Newslaundry Hindi
अब तक गांव के 22 हजार हाट बाजारों में सिर्फ 476 हुए अपग्रेड
गांव में किसान और उनके हाट (ग्राम्य बाजार) दोनों को सरकारी नीतियों में हाशिए पर ही रखा गया है. 1970 के राष्ट्रीय किसान आयोग की सिफारिशों पर 2020 तक भी अमल नहीं हो पाया है. देश का 40 फीसदी सरप्लस अनाज पैदा करने वाले 85 फीसदी छोटे और सीमांत किसान अपनी उपज का लागत नहीं निकाल पाते हैं वहीं ग्राम्य बाजारों (हाट) को सदैव उपेक्षित किया गया और इस लायक नहीं बनाया गया कि वे किसानों के फसलों की उचित कीमत तय कर पाएं.
ग्रामीण हाट की सूरत बदलने का ऐलान किए हुए दो वर्ष बीत चुके हैं, लेकिन अभी तक पचास फीसदी सर्वे ही हो पाया है. साथ ही केंद्र सरकार ने राज्यों को कहा था कि वे ग्रामीण हाट को एपीएमसी एक्ट के दायरे से बाहर रखें लेकिन अभी तक इस पर भी कोई बात नहीं बन पाई है.
नाबार्ड के वरिष्ठ अधिकारी ने नाम न छापने की शर्त पर बताया कि ग्रामीण हाट को अपग्रेड करने के साथ ही कृषि मंडी को फॉर्मर्स प्रोड्यूसर ऑर्गेनाइजेशन (एफपीओ) और ऑनलाइन ई-नाम से जोड़ने की कवायद को लेकर गाइडलाइन बनाने पर काम चल रहा है. यदि सरकार कोई नीतिगत बदलाव नहीं लेती है तो यह प्रयास किए जाएंगे. क्योंकि राज्य और केंद्र के बीच अभी कई पेचीदगी हैं. इसलिए अभी तक कोई नीतिगत फैसला नहीं लिया जा सका है.
केंद्र सरकार ने 2018-19 के बजट में 22000 ग्रामीण कृषि मंडी (ग्राम्स) और 585 कृषि उपज मंडी समितियों (एपीएमसी) में कृषि विपणन अवसंरचना के विकास और उन्नयन के लिए 2000 करोड़ रुपये के कार्पस के साथ कृषि-मंडी अवसरंचना कोष की स्थापना करने की घोषणा की थी. साथ ही कहा था कि चरण बद्ध तरीके से वर्षवार 22000 ग्राम्य हाटों को उन्नत कृषि मंडी के तौर पर विकसित किया जाएगा, ताकि किसानों की आय को दोगुना करने में मदद मिलेगी.
हालांकि दो वर्षो बीत चुके हैं और अब तक सिर्फ 476 कृषि मंडियों को महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी कानून योजना के तहत अपग्रेड करने का दावा किया गया है.
…
सरकार ने ग्रामीण कृषि मंडियों और कृषि उपज बाजार समिति (एपीएमसी) बाजारों में कृषि विपणन बुनियादी ढांचे के विकास और उन्नयन के लिए राष्ट्रीय कृषि और ग्रामीण विकास बैंक (नाबार्ड) के साथ 2000 करोड़ रुपये के कार्पस राशि से कृषि-मंडी अवसंरचना कोष (एएमआईएफ) को मंजूरी दी है और राज्यों/संघ राज्य क्षेत्रों (यूटी) को योजना के दिशानिर्देशों को परिचालित किया है. हालांकि यह राज्यों/संघ राज्य क्षेत्रों की ओर से एक मांग संचालित योजना है, इसलिए निधि का कोई राज्य-वार और वर्ष-वार आवंटन नहीं होता है. भारत सरकार ने राज्यों/संघ राज्य क्षेत्रों से एएमआईएफ के तहत सहायता प्राप्त करने के लिए प्रस्ताव देने को कहा है. मार्च के अंत तक कितने राज्यों से केंद्र को प्रस्ताव भेजे गए हैं, इसकी सूचना नहीं दी गई है.
