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पंकज कुलश्रेष्ठ के बहाने दैनिक जागरण और आगरा प्रशासन की कुछ लापरवाहियां और गलबहियां

भारत में कोरोना संकट दिन-ब-दिन गहराता जा रहा है. सबकुछ जल्दी बेहतर नहीं होने जा रहा, इसका संकेत दिल्ली एम्स के प्रमुख रणदीप गुलेरिया ने भी बीते दिनों दिया है. उन्होंने कहा कि भारत में कोरोना पीक पर जून-जुलाई महीने में होगा.

कई पत्रकार भी इसकी चपेट में आ गए हैं. बहुत से लोग इलाज के बाद ठीक भी हो रहे हैं, लेकिन गुरुवार सात मई को आगरा में दैनिक जागरण के पत्रकार पंकज कुलश्रेष्ठ का कोरोना संक्रमणण से निधन हो गया. यह कोरोना से किसी पत्रकार की मौत का पहला मामला है. 52 वर्षीय पंकज कुलश्रेष्ठ लगभग 25 साल से दैनिक जागरण से जुड़े थे.

एक शादी समारोह में पंकज कुलश्रेष्ठ

पंकज के साथ ही ख़बर है कि दैनिक जागरण आगरा के 11 कर्मचारी, पत्रकार कोरोना संक्रमित हैं. आम स्थितियों में ऐसे किसी भी दफ्तर या रिहाइशी इलाके को कंटेन कर दिया जाता, गतिविधियां रोक दी जाती, जिम्मेदार लोगों को हिरासत में ले लिया जाता. लेकिन आगरा में दैनिक जागरण दफ्तर से प्रकाशन बदस्तूर जारी है. कर्मचारियों को जबरन हर दिन दफ्तर आने के लिए कंपनी ने फरमान जारी कर रखा है. और आगरा प्रशासन इस सबसे आंख मूंदकर जागरण की इस गैरकानूनी गतिविधि को शह दे रहा है. यह अनैतिक सहजीवन का आदर्श उदाहरण है. इस कहानी में पंकज कुलश्रेष्ठ के मौत की परिस्थितियां और इस बहाने आगरा प्रशासन और दैनिक जागरण की कारस्तानियों का लेखाजोखा.

जागरण का रवैया

पंकज कुलश्रेष्ठ के निधन के बाद दैनिक जागरण का जो रवैया रहा उससे उनके परिजनों के अलावा उनके साथ काम करने वाले लोगों में बेतरह नाराज़गी है.

उनके साथ काम कर चुके साथी पत्रकारों का कहना है कि जागरण आगरा प्रशासन पर सवाल उठाने से कन्नी काट रहा है. प्रशासन की लापरवाही से कुलश्रेष्ठ की मौत हुई है. अगर समय रहते उनका इलाज किया गया होता तो शायद वो आज हमारे साथ होते.

मौत की खबर चौथे पेज पर

गुरुवार रात करीब 7 बजकर 30 मिनट पर पंकज कुलश्रेष्ठ का निधन हो गया. दूसरे दिन दैनिक जागरण के आगरा संस्करण के चौथे पेज पर उनके निधन की खबर दो कॉलम में छपी.

उत्तर प्रदेश मान्यता प्राप्त संवाददाता समिति के अध्यक्ष हेमंत तिवारी की माने तो यह खबर भी सिर्फ आगरा में ही छपी है. पंकज मथुरा में आठ साल ब्यूरो हेड रहे वहां तक के जागरण में भी यह ख़बर प्रकाशित नहीं की गई.

‘साथी पंकज कुलश्रेष्ठ को विनम्र श्रद्धांजलि’ शीर्षक से लिखे गए इस खबर में जागरण लिखता है, ‘‘चार मई को इनके कोरोना संक्रमण की पुष्टि हुई. इसी दिन इन्हें एसएन मेडिकल कॉलेज में भर्ती कराया गया. उनकी तबियत लगातार बिगड़ती चली गई और गुरुवार शाम सात बजे उन्होंने एसएन मेडिकल कॉलेज में ही अंतिम सांस ली.’’

आठ मई को जागरण में प्रकाशित खबर

पंकज कुलश्रेष्ठ के साथ काम कर चुके साथी कहते हैं कि इस ख़बर में जागरण बहुत कुछ छुपाने की कोशिश कर रहा है ताकि प्रशासन की लापरवाही पर सवाल न उठाना पड़े. जागरण ने उनके कोरोना पुष्टि होने की तारीख को चार मई बताया है जो की गलत है. कोरोना पॉजिटिव आने के नतीजे के दो दिन बाद उन्हें अस्पताल में भर्ती कराया गया जिसके कारण उनकी मौत हो गई.

