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कोरोना आइसोलेशन के बीच, “अपनों के आइसोलेशन” से जूझते डॉक्टर, नर्स
पिछले एक सप्ताह में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने दो बार देश के नाम सम्बोधन दिया और 14 अप्रैल तक पूरे देश में लॉकडाउन की घोषणा के साथ लोगों से सहयोग की अपील की. साथ ही उन्होंने इस महामारी से निपटने और स्वास्थ्य सुविधाओं में बेहतरी लाने के उद्देश्य से 15000 करोड़ के कोरोना पैकेज की घोषणा भी की. इसके अलावा केंद्र सरकार ने 1.7 लाख करोड़ का एक बेलआउट पैकेज का भी ऐलान किया है.
21 मार्च को अपने पहले सम्बोधन में प्रधानमंत्री मोदी ने देशवासियों से इस महामारी से बचने के साथ ही उन लोगों का आभार व्यक्त करने के लिए अगले दिन शाम 5 बजे, 5 मिनट तक ताली और थाली बजाने की गुजारिश की थी जो इमरजेंसी सेवाएं दे रहे हैं. इनमें डॉक्टर, सफाईकर्मी, क्रू मेम्बर आदि शामिल हैं. इस अपील का खूब असर हुआ और लोगों ने थालियां तो बजाई ही साथ ही अति उत्साह में सड़कों पर जुलुस तक निकाला और सामाजिक दूरी के नियमों की धज्जियां उड़ा दी. इनमें पीलीभीत जिले के डीएम और एसएसपी भी शामिल थे.
इस मुहिम को जल्द ही कई झटके लगे. कुछ डॉक्टर, नर्स आदि ने सोशल मीडिया के जरिए इस मुश्किल वक्त में अपना दर्द जाहिर किया. उन्होंने लिखा कि उनके साथ भेदभाव किया जा रहा है, मकान मालिक उनसे मकान खाली करने को कह रहे हैं. कइयों ने शिकायत की कि अस्पतालों में कोरोना से प्रोटेक्शन की मूलभूत सुविधाएं तक नहीं हैं. बात इतनी बढ़ गई कि एम्स के डॉक्टरों ने गृहमंत्री को पत्र लिखकर इस मामले में हस्तक्षेप करने की अपील की. इसके बाद गृह मंत्रालय ने इस पर संज्ञान लिया और ऐसे मकान मालिकों पर सख्त कार्रवाई करने के आदेश दिए.
इसी तरह की स्थिति के शिकार हुई गुजरात के सूरत शहर की डॉक्टर संजीवनी पाणिग्रही ने मंगलवार को प्रधानमंत्री नरेंद मोदी को टैग करते हुए एक ट्वीट किया. ट्वीट में उन्होंने लिखा कि उनकी सोसाइटी के लोगों से उन्हें धमकी मिल रही है.
सूरत के न्यू सिविल अस्पताल में काम करने वाली पाणिग्रही ने न्यूज़लॉन्ड्री को बताया, “कोरोना वायरस के तीनों पॉजिटिव मामले हमारे अस्पताल में ही आए हैं. यहां डॉक्टर रोटेशनल तरीके से ड्यूटी कर रहे हैं जिससे 15 दिन तक अपने आप को अलग-थलग रख सकें. हालांकि अभी तक मेरी ड्यूटी कोविड आइसोलेशन वार्ड में नहीं लगी है, लेकिन फिर भी मैं रोज अस्पताल आती हूं और सुबह 9 बजे से शाम 5 बजे तक काम करती हूं.”
सूरत के अदजान इलाके की एक सोसाइटी में रहने वाली पाणिग्रही ने आगे बताया, “मैं एक किराए के अपार्टमेन्ट में रहती हूं, जहां कुछ दिन पहले मुझे एक सोसायटी में रहने वाले व्यक्ति ने धमकी दी. उसने मुझे बाहर जाने से मना किया और मुझे वह बिल्डिंग से बाहर करना चाहता है. साथ ही बात न मानने पर भविष्य में परिणाम भुगतने की धमकी भी दी है. सोसायटी के अधिकतर निवासी ऑफिसों में काम करते हैं. इनमें से 12-15 लोग सोसायटी के गेट पर बैठकर हर किसी हर किसी पर नज़र रखते हैं. यहां तक कि जब मैं सब्जी लेने बाहर गई तो उन्होंने मुझे एक निश्चित समय में वापस लौट आने को कहा.”
पाणिग्रही बताती हैं, “वास्तव में मेरा अस्पताल जाना उन्हें पसंद नहीं है, लेकिन मैं इतनी जरूरत के समय कैसे छुट्टी ले सकती हूं. मेरे जैसे अन्य डॉक्टर, नर्स, स्वास्थ्य स्टाफ और दूसरी आपातकालीन सेवाएं देने वाले लोग भी तो अपनी ड्यूटी निभा रहे हैं. मुझे किसी से भी अपने जॉब के प्रति कोई सहानुभूति नहीं चाहिए, लेकिन वे कम से कम मुझसे मेरी ड्यूटी रोकने के लिए न कहें.”
