Newslaundry Hindi
यह बात बारहा सामने आई है कि कोरोना जैसी किसी भी महामारी से सर्वाधिक मौतें भारत में होंगी
इंडियन जर्नल फ़ॉर मेडिकल रीसर्च के मार्च 2018 के संस्करण में ललित कांत और उनके सहकर्मी रणदीप गुलेरिया ने एक लेख लिखा था. इसका शीर्षक था “पैंडेमिक फ़्लू 1918: आफ़्टर हंड्रेड ईयर इंडिया इज़ ऐज़ वल्नरेबल.” इस लेख का मुख्य बिंदु था कि हिंदुस्तान की स्वास्थ्य सेवाओं की जैसी जर्जर हालत है उसे देखते हुए अगर स्पैनिश इनफ़्लुएंज़ा जैसी कोई भी महामारी दुनियां में फैलती है तो विश्व में सर्वाधिक मौतें हिंदुस्तान में ही होगी. इस लेख में सलाह के तौर पर लेखक भारत सरकार को यूनिवर्सल हेल्थ कवरेज को जितना जल्दी हो सके लागू करने का सलाह देते हैं.
1918 में अमेरिका में स्पैनिश इनफ़्लुएंज़ा महामारी शुरू होने के कुछ ही दिनों के भीतर लगभग पूरी दुनिया में फैल गई थी. दुनिया भर में इस महामारी के कारण लगभग 5-10 करोड़ लोगों की मौत हुई थी. ये बीसवीं सदी की सर्वाधिक भयावह त्रासदी थी. अकेले हिंदुस्तान में लगभग 1-2 करोड़ों लोगों के मरने का अनुमान लगाया गया था. एक अनुमान के अनुसार अगर वर्ष 2004 में इनफ़्लुएंज़ा महामारी आती तो पूरी दुनियां में लगभग 6 करोड़ लोगों की मृत्यु होती जिसमें हिंदुस्तान में सर्वाधिक मौतें होती.
COVID-19 महामारी भी स्पैनिश इनफ़्लुएंज़ा की तरह ही एक संक्रामक रोग है जो संक्रमित मनुष्य/वस्तु के सम्पर्क में आने से फैलता है. दोनों ही बीमारी हमारे श्वसन तंत्र को प्रभावित करती हैं. स्पैनिश इनफ़्लुएंज़ा के मुक़ाबले COVID-19 कम तेज़ी से फैलता है पर इसमें मृत्यु दर ज़्यादा है और साथ ही यहमुश्किल से पहचान में आता है. यह लंबे समय तक ज़िंदा रहता है.
इस बीमारी को फैलने से तब तक नहीं रोका जा सकता है जब तक की इसका कोई स्थायी टीका (वैक्सीन) न खोज लिया जाय. इसके लिए एक से दो वर्ष का समय चाहिए. टीके की खोज हो जाने के बावजूद सम्भावना है कि भारत में यह टीका पहुंचने में कुछ अतिरिक्त महीने का समय लग जाय. क्योंकि विश्व के सभी देश टीके को खरीदने की होड़ में लग जाएंगे. ऐसे में आमिर और ताकतवर देश शुरुआती दौर में टीके के बाज़ार पर अपना क़ब्ज़ा जमा लेंगे.
एक रिपोर्ट के अनुसार अमेरिका के राष्ट्रपति ट्रम्प ने टीका बनाने का दावा करने वाली एक जर्मन कम्पनी से उसका एकाधिकार लेने का प्रयास किया था. अमीर देशों द्वारा इस तरह के प्रयास कोई आश्चर्य की बात नहीं हैं. ऐसा हमेशा से होता आया है कि गरीब देशों को इस तरह की वैक्सीन अमीर देशों की पूर्ति हो जाने के बाद उपलब्ध होती है. विशेषज्ञों की माने तो हिंदुस्तान को शायद टीके के लिए विश्व स्वास्थ्य संगठन का मुंह ताकना पड़े.
वर्ष 2015 के दौरान 201 देशों में विश्व स्वास्थ्य संगठन के द्वारा इनफ़्लुएंज़ा के क़रीब पचास करोड़ टीके बांटे गए जिसमें से 95 प्रतिशत टीके अमेरिका, यूरोप और पश्चमी प्रशांत क्षेत्र में बाटे गए जबकि पूरे अफ़्रीका, दक्षिण पूर्व एशिया और पूर्वी भूमध्य सागर क्षेत्र में मात्र 5 प्रतिशत टीके की आपूर्ति हुई.
COVID-19 का टीका भारत को अन्य विकसित देशों की तुलना में अधिक महंगा मिलेगा क्योंकि भारत टीके का नियमित ख़रीदार नहीं है. 2009 में आए एच1एन1महामारी के लिए निर्मित टीके के साथ ऐसा ही हुआ था. एच1एन1महामारी का टीका सितम्बर 2009 में बनकर उपयोग के लिए तैयार हुआ था पर गरीब देशों तक ये टीका जनवरी 2010 के बाद ही पहुंच पाया. भारत सरकार ने तीन हिंदुस्तानी दवा निर्माता कम्पनियों को एच1एन1इनफ़्लुएंज़ा का टीका बनाने के लिए दस करोड़ रुपए का ठेका दिया जिसे बनाया भी गया पर आजतक टीकाकरण नहीं किया गया.
