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नेहरू विहार: समझौतों की बुनियाद पर तैयार हो रही प्रशासनिक पीढ़ियां
भारत के महानगरों खासकर दिल्ली और मुंबई की कॉस्मोपोलिटन संस्कृति का बखान अक्सर सुनने को मिलता है. इस कॉस्मोपोलिटन संस्कृति का एक बड़ा हिस्सा महानगरों में विस्थापित होकर आने वालों का होता है. शिक्षा से लेकर रोजगार और ईलाज के लिए लाखों लोग देश की राजधानी दिल्ली में आते हैं, और लंबे वक्त में महानगर का हिस्सा होकर रह जाते हैं.
ये विस्थापित किसी गृह युद्ध के पीड़ित नहीं बल्कि भारत के राज्यों में असमतल विकास की पैदावार हैं. विस्थापितों के गुजर-बसर की चुनौतियों ने दिल्ली की अर्थव्यवस्था बदल दी है. विस्थापितों को आसरा देना (रेंट) रोजगार का रूप ले चुका है. रेंट न सिर्फ निजी मुनाफा रहा बल्कि इसमें कई तरह के बिचौलियों (ब्रोकर/डीलर) के हस्तक्षेप की शुरुआत हो गई. बिचौलियों ने इसे संगठित कारोबार में बदल दिया. इसका नतीजा आए दिन किरायेदारों की मकान मालिकों से नोक-झोंक के रूप में सामने आता रहता है. ऐसी ही एक वारदात उत्तरी दिल्ली के नेहरू विहार क्षेत्र में दर्ज की गई.
केन्द्रीय लोक सेवा आयोग (यूपीएसी) की प्रतियोगिता परीक्षाओं की तैयारी करने वालों के गढ़ मुखर्जी नगर के पास स्थित है नेहरू विहार. गुरुवार की शाम नेहरू विहार से गोपालपुर की तरफ जाने वाली पुलिया के समीप एक महिला छात्रा से बाइक सवार बदमाशों ने सोने की चेन और मोबाइल छीन ली. उसी रात एक पुरुष छात्र को लाइब्रेरी से लौटते वक्त एक बाइक सवार ने टक्कर मार दी. वह छात्र कान में इयरफोन लगाकर चल रहा था. बाइक सवार से हुई बहस के बाद छात्र को पीटा गया. पुलिस ने छात्र की एफआईआर लिखने से मना कर दिया. शुक्रवार को सिक्योरिटी डिपोजिट देने को लेकर एक छात्र और प्रोपर्टी डीलर के बीच तीखी नोंक-झोंक हुई और प्रोपर्टी डीलर ने छात्र को झाड़ू और चप्पलों से पीटा. छात्र फिर से पुलिस के पास रिपोर्ट लिखवाने गए लेकिन पुलिस ने रिपोर्ट लिखने से मना कर दिया.
पुलिस के लचर रवैये और लगातार घट रही इन वारदातों से परेशान होकर शुक्रवार को छात्रों ने भारी संख्या में विरोध प्रदर्शन किया. प्रदर्शन के दौरान पत्थरबाजी हुई जिसके बाद पुलिस ने लाठीचार्ज किया. पत्थरबाजी किसने की यह अभी भी नेहरू विहार में चर्चा का विषय है. स्थानीय लोगों का कहना है कि पत्थरबाजी छात्रों ने की जिससे कई कारों के शीशे टूट गए. छात्रों का आरोप है कि छात्रों को बदनाम करने के लिए स्थानीय लोगों ने पत्थरबाजी की. ऑन ड्यूटी पुलिस कॉन्सटेबल के अनुसार, “पत्थर किसी ने भी चलाया हो, हमें जो आदेश मिलेगा हम वही करेंगे.”
पुलिस के लाठीचार्ज में 2016 में युवा साहित्य अकादमी पुरस्कार विजेता और लेखक निलोत्पल मृणाल भी चोटिल हो गए. वह छात्रों के समर्थन में हो रहे एक प्रदर्शन में शामिल थे.
इस मामले में पुलिस क्या कार्रवाई कर रही है? इसके जवाब में तिमारपुर के एसएचओ ओमप्रकाश सिन्हा हमारे सवालों को सिर्फ सुनते गए. लेकिन किसी का जबाव नहीं दिया. “सीनियर अधिकारियों से बात कीजिए,” कहकर एसएचओ ने फोन काट दिया.
न्यूज़लॉन्ड्री से बातचीत में प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी करने वाले छात्रों ने नेहरू विहार की घटना को महज एक ट्रिगर बताया. छात्रों का कहना था कि छिनैती, असुरक्षा, डीलरों की मनमाना वसूली और पुलिसिया भेदभाव की वारदातें नेहरू विहार में आम हो चली हैं.
