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एमनेस्टी इंटरनेशनल: अराकन रोहिंग्या सैल्वेशन आर्मी ने किया था हिंदुओं का कत्लेआम
एमनेस्टी इंटरनेशनल द्वारा मंगलवार को जारी एक रिपोर्ट के अनुसार हथियारबंद रोहिंग्या समूह ने बीते साल म्यांमार के रखाइन में हिंदुओं का कत्लेआम किया था. इस रिपोर्ट के अनुसार अराकन रोहिंग्या सैल्वेशन आर्मी (एआरएसए) नाम के रोहिंग्या हथियारबंद समूह ने 99 हिंदू महिलाओं, पुरुषों और बच्चों को मार डाला और कुछ हिंदुओं का अपहरण भी किया. मानवाधिकार संगठन एमनेस्टी ने अपने रिपोर्ट में बताया है कि यह नरसंहार 25 अगस्त, 2017 को हुआ था, जिसमें 99 हिंदुओं को मार दिया गया था.
एमनेस्टी इंटरनेशनल की तिराना हसन के अनुसार, “अराकन रोहिंग्या सैल्वेशन की क्रूरता को नजरअंदाज करना मुश्किल है. इस घटना ने पीड़ितों के ऊपर अमिट छाप छोड़ी है.” इसके साथ ही उन्होंने कहा कि ये अत्याचार भी उतना ही गंभीर मामला है जितना कि म्यांमार सेना द्वारा रोहिंग्याओं पर किए गए अपराधों का मामला.
एमनेस्टी इंटरनेशनल की इस रिपोर्ट में म्यांमार के प्रशासन पर भी गैरकनूनी हत्या, बलात्कार और गांवों को आग के हवाले करने का भी आरोप लगाया है. अगस्त 2017 में एआरएसए के सदस्यों द्वारा म्यांमार सेना के खिलाफ जब विद्रोह शुरू हुआ तब म्यांमार के सुरक्षाबलों ने इसका जवाब हत्या, रेप, यातना, गांवों को जलाने, लोगों को भूखे रखने और अन्य हिंसात्मक तरीकों से दिया. मानवाधिकारों का खुलेआम उल्लंघन हुआ.
रिपोर्ट के अनुसार घटना के दिन रोहिंग्या उग्रवादियों ने पुलिस पोस्ट पर हमले किए थे और राज्य में संकट शुरू हो गया था. रिपोर्ट के अनुसार रखाइन में मौजूद सभी रोहिंग्या म्यांमार सेना के निशाने पर थे. अराकन रोहिंग्या सैल्वेशन आर्मी के हमले के जवाब में म्यांमार की सेना ने जो ऑपरेशन चलाया था उसकी वजह से करीब 7 लाख रोहिंग्या मुस्लिमों को म्यांमार छोड़ भारत, बांग्लादेश जैसे पड़ोसी देशों में शरण लेना पड़ा. रोहिंग्या शरणार्थी समस्या विश्व पटल पर एक भीषण मानवीय समस्या बनकर उभरा है. लाखों शरणार्थी आज भी भारत, बांग्लादेश जैसे देशों में शरण लिए हुए हैं.
एमनेस्टी की रिपोर्ट के अनुसार एआरएसए ने इस हिंसा का जवाब वहां रह रहे हिंदुओं को अपना निशाना बनाकर दिया. रिपोर्ट के अनुसार इस समूह ने रखाइन के गांवों में रह रहे हिंदुओं को मारापीटा और जो बच गए उन्हें धमकी दी गई कि अगर वे आगे भी जिंदा रहना चाहते हैं तो इस्लाम धर्म कबूल कर लें. हालांकि समूह ने इस कत्लेआम की जिम्मेदारी लेने से इनकार किया था.
लेकिन एमनेस्टी इंटरनेशनल की रिपोर्ट के अनुासर उसकी अपनी जांच में यह बात साबित हुई है कि इस संगठन ने हिंदुओं की हत्या की. अकेले खा मॉन्ग में 20 पुरुष, 10 महिलाएं, 23 बच्चे मारे गए. इसमें 14 बच्चे आठ साल से भी कम उम्र के थे. उसी दिन बॉक क्यार (खा मॉन्ग के करीब एक दूसरा गांव) में 46 हिंदू मर्द लापता पाए गए. खा मॉन्ग में मारे गए 45 हिंदुओं की लाश सितंबर 2017 में चार बड़ी कब्रों से मिली थी जबकि बॉक क्यार से गायब लोगों की लाशें अबतक नहीं मिल सकी हैं.
“उनके हाथों में चाकू और लंबे लोहे के रॉड थे. उन्होंने हमारे हाथ बांध दिए थे. आंखों पर पट्टी बांध दी थी. मैंने पूछा वे हमारे साथ ऐसा क्यों कर रहे हैं. उनमें से एक ने जबाव दिया, तुम और रखाइन सब एक हो बस, तुम्हारा धर्म अलग है. तुम यहां नहीं रह सकते. वह रोहिंग्याओं की भाषा में बोल रहे थे. उन्होंने हमें बहुत मारा,” 22 साल की बीना बाला जो कि एआरएसए की हिंसा में बच गईं थीं, उन्होंने एमनेस्टी को दिए अपने बयान में कहा.
एमनेस्टी ने एआरएसए द्वारा हिंसा की घटना में बच जाने वाले 8 लोगों से बात की. राज कुमारी (18) ने कहा, “उन्होंने हमारे मर्द को मार दिया. हमें बोला गया कि हम उधर न देखें. उनके पास चाकू, फरसा और लोहे के रॉड थे. हमलोग वहां झाड़ में छिप गए थे. मेरे चाचा, बाप और भाई को उन्होंने काट डाला.”
रिपोर्ट का निष्कर्ष
रखाइन स्टेट में रोहिंग्याओं के साथ म्यांमार प्रशासन का पक्षपाती रवैया बहुत पुराना रहा है. एमनेस्टी ने रिपोर्ट के निष्कर्ष में स्पष्टता से लिखा है कि अगस्त 2017 में एआरएसए की हिंसा के बहुत पहले से रोहिंग्याओं के साथ नस्लीय भेदभाव हो रहा है.
चूंकि म्यांमार प्रशासन एमनेस्टी और दूसरे स्वतंत्र जांच एजेंसियों को उत्तरी रखाइन जाने नहीं देती, इसके वजह से पीड़ित समुदायों से संपर्क करने में काफी दिक्कत आती है. बंदिशों के बावजूद, एमनेस्टी यह पूर्ण रूप से मानती है कि एआरएसए हिंसा का जिम्मेदार है और उसने मानवाधिकारों का गंभीर उल्लंघन किया हैं.
न्यूज़लॉन्ड्री ने ऐमनेस्टी की ताजा रिपोर्ट के सिलसिले में उनसे संपर्क साधा है. उन्हें ईमेल से कुछ सवाल भेजे गए हैं. ऐमनेस्टी ने हमारे सवाल अपने शोधकर्ताओं को भेजने की बात कही है. उनका जबाव आने पर हम अपनी स्टोरी अपडेट करेंगे.
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