पंकज कुलश्रेष्ठ के साथियों के इस आरोप को जानने के लिए हमने उनके चचेरे भाई मोनू कुलश्रेष्ठ से फोन पर बात की. वो इन आरोपों से इत्तेफाक रखते हुए कहते हैं, ‘‘इनकी तबियत खराब चल रही थी. 25 अप्रैल को तबियत बिगड़ने पर मैं इन्हें एसएन मेडिकल कॉलेज लेकर गया. वहां जांच हुई और अस्पताल वालों ने बताया कि अगर दो-तीन दिन तक लगातार बुखार रहा तो कोरोना टेस्ट करेंगे. उस दिन का अस्पताल का कागज मेरे पास है. उनका बुखार कम नहीं हुआ और उन्होंने खाना भी कम कर दिया फिर हम 28 अप्रैल को अस्पताल पहुंचे तो इनका टेस्ट हुआ. जिसका रिजल्ट 2 मई की रात 10 बजे के करीब आया. जिसके बाद वे घर पर ही रहे. दूसरे दिन यानी 3 मई की रात 11:30 से 12 बजे के करीब में उन्हें अस्पताल में भर्ती किया गया. कोरोना पॉजिटिव आने के बाद 26 से 27 घंटे तक वे घर पर ही अपने परिजनों के साथ रहे. प्रशासन की यह बड़ी लापरवाही थी. उनको तेज बुखार था. वो खाना छोड़ चुके थे. कमजोर हो रहे थे ऐसे में उन्हें समय पर अस्पताल में भर्ती करके बेहतर इलाज देना ज़रूरी था.’’

जागरण के 4 मई को कोरोना पॉजिटिव आने के दावे को पंकज के परिवार के लोग ही ग़लत बताते हैं.

इसको लेकर अमर उजाला ने अपनी खबर में बताया है कि एसएन मेडिकल कॉलेज के चिकित्सकों ने वरिष्ठ पत्रकार की मृत्यु का कारण उन्हें सांस की बीमारी बताया है.

अमर उजाला लिखता है, ‘‘कोरोना होने पर यह और बढ़ गई. सांस लेने में तकलीफ होने लगी. यह इतनी बढ़ी कि वेंटिलेटर पर रखना पड़ा. उन्हें पहले क्वारंटीन सेंटर में रखा गया था. तबीयत बिगड़ने पर एसएन मेडिकल कॉलेज लाया गया. यहां आइसोलेशन वार्ड में उनका उपचार चल रहा था. बुधावर को तबीयत काफी बिगड़ गई थी.’’

अमर उजाला में छपी खबर

एक तरफ जहां जागरण लिख रहा है कि चार तारीख को कोरोना पॉजिटिव होने पुष्टि हुई और उसी दिन उनको अस्पताल में भर्ती कर दिया गया वहीं अमर उजाला दूसरी ही कहानी कह रहा है.

क्या कोरोना पॉजिटिव मरीज को तत्काल इलाज की ज़रूरत होती है या देरी से ईलाज भी कर सकते है. इस सवाल के जवाब में दिल्ली एम्स रेसिडेंट एसोसिएशन के प्रमुख आदर्श कहते हैं, ‘‘हर कोरोना मरीज को अस्पताल में भर्ती करना ज़रूरी नहीं है लेकिन अगर उसे लगातार बुखार हो, सांस की दिक्कत हो, टीबी हो या कोई और बीमारी हो तो उन्हें अस्पताल में भर्ती किया जाना चाहिए.’’

पंकज के भाई मोनू के अनुसार उन्हें रक्तचाप (बीपी) की परेशानी थी जिसकी दवाई वो हर सुबह खाते थे. अमर उजाला के अनुसार उन्हें सांस की दिक्कत हुई थी. यानी उन्हें तत्काल इलाज की ज़रूरत थी. जो प्रशासन उपलब्ध नहीं करा पाया.

इस मामले में एसएन मेडिकल कॉलेज की राय जानने के लिए उसके प्रिंसिपल डॉ. जीके अनेजा को हमने कई बार फोन किया और मैसेज भी किया लेकिन उनसे बात नहीं हो पाई.

