Newslaundry Hindi
सीबीआई: वर्मा बनाम अस्थाना की लड़ाई और मोदी की पक्षधरता
केंद्रीय अन्वेषन ब्यूरो (सीबीआई) ‘पिंजड़े का तोता’ नाम से बदनाम है. लेकिन इस बदनाम संस्था में जो संदेहास्पद हालात हैं, उनकी अंदरूनी जानकारियां धमाका कर सकती है. स्वार्थ और लालच से भरी लड़ाई में इसके शीर्ष अधिकारियों की जांच ने, विशेषकर सीबीआई के मुखिया आलोक वर्मा और उनके मातहत राकेश अस्थाना, जो अब अपदस्थ हो चुके हैं, न केवल इस तोते की पंखुड़ियां नोच डाली हैं बल्कि इसके पंख ही कतर दिए हैं. आने वाले समय में यह घायल और विकलांग होने को मजबूर रहेगा.
सीबीआई में बीती मंगलवार की आधी रात का घटनाक्रम-
24 अक्टूबर के शुरुआती घंटों में, प्रधानमंत्री नरेंद्र की कैबिनेट ने एक कमेटी बनाई जिसने तुरंत ही सह-निर्देशक एम नागेश्वर राव को सीबीआई का अंतरिम प्रमुख बना दिया. इसके लिए गैरकानूनी ढंग से मौजूदा सीबीआई प्रमुख को हटाया गया, और उन्हें छुट्टी पर जाने को कह दिया गया. नए सीबीआई प्रमुख की नियुक्ति न केवल असंवैधानिक है बल्कि चालाकी से सीबीआई प्रमुख की नियुक्ति प्रक्रिया की तख़्तापलट करने की कोशिश है.
एक तीन सदस्यीय स्वतंत्र कोलेजियम, जिसमें प्रधानमंत्री, लोकसभा में नेता विपक्ष और सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश शामिल होते हैं, मिलकर सीबीआई प्रमुख की नियुक्ति करते हैं, ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि यहां किसी तरह का पक्षपात या घालमेल नहीं हैं. सीबीआई प्रमुख का कार्यकाल 2 वर्ष के लिए निश्चित है.
आलोक वर्मा, जिन्हें अभी रिटायर होने में 2 महीने का वक़्त बाकी था, को मोदी सरकार ने अपदस्थ कर दिया गया. उपरोक्त प्रावधान को अनदेखा करते हुए. उन्हें बर्खास्त करने की बजाय छुट्टी पर जाने के लिए कहा गया. वरिष्ठ वकील प्रशांत भूषण, जो कि प्रशासन और सरकार में व्याप्त भ्रष्टाचार के खिलाफ़ लंबे समय से लड़ाई लड़ते रहे हैं, उन्होंने नरेंद्र मोदी के इस आदेश को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी.
इस दौरान, सीबीआई के दूसरे प्रमुख राकेश अस्थाना को भी छुट्टी पर जाने को कह दिया गया है. अस्थाना के ऊपर सीबीआई द्वारा की जा रही कुछ बेहद संवेदनशील मामलों की जांच में भ्रष्टाचार की आशंका है. सबसे महत्वपूर्ण मामला है 3.5 करोड़ की घूस का है. स्टर्लिंग बायोटेक के संस्थापक सन्देसरा बंधुओं से यह घूस लेने का आरोप अस्थाना के ऊपर है, बाद में कंपनी के मालिक 5300 करोड़ रुपये लूटकर देश से फरार हो गए.
वर्मा को जांच आगे बढ़ाने के आदेश मिले और यह एजेंसी में बड़े झगड़े का मुख्य कारण बन गया. लेकिन दो दिन पहले अस्थाना को जिस मामले में आरोपित बनाया गया है वह 5 करोड़ की एक अन्य घूस लेने का मामला है. आरोप है कि अस्थाना ने मांस कारोबारी मोइन कुरैशी के खिलाफ जारी जांच को निपटाने के लिए कथित तौर पर लिया था.
मोदी सरकार ने दोनों ही अधिकारियों को छुट्टी पर भेजे जाने को यह कह कर उचित ठहराया कि यह कदम जांच में निष्पक्ष संस्था की एकता को बनाए रखने के लिए गया. तो क्या इस मामले में मोदी अब निष्पक्ष और ईमानदार हैं? इसका सीधा जवाब है, नहीं.
अब तक की घटनाओं पर नजर डालते हैं
पहली बात, मोदी ने वर्मा को छुट्टी पर भेजा और तत्काल बाद राव को बिना स्वतंत्र कोलेजियम की अनुशंसा के अंतरिम निदेशक नियुक्ति कर दिया.
