Newslaundry Hindi
अमरीका और इटली में ध्वस्त होने के लिए व्यवस्था तो थी, हमारे यहां क्या है?
“सभापति महोदय वस्तुस्थिति यह है कि वर्तमान में 20 ज़िलों में आईसीयू स्थापित है, शेष 18 ज़िलों में आईसीयू स्थापित करने हेतु प्रयास किए जा रहे हैं.’’
बिहार विधानसभा में स्वास्थ्य मंत्री मंगल पांडे का यह जवाब है. दो साल पहले का है.27 मार्च 2018 को विधायक गिरिधारी यादव के एक प्रश्न के जवाब में मंगल पांडे ने कहा था. उम्मीद है 2 साल बाद बिहार के सभी ज़िलों में आईसीयू की व्यवस्था हो गई होगी.
बेहतर है आप कल्पना भी न करें कि 18 ज़िलों में वेंटिलेटर न होने के कारण लोगों पर क्या बीती होगी. जिन 20 ज़िलों के सरकारी अस्पताल में वेंटिलेटर होने की बात मंत्री जी कह रहे हैं उससे यह भी साफ नहीं होता कि वहां कितने वेंटिलेटर हैं. मेडिकल काउसिंल आफ इंडिया के अनुसार अस्पतालों में जो स्वीकृत बेड होते हैं उसका दस प्रतिशत वेंटिलेटर यानि आईसीयू बेड होना चाहिए.
नतीजा? मरीज़ अस्पताल के बाहर ही मर जाता होगा. पटना भागता होगा तो वहां नर्सिंग होम वाला लूटता होगा. कई नर्सिंग होम तो ऐसे हैं जहां आईसीयू नहीं है. आईसीयू जैसा है ताकि उसे दिखाकर उनसे लूटा जा सके और मरने के लिए छोड़ा जा सके. कुछ महीनों पहले हमारे ही परिवार के एक सदस्य ने हाथ पांव जोड़ कर एक नर्सिंग होम से गांव के एक मज़दूर को आईसीयू से छुड़वाया था. नर्सिंग होम वाला ही अकड़ में बात कर रहा था. वो जानता था कि राजनीतिक रूप से वह सुरक्षित है. उसका कुछ नहीं हो सकता. वाकई ऐसे लोगों का कुछ नहीं हो सकता है.
जनता दल युनाइटेड के विधायक गिरिधारी यादव ने एक साल पहले 25 अगस्त 2017 को भी ग़रीब मरीज़ों के साथ हो रही लूट को लेकर विधानसभा में सवाल किया था. उन्होंने कहा था कि आईसीयू वाले ग़रीब लोगों से एक लाख से तीन लाख लूट रहे हैं.
“यह सभा राज्य सरकार से अभिस्ताव करती है कि वह राज्य के निजी नर्गिंस होम/ अस्पतालो में ऑक्सीजन, नर्सिंग, चिकित्सीय, कार्डियक मोनेटरिंग, वेंटिलेटर्स सहित सभी सुविधाओं के साथ आईसीयू का अधिकतम दर निर्धारित करे”
गिरिधारी यादव ने दोनों बार सदन में प्रस्ताव पेश किया था. वो चाहते थे कि सदन प्रस्ताव पास करे ताकि वो सरकार का संकल्प हो जाए कि हमें ये काम करना ही है. मगर मंत्री के आश्वासन के बाद दोनों बार वापस ले लिया.