सरकार ने 17 वीं लोकसभा की केंद्रीय कृषि मंत्रालय की स्थायी समिति को अपने जवाब में बताया है कि डीएमआई सभी राज्यों में सर्वे कर रहा है. ग्रामीण हाट की संरचना, सुविधाओं और व्यवस्थाओं की जमीनी जानकारी जुटाई जा रही है. अब तक 11,000 ग्रामीण हाट का सर्वे पूरा किया जा चुका है. इसके परिणाम केंद्रीय ग्रामीण मंत्रालय को दिए जा रहे हैं ताकि वह एजीएनआरईजीएस के तहत ग्रामीण हाट की आधारभूत संरचना को विकसित करने के लिए मदद करे. इसके अलावा सर्वे का इस्तेमाल एग्री मार्केट इंफ्रास्ट्रक्चर फंड (एएमआईएफ) विकसित करने के लिए भी किया जा रहा है. इसकी मंजूरी मिलते ही इसे बाटा जाएगा. साथ ही एक करोड़ रुपये डीएमआई को सर्वे के लिए दिए गए हैं.
इससे पहले 17वीं लोकसभा में केंद्रीय कृषि मंत्रालय की स्थायी समिति ने “कृषि बाजार की भूमिका और साप्ताहिक ग्रामीण हाट” की सिफारिश व कार्रवाई की हालिया रिपोर्ट में अपनी सिफारिश में कहा था कि समिति चाहती है कि केंद्र राज्य सरकारों से बातचीत करके ग्रामीण हाट को एपीएमसी एक्ट के दायरे से बाहर रखे. स्थायी समिति ने इस बात पर हैरानी भी जताई थी कि ग्रामीण हाटों के निंयत्रण, प्रबंधन और सुविधाओं आदि के बारे में कोई केंद्रीय और राज्य स्तरीय एजेंसी सूचना या जानकारी नहीं रखती हैं.
वहीं, बाद में राज्यों की ओर से केंद्रीय कृषि मंत्रालय की स्थायी समिति को बताया गया था कि 22941 एग्रीकल्चर मार्केट हैं जो कि एपीएमसी, पंचायती राज व अन्य एजेंसियों के अधीन हैं. वहीं, इस सूचना को एग्रीकल्चर, को-ऑपरेशन एंड फार्मर्स वेलफेयर की प्रशासनिक ईकाई डॉयरेक्टोरेट ऑफ मार्केटिंग इन्सपेक्शन (डीएमआई) ने आधा-अधूरा बताते हुए कहा था कि ग्रामीण हाट का जमीनी सर्वे जारी है. हालांकि हाट को लेकर पहले नियमित सूचनाओं को जुटाने में ध्यान नहीं रखा गया.
हाट दुनिया के सबसे लोकतांत्रिक बाजार
देश के छह लाख गांवों में छोटे उत्पादक हाट बाजारों में एक वर्ष में 25 लाख बार अपनी दुकाने लगाते हैं. हाट स्थानीय पारिस्थितिकी पर टिकती है और सीजनल उत्पादों की खरीद-फरोख्त होती है. हाट को चलाने के लिए कोई संस्थागत तंत्र नहीं है सिर्फ खरीदने और बेचने वाले वहां जुटते हैं. सबसे मुफीद बात यह है कि यह सबसे छोटे उत्पादकों के लिए भी है. यदि किचन गार्डेन में भी सब्जियां उगाई हैं और उसे कोई बेचना चाहता है तो वह गांवों के इन हाट बाजारों में बेच सकता है.
निजीकरण अपने चरम पर है, गांव के बाजार भी अब इससे अछूते नहीं है. लोग राशन की दुकानों की जगह तय कर रहे हैं लेकिन हाट बहुउद्देशीय मकसद वाली खरीदारी का अनुभव देता है और सफलतापूर्वक निजीकरण के खतरे से लड़ता है. यह एक ऐसी अवधारणा पर बसा बाजार है जो अवसरों में काफी एकसमान है. दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र से यह खुदरा लोकतंत्र काफी आगे है. यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि हाट को उतना महत्व नहीं मिला जो सरकार और नीतियों का ध्यान खींच सके. यदि ऐसा होता है तो छोटे और सीमांत किसानों को भी ग्रामीण हाट नया भविष्य दिखा पाएंगे.
Also Read: 7 मजदूर, 7 दिन, 7 रात, विनोद कापड़ी के साथ
Also Read: मंदी की मार पहुंची किसान के द्वार
Also Read
-
Hafta x South Central feat. Josy Joseph: A crossover episode on the future of media
-
Encroachment menace in Bengaluru locality leaves pavements unusable for pedestrians
-
Let Me Explain: Karur stampede and why India keeps failing its people
-
TV Newsance Rewind: Manisha tracks down woman in Modi’s PM Awas Yojana ad
-
A unique October 2: The RSS at 100