Newslaundry Hindi
छत्तीसगढ़: पत्रकारों को कानूनी सुरक्षा देने से एक क़दम दूर
छत्तीसगढ़ में पत्रकारों की सुरक्षा हमेशा से एक बड़ा मुद्दा रहा है. रमन सिंह के कार्यकाल में छत्तीसगढ़ के विभिन्न हिस्सों में बड़ी संख्या में पत्रकारों की गिरफ्तारी और जेल भेजने की घटनाओं के बाद यह एक बड़ा चुनावी मुद्दा बन चुका था. बीते विधानसभा चुनाव के दौरान कांग्रेस ने वादा किया था कि अगर वह सत्ता में आती है तो एक मजबूत पत्रकार सुरक्षा कानून बनाएगी. अब छत्तीसगढ़ की भुपेश बघेल सरकार ने अपना वादा पूरा करने की दिशा में क़दम बढ़ा दिया है. छत्तीसगढ़ सरकार की वेबसाइट पर नए कानून का मसौदा दो दिन पहले जारी किया गया है. फिलहाल इस मसौदे पर आम लोगों की रायशुमारी चल रही है.
सत्ता में आने के बाद बघेल सरकार ने फरवरी महीने में उच्चतम न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश आफताब आलम की अध्यक्षता में एक समिति का गठन किया था. इस समिति को पत्रकारों की सुरक्षा के लिए कानून बनाने की जिम्मेदारी दी गई थी.
आफताब आलम की अध्यक्षता में समिति द्वारा तैयार किए गए इस कानून के प्रारूप को लेकर स्थानीय पत्रकारों में कुछ चिंताएं देखी जा रही हैं. उनका मानना है कि इस कानून में कई बदलावों की जरूरत है. इसके बिना पत्रकारों को सुरक्षा उपलब्ध नहीं कराई जा सकती.
छत्तीसगढ़ के वरिष्ठ पत्रकार आलोक पुतुल ने इस पर संतोष जताते हुए कहा, “प्रारूप के बतौर इस कानून को पढ़ने के बाद मुझे लगता है कि आरंभिक तौर पर यह स्वागतयोग्य कदम है. बाकी इसमें सुझाव के दरवाजे खुले हुए हैं.”
मौजूदा मसौदे के मुताबिक ऐसा कोई व्यक्ति जो शासकीय सेवक है, यदि इस कानून या इस कानून के तहत बनाए गए नियमों के अंतर्गत अपने कर्तव्यों की जानबूझ कर उपेक्षा करता है तो उसे एक वर्ष तक की सज़ा हो सकती है. इस कानून तोड़ने की जांच पुलिस उपाधीक्षक से नीचे के पदाधिकारी नहीं कर सकते. साथ ही यह अपराध जमानती होगा.
किन पत्रकारों को मिलेगी सुरक्षा
‘छत्तीसगढ मीडियाकर्मी सुरक्षा कानून’ के नाम से तैयार इस मसौदे में सुरक्षा पाने के हकदार पत्रकारों की अर्हता आदि का भी जिक्र है. इसके अनुसार-
- ऐसा व्यक्ति जिसके गत 3 महीनों में कम से कम 6 लेख जनसंचार माध्यम में प्रकाशित हुए हों.
- ऐसा व्यक्ति जिसे गत 6 माह में किसी मीडिया संस्थान से समाचार संकलन के लिए कम से कम 3 भुगतान प्राप्त किया हो.
- ऐसा व्यक्ति जिसके फोटोग्राफ गत 3 माह की अवधि में कम से कम 3 बार प्रकाशित हुए हों.
- स्तंभकार अथवा स्वतंत्र पत्रकार जिसके कार्य गत 6 माह के दौरान 6 बार प्रकाशित/प्रसारित हुए हों.
- ऐसा व्यक्ति जिसके विचार/मत गत तीन माह के दौरान कम से कम 6 बार जनसंचार में प्रतिवेदित हुए हों.
- ऐसा व्यक्ति जिसके पास मीडिया संस्थान में कार्यरत होने का परिचय पत्र या पत्र हो.
मीडियाकर्मियों के पंजीकरण के लिए अथॉरिटी का गठन
पत्रकारों के पंजीकरण के लिए भी सरकार अथॉरिटी का निर्माण करेगी. तैयार कानून के प्रभावी होने के 30 दिन के अंदर सरकार पत्रकारों के पंजीकरण के लिए अथॉरिटी नियुक्त करेगी.
