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कोरोना के बाद वाली दुनिया में नया क्या होगा?

मैं बिना किसी संशय के कह सकती हूं कि कोविड-19 हमारे जीवनकाल की सबसे अधिक घातक एवं विनाशकारी घटना है. यह हमारे समाज की परिभाषा बदल कर रख देने की क्षमता रखता है. मेरी जानकारी में ऐसी कोई दूसरी महामारी नहीं है जो इतनी तेजी से फैली हो. वर्ष 2019 के दिसंबर के अंत में चीन में कोविड-19 का पहला केस पाया गया और आज अप्रैल 2020 के मध्य में हालात ऐसे हैं कि दुनिया की आबादी का अनुमानित एक तिहाई हिस्सा अपने घरों में कैद है.

यह एक अभूतपूर्व संकट है और ऐसी कोई नियम पुस्तिका नहीं है जो सरकार को यह बताए कि क्या करना है. अर्थव्यवस्थाओं को बंद करने का क्या तरीका हो और उन्हें कब दोबारा खोला जाए, इसको लेकर कोई नियम नहीं हैं.

यह वायरस एक म्यूटेन्ट है जोकि अपने पशु मेजबानों के माध्यम से इंसानों में प्रवेश कर गया है. क्योंकि यह वायरस स्वयं को छुपाने के नए-नए तरीके ढूंढ़ने में माहिर है. यह सर्वथा घातक और विनाशकारी है.

हालांकि अभी हमें जिस चीज के बारे में ज्यादा सोचना चाहिए वह है हमारी धरती की सामूहिक कमजोरी. सबसे ताकतवर नेता हों, उच्चतम तकनीक वैज्ञानिक प्रतिष्ठान हो या सबसे शक्तिशाली आर्थिक कौशल, सभी इस छोटे से वायरस के आगे अपने आप को बेबस महसूस कर रहे हैं. हमें इस परिस्थिति में विनम्र रहने की आवश्यकता है. हमें सोचना चाहिए कि ऐसा क्या है जो हम अलग कर सकते हैं. हमें अपनी कार्यशैली और व्यवहार में परिवर्तन लाने की आवश्यकता है और मुझे उम्मीद है कि हम ऐसा कर पाएंगे.

एक तथ्य यह भी है कि जब भी ऐसी कोई भयावह घटना होती है, हमारा ध्यान तात्कालिक आवश्यकताओं, जैसे कि राहत एवं बचाव पर होता है. हमें अतीत से क्या सीखना चाहिए, इस पर हम ध्यान नहीं देते. और इस बात में कोई शक नहीं है कि कोविड-19 की रोकथाम जरूरी है.

समृद्ध देशों में, जहां स्वास्थ्य का बुनियादी ढांचा मजबूत है, वहां मौतें सबसे ज्यादा हो रही हैं. ऐसे हालात में उभरती-विकासशील दुनिया में मानव त्रासदी के पैमाने की कल्पना की जा सकती है जहां स्वास्थ्य सुविधाएं न के बराबर हैं. लेकिन इसके साथ-साथ मानवीय अभाव के व्यापक पैमाने की भी कल्पना करें क्योंकि रोजगार लगातार कम हो रहे हैं. गरीबों के घरों की अर्थव्यवस्था संचित अर्थ पर आधारित न होकर उनकी दैनिक आय पर निर्भर रहती है.

ऐसा नहीं है कि कोविड-19 के बाद जीवन समाप्त हो जाएगा. ऐसे में नया “सामान्य” यानि रोजमर्रा के प्रचलन में कौन सी चीजें रहेगी? आइए हम अपनी वैश्वीकृत दुनिया के सबसे महत्वपूर्ण मुद्दे पर चर्चा करें: अगली वैश्विक आपात स्थिति से बचाव के लिए हम कोविड-19 से क्या सीख ले सकते हैं. सच्चाई यह है कि हम जानते हैं कि हमें एक साथ मिलकर काम करना चाहिए था लेकिन हम ऐसा करने में विफल रहे हैं.

चीन ने समय रहते वायरस से संबंधी जानकारी विश्व से साझा नहीं की जिसके फलस्वरूप वायरस चीन की सीमा से निकल कर पूरी दुनिया में फैल गया. विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) ने या तो तेजी से कार्य नहीं किया या फिर आज हालात ऐसे हो चले हैं जिनमें देशों ने इस संस्था की बात पर ध्यान ही नहीं दिया. जनवरी माह के अंत तक डब्ल्यूएचओ इस उम्मीद में था कि चीन में ही इस वायरस को रोक लिया जाएगा. यही नहीं, डब्ल्यूएचओ ने वैश्विक यात्रा प्रतिबंधों का भी विरोध किया और अंतत: तक कोविड-19 को महामारी घोषित करने में अनिश्चय का प्रदर्शन किया.