दूसरी बात, एक ही झटके में ट्रांसफर्स और पोस्टिंग के बड़े सिलसिले ने मोदी सरकार की मंशा को उजागर कर दिया.
सीबीआई में अधिकारी एके बस्सी, अस्थाना के खिलाफ 6 भ्रष्टाचार के मामलों में जांच की अगुवाई कर रहे थे. उन्हें “तत्काल प्रभाव से” पोर्ट ब्लेयर यानी काला पानी के इलाके में ट्रांसफर कर दिया. अस्थाना की जांच में पूर्व प्रमुख आलोक वर्मा द्वारा लगाए दूसरे अधिकारियों को भी इसी तरह स्थानांतरित किया गया.
मनीष कुमार सिन्हा को नागपुर भेज दिया गया, अधिकारी एसएस गुर्म को जबलपुर भेज दिया गया. महत्वपूर्ण बात है कि सीबीआई में नंबर 3 की हैसियत वाले सहनिदेशक एके शर्मा, जो एक समय मोदी के करीबी थे, एंटी करप्शन विभाग के डिपार्टमेन्ट के ताकतवर मुखिया और अस्थाना के धुर प्रतिद्वंद्वी भी थे, उन्हें पॉलिसी विभाग का जिम्मा सौंप दिया गया.
इससे भी बुरा यह है कि अधिकारी ए साई मनोहर, जो अस्थाना के करीबी हैं और पहले अस्थाना के केस की जांच कर रही जांच टीम से आलोक वर्मा द्वारा हटाये जा चुके थे. इन्हें वापस लाकर एके शर्मा की जगह एंटी करप्शन डिपार्टमेन्ट का मुखिया बना दिया गया है.
डीआईजी तरुण गौबा को चंडीगढ़ से दिल्ली लाकर अस्थाना के केस की जांच में लगाया गया है, जिस पर सवाल उठना तय हैं. गौबा 2001 आईपीएस बैच के यूपी कैडर के अधिकारी हैं, वह न केवल अस्थाना के जूनियर है, बल्कि मोदी प्रशासन के भी करीबी के रूप में जाने जाते हैं. गौबा ने ही डेरा सच्चा सौदा मामले की जांच की थी, लेकिन इससे भी महत्वपूर्ण है कि वह कई करोड़ के व्यापम घोटाले की जांच की अगुवाई कर रहे थे. मध्य प्रदेश में हुए इस घोटाले से जुड़े 40 लोग रहस्यमयी परिस्थितियों में मृत पाये गए थे. जबकि गौबा ने चार्जशीट में 86 लोगों को शामिल किया, वहीं मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान को क्लीन चिट दे दी थी.
24 अक्टूबर की दोपहर को आलोक वर्मा ने सबको चकित करते हुए अपनी “बर्खास्तगी” को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी और ईमानदारी से इसका दोषी केंद्र और केंद्रीय सतर्कता आयोग (सीवीसी) को ठहराया. जिसके बारे में वर्मा ने अपनी याचिका में लिखा है- “दोनों ने रातों-रात उन्हें सीबीआई निर्देशक के पद से हटाने का निर्णय ले लिया.” कोर्ट के अपने मौखिक बयान में, वर्मा ने यह भी कहा कि उन्हें अपने हटाये जाने की खबर सुबह 6 बजे पता चली. उन्होंने अदालत से निवेदन किया कि इस तरह से अचानक और अप्रत्याशित तरीके से हुए घटनाक्रमों से वर्तमान में चल रहे भ्रष्टाचार के संवेदनशील मामलों की जांच पर प्रभाव पड़ेगा.
उन्होंने कहा, “मैं कई मामलों के विवरण पेश कर सकता हूं, जिन्होंने वर्तमान परिस्थितियों को जन्म दिया है. वह काफी संवेदनशील मामले हैं. जिसके लिए एक स्वतंत्र सीबीआई की जरूरत है. मौजूदा परिस्थितियां तब बदली जब चल रही जांच उस दिशा में नहीं जा रही थी, जिसका इच्छा सरकार को थी.”
मोदी सरकार पर इससे तीखी टिप्पणी नहीं हो सकती.
वर्मा की बर्खास्तगी और राव की अन्तरिम निदेशक के रूप में नियुक्ति की घटनाओं ने भ्रष्टाचार और राजनीति से जुड़े महत्वपूर्ण मामलों में हस्तक्षेप के आरोप-प्रत्यारोप की ओर ध्यान खींचा है. साथ ही इसने सीवीसी कार्यालय और मोदी द्वारा चुने गए सीवीसी प्रमुख केवी चौधरी की संदेहास्पद भूमिका पर भी रोशनी डाली है. सीबीआई को चलाने में सीवीसी की भूमिका अहम है. और कोई भी सरकारी नियुक्ति, सीबीआई में भी, बिना इसके अनुमति के नहीं हो सकती है.