रेंट और ब्रोकरेज से त्रस्त छात्र
मध्य प्रदेश के मुरैना जिले से रवि सिंह जादौन यूपीएससी की तैयारी कर रहे हैं. वह पिछले तीन वर्षों से नेहरू विहार क्षेत्र में रह रहे हैं. उन्होंने न्यूज़लॉन्ड्री को बताया, “मैं तीन साल पहले नेहरू विहार आया था. यहां एक 25 गज के कमरे का किराया साढे पांच से छह हजार होता था. हर साल हजार रुपये बढ़ाते-बढ़ाते किराया अब आठ हजार पहुंच गया है.”
रवि के साथ ही यूपीएससी की तैयारी करने वाले उत्तर प्रदेश के आजमगढ़ निवासी अभिषेक यादव ने न्यूज़लॉन्ड्री को नेहरू विहार में रेंट और ब्रोकरेज का अर्थशास्त्र समझाया.
किराये का कमरा लेना छात्रों के लिए एक चुनौती है. नेहरू विहार में किसी भी मकान के बाहर दिल्ली के अन्य क्षेत्रों की तरह ‘टू-लेट’ का विज्ञापन नहीं दिखेगा. अगर दिखेगा भी तो जो नंबर उसपर दिया होगा, वह किसी ब्रोकर या डीलर का होगा. मतलब किसी भी सूरत में आपको डीलर या ब्रोकर के जरिये ही कमरा किराये पर मिलेगा. वह ब्रोकर या डीलर आपसे आधे महीने का किराया बतौर कमीशन पहले ही ले लेगा. उसके बाद आपको एक (कहीं-कहीं दो) महीने का किराया सिक्योरिटी डिपोजिट के नाम पर जमा करना होगा. मान लीजिए, एक कमरे का किराया 10,000 रुपये हैं. 5,000 ब्रोकरेज, 10,000 सिक्योरिटी और 10,000 रुपये रेंट, कुल मिलाकर एक 25-30 गज के कमरे के पहले महीने का किराया 25,000 तक पहुंच जाएगा.
छात्रों ने बताया कि मुखर्जी नगर, नेहरू विहार के मुकाबले मंहगा है इसीलिए छात्र नेहरू विहार, झरौंदा, बुराड़ी आदि क्षेत्रों में रहने लगे हैं. कोचिंग सेंटर भी धीरे-धीरे इन क्षेत्रों में अपना पैर पसार रहे हैं. नेहरू विहार, गांधी विहार और मुखर्जी नगर मिलाकर प्रतियोगी छात्रों की संख्या 60,000 के आसपास या ज्यादा ही होगी.
दिल्ली पुलिस मकान मालिकों से किरायेदारों की पुलिस वेरिफिकेशन और रेंट एग्रीमेंट बनवाने की अपील करती है. इस विज्ञापन की नियति नेहरू विहार क्षेत्र में आकर समझ आती है. यहां न रेंट एग्रीमेंट बनता है न ही पुलिस वेरिफिकेशन होता है.
नेहरू विहार में प्रदर्शनकारी छात्र (तस्वीर: मुरारी त्रिपाठी)
बिहार, रोहतास से आए छात्र रविकान्त ने रेंट एग्रीमेंट से संबंधित एक वाकया न्यूज़लॉन्ड्री से साझा किया, “मुझे बैंक एकाउंट खुलवाना था. उसके लिए एड्रेस प्रूव चाहिए होता है. अब हमारे पास दिल्ली से 1000 किलोमीटर दूर रोहतास का एड्रेस है. ऐसे में लोकल एड्रेस की जरूरत पड़ती है. मैंने अपने मकान मालिक से कहा कि मुझे रेंट एग्रीमेंट दें, बैंक अकाउंट खुलवाने में दस्तावेज के तौर पर जरूरत पड़ेगी. वह मुझसे बहस करने लगे और कहा कि अगर ज्यादा कानून बतियाना है तो कमरा खाली कर दो.” छात्रों की प्रमुख मांग है कि रूम रेंट को नियंत्रित किया जाय.
रेंट के अलावा छात्र बिजली और पानी के बिल से भी परेशान हैं. दिल्ली सरकार का “बिजली हाफ, पानी माफ” का लाभ उठा रहे मकान मालिक किरायेदारों को इसका लाभ नहीं देते. बिल कुछ भी आए, मकान मालिक किराएदारों से 8 रुपये प्रति यूनिट की दर से बिजली का बिल वसूल रहे हैं. वहीं हर कमरे से 200 रुपये महीने पानी का बिल लिया जाता है.
किराए का नियमन न होना छात्रों के शोषण का प्रमुख हथियार बन चुका है. 1958 का दिल्ली रेंट कंट्रोल एक्ट या 1995 में आया रेंट कंट्रोल एक्ट का पालन कोई भी मकान मालिक नहीं कर रहा है.
तिमारपुर क्षेत्र के आम आदमी पार्टी विधायक पंकज पुष्कर ने न्यूज़लॉन्ड्री को बताया, “मैं दिल्ली रेंट कंट्रोल एक्ट को दो बार दिल्ली विधानसभा में उठा चुका हूं. चूंकि यह केन्द्र सरकार के अधिकार क्षेत्र का विषय है, इसलिए हमारे हाथ में इससे ज्यादा कुछ नहीं है.”
