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भोपाल गैस त्रासदी: 35 साल बाद भी नहीं मिल पाया पीड़ितों को इंसाफ़ और मुआवजा

मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल में यूनियन कार्बाइड फैक्ट्री की गैस त्रासदी को 35 बरस हो गए और आज तक पीड़ितों को पूरी तरह मुआवजा तक नहीं मिल पाया है. वहीं, जहरीली गैस की शिकार हुई नई पीढ़ी इस मुआवजे के आकलन में ही शामिल नहीं है.

गैर सरकारी संस्थान भोपाल ग्रुप फॉर इन्फॉरमेशन एंड एक्शन की सदस्य रचना धिंगरा ने बताया कि सूचना के अधिकार से यह स्पष्ट हुआ है कि भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद (आईसीएमआर) ने उस रिपोर्ट को प्रकाशित ही नहीं होने दिया गया, जिसमें गैस पीड़ित गर्भवती के बच्चों में जन्मजात स्वास्थ्य समस्या होने की बात सामने आई थी.

केंद्रीय रसायन एवं उवर्रक मंत्रालय की वार्षिक रिपोर्ट के मुताबिक 1992 में वेलफेयर कमिश्नर को 5,74,391 पीड़ित दावेदारों के लिए 1548.61 करोड़ रुपये अवार्ड किया गया था. इनमें मरने वाले, हमेशा के लिए डिसेबिलिटी के शिकार, गंभीर तरीके से घायल, हल्के घायल और संपत्तियों व पशुओं के नुकसान जैसे दावों को शामिल किया गया था.

मंत्रालय की वार्षिक रिपोर्ट का दावा है कि मार्च, 2019 तक 5,63,108 दावेदारों को कुल 1517.80 करोड़ रुपये का मुआवजा दिया जा चुका है और वितरण जारी है.

भोपाल गैस त्रासदी: क्या हम इस हादसे से कुछ सीख पाए?

भोपाल गैस पीड़ितों को इस मूल मुआवजे के अलावा भोपाल गैस त्रासदी मामले में गठित मंत्रियों के समूह ने 2010 में पीड़ितों को अन्य सहायता के तौर पर अनुग्रह राशि (एक्स ग्रेशिया) भी देने का ऐलान किया था. वितरण के लिए 874.28 करोड़ रुपये सरकार ने मंजूर किए थे. वेलफेयर कमिश्नर ने 19 दिसंबर, 2010 से वितरण का काम शुरु किया. मार्च, 2019 तक 60,712 मामलों में 822.53 करोड़ रुपए पीड़ितों को देने का दावा किया गया है.

बहरहाल, 2010 में सरकार ने यूनियन कार्बाइड कारपोरेशन, डाउ केमिकल्स और अन्य सहयोगी औद्योगिक ईकाइयों के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दाखिल की थी. इसमें सुप्रीम कोर्ट से 1989 के आदेश की समीक्षा करने की अपील की गई है. सुप्रीम कोर्ट ने 470 यूएस डॉलर मुआवजे पर समझौते की बात कही थी. सरकार का कहना है कि यह आकलन उस वक्त का था उसके बाद से कई पीड़ित बढ़े हैं. वहीं, कई अन्य कार्यक्रम भी चलाए जा रहे हैं इसलिए उन्हें मुआवजा और मिलना चाहिए. एक अनदेखी ने पीढ़ियों को मुआवजे के दुष्चक्र में ढ़केल दिया. यह सिलसिला अभी थमा नहीं है.

ताकि सनद रहे …

1969 : यूनियन कार्बाइड इंडिया लिमिटेड (यूसीआईएल) ने भोपाल में अपना प्लांट स्थापित किया. इसमें सेविन नाम से कीटनाशक का निर्माण किया जाता था.

1973 : सेविन कीटनाशक तैयार करने के लिए मिथाइल आइसोसाइनेट (एमआईसी) का इस्तेमाल इंटरमीडिएट रसायन के तौर पर किया जाता था. इसका आयात यूएस के जरिए किया जा रहा था.

