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दिल्ली शिक्षक भर्ती परीक्षा में जातिवाद का ज़हर
दिल्ली अधीनस्थ सेवा चयन बोर्ड, जिसका लोगो “निष्पक्षता सर्वोपरि” से शुरू होता है, उसने प्राइमरी शिक्षक भर्ती परीक्षा में ऐसा सवाल पूछा जो इसके ध्येय वाक्य के विपरीत निष्पक्षता की धज्जियां उड़ाने वाला और जातिवादी. आपत्तिजनक और कानूनी रूप से अपराध तो यह है ही.
13 अक्टूबर 2018 को जब डीएसएसएसबी (DSSSB) की बहुप्रतीक्षित पीआरटी परीक्षा का प्रश्नपत्र परीक्षार्थियों के हाथ में आया तो उनके होश उड़ गए. हिंदी भाषा और बोध के सेक्शन में अनूसूचित जाति से सम्बन्धित जाति सूचक शब्द “चमार” का स्त्रीलिंग प्रश्न पत्र में पूछा गया था.
ये प्रश्न इस प्रकार है-
“पंडित : पंडिताइन: :चमार:??
और इसके विकल्प के रूप में
A. चमाराइन
B. चमारिन
C. चमारी
D. चमीर
ये चार ऑप्शन रखे गये जिनमें से एक परीक्षार्थियों को चुनना था.
परीक्षा देने के बाद कई छात्र इस सवाल पर सोशल मीडिया के माध्यम से नाखुशी जाहिर करने लगे. उन्होंने डीएसएसएसबी पर तंज कसते हुए कहा कि बोर्ड में कम दिमाग के शिकार लोग बैठे हैं.
जिस शिक्षा के तंत्र से ये उम्मीद की जाती है कि वो जातिवादी व्यवस्था के ढांचे को ध्वस्त करने की कोशिश करेगा वही शिक्षा तंत्र अप्रत्यक्ष रूप से जातिवाद का जहर फैलाने में लगा हुआ है. ये ना केवल समाज के लिए खतरनाक है बल्कि संविधान में शिक्षा से जो उम्मीद की गई है उसकी मूल भावना पर भी हमला है.
डीएसएसएसबी अपनी प्रस्तावना में ही भर्ती परीक्षण में वैश्विक मानकों की पुष्टि करने का दावा करता है और अच्छी तरह से, योग्य और कुशल व्यक्तियों की विभागों के लिए चयन की बात करता है.
लेकिन योग्य व्यक्तियों के चयन के लिए प्रश्नपत्र बनाने वालों की योग्यता क्या है ये प्रश्नपत्र में पूछे गए सवाल पता चल जाता है. ये प्रश्नपत्र ना केवल अपने चरित्र में जातिवादी है बल्कि असंवेदनशील भी है. इस प्रश्न के बाद डीएसएसएसबी को जाति सूचक शब्द के इस्तेमाल पर कानूनी प्रक्रियाओं का सामना भी करना पड़ सकता है. साथ ही इस तरह के प्रश्न भारतीय समाज में मौजूद जातिवाद का क्रूर प्रमाण भी देते हैं.
दूसरे प्रश्न का नमूना देखिए-
जीजी : जीजा: विधवा:??
A. विधव
B. विधिव
C. विधुर
D. विधुष
हाल ही में दिल्ली के शिक्षा मंत्री मनीष सिसोदिया का एक भाषण वायरल हुआ था जिसमें वो कक्षाओं के जंतर-मंतर और शिक्षक के क्रांति के संवाहक होने की बात करते हैं.
ये प्रश्न दिल्ली के शिक्षामंत्री मनीष सिसोदिया के उस वायरल भाषण की बुनियादी अवधारणा के ही खिलाफ है जिसमें वो शिक्षकों और प्रधानाचार्यों से छात्रों को विलोम शब्दों के बजाय उसे पूर्तिकारक शब्दों के रूप में सिखाने की बात करते हैं, जैसे दिन-रात को विलोम नहीं बल्कि पूर्तिकारक शब्द के रूप में बच्चों को बताया जाय. शिक्षामंत्री के भाषण की इस लाइन पर शिक्षकों ने खूब ताली बजाई थी.
लेकिन ऐसा क्या होता है कि दिल्ली के शिक्षामंत्री का सुधारवादी विजन भाषणों तक ही रह जाता है और जब दिल्ली में शिक्षकों की नियुक्ति के लिए प्रश्नपत्र बनता है तो उसका चरित्र जातिवादी, अपमानजनक और असंवेदनशील होता है?
दिल्ली सरकार की शिक्षा व्यवस्था को पूरे देश में एक मॉडल की तरह माना जाता रहा है. लेकिन ऐसा लगता है डीएसएसएसबी ने हरियाणा एसएससी को शिक्षक भर्ती परीक्षा के लिए मॉडल मान लिया है.
इसी साल हरियाणा एसएससी की परीक्षा में सवाल पूछा गया था कि निम्न में किसे अपशकुन नहीं माना जाता है? जवाब में चार विकल्प दिए गए थे जिसमें पहला खाली घड़ा, दूसरा फ्यूल भरा कास्केट, तीसरा काले ब्राह्मण से मिलना और चौथा ब्राह्मण कन्या को देखना था.
लंबे इंतजार और पिछले साल के दिल्ली हाइकोर्ट की फटकार के बाद दिल्ली में प्राइमरी टीचरों की भर्ती के लिए डीएसएसएसबी ने 4,366 पदों पर भर्तियां निकाली थीं, इसके लिए आवेदन करने की तारीख 30 जुलाई तक थी. इनमें 714 पद अनुसूचित जाति और 756 पद अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित हैं लेकिन एक्जाम बोर्ड अनुसूचित जाति के लिए कितना संवेदनशील है ये प्रश्नपत्र के चरित्र से पता चलता है.
प्राइमरी शिक्षकों की भर्ती के लिए 14 और 28 अक्टूबर को भी एक्जाम होगा, डीएसएसएसबी के इस रवैये के बाद अगले प्रश्नपत्रों पर लोगों की नजर जरूर रहेगी.
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