अथॉरिटी का सचिव जनसम्पर्क विभाग के उस अधिकारी को बनाया जाएगा जो अतिरिक्त संचालक से निम्न पद का न हो. इसमें दो मीडियाकर्मी भी होंगे जिनकी वरिष्ठता कम से कम 10 वर्ष हो. इनमें से एक महिला मीडियाकर्मी भी होंगी, जो छत्तीसगढ़ में रह और कार्य कर रही हों.
अथॉरिटी में शामिल होने वाले मीडियाकर्मियों का कार्यकाल दो वर्ष का होगा. कोई भी मीडियाकर्मी लगातार 2 कार्यकाल से ज्यादा अथॉरिटी का हिस्सा नहीं रह सकता.
पत्रकारों की सुरक्षा के लिए समिति का गठन
समिति द्वारा तैयार किए गए कानून के लागू होने के 30 दिन के भीतर छत्तीसगढ़ सरकार पत्रकारों की सुरक्षा के लिए एक समिति का गठन करेगी. यह समिति पत्रकारों की प्रताड़ना, धमकी या हिंसा या गलत तरीके से अभियोग लगाने और पत्रकारों को गिरफ्तार करने संबंधी शिकायतों को देखेगी.
इस समिति का सदस्य कौन होगा
कोई पुलिस अधिकारी, जो अतिरिक्त पुलिस महानिदेशक से निम्न पद का न हो. जनसम्पर्क विभाग के विभाग प्रमुख और तीन पत्रकार, जिन्हें कम से कम 12 वर्षों का अनुभव हो. जिनमें कम से कम एक महिला सदस्य होंगी. इस समिति में भी नियुक्त किए गए पत्रकारों का कार्यकाल दो साल का ही होगा और कोई भी पत्रकार दो कार्यकाल से ज्यादा इस समिति का हिस्सा नहीं बन सकता है.
यही नहीं पत्रकारों की सुरक्षा के पुख्ता इंतजाम के लिए सरकार एक वेबसाइट का निर्माण भी कराएगी. जिसमें पत्रकारों से संबंधित प्रत्येक सूचना या शिकायत और उस संबंध में की गई कार्यवाही दर्ज की जाएगी. जो इस अधिनियम के आदेश के अधीन होगा. किन्तु सूचना अपलोड करते समय यदि उस व्यक्ति की सुरक्षा प्रभावित होती है तो शासन ऐसे समस्त उचित उपाय करेगा, जिसमें संबंधित व्यक्ति की गोपनीयता रखने और उसकी पहचान छुपाने के उपाय भी हो सकें.
हर जिले में जोखिम प्रबंधन इकाईयां
पत्रकारों की सुरक्षा के लिए समिति के गठन के 30 दिन बाद सरकार छत्तीसगढ़ के हर एक जिले में जोखिम प्रबंधन इकाई का गठन करेगी. इस जोखिम इकाई के सदस्य जिले के कलक्टर, जिला जनसम्पर्क अधिकारी, पुलिस अधीक्षक और दो पत्रकार भी होंगे जिनका अनुभव कम से कम सात साल हो. इन दो पत्रकारों में एक महिला पत्रकार होंगी. ये संबंधित जिले के ही निवासी होंगे. जोखिम इकाई में शामिल पत्रकारों का भी कार्यकाल दो साल का ही होगा. ये भी दो कार्यकाल से ज्यादा इकाई के सदस्य नहीं रह सकते हैं.
तैयार क़ानूनी मसौदे के अनुसार जिस व्यक्ति (पत्रकार) को सुरक्षा की आवश्यकता होगी उसके सबसे नजदीक स्थित जोखिम प्रबंधन इकाई प्रताड़ना, धमकी या हिंसा की सूचना और और शिकायत मिलने पर उसे देखेगी. प्रताड़ना, धमकी या हिंसा से संबंधित सभी शिकायतें या सूचना प्राप्त होने पर उसे तत्काल सुरक्षा देने के बाद तत्काल संबंधित जोखिम प्रबंधन इकाई को भेजेगा.
पत्रकारों में बेचैनी क्यों
छत्तीसगढ़ पत्रकारों के लिए सबसे असुरक्षित राज्यों में से एक रहा है. मीडिया विजिल पर छपी एक रिपोर्ट के अनुसार अकेले छत्तीसगढ़ राज्य में राज्य बनने के बाद से 200 से अधिक पत्रकारों को समाचार छापने/दिखाने के चलते उत्पन्न हुए विवादों के बाद जेल में डाला गया. जबकि 2018 दिसम्बर से नई कांग्रेस सरकार के सत्ता में आते ही महज 10 महीनों में 22 पत्रकारो पर फ़र्ज़ी पुलिस प्रकरण बनाये गए. वहीं 6 पत्रकारो को जेल भी भेजा गया व तीन पत्रकारों की थानों में निर्मम पिटाई हुई.