1979 : अधिक लागत के चलते यूनियन कार्बाइड ने फैक्ट्री में ही एमआईसी गैस का निर्माण शुरु कर दिया.

1980-82 : एमआईसी यूनिट को 12 से छह कर दिया गया. वहीं, प्रबंधन के लिए कामगार भी छह से सिर्फ दो हो गए.

26 दिसबंर, 1981 : को एक प्लांट ऑपरेटर फॉसजीन गैस लीक में मारा गया. वहीं, दूसरी बार जनवरी,1982 में गैस लीक के कारण 28 मजदूर बुरी तरह जख्मी हुए.

2 -3 दिसंबर, 1984 : लगातार हो रही सुरक्षा और तकनीकी अनदेखी के चलते टैंक नंबर 610 से एमआईसी गैस लीक हुई जिसने 20 वर्ग किलोमीटर में आबादी को प्रभावित किया. साढ़े पांच हजार से ज्यादा लोगों की मौत हो गई.

20 फरवरी, 1985 : भारत सरकार ने भोपाल गैस लीक डिजास्टर ( प्रोसेसिंग ऑफ क्लेम्स) एक्ट, 1985 बनाया. इसके तहत पीड़ितों को मुआवजा देने की एक योजना भी बनी.

1985 : भारतीय सरकार ने यूएस की अदालत में यूसीआईएल से 3 अरब यूएस डॉलर के मुआवजे के लिए केस दाखिल किया.

1986 : यूएसीआईल को यूएस मामले में सफलता मिली और यह मामला भारतीय अदालत में पहुंच गया. यहां मुआवजे का बोझ काफी कम था.

14-15 फरवरी, 1989 : भारत सरकार और यूएसीआईएल ने अदालत के बाहर मामले को सुलझाने का आदेश सुप्रीम कोर्ट ने दिया. वास्तविक तौर पर मांगे गए मुआवजे की रकम के सातवें हिस्से पर बात पहुंच गई. 470 यूएस मिलियन डॉलर मुआवजा कोर्ट परिसर में जमा करने के लिए कहा गया.

अप्रैल 1992 : भारतीय अदालत ने यूसीआईएल के तत्कालीन सीईओ वारेन एंडेरसन को भगोड़ा घोषित किया.

नवंबर 1994 : भारतीय सुप्रीम कोर्ट ने यूसीआईएल को अपने संपत्ति बेचने की अनुमति दी, तकनीकी तौर पर भारत से भौतिक रूप में कंपनी का अस्तित्व नहीं रहा.

नवंबर, 1999 : पीड़ितों ने न्यूयॉर्क की एक संघीय अदालत में यूसीआईएल और पूर्व मुख्य कार्यकारी अधिकारी (सीईओ) वारेन एंडेरसन के खिलाफ एक और मामला दाखिल किया. दोनों पर अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकारों, पर्यावरणीय और अंतरराष्ट्रीय अपराध से जुड़े कानूनों के उल्लंघन का इल्जाम लगा.

फरवरी, 2001 : यूनियन कार्बाइड निगम (यूसीसी) और डाउ केमिकल कंपनी (डीसीसी) का विलय हो गया. डाउ ने यूसीसी की संपत्तियों का स्वामित्व हासिल किया.

09 जनवरी, 2002 : डाउ ने यूएस में यूसीसी के उत्तरदायित्वों को स्वीकार कर लिया और टेक्सास में एसबेस्टस कानून उल्लंघन के खिलाफ मामले पर सेटलमेंट कर लिया. लेकिन भोपाल में इसी तरह के उत्तरदायित्व को स्वीकार नहीं किया.

28 अगस्त, 2002 : भारत सरकार के दबाव के बावजूद भोपाल कोर्ट में फिर से गैर इरादतन हत्या की पुष्टि हुई और उसके तत्काल प्रत्यर्पण की मांग उठी.

