Newslaundry Hindi
वीडियो: तिहाड़ प्रशासन ने गाड़ी मुहैया कराने से मना कर दिया तो पैदल ही निकल पड़े क़ैदी
दोपहर के 12 बज रहे थे. हम दिल्ली-चंडीगढ़ हाइवे पर आगे बढ़ रहे थे. तेज़ धूप हो रही थी. हम हाईवे के चेक पॉइंट सिंधु बॉर्डर से थोड़ा ही आगे बढ़े थे कि दो लोग हाथ में पानी की बोतल और पीले रंग का एक बैग पीठ पर लादे पैदल पानीपत की ओर जाते दिखे.
सुनसान हाइवे पर अकेले चले जा रहे इन दो लोगों ने जिज्ञासा जगाई सो हमने उनसे बातचीत करने की सोची. गाड़ी एक किनारे खड़ी करके बातचीत शुरू की तो पता चला कि दोनों व्यक्ति दिल्ली के तिहाड़ जेल से छूटकर अपने गांव जा रहे थे. उनका गांव पानीपत में पड़ता है. तिहाड़ प्रशासन ने इन्हें सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद छोड़ा था, लेकिन घर पहुंचाने का कोई इंतजाम उसने नहीं किया.
लॉकडाउन के चलते इन दोनों लोगों को न तो कोई वाहन मिला ना ही जेल प्रशासन ने कोई व्यवस्था की, इसलिए ये दोनों पैदल ही पानीपत के लिए निकल पड़े. तिहाड़ जेल से पानीपत शहर कीदूरी लगभग सौ किलोमीटर है.
इन दोनों कैदियों के नाम चंद्रभान कृपाल सिंह और रमेश जब्बार था.
आठ साल बाद जेल से जा रहा हूं
बातचीत शुरू हुई तो दिलचस्प जानकारियां सामने आने लगीं. पानीपत के ब्रह्मनंद कॉलोनी में रहने वाले चन्द्रभान कृपालसिंह पिछले आठ साल से तिहाड़ जेल में बंद थे. लेकिन लॉकडाउन के चलते जब आठ साल बाद उन्हें रिहाई मिली तो कोई घर से लेने के लिए भी नहीं आ सका. जेल प्रशासन ने भी इसकी सुध नहीं ली, लिहाजा पैदल जाना निकलना ही इनकी मजबूरी थी.
दूसरे शख्स रमेश जब्बार भी पानीपत के ही रहने हैं जिन्हें आठ सप्ताह के लिए जमानत दी गई है. इन्हें वापस 7 जून को जेल में हाजिर होना पड़ेगा.
चन्द्रभान आईपीसी की धारा 304 (गैर इरादतन हत्या) के तहत जेल में बंद थे. चन्द्रभान कहते हैं, ‘‘मैं दिल्ली में रहकर काम करता था. 2012 में आजादपुर सब्जी मंडी में हमारी कुछ लोगों से लड़ाई हो गई जिसमें अनजाने ही एक शख्स की मौत हो गई. इसी मामले में मुझे जेल जाना पड़ा था. आठ साल जेल में रहने के बाद अब मुझे रिहा किया गया है.’’
आठ साल बाद मंगलवार को जब चन्द्रभान रिहा हुए तो उन्हें कोई लेने नहीं आया. वे कहते हैं, ‘‘कोरोना और लॉकडाउन के कारण कोई नहीं आ पाया. वाहन नहीं मिला हम पैदल ही निकल पड़े. सुबह दिल्ली से निकले हैं. अभी दोपहर के बारह बज गए और दिल्ली अभी-अभी पार किए है. लगातार चले तो देर रात तक पहुंच जाएंगे.’’
सात साल से जेल में था बंद
चन्द्रभान के साथ ही पानीपत के ही रहने वाले रमेश जब्बार को भी आठ सप्ताह के लिए जमानत मिली है. रमेश जब्बार पर आईपीसी की धारा 307 के तहत मुकदमा दर्ज था. किसी की हत्या के असफल प्रयास में यह धारा लगाई जाती है.
जब्बार बताते हैं,‘‘मेरी दिल्ली में ही एक व्यक्ति से लड़ाई हो गई थी. मैंने एक शख्स को कर्ज दिया था. लम्बे समय तक उसने चुकाया नहीं जिसके बाद उससे लड़ाई हो गई. उस मामले में मुझे 307 के तहत जेल भेज दिया गया. 2013 से मैं जेल में था. अब पेरोल मिल गई है.’’
रमेश जब्बार शादीशुदा हैं. सात साल बाद जेल से कुछ दिनों के लिए घर जाने का मौका मिला है. वे कहते हैं, ‘‘नसीब तो देखो सर. सात साल बाद कोई लेने भी नहीं आया. भूखे प्यासे दिल्ली से पैदल जा रहे हैं. अभी 60 किलोमीटर जाना है.’’
‘तिहाड़ प्रशासन ने नहीं दी गाड़ी’
कोरोना को रोकने के लिए लगे देशव्यापी लॉकडाउन के कारण यातायात के तमाम साधन बंद हैं. लोगों को घरों में रहने के लिए लगातार कहा जा रहा है. कई जगहों पर लॉकडाउन तोड़ने के कारण पुलिस पिटाई भी कर रही है. ऐसे में तिहाड़ प्रशासन ने जब इन्हें जेल से छोड़ा तो घर भेजने के लिए किसी तरह का इंतजाम उसे करना चाहिए था. इन दोनों ने आरोप लगाया कि जेल प्रशासन ने उन्हें सीधे जेल गेट पर लाकर, घर जाने के लिए कह दिया गया.