जब तक डब्ल्यूएचओ की नींद खुली तबतक काफी देर हो चुकी थी और महामारी विकराल रूप धारण कर चुकी थी. डब्ल्यूएचओ ने अपनी विश्वसनीयता खो दी है और यह ऐसे समय में हुआ है जब विश्व को एक ऐसे सक्षम एवं सशक्त नेतृत्व की आवश्यकता है जो हमें इस संकट से बाहर निकाले. संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद ने पहले तो हफ्तों तक कोई बैठक नहीं की, और जब बैठक हुई भी तो बिना किसी लड़ाई के इस संस्था ने घुटने टेक दिए.

यह केवल चीन और डब्ल्यूएचओ की बात नहीं है- संकट की इस घड़ी में हर देश अपनी सुरक्षा में लगा है. हालात ऐसे हैं कि देश स्वास्थ्यकर्मियों के लिए आवश्यक मास्क, सुरक्षा उपकरणों की पाइरेसी कर रहे हैं. इसके अलावा दवा की आपूर्ति को लेकर विवाद और पहली वैक्सीन बनाने की दौड़ भी चालू है.

यह सोचना इसलिए भी भयावह है क्योंकि हम जानते हैं कि यह महामारी एक अन्योन्याश्रित वैश्विक व्यवस्था का परिणाम है. यह एक तथ्य है कि कोरोनावायरस निश्चित रूप से चीन के एक प्रांत से आया है और मैं यह कहने में संकोच नहीं करूंगी कि वहां के नागरिकों का अपने भोजन के साथ एक “डिस्टेपियन” संबंध का इतिहास है.

लेकिन इस बीमारी का प्रसार इसलिए हुआ क्योंकि हमारी दुनिया एक ग्लोबल गांव है. यह भी स्पष्ट हो चला है कि हम अपनी सबसे कमजोर कड़ी जितने ही मजबूत हैं. यदि वायरस का प्रसार दुनिया के कुछ क्षेत्रों में जारी रहता है (जोकि शायद सबसे कमजोर स्वास्थ्य सेवाओं वाले या युद्ध और संघर्ष से ग्रस्त देश हों) तो यह पूर्णतया नष्ट नहीं होगा. हम इस युद्ध को तबतक नहीं जीत सकते जबतक हम इस संघर्ष में एक साथ विजयी न हों.

इसीलिए आज के वैश्विक नेतृत्व की दयनीय स्थिति को लेकर हमें चिंतित होना चाहिए. कई सम्मानित आवाज़ें हैं जो यह तर्क दे रही हैं कि कोविड-19 बहुध्रुवीय दुनिया का अंत दिखाता है. यह संयुक्त राष्ट्र एवं उसकी सम्पूर्ण परिकल्पना का अंत है. आने वाले समय में नई विश्व व्यवस्था एकपक्षीय ही होगी. हम इससे तब तक नहीं जीत सकते, जब तक हम इसे एक साथ नहीं जीत लेते.

लेकिन यह कोविड-19 के लिए पर्याप्त नहीं होगा और निश्चित रूप से जलवायु परिवर्तन के खिलाफ तो हमारा पक्ष और भी कमजोर होगा. कोविड-19 की तरह, जलवायु परिवर्तन को भी वैश्विक नेतृत्व की आवश्यकता है. यदि एक भी देश उत्सर्जन करना जारी रखता है, तो बाकी सभी देशों के प्रयासों पर पानी फिर जाएगा. अगर हम चाहते हैं कि सभी देश मिलकर कार्रवाई करें, तो हमें एक सहकारी समझौते का निर्माण करना चाहिए, जिसमें अंतिम देश, के अंतिम व्यक्ति का विकास पर अधिकार हो.

इस अंतर-निर्भर दुनिया में हमें वैश्विक नेतृत्व की आवश्यकता है. इसलिए, कोविड-19 के बाद की दुनिया की नई सामान्य स्थिति यही होगी, हमें यह याद रखना चाहिए. हम इसे कैसे ठीक करते हैं यह कल के लिए सवाल है. लेकिन इसे ठीक किए बिना हमारा गुजारा नहीं है.

(डाउन टू अर्थ से साभार)

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