Newslaundry Hindi
कांग्रेस को अपनी जन्मस्थली मुंबई में ही संकट का सामना क्यों करना पड़ रहा है?
भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस को अब अपने जन्मस्थान मुंबई में संकट का सामना करना पड़ रहा है, वो भी ऐसे समय में जब वह नेतृत्व शून्यता से जूझ रही है और कर्नाटक में सरकार गिरने की आशंका है.
मुंबई में अपनी स्थापना के 134 वर्ष बाद, कांग्रेस की इकाई टूट रही है और अब वो नेता और सिद्धांतविहीन दोनों है. इसी साल मार्च में नियुक्त किये गये पार्टी की शहर इकाई के अध्यक्ष मिलिंद देवड़ा के ‘राष्ट्रीय भूमिका’ निभाने के लिए अपने पद से इस्तीफ़ा के बाद, अब शहर इकाई में वाद-विवाद सार्वजनिक हो गया है.
शहर के पूर्व अध्यक्ष संजय निरुपम ने देवड़ा के इस्तीफ़े की कड़ी आलोचना की है और कहा है कि यह उनके राजनीतिक विकास की एक ‘सीढ़ी’ है; सोमवार को उन्होंने न्यूज़लॉन्ड्री को बताया कि पूर्व केंद्रीय मंत्री कांग्रेस पार्टी का इस्तेमाल अपनी ‘व्यक्तिगत जागीर’ के तौर पर कर रहे हैं. देवड़ा ने सोमवार को एक बयान जारी किया, जिसमें उन्होंने अपने समर्थकों से अपील की है कि वे ‘पिछले कुछ समय से जारी अप्रिय और अनुचित टिप्पणियों’ को नज़रअंदाज करें.
महाराष्ट्र चुनाव में अब 100 दिन से भी कम बचे हैं, ऐसे में कांग्रेस में अंदरूनी कलह इस बात पर सवाल खड़े करती है कि कांग्रेस भाजपा-शिवसेना की सरकार को मुंबई में, जहां पर 36 महत्वपूर्ण विधानसभा सीटें हैं, टक्कर दे पायेगी. नेताओं ने स्वीकार किया है कि यह सार्वजनिक कलह पार्टी की जन्मस्थली में पार्टी की लगभग तय हार की ओर इशारा कर रही है. इससे भी बदतर हालत यह है कि पिछले हफ़्ते महाराष्ट्र कांग्रेस के अध्यक्ष पद से अशोक चव्हाण के इस्तीफ़े के बाद महाराष्ट्र कांग्रेस पूरे राज्य स्तर पर नेतृत्वविहीन हो गयी है.
इसके विपरीत, शिवसेना-भाजपा अपनी चुनावी रणनीतियों को दुरुस्त करने और चुनाव अभियान को शुरू करने में लगे हुई है. दोनों पार्टियों ने अपने शीर्ष नेताओं के अलग-अलग दौरों की घोषणा कर दी है, जबकि उन्होंने इस बात की पुष्टि की है कि वो एक साथ चुनाव लड़ने के लिए प्रतिबद्ध हैं.
पुरानी व्यथा, नयी प्रेरणा
मुंबई कांग्रेस इकाई में गुटबाजी हाल की घटना नहीं है. इतिहास में इस इकाई ने पार्टी को कुछ बड़े नेता दिये हैं, जिनमें से अधिकांश एक-दूसरे के प्रतिद्वंद्वी रहे हैं. मुंबई से कांग्रेस के पूर्व विधायक बताते हैं, “इसके पीछे कई कारण हैं- यह शहर हमारे लिए फंड जुटाने वाले केंद्रों में से एक प्रमुख केंद्र रहा है. स्वाभाविक है कि जो भी व्यक्ति इस इकाई का अध्यक्ष होता है, उसे व्यापारी समुदाय के बीच काफी ताकत मिलती है.”