वर्मा ने अपनी बर्खास्तगी को लेकर चौधरी के ऊपर भी उंगली उठाई है. अस्थाना और वर्मा के बीच पैदा हुई समस्या में चौधरी की भूमिका आग में घी डालने वाले शख्स की है. इससे पहले कि इस शोर में चौधरी की संदिग्ध भूमिका की बात करें तो हमें यह जान लेना जरूरी है कि चौधरी ने वर्मा के सुझाव पर राव के ऊपर कोई भी कार्यवाही करने मना कर दिया था. कुछ महीनों पहले, वर्मा ने राव के चेन्नई में हिंदुस्तान टेलीप्रिंटर घोटाले में भागीदारी की जांच करने के कहा, तब राव सह निदेशक थे. फिर से चौधरी ने कार्यवाही करने मना कर दिया. यह सुनिश्चित करने के लिए कि राव ज्यादा दूर जाने न पाएं, वर्मा ने आराम से चेन्नई में चल रही भ्रष्टाचार की जांचों को सीबीआई से दूर बैंकिंग और सुरक्षा फ्रॉड सेल, बैंगलोर भेज दिया. जांच अभी भी चल रही है.
अस्थाना-वर्मा झगड़े के मामले में, चौधरी ने पिछले साल सीबीआई में अस्थाना की नियुक्ति के समय, उनके खिलाफ भ्रष्टाचार के मामलों को संज्ञान में लेने से इंकार कर दिया था. इसी तरह, उन्होंने ने अनुचित पक्ष लिया जब दो महीने पहले चौधरी से लालूयादव / आईआरसीटीसी घोटाले के जांच के सभी दस्तावेज़ों के बारे में पूछा गया. जिसमें अस्थाना ने वर्मा पर आरोप लगाया कि उन्होंने यादव को बचाने के लिए जान बूझकर जांच में रुकावट डाली और हस्तक्षेप किया. सीबीआई ने कहा कि ये आरोप ओछे हैं और बाद में सुप्रीम कोर्ट ने भी इस मामले को रफा-दफा कर दिया.
इस शाम, हालांकि मोदी सरकार ने वर्मा की बर्खास्तगी को उचित ठहराने के लिए एक लंबी सफाई दी, जिसमें दावा किया गया कि वर्मा केस से जुड़े दस्तावेज़ न देकर सीवीसी के साथ जांच में सहयोग नहीं कर रहे थे. और सीवीसी ने पाया कि वर्मा सीवीसी के साथ सहयोग नहीं कर रहे थे, न ही उसके अनुरूप काम कर रहे थे. और जानबूझकर सीवीसी की कार्यप्रणाली में दिक्कतें पैदा कर रहे थे.
इन सभी घटनाओं से यह साफ दिखाई देता है कि मोदी सरकार अस्थाना-वर्मा विवाद में किसका पक्ष ले रही है. यह सिर्फ दो अधिकारियों के बीच व्यक्तिगत विवाद था, लेकिन जान बूझकर इसकी आड़ में भ्रष्टाचार संबंधित मामलों को पलटने की कोशिश की जा रही है. सरकार के पसंदीदा लोगों को बचाने की कोशिश की जा रही है. भ्रष्ट, ताकतवर भगोड़े, एजेंटों के हितों की रक्षा की जा रही है.
राजधानी में इस बात की कानाफूंसी भी चल रही है कि वर्मा को इसलिए हटाया गया क्योंकि वो रफाल डील के मामले में पूर्व बीजेपी नेता अरुण शौरी, यशवंत सिन्हा और वरिष्ठ वकील प्रशांत भूषण की शिकायत पर कार्यवाही करना चाहते थे. इसी विषय में विजय माल्या, नीरव मोदी और मेहुल चौकसी के भी केस हैं. कोई नहीं भूला होगा कि विजय माल्या के लुकआउट नोटिस को सीबीआई ने कमजोर किया था और इसे केवल “पुलिस को सूचित करें” तक सीमित कर दिया था, जिससे विजय माल्या को देश से भागने में आसानी हुई.
Also Read
-
Two years on, ‘peace’ in Gaza is at the price of dignity and freedom
-
4 ml of poison, four times a day: Inside the Coldrif tragedy that claimed 17 children
-
Delhi shut its thermal plants, but chokes from neighbouring ones
-
Hafta x South Central feat. Josy Joseph: A crossover episode on the future of media
-
Encroachment menace in Bengaluru locality leaves pavements unusable for pedestrians