25 अगस्त 2018 के इस प्रस्ताव के जवाब में स्वास्थ्य मंत्री मंगल पांडे ने ही कहा था कि “सरकार द्वारा क्लीनिकल इस्टैबलिस्मेंट एक्ट 2010 के तहत मेडिकल प्रोसिड्योर एंड सर्विसेज़ के दर निर्धारित करने हेतु विभागीय पत्रांक 117(18) दिनांक 25.1.2017 द्वारा एक समिति का गठन किया गया है. समिति के द्वारा देश के अन्य राज्यों में बेस्ट प्रैक्टिसेस एंड मैथड का अध्ययन किया जा रहा है. समिति से प्रतिवेदन प्राप्त होने के उपरांत आवश्यक कार्रवाई की जाएगी.“
क्या कीमतें निर्धारिंत हुई? मंगल पांडे ही बता सकते हैं कि उक्त समिति ने क्या निर्णय दिया और राज्य सरकार ने क्या फैसला किया? आई टी सेल और बीजेपी के प्रभावशाली समर्थक भी इस महत्वपूर्ण प्रश्न पर दबाव बना सकते हैं. राजनीति सकारात्मक हो जाएगी. यही सकारात्मक पत्रकारिता भी है जो मैं कर रहा हूं. जिन्हें ये निगेटिव लगता है वो लिख कर दे दें कि वे जीवन में कभी आईसीयू का इस्तमाल नहीं करेंगे. उनका ठिकाना नहीं. वे लिख कर दे भी सकते हैं.
नीतीश कुमार 15 साल से अधिक समय से प्रभावशाली ढंग से बिहार में सरकार चला रहे हैं. अगर उनके कार्यकाल के 15 साल बीत जाते के बाद 2018 में उनके मंत्री ये कहें कि 18 ज़िलों के सरकारी अस्पताल में आईसीयू नहीं हैं तो फिर इसके अभाव में मर गए बिहारी आत्माओं के प्रति श्रद्धांजलि ही अर्पित कर सकता हूं.
अच्छी बात है कि बांका से जद यू के सांसद गिरिधारी यादव ने विधायक रहते हुए 2017 और 2018 में वेंटिलेटर को लेकर सवाल पूछा. इसके लिए बधाई. सत्तारूढ़ दल के विधायक होते हुए भी एक ज़रूरी प्रश्न पर समय से पहले ध्यान दिलाया.
दोनों वर्षों के उनके प्रश्न बता रहे हैं कि एक नेता के रूप में जनता की वाजिब परेशानी का दबाव किस तरह देख रहे होंगे. उनके साथ काम करने वाले लोग भी आईसीयू और वेंटिलेटर से परेशान रहते हैं. ऐसे वक्त में उन्हें भी लगता है कि विधायक जी के साथ घूम रहे हैं फिर भी कर्जा लेकर अस्पताल का बिल दे रहे हैं. विधायक जी भी अपने मतदाता और कार्यकर्ता से नज़र बचाने के लिए विधानसभा में प्रश्न उठा देते हैं. उसकी पर्ची भी दिखाते रहते हैं कि देखो सवाल कर दिया. उन्हें भी पता है कि उनके प्रश्न भी औपचारिक बन कर रह गए हैं.
क्या बिहार सरकार जनता को बता सकती है कि इस वक्त उसके सभी सरकारी अस्पतालों में कुल कितने आईसीयू हैं? हर ज़िले में कितने आईसीयू हैं? क्या उन 18 ज़िलों में आईसीयू की स्थापना हो चुकी है?
एक दलील दी जा रही है कि अमरीका और इटली की व्यवस्थाएं ध्वस्त हो गई हैं. लेकिन यह भी देखिए कि वहां ध्वस्त होने के लिए कुछ व्यवस्था तो थी. कुछ हज़ार आईसीयू तो थे. अमरीका में दो लाख आईसीयू थे. बिहार में कितने हैं, भारत में कितने हैं? नाकामी पर पर्दा डालने के लिए अमरीका की चुनौती को दिखाया जा रहा है लेकिन वहां ये देखिए कि वो चुनौती का सामना तो कर पा रहा है, आप खासकर बिहार की गरीब जनता चुनौती के सामने आ भी नहीं पाएगी. नौबत ही नहीं आएगी. हिन्दी में लिखा है इसलिए ठीक से समझें.
Also Read
-
CEC Gyanesh Kumar’s defence on Bihar’s ‘0’ house numbers not convincing
-
Hafta 550: Opposition’s protest against voter fraud, SC stray dogs order, and Uttarkashi floods
-
TV Newsance 310: Who let the dogs out on primetime news?
-
If your food is policed, housing denied, identity questioned, is it freedom?
-
The swagger’s gone: What the last two decades taught me about India’s fading growth dream