सत्ता और सम्मान हासिल करने की इस दौड़ में शहर के कांग्रेसी नेताओं के बीच प्रतिद्वंद्विता पारंपरिक रूप से रही है.
पार्टी के अंदरूनी सूत्र बताते हैं कि हालांकि अभी कुछ बदलाव आया है और वो यह है कि पार्टी सभी स्तरों पर सत्ता से बाहर है, जिसकी पार्टी को आदत नहीं रही है.
हालिया अंदरूनी कलह की पृष्ठभूमि इसी साल मार्च में बनी, जब कांग्रेस के शीर्ष नेतृत्व ने लोकसभा चुनाव से पूर्व देवड़ा के नेतृत्व में शहर के कुछ कांग्रेसी नेताओं के दबाव में निरुपम को बाहर कर दिया था. कुछ साल पहले तक, इस शहर को पार्टी अपना गढ़ मानती थी. 2009 में उसने सभी छह सीटें जीती थीं, 2004 में उसने पांच सीटें जीती थीं. लेकिन इस बार, अंदरूनी कलह की काली छाया पड़ी और इसके परिणाम महंगे साबित हुए, जब पार्टी और उसकी सहयोगी, राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (राकांपा) छह लोक सभा सीटों में से एक भी जीतने में नाकाम रही.
निरुपम ने न्यूज़लॉन्ड्री को बताया कि उनको बर्खास्त करना एक ‘योजनाबद्ध अभियान’ का परिणाम था.
“पार्टी की शहर इकाई के अध्यक्ष के रूप में, मैंने तमाम मुद्दों पर विरोध प्रदर्शन किये थे, जिनमें से चार प्रदर्शन सिर्फ राफेल के मुद्दे पर थे. सत्तारूढ़ दलों को और अनिल अंबानी को इससे समस्या थी. उन सभी ने मेरे ख़िलाफ़ अभियान चलाया और देवड़ा को इसका मुखौटा बनाया.”
लेकिन ऐसे नेता, जो न तो देवड़ा से जुड़े हैं और न ही निरुपम से, इस बात को ख़ारिज करते हैं और निरुपम के अतीत की ओर इशारा करते हैं – जो पहले शिवसेना के नेता और उसके हिंदी दैनिक-दोपहर का सामना, के संपादक थे. दिवंगत केंद्रीय मंत्री गुरुदास कामत के करीबी रहे पार्टी के एक पूर्व महासचिव ने बताया कि “सच्चाई यह है कि उन्हें हमेशा पार्टी में एक बाहरी व्यक्ति के रूप में देखा गया है. कांग्रेस के कार्यकर्ताओं ने उन्हें कभी स्वीकार नहीं किया और उन्होंने भी कभी उन पर भरोसा नहीं किया. इसलिए वे अपने लोगों को ले आये और कांग्रेस के वरिष्ठ नेताओं को दरकिनार कर दिया.
कुछ कांग्रेसी नेताओं ने निरुपम पर आरोप लगाया कि उनका ध्यान सिर्फ उत्तर भारतीयों के वोटों को हासिल करने पर था और इस प्रक्रिया में उन्होंने कांग्रेस की शहर इकाई की पहचान कम करके इसे उत्तर भारतीयों की पार्टी बना दी. कई लोगों ने निरुपम के नेतृत्व में साल 2017 में मुंबई निकाय चुनावों में कांग्रेस के ख़राब प्रदर्शन की ओर इशारा किया, जिसमें कांग्रेस 227 सदस्यों वाले सदन में 22 सीटें हारी थी और 30 पर सिमट गयी थी.
देवड़ा ने किया उदास
यह कुछ कारण थे जिसकी वजह से कई लोगों का यह मानना था कि देवड़ा की अध्यक्षता में पार्टी की किस्मत मुंबई में बदल जायेगी. देवड़ा की करीबियों ने उन्हें ऐसे नेता के रूप में पेश किया, जो गुटबाजी की शिकार इकाई को ‘एकजुट’ कर सकते हैं.