जागरण के एडिटर को पता ही नहीं था कि पंकज की मौत ही चुकी है

न्यूजलॉन्ड्री की ही एक रिपोर्टर के अनुसार आगरा में फिलहाल दैनिक जागरण के 11 कोरोना पॉजिटिव पत्रकारों का इलाज चल रहा है. बावजूद इसके दैनिक जागरण की स्थानीय यूनिटों में अभी भी जबरदस्ती ऑफिस में बुलाकर काम कराया जा रहा है. इससे यहां कार्यरत मीडियाकर्मियों में रोष और भय का माहौल है.

अपनी जिंदगी का लगभग आधा समय जागरण को देने वाले पंकज कुलश्रेष्ठ को लेकर जागरण किस तरह लापरवाह था इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि उनका शाम 7:30 के करीब निधन हो गया और आगरा जागरण के संपादक को इसकी जानकारी रात नौ बजे तक नहीं थी.

मोनू कहते हैं, ‘‘मुझे पंकज भाई के करीबी लोगों ने रात नौ बजे के करीब बताया कि उनका निधन हो गया है. इसके बाद मैं संपादक जी को फोन किया तो उनको पता ही नहीं था. मैंने ही उन्हें बताया कि उनका निधन हो गया है, शव को मोर्चरी में भेजा जा चुका है. फिर उन्होंने थोड़ी देर बाद मुझे फोन करके बताया कि हां यह बात बिलकुल सही है. उनकी मौत हो चुकी है.’’

प्रशासन की लापरवाही

कोरोना पॉजिटिव आने के बावजूद भी 26 घंटे घर पर रहने वाले पंकज कुलश्रेष्ठ के परिजनों का कोरोना टेस्ट करने की जरूरत तत्काल महसूस नहीं की गई. उनके परिजनों का टेस्ट उनके निधन के बाद किया गया. जबकि उनके साथ उनकी बुजुर्ग मां भी रहती हैं. कोरोना का सबसे ज्यादा असर बुजुर्गों पर होता है यह बात बार-बार कहीं जा रही है.

मोनू बताते हैं कि 25 अप्रैल से जब उनकी तबियत काफी बिगड़ गई तब से मैं उनके साथ तीन बार अस्पताल जा चुका हूं. उनके परिजन उनके करीब रहे लेकिन कोरोना पॉजिटिव आने के बाद भी पांच दिनों तक किसी का टेस्ट नहीं हुआ. जबकि हम इसकी मांग लगातार कर रहे थे. जिस शाम उनका निधन हुआ उसी शाम सबका टेस्ट किया गया है जिसका नतीजा अभी तक नहीं आया है.’’

एक इमोशनल लेख और प्रशासन की तारीफ

पंकज के निधन के दो दिन बाद यानी 9 मई को जागरण के आगरा संस्करण के पेज नम्बर दो पर इस मामले को लेकर दो स्टोरी लगी है. पहली उनके सहकर्मी आशुतोष शुक्ल ने लिखी हैं. जिसका शीर्षक, ‘कोरोना तेरा नाश हो! तू पंकज को ले गया’ है. वहीं दूसरा लेख पंकज के परिवार को मिले आर्थिक सहायता, घोषित हों कोरोना योद्धा’ शीर्षक से छपी है.

आशुतोष शुक्ल अपने लेख में अपनी पुरानी यादों के सहारे पंकज को याद कर रहे हैं लेकिन इस दौरान भी वे सरकारी लापरवाही का सवाल उठाते नज़र नहीं आते हैं. उल्टे वे प्रशासन की तारीफ करते हुए लिखते हैं कि डॉक्टर्स और प्रशासन ने अपनी ओर से कोई कसर नहीं छोड़ रहे थे फिर भी पंकज के लिए पीजीआई लखनऊ में किसी भी इमरजेंसी में तत्काल भर्ती की व्यवस्था कर ली गई थी.

9 मई को जागरण में एक लेख और एक खबर

वहीं अपने दूसरे लेख में नेताओं और सामाजिक संगठनों द्वारा पंकज कुलश्रेष्ठ को याद करने पर ख़बर बनाई गई है. जिसमें कांग्रेस समेत कई संगठनों ने परिजनों को पचास लाख रुपए की आर्थिक मदद देने की मांग की है और प्रशासन की लापरवाही पर सवाल उठाया है.

कर्मचारियों को लेकर संवेदनहीन रहा है जागरण

इस मामले में हमने आगरा जागरण के संपादक उमेश शुक्ल को चार सवाल भेजा.

1. जागरण ने पंकज कुलश्रेष्ठ के निधन के बाद जो खबर 7 मई को छपी है उसमें बताया कि उनका कोरोना पॉजिटिव 4 मई को आया था. वहीं उनके परिजनों का कहना है कि उनका कोरोना पॉजिटिव 2 मई को आया था. क्या सत्य है?

