Newslaundry Hindi
बागपत: जाट-ओबीसी-दलित-मुस्लिम एकता हिला सकती है भाजपा की रीढ़.
दक्षिण दिल्ली से उत्तर प्रदेश के बागपत तक का आरामदायक सफ़र आपको यह विश्वास दिला देगा कि आप सीधे एल डोराडो की ओर जा रहे हैं- सबसे पहले आप बारापुला फ्लाईओवर पर चढ़ते हैं, जो शहर के ऊपर से घूमता हुआ अक्षरधाम मंदिर के साथ वाले एक्सप्रेसवे से जुड़ता है और उसके बाद दिल्ली-मेरठ फ्रीवे पर जाकर मिल जाता है. इससे होते हुए आप तेज गति से देश के पहले ग्रीन हाईवे, जो सिग्नल फ्री भी है, पर सफ़र करने लगते हैं और बागपत टोल प्लाजा की ओर निकल जाते हैं. जैसे ही आप इस चमकदार सड़क को छोड़कर सौ से ज्यादा गांवों और पांच विधानसभाओं की ओर जाने वाली बागपत जिले की गड्ढों भरी सड़क पर पहुंचते हैं, आपकी कल्पना एक दम से हवा हो जाती है.
पश्चिमी उत्तर प्रदेश का जाट बहुल बागपत संसदीय क्षेत्र, जहां पर पहले चरण में ही 11 अप्रैल को लोकसभा चुनाव के लिए मतदान होगा, महागठबंधन की जीत का कारण बन सकता है. सपा-बसपा-रालोद का विपक्षी गठबंधन भाजपा के ख़िलाफ़ सीधी लड़ाई में खड़ा है (कांग्रेस पार्टी ने चुनावी समझौते के तहत इस सीट से नहीं लड़ने का फैसला किया है), और जाति समीकरण भी उसके पक्ष में है. गठबंधन के उम्मीदवार, आरएलडी के उत्तराधिकारी जयंत चौधरी, जो अपने दिवंगत दादा, जाट प्रतिनिधि एवं पूर्व प्रधानमंत्री चरण सिंह की विरासत लेकर चल रहे हैं, भाजपा सांसद और मंत्री सत्यपाल सिंह का सामना करेंगे. सत्यपाल सिंह जमीन से जुड़े व्यक्ति हैं और मुंबई पुलिस प्रमुख की नौकरी छोड़कर राजनीति में आये हैं.
2014 लोकसभा चुनाव के परिणाम को देखने से पता चलता है कि भाजपा ने दो लाख से अधिक मतों के अंतर से शानदार जीत दर्ज की थी. कुल 1,004,263 मतों में से भाजपा को 423,475 मत मिले थे, सपा के गुलाम मोहम्मद 213,609 वोटों के साथ दूसरे स्थान पर रहे थे. आरएलडी 199,516 वोटों के साथ तीसरे स्थान पर रही थी और बीएसपी के प्रशांत चौधरी को 141,743 वोट मिले थे. एक ओर जहां आरएलडी के अजीत सिंह, जयंत के पिता के पास जाट वोटों का शेयर 2004 के बाद (जब उन्होंने 353,181 वोटों के साथ जीत दर्ज की थी) से लगातार गिर रहा है. यह अलग बात है कि उन्होंने 2004 और 2009 के आम चुनावों में बागपत से जीत दर्ज की थी. इस बार अजीत सिंह मुज़फ़्फ़रनगर से चुनाव लड़ रहे हैं. यहां मुसलमानों की आबादी 28 प्रतिशत है, वहीं अनुसूचित जाति की आबादी 11 प्रतिशत है .
आज विपक्ष, नरेंद्र मोदी की चुनौती और हिंदू वोटों को मजबूत करने के लिए भाजपा के हिंदुत्व राष्ट्रवाद की राजनीति के सामने कोई भी मौका चूकने की फ़िराक में नहीं है, जिसके लिए वो एक साथ खड़े होने के लिए मजबूर हो गया है और अब यह संख्या भाजपा के लिए चिंता का विषय बन गयी है. यहां बात सिर्फ विपक्ष के संयुक्त मतों की नहीं है, जो 554,868 बैठती हैं; यहां कठिनाई यह है कि 79 प्रतिशत आबादी, 2011 की पिछली जनगणना के अनुसार, बागपत के ग्रामीण इलाके में रहती है.
बागपत की मेन रोड पर काठा गांव में भरी धूप में चाय की दुकान पर बैठे कुछ जाट किसान ईस्टर्न एक्सप्रेसवे की ओर देख रहे हैं और अपनी किस्मत को कोस रहे हैं. जैसे ही कोई वाहन धूल उड़ाता हुआ निकलता है, मेमचंद, जितेंद्र, परमिंदर उसकी तरफ व्यंग्यात्मक दृष्टि से देखते हैं. कृषि संकट से जूझ रहे इन किसानों में गन्ना मूल्य के न मिलने को लेकर गुस्सा है.
