Newslaundry Hindi
मंदी की मार पहुंची किसान के द्वार
राष्ट्रीय सांख्यकीय कार्यालय ने जब वित्त वर्ष 2019-20 के लिए सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) का पूर्वानुमान जारी किया तो सामान्य मॉनसून के रूप में किसानों के अति आशावाद का बुलबुला फूट गया. भारत में चालू वित्त वर्ष में पांच प्रतिशत जीडीपी का विकास होगा. यह विकास दर 11 साल में सबसे कम है. साल 2018-19 में जीडीपी की विकास दर 6.8 प्रतिशत थी.
अर्थव्यवस्था के सभी क्षेत्र मंदी का सामना कर रहे हैं लेकिन सबसे चिंता की बात 42 प्रतिशत भारतीयों को रोजगार देने वाले कृषि क्षेत्र में लगातार गिरावट है. यह लगातार दूसरा साल है जब कृषि क्षेत्र में विकास दर्ज नहीं किया गया. साल 2019-20 में इसके 2.8 प्रतिशत के दर से विकास करने की उम्मीद है. पिछले वित्त वर्ष में यह विकास दर 2.9 प्रतिशत थी. ऐसे में दलील दी जा सकती है कि कृषि क्षेत्र स्थिर हो गया है.
2019-20 में किसानों को व्यापार और आय में भारी नुकसान उठाना पड़ा. अगर सापेक्ष रूप में देखें तो तीसरी तिमाही में कृषि की जीडीपी 3,651.61 बिलियन रुपए थी. दूसरी तिमाही में यह 4,335.47 बिलियन रुपए थी. इसका अर्थ है कि दो तिमाही अथवा छह महीनों में कृषि की जीडीपी 683.86 बिलियन रुपए गिर गई. यह उन किसानों के लिए बड़ा आर्थिक झटका है जिनकी भारत के गरीबों में अहम हिस्सेदारी है.
यह स्थिति उस समय है जब किसान भारी कर्ज में डूबे हैं. यह मुख्य रूप से फसलों को नुकसान पहुंचाने और उपज का लाभकारी मूल्य न मिलने से आय में गिरावट के कारण है. पिछले छह सालों में किसानों ने चार सामान्य से कम मॉनसून और अतिशय मौसम की घटनाओं का सामना किया है. यह धारणा बन चुकी है कि कृषि उत्पादन बढ़ रहा है. उत्पादन के मामले में हर साल पिछले साल का रिकॉर्ड टूट रहा है.
लेकिन उत्पादन की दर गिर रही है. 2009-14 के बीच अनाज का उत्पादन पांच प्रतिशत की वार्षिक दर से बढ़ा है. अगले पांच सालों में यह दर गिरकर तीन प्रतिशत हो गई. इसके अलावा 2011-12 और 2017-18 में कृषि श्रम में 40 प्रतिशत की कमी आई है.
अर्थव्यवस्था का पूर्वानुमान उन किसानों के लिए बुरी ख़बर है जो अपनी मूलभूत जरूरतों को पूरा करने के लिए प्रवासी दिहाड़ी मजदूर में तब्दील हो रहे हैं. कृषि के अतिरिक्त उनकी आय का सबसे बड़ा वैकल्पिक क्षेत्र शहरी इलाकों में चल रहे निर्माण कार्य हैं. यह वैकल्पिक क्षेत्र भी मंदी से जूझ रहा है. साल 2019-20 में इस क्षेत्र की विकास दर 3.2 प्रतिशत थी जो पिछले वित्त वर्ष में 8.7 प्रतिशत के मुकाबले काफी कम है.
सरकार अर्थव्यवस्था को उबारने के लिए निजी क्षेत्र से लगातार बात कर रही है. पिछले एक साल में कॉरपोरेट के हित में कई बार करों में राहत की घोषणा की गई है. सरकार के पास किसानों को तीन किस्तों में साल में 6,000 रुपए की आर्थिक मदद देने के अलावा कृषि को उबारने की कोई योजना नहीं है. मांग बढ़ाने के लिए जिस तरह की मदद निजी क्षेत्र को मिली है, अर्थव्यवस्था उबारने के लिए उसी तरह की मदद कृषि समुदाय को भी मिलनी चाहिए क्योंकि ये किसान उपभोक्ता भी हैं.
केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी ने हाल ही में ग्रामीण अर्थव्यवस्था को उबारने के लिए एक बड़ी योजना की घोषणा की थी. गडकरी ने कहा कि उनकी सरकार का लक्ष्य स्थानीय उत्पादों और प्रसंस्करण को बढ़ावा देकर ग्रामीण अर्थव्यवस्था का टर्नओवर एक लाख करोड़ से बढ़ाकर सालाना पांच लाख करोड़ रुपए करना है. लेकिन गडकरी ने यह नहीं बताया कि यह कैसे होगा. सरकार 2022 तक किसानों की आमदनी दोगुनी करने के लिए प्रतिबद्ध है जो हाल के वर्षों में लगातार कम हो रही है. किसानों को डर है कि सरकार की इस घोषणा का हश्र भी दूसरी लुभावनी घोषणाओं की तरह ही न हो जो दूरदर्शिता के अभाव में अब तक निष्प्रभावी साबित हुई हैं.
(डाउन टू अर्थ फीचर सेवा से साभार)
Also Read
-
Since Modi can’t stop talking about Nehru, here’s Nehru talking back
-
Indigo: Why India is held hostage by one airline
-
2 UP towns, 1 script: A ‘land jihad’ conspiracy theory to target Muslims buying homes?
-
‘River will suffer’: Inside Keonjhar’s farm resistance against ESSAR’s iron ore project
-
Who moved my Hiren bhai?