इसी तरह पांच दूसरे पत्रकारों पर माफियाओं/आपराधिक तत्वों व राजनीतिज्ञों ने जानलेवा हमले किये. जबकि राज्य के निर्माण के बाद से अब तक करीब 6 पत्रकारो की निर्मम हत्या हो चुकी है. दुःखद तो यह रहा कि किसी भी हत्याकांड का खुलासा नही हुआ न ही कोई जिम्मेदार हत्यारा जेल भेजा गया.
अब तक मिले अपुष्ट आंकड़ों में कार्य के दबाव और पुलिस/प्रशासनिक एवं राजनीतिक माफियाओं के भयादोहन की वजह से राज्य में 20 पत्रकारों ने जान देने की कोशिश की. जबकि 8 ने आत्महत्या कर ली. इनमें से दो युवा पत्रकारों ने तो एक ही दिन में 17 जून, 2018 को क्रमश: अम्बिकापुर और जगदलपुर में आत्महत्या कर ली थी.
वर्ष 2018 रायगढ़ जिले के युवा पत्रकार सौरभ अग्रवाल सहित राज्य में चार अन्य पत्रकारों ने लगातार हो रही बेजा पुलिस प्रताड़नाओ से तंग आकर अपनी जान देने की कोशिश की थी. जिनमे से दो पत्रकार तो बेहद गम्भीर हालात से बचाए गए.
जिन पत्रकारों की सुरक्षा के लिए छत्तीसगढ़ सरकार कानून बना रही है उसमें से ज्यादातर पत्रकार अभी तैयार हुए कानून में कई कमियां देख रहे हैं. पत्रकारों की नाराजगी का सबसे बड़ा कारण अब तक इस पूरी प्रक्रिया में पत्रकारों की सलाह नहीं लिया जाना है. हालांकि 16 नवंबर को आफ़ताब आलम रायपुर पहुंच रहे हैं. जिसके बाद माना जा रहा है कि हर जिले में पत्रकारों से इस कानून के संबंध में सलाह ली जाएगी. पत्रकार रायपुर में आफताब आलम से मिलकर अपनी नाराजगी दर्ज कराने वाले हैं.
वरिष्ठ पत्रकार और पत्रकार सुरक्षा कानून संयुक्त संघर्ष समिति के संयोजक कमल शुक्ल न्यूज़लॉन्ड्री से बताते हैं, ‘‘जिन पत्रकारों की सुरक्षा के लिए सरकार कानून बनाने जा रही है उनसे ही कोई राय नहीं ली गई. अब जब कानून पूरी तरह से तैयार हो गया है तब राय लेने की बात की जा रही है. मुझे नहीं लगता कि सरकार तैयार कानून में जल्दी कोई बदलाव करेगी. हालांकि समिति के प्रमुख आफताब साहब रायपुर आ रहे हैं तो पत्रकारों का एक समूह उनके सामने अपनी बातें रखेगा.’’
छत्तीसगढ़ में पत्रकारिता करने वाले प्रभात सिंह, जिन्हें रमन सिंह के कार्यकाल में बदनाम पुलिस अधिकारी बस्तर रेंज के पूर्व आईजी एसआरपी कल्लूरी ने जेल में डलवा दिया था, बताते हैं, ‘‘सरकार के कानून का प्रारूप तैयार करने से पहले यहां के पत्रकारों, एनजीओ और वकीलों ने मिलकर एक कानून का प्रारूप सरकार को दिया था, लेकिन सरकार ने उसपर कोई ध्यान नहीं दिया और अपना एक समिति बना दिया. अभी जिस रूप में कानून का प्रारूप है अगर वो पास होता है तो पत्रकारों का भला नहीं हो पाएगा.’’
अब तक जो कानून का मसौदा छत्तीसगढ़ सरकार द्वारा बनाई गई समिति ने तैयार किया उसमें पत्रकारों की राय नहीं लिए जाने के अलावा पत्रकारों की नाराजगी सरकारी अधिकारियों को ही प्रमुख बनाए जाने की है. कानून के अनुसार हर जिले में जोखिम प्रबंधन इकाई बनाया जाना है. जिसमें जिले के कलक्टर, जनसंपर्क अधिकारी और पुलिस अधीक्षक को रखा गया है.