बड़ी विडंबना है कि पिछले दो वर्षों में गन्ने की भरपूर फसल होने से चीनी की कीमतों में गिरावट आई है और गन्ना किसानों को अभी-भी चीनी मिल मालिकों से अपना बकाया प्राप्त नहीं हुआ है. बागपत के विभिन्न गावों और बड़ौत से लेकर छपरौली जिले को जानेवाले रास्ते में गन्ने से लदे हुए कई छकड़े खड़े दिखाई देते हैं. दूसरी ओर, चीनी मिलें बंद हो रही हैं और उन्हें उत्पादन की कीमत नहीं मिल पा रही है, क्योंकि राज्य सरकार ने उसकी सीमा तय कर दी है. पश्चिमी यूपी की चीनी पट्टी में संकट इतना गहरा है कि पिछले एक साल से नाराज़ किसानों द्वारा आंदोलन और विरोध प्रदर्शन किया जा रहा है, वे अपना गन्ना सड़कों पर डंप कर रहे हैं और उन्होंने भाजपा को इसका जवाब पिछले साल पड़ोसी जिले कैराना में हुए संसदीय उपचुनाव में उसके उम्मीदवार को हरा कर दिया. कुछ दिन पहले भी मेरठ में अपने पहले चुनावी भाषण में, मोदी ने गन्ना किसानों पर बकाया 10,000 करोड़ रुपये का मुद्दा उठाया था, लेकिन उन्होंने इस संकट के लिए अखिलेश यादव की पिछली सरकार को दोषी ठहरा दिया.
हालांकि, व्यंग्यात्मक मुस्कान के साथ परमिंदर मोदी को झूठा और वादे तोड़नेवाला व्यक्ति बताते हुए कहते हैं, “भाजपा ने सत्ता में आने के 14 दिनों के अंदर हमारा बकाया चुकाने का वादा किया था, लेकिन जब पैसा देने की बात आई तब पीछे हट गये. अभी कुछ महीने पहले मुश्किल से 500 करोड़ रुपये आवंटित किये गये थे और हम उसमें से भी कुछ मिलने का इंतजार ही कर रहे हैं.” साथ में उनका इशारा चीनी मिल मालिकों को दिये गये 4000 करोड़ रुपये के सॉफ्ट लोन की तरफ़ भी है, जो भुगतान संकट से निकलने के लिए दिया गया था.
उनके भाई परमिंदर योगी आदित्यनाथ के नेतृत्व वाली भाजपा सरकार के प्रति नाराज़गी ज़ाहिर करते हुए कहते हैं, “योगीजी ने चीनी मिल मालिकों को करोड़ों का कर्ज दिया है, लेकिन वे अभी तक हमारा बकाया भुगतान नहीं कर रहे हैं. पिराई का मौसम आया और चला गया, हम सभी पर कम-से-कम 1 लाख रुपये का कर्जा है.” वह गुस्से से पूछते हैं, “हम अगले कुछ महीनों में स्कूल की किताबों, दवाइयों, शादियों आदि के लिए पैसा कहां से लायेंगे?”
ये कहानी बड़ौत जानेवाले रास्ते पर मिलनेवाले हर किसान द्वारा दोहराई जाती है, लेकिन हरेंद्र सिंह तोमर जैसे छोटे व्यापारी जाट जाति के बैर को खारिज़ करते हुए मोदी-योगी जोड़ी की भरपूर प्रशंसा करते हैं. भाजपा के कट्टर समर्थक, तोमर और उनकी पत्नी शाहपुर बरौली गांव के मेन रोड पर स्विमिंगपूल ‘शिव गंगा’ के साथ-साथ छोटी-सी किराने की दुकान एवं कैंटीन चलाते हैं, जिसमें समोसा और चाय मिलता है. मोदी सरकार की स्कीमों से मिले फायदों को गिनाते हुए तोमर कहते हैं, “मोदीजी यहां विकास के लिए हैं, विपक्ष केवल राजनीति में विश्वास करता है.” अपनी पत्नी को चकित करते हुए तोमर बोलते जाते हैं, “मेरी सास के पास एक भी रुपया नहीं था, लेकिन मोदीजी द्वारा उनके लिए बैंक का खाता खोलने के बाद, उन्हें दो साल पहले ही 5000 रुपये मिले हैं. मुझे भीम यूपीआई के इस्तेमाल से 100 रुपये का कैश बैक मिला, हमें एक स्वास्थ्य बीमा कार्ड मिला है जिसका उपयोग हम निजी अस्पतालों में कर सकते हैं और 5 लाख तक का इलाज करवा सकते हैं…” अपनी बात को साबित करने के लिए, उन्होंने स्थानीय लड़कों और पुरुषों को बुलाया, जो स्विमिंगपूल में खेलने के लिए 30 रुपये का शुल्क देने का इंतज़ार कर रहे थे, और उनसे जबरदस्ती पूछा कि वे किसे वोट देंगे? उन्होंने एक साथ कहा “बीजेपी”. तोमर ने बाहें फैलाकर बताया कि उनका पूरा शहर भाजपा का समर्थन करता है. नाटकीय तरीके से अपने गुस्से का जाहिर करते हुए वे कहते हैं, “यहां पर मुस्लिम हमारे ऊपर राज करना चाहते हैं और मौलाना मुलायम उनकी मदद करते हैं. मैं एक दलित के घर पानी पीऊंगा, लेकिन मुस्लिम के यहां कभी नहीं.”