वर्ष 2010 में हिंदुस्तान में लगभग चालीस हज़ार लोग एच1एन1इनफ़्लुएंज़ा से ग्रसित हुए जिसमें से लगभग दो हज़ार की मृत्यु हो गई. सवाल ये उठता है कि अगले छह महीने या एक वर्ष में जब तक COVID-19 बीमारी के टीके की खोज नहीं हो जाती है और जब तक ये भारत नहीं पहुंच जाता है तब तक इस महामारी से लड़ने का क्या उपाय है? एक वर्ष या छह महीने तक पूरे देश में टोटल लॉकडाउन सम्भव नहीं होगा.
दुनिया के अलग अलग हिस्सों में हो रही शोधों में से एक की माने तो हिंदुस्तान में 15 मई तक कोरोना से प्रभावित लोगों की संख्या 13,800 से लेकर 22 लाख तक पहुंच सकती है. इंडियन काउन्सिल ऑफ़ मेडिकल रीसर्च और इंडिया सिम के सम्भावित आंकड़े संक्रमित लोगों की संख्या करोड़ों में मानकर चल रहे हैं. क्या भारत में इतनी बड़ी संख्या में संक्रमित लोगों के लिए स्वास्थ्य केंद्र आदि की सुविधाएं उपलब्ध हैं?
विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार भारत में प्रति दस हज़ार लोगों पर मात्रा सात हॉस्पिटल बेड हैं. इस हिसाब से पूरे हिंदुस्तान में लगभग 9 लाख बेड ही होंगे. इन बेड में से भी बहुत कम ही स्वास्थ्य केंद्र हैं जहां कोरोना के इलाज के लिए ज़रूरी सुविधाएं उपलब्ध हों. देश में स्वास्थ्य सुविधाओं और स्वास्थ्य कर्मियों की भारी कमी है. विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार भारत में जितने भी स्वास्थ्यकर्मी हैं उनमे से मात्रा 23.3 प्रतिशत ही आरोग्य की पढ़ाई में प्रशिक्षित हैं जबकि 48.6 प्रतिशत स्वास्थ्यकर्मी सिर्फ़ उच्च माध्यमिक स्तर तक ही शिक्षित हैं.
हिंदुस्तान में ज़्यादातर स्वस्थ्यकर्मी कोरोना जैसी महामारी के दौर में काम करने के लायक़ प्रशिक्षित ही नहीं हैं. विशेषज्ञों की राय में तात्कालिक रूप से आत्म-सुरक्षा और लापरवाही से बचना ही सर्वोत्तम उपाय है और जो लोग संक्रमित हो जाते हैं उनके लिए बेहतर स्वास्थ्य सुविधाओं का इंतज़ाम इससे होने वाले मौतों को कम कर सकती है. हिंदुस्तान अपने नागरिकों को स्वास्थ्य सेवा उपलब्ध करवाने में बहुत ही पिछड़ा देश है. इसलिए हिंदुस्तान में आत्मरक्षा ही एक मात्र उपाय है. यहां सिर्फ़ स्वास्थ्य कर्मियों या ज़रूरी सेवा प्रदान करने वाले कर्मियों को ही नहीं बल्कि देश के हर नागरिक को योद्धा बनना पड़ेगा इस लड़ाई के ख़िलाफ़. उन्हें सावधानियां बरतनी पड़ेंगी, अफ़वाहों से बचना होगा, और निरंतर जागरूक व सजग रहना होगा.
नोबेल पुरस्कार विजेता अभिजीत बनर्जी, अमर्त्य सेन और अर्थशास्त्री ज्यां द्रेज़ से लेकर स्वास्थ्य विशेषज्ञों ने एक स्वर में भारत सरकार को नागरिकों को मुफ़्त भोजन और रहने की व्यवस्था के साथ-साथ पुलिस और प्रशासन को ग़रीबों की परेशानियों और मजबूरी के प्रति सजग रहने की सलाह दिया है.
2018 में भारत सरकार द्वारा यूनिवर्सल हेल्थ कवरेज पर गठित हाई लेवल एक्सपर्ट समूह के सदस्य ललितकांत भी भारत सरकार को इसी तरह की सलाह दे चुके हैं.
(लेखक टाटा इन्स्टिटूट ओफ़ सोशल साइंसेज़ में वरिष्ठ शोधकर्ता हैं.)
Also Read
-
‘Foreign hand, Gen Z data addiction’: 5 ways Indian media missed the Nepal story
-
Mud bridges, night vigils: How Punjab is surviving its flood crisis
-
Adieu, Sankarshan Thakur: A rare shoe-leather journalist, newsroom’s voice of sanity
-
Corruption, social media ban, and 19 deaths: How student movement turned into Nepal’s turning point
-
Hafta letters: Bigg Boss, ‘vote chori’, caste issues, E20 fuel