस्तुस्थिति और आरोपियो की स्थिति के बारे में उन्हें कुछ खास जानकारी नहीं है. नवल किशोरने बताया,“अभी ये केस अंडर इन्वेस्टीगेशन है. बाकि जमानत के बारे में मुझे पता नहीं है किसकी हुई है.”
यह पूछने पर कि जो एक नाबालिग गिरफ्तार किया था, उसे ज्यूवेनाइल कोर्ट में क्यों नहीं पेश किया गया. इस परनवल किशोर कहते हैं, “उन्होंने नाबालिग साबित करने के लिए वहां कोर्ट में आवेदन नहीं किया होगा.”
जब हमने कहा कि वह तो किया है, इस पर नवल किशोर ने कहा, “जब वह कोर्ट में नाबालिग साबित हो जाएगा तो वहां सुनवाई हो जाएगी और उसकी फाइल ज्यूवेनाइल कोर्ट में ट्रांसफर हो जाएगी. तब तक उसे व्यस्क की तरह ही डील किया जाएगा. अब तक उसे करा लेना चाहिए था. दरअसल उसमें अभी सही पैरवी नहीं हो रही है. अगर ज्यूवेनाइल कोर्ट में पैरवी सही होती तो उसमें भी उसको लाभ मिलता और उसकी जमानत हो जाती.”
लेकिन जमानत तो उसकी हो चुकी है, इसके जवाब में वह कहते हैं, “हो गई है तो अच्छी बात है."
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