ऐसा लगता है कि भाजपा की ‘हिंदुत्व’ राजनीति ने एक बार फिर कृषि व जाट समुदायों को बांट दिया है और वे सभी आरएलडी के ही समर्थन में नहीं हैं.
लेकिन आरएलडी-सपा-बसपा से जुड़े हुए जाटों के बीच “भाईचारा” दिखता है, जब वो बड़ौत में बने सफ़ेद हवेलीनुमा कार्यालय में बैठते हैं. वे सभी साल 2013 में मुज़फ़्फ़रनगर के गांवों और आस-पास के शहरों में हुए मुस्लिमों से टकराव व कातिलाना सांप्रदायिक दंगों को कोसते हैं. बसपा के राजपाल सिंह स्पष्ट तौर पर कहते हैं कि आज़ादी के 50 साल बाद तक भी, जब तक मायावती की सरकार यूपी में नहीं बनी थी, तब तक अनुसूचित जाति के लोग समृद्ध जाटों के खेतों में मजदूरी करते थे, लेकिन आज, उनके पास अपनी ज़मीन है और जाटों के साथ बैठते भी हैं.
आरएलडी के सुरेश मलिक आभार प्रकट करते हुए कहते हैं कि यह ‘बहनजी’ मायावती की ही देन है कि उन्होंने मुख्यमंत्री रहते हुए बागपत को जिला बनाया. समुदाय के एक नेता जाटों के कठोर बाहरी आवरण और आंतरिक कोमलता को दर्शाते हुए कहते हैं कि जाट एक मोमबत्ती की तरह है- “जब वह खड़ा होता है, तो कठोर होता है, लेकिन जब वह जलाया जाता है, तो नरम हो जाता है.” वो विश्वास के साथ कहते हैं कि जिले में 21 फीसदी आबादी वाले मुसलमान मजबूती से विपक्ष का समर्थन करेंगे.
किसान मजदूर उत्थान समिति के प्रमुख मुकेश बावरा ने गन्ना किसानों के ख़िलाफ़ सरकार के अपराधों को बताया और अन्य जिला प्रमुख व नेता मोदी द्वारा तोड़े गये वादों के बारे में बोलते रहे- जिसमें ‘आवारा गायों द्वारा फसल और खेतों को नुकसान पहुंचाने की बात से लेकर युवाओं में बेरोज़गारी, चिकित्सा सुविधाओं और अस्पतालों का अभाव, शिक्षा आदि जैसे न ख़त्म होनेवाले मुद्दे शामिल हैं.’ यहां का राजनीतिक परिदृश्य ऐसा बन गया है कि जाट, दलित, ब्राह्मण और त्यागी न सिर्फ़ एक साथ उठ-बैठ रहे हैं, बल्कि इनके शिकायतों की सूची भी एक ही है. इस वक्त इनके बीच जाति की दीवारें नहीं दिखायी दे रही हैं और कम-से-कम अभी ये समुदाय जाति की शुद्धता जैसे रोग से भी दूर दिखायी दे रहे हैं.
यह जाट-ओबीसी-दलित-मुस्लिम एकता भाजपा के नेताओं की रीढ़ को हिलाकर रख सकती है.
जावेद अहमद का एक्सपर्ट मेंस सलून ‘भाईचारे’ वाले समुदायों के बीच लोकप्रिय है. दुकान की बिल्डिंग के मालिक लाला दीपक जैन हैं, जो एक कट्टर शिवभक्त हैं, यहां तक कि उन्होंने अपनी गाड़ी को भी चलता-फिरता भोलेनाथ का मंदिर बना रखा है. अहमद कहते हैं कि बागपत में हर कोई एक साथ रहता है, यहां मेरठ जैसा नहीं है कि जहां धर्म के नाम पर अलग-अलग कालोनियां बसी हुई हैं. उन्होंने पिछली बार बीजेपी को वोट दिया था, लेकिन इस बार उन्हें हराने के लिए दृढ़ संकल्पित हैं, क्योंकि मोदी अपने वादों पर खरे नहीं उतरे. अहमद के सहायक अखिल मलिक बारहवीं पास हैं. वह भी मोदी से निराश हैं और बताते हैं कि उन्होंने नाई बनना इसलिए चुना, क्योंकि उनके पास और कोई नौकरी नहीं थी.
कई सवालों के जवाब लाला दीपक जैन देते हैं:
Also Read
-
Two years on, ‘peace’ in Gaza is at the price of dignity and freedom
-
4 ml of poison, four times a day: Inside the Coldrif tragedy that claimed 17 children
-
Delhi shut its thermal plants, but chokes from neighbouring ones
-
Hafta x South Central feat. Josy Joseph: A crossover episode on the future of media
-
Encroachment menace in Bengaluru locality leaves pavements unusable for pedestrians