पंकज आगे बताते हैं, “नेहरू विहार में जो विवाद हुआ है उसमें सभी पक्षों से बात करने की जरूरत है. यह ‘बाहरी’ बनाम ‘दिल्ली वालों’ का मामला नहीं होना चाहिए. इससे मामला हल्का हो जाता है. प्रशासकीय स्तर पर रेंट को नियमित करने की सख्त जरूरत है.”
असुरक्षा, अनिश्चितता और समझौता
“रेंट किसी तरह हम लोग दे ही रहे हैं. परिवार के ऊपर खर्च का बोझ न बढ़े इसीलिए रूम शेयरिंग भी करते हैं. इसके बावजूद सामान चोरी होगा, लाइब्रेरी से लौटते वक्त छिनैती होगा तो हम लोग कैसे रह पाएंगे?” उत्तर प्रदेश के बलिया से आईं छात्रा मेधावी ने कहा.
पिछले जून महीने में मेधावी के कमरे से लैपटॉप और मोबाइल फोन चोरी हो गया. वह भी शुक्रवार को प्रदर्शन में हिस्सा ले रही थीं. उन्होंने कहा, “यूपीएससी की तैयारी सिर्फ किताबें पढ़ना नहीं होता है. उसमें 24 घंटे की मानसिक शांति चाहिए होती है. आप सोचिए यहां जो तैयारी करने वाले छात्र हैं उनका समय नियमित है. हमारे पास इतना समय नहीं होता कि हर रोज मकान मालिकों, डीलरों से बहस करें. यह जानते हुए कि हमारे साथ अन्याय हो रहा है, हम लोग समझौता करते हैं. मीडिल क्लास समझौतों का पुतला ही तो है.”
मेधावी की सहयोगी शालिनी भी डीलरों की वादाखिलाफी से नाराज हैं. हालांकि उन्होंने फोरेस्ट सर्विस की परीक्षा का एक स्टेप पार कर लिया है. वह अपना समय प्रदर्शनों में बेकार नहीं कर सकतीं. “दो महीने पहले ही मैं मेधावी के साथ शिफ्ट हुई हूं. इसके पहले जिस पीजी में रहती थी वहां मैंने 12,000 रुपये सिक्योरिटी डिपोजिट दिया था. कमरा छोड़ने के साथ मैंने डीलर से अपना सिक्योरिटी डिपोजिट मांगा. उसने कहा कि कमरे की दीवार पर मैप (भारत का मानचित्र), संविधान की प्रति लगी थी उससे दीवार खराब हुई है. कमरे की रंग-रोगन की जरूरत करनी होगी. उसके नाम पर उसने 6,000 रुपये काट लिए. 2,000 नल की टोंटी से लिकेज के नाम पर काट लिया. मुझे वापस मिला सिर्फ 4,000 रुपये.”
असुरक्षा के माहौल पर छात्राओं की सबसे बड़ी चिंता है कि पहले ज्यादातर लाइब्रेरी रात भर खुले रहते थे, अब उन्हें छात्राओं के लिए सिर्फ 10 बजे तक ही खोला जाता है.
नेहरू विहार के ज्यादा घर कॉमर्शियल नहीं हैं लेकिन एक पांच मंजिला इमारत से औसतन हर महीने तीन से चार लाख रुपये किराये के रूप में आता है.
नेहरू विहार के एक प्रोपर्टी डीलर ने नाम न छापने की शर्त पर बताया, “हम छात्रों के खिलाफ नहीं हैं. छात्र और कोचिंग हमारी रोजी रोटी हैं. कौन चाहेगा कि वो चले जाएं. यहां डीलरों को मालूम है कि छात्र संगठित विरोध नहीं करेंगे. छात्रों को यहां प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी करनी है, विरोध जताकर भी उन्हें रहना इन्हीं क्षेत्रों में पड़ेगा. दो जाएंगें तो चार नए रेंट के लिए आएंगें.”
छात्रों के विरोध प्रदर्शन के बाद कुछ कोचिंग सेंटरों ने छात्रों को आश्वासन दिया है कि जरूरत पड़ने पर वे अपने कोचिंग सेंटर नेहरू विहार से बाहर ले जा सकते हैं.
तैयारी करने वाले छात्र दिल्ली की मकान मालिक-ब्रोकर गठजोड़ के बीच फंसा सबसे कमजोर पुर्जा है. ज्यादातर छात्र बाहर के राज्यों से आते हैं. उनका न तो दिल्ली में स्थायी पता-ठिकाना होता है, ना ही वे यहां के वोटर हैं. लिहाजा भारी संख्या होने के बावजूद उनके लिए न तो कोई राजनीतिक दल खड़ा होता है ना ही उनकी कोई यूनियन है.
शोषण की इसी बुनियाद पर देश की दिशा तय करने वाली प्रशासनिक और सरकारी अमले की नई पीढ़ियां तैयार हो रही हैं. यह विचित्र विरोधाभास है.
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