डॉक्टरों और नर्सिंग स्टॉफ के लिए कोरोना संबंधी सुरक्षा उपकरण और अन्य चिकित्सा सुविधाओं का टोटा भी एक बड़ी समस्या बन कर उभरा है.
किसी कोरोना पीड़ित के इलाज के दौरान डाक्टर और नर्स सफेद रंग के बॉडी कवर में दिखते हैं, जिनमें उनका सिर से लेकर पैर तक ढंका होता है. इस बॉडी कवर के कई पार्ट होते हैंजिन्हें पर्सनल प्रोटेक्टिव इक्विपमेंट या पीपीई कहते हैं. भारत में फ़िलहाल इनकी भारी कमी है, जिसकी शिकायत कई डॉक्टर अब तक कर चुके हैं.
27 फरवरी को विश्व स्वास्थ्य संगठन ने दिशानिर्देश जारी करते हुए कहा था कि विश्व में पीपीई का पर्याप्त भंडारण नहीं है. इसके बावजूद भारत सरकार घरेलू पीपीई का निर्यात करती रही. जिस पर कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने भी सरकार को कठघरे में खड़ा किया था.
न्यू सिविल हॉस्पिटल सूरत के एक अन्य डॉक्टर ने सुरक्षा सम्बन्धी परेशानियों पर हमसे बात की. उन्होंने बताया, “कोविड-19 के भारी दबाव के बावजूद हमारे पास न तो पर्याप्त N-95 मास्क मौजूद हैं और न ही हजमत सूट हैं.सिर्फ सर्जिकल मास्क दिए गए हैं. N-95 मास्क सिर्फ उन डॉक्टरों के लिए हैं जो आइसोलेशन वार्ड में जाते हैं. ये तो बुनियादी सुरक्षा उपकरण हैं, जो उपलब्ध नहीं हैं. इनके बिना डॉक्टर के भी कोविड-19 के चपेट में आने के चांस बहुत ज्यादा होते हैं. सरकार इन्हें हर हालत में हमें उपलब्ध कराए.”
किंग जॉर्ज मेडिकल कॉलेज लखनऊ के रेजिडेंट डॉक्टर एसोसिएशन के प्रेसिडेंट राहुल भरत से जब हमने इस बारे में बात की तो उन्होंने भी सुरक्षा उपकरणों की कमी की बात कही. राहुल के मुताबिक, “अस्पताल में सुरक्षा सम्बन्धी उपकरण नहीं हैं. यहां तक कि मास्क की भी कमी है. कोरोना ओपीडी में अलग से सुरक्षा उपकरणों की जरूरत होती है. डॉक्टर, रेजिडेंट डॉक्टर, नर्स और दूसरे स्टाफ जो कोरोना ओपीडी और फीवर ओपीडी जैसी मुश्किल जगह में काम करते हैं, प्रत्येक को सुरक्षा उपकरण जैसे मास्क, ग्लव्स, हेड कवर, जूते आदि की जरूरत होती है.”
भरत ने बताया कि कुछ दिन पहले रेजिडेंट डॉक्टरों के लिए सुरक्षा उपकरणों की मांग के समर्थन में प्रदर्शन भी किया था.
लखनऊ के ही राम मनोहर लोहिया अस्पताल में कार्यरतशशि सिंह ने एक वीडियो रिलीज कर अस्पताल के खराब उपकरण और स्टाफ के लिए N-95 मास्क, और दुसरे सुरक्षा उपकरणों की कमी की जानकारी दी और उसे उपलब्ध कराने की अपील की.
उत्तर प्रदेश ट्रेनी नर्स एसोसिएशन की अध्यक्ष मैरी मलिक ने बताया, “एक नहीं बल्कि देश के ज्यादातर अस्पतालों की यही स्थिति है. देश में कोरोना के मरीजों के बढ़ने की आशंका है, उस स्थिति में अस्पतालों के डॉक्टर, नर्स और दूसरे स्टाफ के लिए उपयुक्त उपकरण आवश्यक हैं.
कोरोना वायरस इससे पीड़ित मरीज के साथ ही उनका इलाज कर रहे डॉक्टरों के लिए भी बड़ा खतरा है. अब तक पूरे विश्व में ढाई हजार से अधिक डॉक्टर इससे संक्रमित हो चुके हैं और लगभग 20 डॉक्टरों की मौत भी हो चुकी है.कल ही 26 साल के डॉ.उसामा रियाज की पाकिस्तान में कोरोना मरीजों का इलाज करते हुए मौत होने का मामला सामने आया है. इसके अलावा इटली और चीन में भी मरीजों का इलाज करते हुएकई डॉक्टरों को अपनी जान गंवानी पड़ी है. भारत में भी कई डॉक्टरों के इससे संक्रमित होने की ख़बर आई है. अगर अभी इस पर ध्यान नहीं दिया गया और स्वास्थ्य सुविधाओं को बेहतर नहीं किया गया तो स्थिति बेहद खराब हो जाएगी.
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