30 सितबंर, 2002 : पीपुल्स साइंस इंस्टीट्यूट, देहरादून ने अपने अध्ययन में भोपाल के पेयजल में उच्च जहरीले पारे (मर्करी) की मौजूदगी का खुलासा किया. संस्थान ने चेतावनी दी कि यह स्वास्थ्य के लिए बेहद खतरनाक है, लोग यह पानी 18 वर्षों से पी रहे हैं.

21 अक्तूबर, 2002 : मध्य प्रदेश ने घोषणा कि वह सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल कर डाउ केमिकल्स पर यह दबाव बनाएगा कि वह फैक्ट्री और उसके इर्द-गिर्द जहरीले भू-जल और जमीन की सफाई करें.

14 अक्तूबर, 2013 : 2000 से अधिक गैस हदासे के पीड़ितों की तरफ से यूएस कोर्ट में दाखिल दूसरी अपील में नौ यूएस प्रतिनिधियों को एमाइकस बनाया गया. पीड़ितों की मांग थी कि इस हादसे के लिए डाउ को जिम्मेदार माना जाए.

17 मार्च, 2004 : यूएस की संघीय अपीलीय अदालत ने न्यूयॉर्क कोर्ट को कहा कि यदि भारत सरकार राहत के लिए हस्तक्षेप करती है तो उस पर विचार करे.

30 जून, 2004 : भारत सरकार ने न्यूयॉर्क कोर्ट में अनापत्ति मेमो दाखिल किया.

19 जून, 2004 : पीड़ितों के समूह की याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने वेलफेयर कमिश्नर को शेष राशि को पीड़ितों के बीच बांटने का आदेश दिया.

26 अक्तूबर, 2004 : सुप्रीम कोर्ट ने पीड़ितों को मुआवजा बांटने वाली वेलफेयर कमिश्नर की योजना को मंजूर किया.

2005 : मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय ने नीरी को प्री-ट्रीटमेंट अध्ययन के लिए आदेश दिया.

30 मार्च, 2005 : रसायन एवं उर्वरक मंत्रालय ने फैक्ट्री साइट से जहरीले कचरे को हटाने के लिए टास्क फोर्स बनाया.

अक्तूबर, 2005 : गुजरात प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने अंकलेश्वर में कचरा जलाने के लिए अनापत्ति प्रमाण पत्र दिया.

2006 : भारत सरकार ने न्यूयॉर्क कोर्ट को कहा कि साइट की सफाई होनी चाहिए, लेकिन कोर्ट चाहती है कि भारत इस मामले में सीधा हस्तक्षेप करे, यह मामला अभी लंबित है.

फरवरी, 2007 : मध्य प्रदेश न्यायालय ने ने 350 टन कचरा गुजरात के अंकलेश्वर में निस्तारण के लिए आदेश दिया.

अक्टूबर, 2007  : गुजरात सरकार ने विरोध के बाद एनओसी रद्द कर दिया.

दिसंबर, 2008 : मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने गुजरात सरकार के एनओसी रद्द करने के फैसले पर कहा कचरा लो या फिर अवमानना के लिए तैयार रहो.

जनवरी, 2009 : गुजरात सरकार सुप्रीम कोर्ट के पास पहुंची, कोर्ट ने स्टे लगा दिया.

3 दिसंबर, 2010 : भारत सरकार ने गैस पीड़ितों के लिए मुआवजे की राशि बढ़ाने के संबंध में याचिका दाखिल किया.

फरवरी, 2010 : साइट की सफाई के लिए गठित टास्क फोर्स ने सुझाया कि कचरा मध्य प्रदेश में पीथमपुरा भेजा जाए. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि पीथमपुरा इनसिनेरेटर की क्षमता बढ़ाई जाए.

मार्च 2012 : भारत सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा दाखिल कर 345 टन जहरीले कचरे का इंदौर के पास निस्तारण के लिए इजाजत मांगी.

सितंबर 29, 2014 : मुख्य आरोपी और यूनियन कार्बाइड के पूर्व सीईओ वारेन एंडेरसन की मौत हो गई.

(लेख डाउन टू अर्थ की फीचर सेवा से साभार)