कांग्रेसी विधायक भाई जगताप ने देवड़ा पर टिप्पणी करने के लिए निरुपम पर निशाना साधते हुए कहा कि देवड़ा अलग-अलग गुटों को एक साथ लेकर आये. उन्होंने कहा, “वे विभिन्न नेताओं को एकजुट कर रहे थे, उन्हें एक साथ लेकर चल रहे थे, जो निरुपम नहीं कर पाये थे.”
हालांकि, देवड़ा के अचानक इस्तीफ़े से मुंबई कांग्रेस के बहुत सारे लोगों की उम्मीदों पर पानी फिर गया है. वे अब ये मानते हैं कि आगामी विधानसभा चुनावों में कांग्रेस पार्टी की हार को रोका नहीं जा सकता. मुंबई से कांग्रेस नेता और लोकसभा उम्मीदवार रही उर्मिला मातोंडकर ने ट्वीट किया कि वह देवड़ा के इस्तीफे से “निराश” थी, क्योंकि वह मुंबई में पार्टी के लिए ‘आशा की किरण’ थे.
बहुत सारे कांग्रेसी नेता इस बात से निराश हैं कि देवड़ा बड़ी राष्ट्रीय भूमिका के लिए इस्तीफ़ा दे रहे हैं. एक कांग्रेसी नेता, जो आगामी चुनावों में टिकट की उम्मीद लगाये हुए हैं, उनका कहना है कि यह इस्तीफ़ा देने का सही समय नहीं था. उन्होंने कहा, “इस समय ज़रूरत यह थी कि देवड़ा पार्टी को यहां मजबूत करें, बजाय इसके कि वह बड़े पद की चाह करें. संगठन बिलकुल टूटने की हालत में है. न तो गठबंधन पर कोई स्पष्टता है और न ही उम्मीदवारों पर. इस पर भी दुःख की बात यह है कि हर नेता अपनी आकांक्षाओं को पूरा करने में लगा हुआ है.
निरुपम का कहना है कि देवड़ा ज़मीनी स्तर पर काम करने से कतरा रहे हैं. देवड़ा के बयान का उल्लेख करते हुए, जिसमें उन्होंने कहा था कि वह पार्टी को ‘स्थिर’ करने के लिए काम करने जा रहे हैं, निरुपम ने न्यूज़लॉन्ड्री को बताया, “यह पार्टी उनकी जागीर नहीं है कि वे जब चाहें तब पद ले लें और जब चाहें तब पद छोड़ दें. लोग काम करने के समय पर भाग नहीं सकते. उन्हें किसी ने दिल्ली नहीं बुलाया.”
हालांकि, देवड़ा ने बार-बार अनुरोध के बावजूद कोई भी बयान देने से मना कर दिया, लेकिन उनके एक करीबी ने निरुपम के सभी आरोपों को ख़ारिज कर दिया. उन्होंने कहा, “निरुपम को याद रखना चाहिए कि देवड़ा ने राहुल गांधी की ही तरह नैतिक आधार पर इस्तीफ़ा दे रहे हैं. खुद को राष्ट्रीय भूमिका के लिए प्रस्तावित करने का मतलब यह नहीं है कि वो लालची हो रहे हैं. वो पार्टी को पुनर्संगठित करने में मदद करने के लिए जा रहे हैं.”
Also Read
-
Who picks India’s judges? Inside a hidden battle between the courts and Modi’s government
-
Years after ‘Corona Jihad’ vilification: Delhi HC quashes 16 Tablighi Jamaat FIRs
-
History must be taught through many lenses
-
PIL in Madras HC seeks to curb ‘speculation blaming pilots’ in Air India crash
-
उत्तर प्रदेश: 236 मुठभेड़ और एक भी दोषी नहीं, ‘एनकाउंटर राज’ में एनएचआरसी बना मूकदर्शक