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सत्ता नहीं चाहती कि हर कोई उसकी तस्वीर खींचे

मीडिया के क्षेत्र में यह दौर विजुअल्स की प्रभुता का दौर माना जा सकता है. लिखित सामग्री से ज्यादा महत्व फोटो व विजुअल्स का माना जा रहा है. खासतौर से उन क्षेत्रों के लिए जो जनसंचार के साधनों को अपने राजनीतिक हितों को पूरा करने के लिए इस्तेमाल करते हैं. राजनीति में विजुअल्स के प्रति आकर्षण और उसकी जरूरत पर जोर दिया जाता है. इसका मीडिया में फोटो पत्रकारों के कामकाज के तौर तरीकों पर गहरा असर दिखाई देता है.

मीडिया संस्थानों के लिए काम करने वाले फोटो पत्रकारों के कामकाज के तौर-तरीकों में आए बदलाव को रेखांकित करने के लिए मीडिया स्टडीज ग्रुप ने दिल्ली के फोटो पत्रकारों के बीच एक सर्वेक्षण किया और यह जानने पर जोर दिया कि उन्हें अभिव्यक्ति की आजादी के अधिकार का इस्तेमाल करने के लिए हाल के वर्षों में कितना फायदा मिला है. या फिर स्थितियां उलट हैं और उनके कामकाज को नियंत्रित करने के हालात पैदा हुए हैं ?

फोटो पत्रकारों की मुख्यत: दो श्रेणी है. पहली श्रेणी उन फोटो पत्रकारों की है जो मीडिया संस्थानों में बतौर फोटो पत्रकार कार्यरत हैं और दूसरी श्रेणी में स्वतंत्र फोटो पत्रकार आते है. प्रिंट मीडिया संस्थानों में समाचार पत्रों के अलावा समाचार एजेसियां भी शामिल है और समाचार एजेंसियों में देशी और विदेशी एजेंसियां भी शामिल है. मीडिया संस्थानों में कार्यरत फोटो पत्रकारों को भारत सरकार द्वारा बाकायदा मान्यता प्रदान की जाती है और यह सरकार के कार्यक्रमों के लिए अधिकृत पत्र की तरह इस्तेमाल किया जाता है.

भारत सरकार की संस्था पीआईबी यानि पत्र सूचना कार्यालय निर्धारित मानदंडों को पूरा करने वाले फोटो पत्रकारों को मान्यता प्रदान करती है और प्रत्येक वर्ष उसका नवीनीकरण किया जाता है. स्वतंत्र फोटो पत्रकार जिन्हें मीडिया संस्थानों में एक निश्चित अवधि तक के लिए कार्य करने का अनुभव होता है उन्हें भी पीआईबी मान्यता प्रदान करती है.
पीआईबी द्वारा जारी किए जाने वाले मान्यता कार्ड पर गृह मंत्रालय की मुहर लगती है. इस मुहर का मतलब ये होता है कि गृह मंत्रालय ने सुरक्षा की दृष्टि से मान्यता प्राप्त करने वाले फोटो पत्रकारों के प्रति आशंकित होने का आधार नहीं बनता है. इस कार्ड के बावजूद सरकारी कार्यक्रमों को कवर करने वाले मान्यता प्राप्त पत्रकारों की तलाशी लिए जाने पर रोक नहीं है और आमतौर पर सुरक्षा कारणों के बहाने उनकी तलाशी ली जाती है.


फोटो पत्रकारों को पीआईबी अपने द्वारा आयोजित कार्यक्रमों व सरकार के विभागों व मंत्रालयों द्वारा आयोजित कार्यक्रमों के लिए निमंत्रण भेजता है. मीडिया संस्थानों में कार्यरत व स्वतंत्र फोटो पत्रकारों के अलावा पीआईबी का भी अपना फोटो विभाग है जिससे जुड़े मीडियाकर्मियों की सरकार के कार्यक्रमों को कवर करने की जिम्मेदारी होती है.