तेज धूप में पसीने से तरबतर रमेश नाराज होकर कहते हैं- तिहाड़ प्रशासन ने हमें गेट के बाहर छोड़ दिया और कहा कि घर चले जाओ. रमेश तिहाड़ प्रशासन पर गंभीर आरोप लगाते हुए कहते हैं, ‘‘उन्होंने हमसे कहा कि हमारा काम है छोड़ने का. आप जहां मन, वहां जाइये. यह हमारा काम नहीं है. उन्होंने हमें खाने के लिए भी कुछ नहीं दिया.’’
रमेश की तरह ही चन्द्रभान भी तिहाड़ प्रशासन पर गंभीर आरोप लगाते हुए कहते हैं, “हमने गाड़ी के लिए बोला तो उन्होंने कहा जाना है तो जाओ नहीं तो बाद में जाना. गाड़ी का कोई इंतजाम नहीं है. अब पैदल जा रहे हैं. सबकुछ बंद पड़ा हुआ है.’’
तिहाड़ प्रशासन ने आरोपों से किया इनकार
न्यूज़लॉन्ड्री पर जो बात चन्द्रभान सिंह और रमेश जब्बार ने वीडियो पर बताई, तिहाड़ प्रशासन ने सीधे-सीधे ख़ारिज कर दिया.
तिहाड़ जेल के जनसंपर्क अधिकारी राजकुमार से न्यूजलॉन्ड्री ने पूछा कि जब लॉडाउन में कैदियों को छोड़ा जा रहा है तो फिर उन्हें उनके घरों तक पहुंचाने के लिए यातयात के साधन क्यों नहीं उपलब्ध कराया जा रहा? इस आरोप पर बिदकते हुए राजकुमार कहते हैं, ‘‘वो लोग गलत आरोप लगा रहे हैं. जो कैदी दिल्ली के बाहर के रहने वाले है उनके लिए हम घर जाने का इंतजाम कर रहे हैं. हम यहां से रोजाना प्लान बनाकर दिल्ली से बाहर के लोगों को गाड़ी मुहैया करवा रहे हैं. डीएपी की सारी गाड़ियां इस काम के लिए लगी हुई हैं. अब तक 50 लोगों को उनके घर तक छोड़ा गया है.’’
राजकुमार आगे कहते हैं, ‘‘हो सकता है उन्होंने हमें बताया हो कि उनका कोई रिश्तेदार दिल्ली में रहता है. और वे उनके घर जा रहे हैं. हमने उन्हें जाने दिया हो और रिश्तेदार नहीं मिला हो ऐसी स्थिति में वे पैदल अपने घर के लिए निकल गए हो. वो जो भी आरोप लगा रहे हैं उसपर मैं कुछ नहीं कह सकता लेकिन मैं जो कह रहा हूं वो फैक्ट है.’’
तिहाड़ प्रशासन इन आरोपो से इनकार कर रहा है लेकिन हमारे पर उन कैदियों के बयान और पैदल पानीपत जाते हुए वीडियो और तस्वीरें हैं जो बताती है कि कहानी कुछ और है. इस गड़बड़ी पर तिहाड़ प्रशासन का जवाब टालमटोल वाला है.
सुप्रीम कोर्ट का निर्देश
कोरोना महामारी को देखते हुए सुप्रीम कोर्ट ने सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को उच्च-स्तरीय पैनल गठित करके जेलों में बंद सात साल या उससे कम की सज़ा पाए कैदियों और अंडरट्रायल कैदियों को कुछ दिनों के लिए जमानत पर छोड़ने का निर्देश दिया था. ताकि जेलों में भीड़ भाड़ कम की जा सके.
भारत की ज्यादातर जेलों में क्षमता से अधिक कैदी रह रहे हैं. बीते साल नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो द्वारा जारी रिपोर्ट के अनुसार भारत में साल 2016 में 1,412 जेलों में कैदियों की क्षमता 3,80,876 थी लेकिन उसमें 4,33,003 कैदी बंद थे. साल 2017 में इस संख्या में ज्यादा अंतर नहीं आया बल्कि बढ़ गया. 2017 में 1,361 जेलों में कैदियों की संख्या 4,50,696 रही जबकि इसकी क्षमता 3,91,574 थी. साल 2018 में यह संख्या और बढ़ गई. 31 दिसंबर 2018 तक 1,339 जेलों में कैदियों की संख्या 4,66,084 थी जबकि इसकी क्षमता 3,92,230 थी.
सुप्रीम कोर्ट के निर्देश के बाद तिहाड़ जेल ने भी अपने यहां से उन कैदियों की सूची बनाई जिन्हें छह सप्ताह से आठ सप्ताह के लिए छोड़ने का फैसला लिया गया. जेल के जनसंपर्क अधिकारी राजकुमार न्यूजलॉन्ड्री से बात करते हुए बताते हैं, ‘‘कितने कैदियों को छोड़ने का निर्णय लिया गया यह तो अभी नहीं बता सकता लेकिन अभी तक दिल्ली और दिल्ली के बाहर के 2,700 कैदियों को छह सप्ताह और आठ सप्ताह की जमानत पर छोड़ा जा चुका है.’’
Also Read: जेल, क़ैदी और कोरोना
Also Read: कोरोना के बाद वाली दुनिया में नया क्या होगा?
Also Read
-
How Muslims struggle to buy property in Gujarat
-
A flurry of new voters? The curious case of Kamthi, where the Maha BJP chief won
-
Scapegoat vs systemic change: Why governments can’t just blame a top cop after a crisis
-
Delhi’s war on old cars: Great for headlines, not so much for anything else
-
डिस्टर्ब्ड एरिया एक्ट: गुजरात का वो कानून जिसने मुस्लिमों के लिए प्रॉपर्टी खरीदना असंभव कर दिया