2. जागरण लिखता है कि कोरोना पॉजिटिव आने के तुरंत बाद उन्हें एसएन मेडिकल कॉलेज में भर्ती कराया गया. लेकिन परिजनों की माने तो 26 घण्टे बाद उन्हें भर्ती कराया गया है. क्या जागरण को यह पता नहीं था?

3. आगरा के उनके साथी इस पूरे मामले में प्रशासन की लापरवाही की बात कर रहे हैं. क्या जागरण भी ऐसा ही मानता है?

4. परिजनों का कहना है कि मृत्यु की सूचना उनसे आपको मिली. क्या यह सत्य है?

सवाल भेजने के बाद हमने उन्हें फोन भी किया लेकिन उन्होंने हमें कोई जवाब नहीं दिया. अगर उनका जवाब मिलेगा तो हम उसे इस खबर में जोड़ देंगे. न्यूज़लॉन्ड्री के रिपोर्टर ताहिर ने इस मामले में आगरा जिलाधिकारी से जब बात किया तो उन्होंने साफ़ कह दिया था कि आप दैनिक जागरण के एडिटर से बात कीजिए वही इस बारे में सारी बातें बताएंगे. उनके इलाज में कोई कोताही नहीं हुई. उनका बहुत केयर की गई थी.”

पंकज के निधन के तुरंत बाद उत्तर प्रदेश सरकार को पत्र लिखकर परिजनों को 50 लाख रुपए की मदद और एक व्यक्ति को सरकारी नौकरी देने की मांग करने वाले उत्तर प्रदेश मान्यता प्राप्त संवाददाता समिति के अध्यक्ष हेमंत तिवारी जागरण और प्रशासन की लापरवाही पर नाराज़गी जाहिर करते हुए कहते हैं, ‘‘दैनिक जागरण प्रबंधन की संवेदनहीनता का यह कोई पहला मौका नहीं हैं. जो लोग पूरी लॉयलिटी के साथ उनके यहां वर्षों काम करते हैं उनके प्रति भी निष्ठुरता के एक नहीं अनेक उदाहरण अतीत में देखने को मिले हैं. मुझे लगता है कि इस प्रकरण में जागरण प्रबंधन और आगरा प्रशासन दोनों ने लापरवाही की है.

उत्तर प्रदेश मान्यता प्राप्त संवाददाता समिति ने सरकार को लिखी चिट्ठी

हेमंत तिवारी आगे कहते हैं, ‘‘पंकज की गृहस्थी बहुत कच्ची है उसके परिजनों को आर्थिक मदद सरकार को देनी चाहिए लेकिन सरकार भी पत्रकारों को लेकर संवेदनशील नहीं है. आप देखिए परसों रात को निधन हुआ है लेकिन प्रदेश के उपमुख्यमंत्री एक दिन बाद दोपहर में चार लाइन की शोक संवेदना जारी करते हैं. जागरण के प्रबंधन से बात करने पर वो फोन तक नहीं उठाते हैं. जैसा की मैंने पहले बताया कि जागरण प्रबंधन अपने कर्मचारियों के साथ खड़ा नहीं होता और इस मामले में तो पिंड छुडाते नजर आ रहा है.’’

कोरोना और आगरा

उत्तर प्रदेश में कोरोना के सबसे ज्यादा मामले आगरा समय में ही आए हैं. 9 मई तक के अगर आंकड़ों को देखें तो पूरे देश में यह आंकड़ा 55 हज़ार के उपर जा चुका है. वहीं अगर उत्तर प्रदेश में कुछ 3214 मामले सामने आये है जिसमें से आगरा से 706 हैं. आगरा में अब तक 16 लोगों की मौत हो चुकी है.

जब राजस्थान की कांग्रेस सरकार ने कोरोना से भीलवाडा में सफलता पाई तो उन्होंने भीलवाडा मॉडल सामने रखा. जिसके बाद उत्तर प्रदेश की योगी सरकार ने आगरा मॉडल दिखाना शुरू कर दिया हालांकि क्वारंटाइन सेंटर की जो तस्वीरें वहां से सामने आई और जिस तरह की लापरवाही की बात सामने आ रही है उससे साफ़ पता चलता है कि आगरा मॉडल ठीक वैसा ही मॉडल है जैसा बिहार का विकास मॉडल, जिसकी बात बिहार के उपमुख्यमंत्री सुशील मोदी ने दिल्ली चुनाव के दौरान किया था.

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