यह अध्ययन फोटो पत्रकारों के बीच किए गए एक सर्वेक्षण पर आधारित है. सर्वे में शामिल फोटो पत्रकारों ने निम्न सूचनाएं दी है:

1. प्रधानमंत्री कार्यालय में मीडिया संस्थानों के फोटो पत्रकारों को आमंत्रित नहीं किया जाता है. समाचार एजेंसियों में पीटीआई और यूएनआई के लिए भी यह सुनिश्चित नहीं है कि उन्हें प्रधानमंत्री के प्रत्येक कार्यक्रम के लिए आमंत्रित किया जाएगा.

2. वित्त मंत्रालय, गृह मंत्रालय की ओर से भी आयोजित कार्यक्रमों के लिए सभी फोटो पत्रकारों को आमंत्रित करने की बाध्यता नहीं है.

3. विज्ञान भवन में आयोजित सभी कार्यक्रमों के लिए फोटो पत्रकारों को आमंत्रित नहीं किया जाता है.

4. हैदराबाद हाउस में जहां विदेशी मेहमान मौजूद होते हैं उनमें से कुछेक कार्यक्रमों के लिए फोटो पत्रकारों को आमंत्रित किया जाता है.

5. प्रधानमंत्री व अन्य मंत्रियों के विदेश दौरों की टीम में फोटो पत्रकारों को शामिल नहीं किया जाता है.

6. समाचार एजेंसियों को भी पीआईबी के फोटो पर निर्भर रहना पड़ता है. समाचार एजेसियां पीआईबी द्वारा भेजे गए फोटो को ही मीडिया संस्थानों को प्रकाशनार्थ भेजती है.

7. स्वतंत्र फोटो पत्रकारों के मान्यता देने की प्रक्रिया व शर्तों में परिवर्तन किया गया है और स्वतंत्र फोटो पत्रकार अपेक्षाकृत स्वतंत्रता में बाधा महसूस करते हैं.

मीडिया संस्थानों के लिए फोटो पत्रकारिता के महत्व को सूची-1 के आंकड़ों से समझा जा सकता है. भारत जैसे देश में अंग्रेजी की तुलना में अन्य भाषाओं के प्रिंट मीडिया में हिन्दी मीडिया संस्थानों की बदतर स्थिति पर भी नजर डाली जा सकती है. मीडिया संस्थानों में फोटो पत्रकारों की संख्या कम होने का कारण यह भी है कि मीडिया संस्थानों को समाचार एजेंसियों व सरकारी संस्थानों द्वारा तस्वीरें प्राप्त हो जाती है और वे ज्यादातर सरकारी संस्थानों व समाचार एजेंसियों द्वारा भेजी गई तस्वीरों का इस्तेमाल करते हैं. सरकारी संस्थानों को तस्वीरों के लिए कोई भुगतान नहीं करना पड़ता है.

फोटो व विजुअल्स को नियंत्रित करने की नीति

मीडिया संस्थानों व स्वतंत्र फोटो पत्रकारों की मौजूदगी से किसी भी अवसर या कार्यक्रम की छवि में विविधता होती है. फोटो पत्रकारों की पृष्ठभूमि उन्हें विविधता के लिए प्रेरित करती है. फोटो पत्रकारों का अपने सामाजिक, राजनीतिक सरोकारों से जो एक नजरिया तैयार होता है उसे वह अपने कैमरे के माध्यम से व्यक्त करता है और उनका नजरिया हर तरह के अवसरों व कार्यक्रमों में समान रूप से सक्रिय रहता है.

लेकिन फोटो व विजुअल्स के प्रति भारतीय राजनीति और खासतौर से सत्ता के राजनीतिक नजरिये में एक बदलाव दिखाई देता है और इसके तहत विविधता को नियंत्रित करने की आवश्यकता महसूस की जाती है. एक नये तरह के अनुभव के दौर से भारत की फोटो पत्रकारिता का वर्तमान गुजर रहा है.