कमल शुक्ल कहते हैं, ‘‘जिला स्तर पर जो समिति बन रही है उसमें उन्हीं लोगों को मुखिया के तौर पर रखा गया है जो वास्तव में पत्रकारों पर हमले के लिए जवाबदेह हैं. जनसम्पर्क अधिकारी एक तरह से पत्रकार और सरकार के बीच मध्यस्थ की भूमिका निभाते हैं. उनसे हम उम्मीद नहीं कर सकते कि वे पत्रकारों के साथ ईमानदारी से खड़े रहेंगे. अगर आप प्रत्येक जिले में पत्रकारों के ऊपर बनाए गए फर्जी मामलों को देखें तो उसमें कलेक्टर और पुलिस अधीक्षक ही प्रमुख रूप से दोषी रहते हैं. उनको अधिकार देकर सरकार एक तरह से पत्रकारों को डराने का ही काम कर रही है. जो कातिल है वही जज होगा तो फैसला पीड़ित के पक्ष में कैसे आएगा?’’
लेकिन आलोक पुतुल इससे इत्तेफाक नहीं रखते. वे कहते हैं, ‘‘चूंकि ये कानून से जुड़ा मामला है और कानून व्यवस्था देखने का काम पुलिस के जिम्मे हैं तो उनको जिला स्तर की समिति में रखने में कोई गलत बात नज़र नहीं आती. जिसकी जिम्मेदारी है उसे ही रखा जाएगा. हां, एक बात मुझे ज़रूर लगती है कि पत्रकारों को लगातार सजग रहना पड़ेगा. अपने यहां कानून पहले भी कम नहीं था. जब छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश का हिस्सा था तब से ही आदेश था कि पत्रकारों की गिरफ्तारी से पहले आईजी से आदेश लेना अनिवार्य होगा, लेकिन ऐसा नहीं हुआ. कानून का स्वागत होना चाहिए, लेकिन इसे बेहतर तरह से लागू करने के लिए पत्रकारों को दबाव बनाकर रखना पड़ेगा.’’
प्रभात सिंह न्यूज़लॉन्ड्री से बात करते हुए कहते हैं, ‘‘पत्रकारों को सबसे ज्यादा परेशान तो पुलिस द्वारा ही किया जाता है. मेरे ऊपर ही चार मामले दर्ज कराए गए. मुझे ऑफिस से सिविल ड्रेस में आए पुलिसकर्मियों उठा ले गए और एक रात थाने पर रखकर दूसरे दिन कोर्ट में पेश किया. इस दौरान मेरे परिजनों को मेरे बारे में कोई जानकारी तक नहीं दी गई. तो अगर इस कानून के तहत पत्रकारों की सुरक्षा की जिम्मेदारी शोषण करने वालों को ही देने की बात हो रही है, तो क्या उम्मीद कर सकते है.’’
आलोक पुतुल इस कानून को एक अलग पहलु से देख रहे हैं. वे कहते हैं, ‘‘कानून बनाने का काम अंतत: कानून के जानकर ही कर सकते हैं. अभी कानून का प्रारूप रखा गया है. बिना कोई प्रारूप रखें, इसमें सुधार या बदलाव की गुंजाइश कहा से होगी. अभी सलाह देने की गुंजाईश बची हुई है. आज ही यहां के अख़बारों में विज्ञापन देकर सरकार द्वारा कानून को और बेहतर करने के लिए सुझाव की मांग की गई है. पत्रकारों को चाहिए की ज्यादा से ज्यादा सुझाव दें. कानून में कोई कमी हो तो उसे तत्काल प्रचारित प्रसारित करें. कमेटी को दिए सुझावों को भी सार्वजानिक किया जाना चाहिए. उस पर बहस भी हो ताकि वो सुझाव अनदेखे ना रह जाएं.’’
Also Read
-
Kamala Harris’s legacy as a ‘well-behaved woman’ who couldn’t make history
-
From satire to defiance: The political power of Abu Abraham’s cartoons
-
Trump’s return: The threat to US press freedom runs parallel to India’s media crisis
-
Another oran hurdle to a Rajasthan project. This time to Adani solar plant
-
विचाराधीन आपराधिक मामलों की रिपोर्टिंग को लेकर केरल हाईकोर्ट की अहम टिप्पणी