Newslaundry Hindi
कठुआ कांड और दैनिक जागरण: जब ब्रिटेन के एक अख़बार ने कर ली आत्महत्या
बात 2011 की है. इंग्लैंड का समाज चौंक उठा जब उसे पता चला कि देश का सबसे बड़ा साप्ताहिक अख़बार ‘न्यूज़ ऑफ द वर्ल्ड’ उनकी जासूसी करता है. जांच एजेंसियों ने पाया कि ‘न्यूज़ ऑफ द वर्ल्ड’ के पत्रकार ब्रिटेन के चार हजार से ज्यादा नागरिकों के फ़ोन टैप कर रहे थे यानि गुपचुप तरीके से उनकी निगरानी कर रहे थे.
लोगों की निजी जिंदगी में झांकने का यह काम पत्रकार ख़बर जुटाने के नाम पर कर रहे थे. यह ना सिर्फ ब्रिटिश कानूनों के विरुद्ध था बल्कि घनघोर रूप से अनैतिक भी था. खासकर यूरोप का समाज निजता यानी प्राइवेसी के अधिकारों को बेहद पवित्र और महत्वपूर्ण मानता है. ब्रिटेन में गर्मियों के मौसम आने तक यह मामला इतना गर्म हो गया कि इस अखबार के मालिक रूपर्ट मर्डोक ने अपने इस अख़बार को ही बंद करने का फैसला कर लिया. इस अखबार के 10 जुलाई, 2011 में छपे आखिरी संस्करण में कोई विज्ञापन नहीं छपा. इस तरह 168 साल पुराने अख़बार ने अपने ऊपर ताला लगा लिया.
अख़बार के मालिकों के पास यह विकल्प था कि निजता के अधिकार के हनन के आरोप के खिलाफ मुकदमा लड़ते. लेकिन वे जानते थे कि उन्होंने अनैतिक काम किया है और इसका बोझ इतना भारी था कि वे इसे उठा नहीं पाए. बिना किसी सरकारी या अदालती आदेश के सिर्फ नैतिकता के आधार पर उन्होंने अपना इतना बड़ा अखबार बंद कर लिया. इस तरह एक अख़बार ने अपने कुकर्म की ग्लानि में आत्महत्या का विकल्प चुना. मामला कानूनी से कही ज्यादा नैतिकता का था.
क्या यह सही क़दम था?
2018 की गर्मियों की शुरुआत में एक अलग तरह के मामले ने भारतीय पत्रकारिता जगत में हलचल मचाई. यह घटना भारत के जम्मू-कश्मीर राज्य में कठुआ की है, जहां जनवरी महीने में एक बच्ची की लाश क्षत विक्षत हालत में पाई गई. पुलिस ने 3 महीने की जांच के बाद अप्रैल महीने में चार्जशीट फ़ाइल की. चार्जशीट में आरोपियों पर सामूहिक बलात्कार और हत्या के आरोप लगाए गए. इस बीच देश के सबसे बड़े अख़बार ने अपने पहले पन्ने पर एक दिन यह ख़बर छापी कि ‘कठुआ में बच्ची के साथ दुष्कर्म नहीं हुआ है.’ यह ख़बर नीति और नैतिकता के कई मानदंडों का उल्लंघन करती है.
1. खबर की हेडलाइन भ्रामक है:
खबर का शीर्षक पढ़ने से ऐसा लगता है कि किसी अदालत का कोई फैसला आया है, जिसमें कहा गया है कि बच्ची के साथ बलात्कार नहीं हुआ है. जबकि ऐसा कुछ नहीं हुआ है. अभी ये मामला चार्जशीट के स्तर पर है. पुलिस ने कहा है कि वह सप्लिमेंट्री चार्जशीट भी दाखिल करने वाली है. यानी अभी मामले की सुनवाई भी शुरू नहीं हुई है.
ऐसी हेडलाइन तभी आनी चाहिए जब अदालत अपना फैसला सुना दे. चार्जशीट में अभियुक्तों पर बलात्कार की धारा लगाई गई है, और भारतीय कानून के हिसाब से, अभियुक्तों को खुद को दोषमुक्त साबित करना है और अभियोजन पक्ष को अपने आरोप सिद्ध करने हैं.
प्रेस काउंसिल एक्ट के तहत बनी भारतीय प्रेस परिषद ने जो मानक पत्रकारिता के लिए तय किए हैं उनके मुताबिक अखबारों को अटकलबाजी, अनुमानों या टिप्पणियों को तथ्य की तरह नहीं छापना चाहिए. ऐसी बातों को लिखते समय ध्यान रखा जाए कि लोग इन्हें तथ्यों से अलग पहचान सकें. इस खबर को छापते हुए अखबार ने इन मानकों का पालन नहीं किया है.
2. खबर की हेडलाइन और तथ्य में तारतम्य नहीं है:
ख़बर ये कहीं नहीं बताती है कि अभियुक्तों पर बलात्कार के आरोप नहीं है. यह ख़बर संवाददाता द्वारा चार्जशीट का अपने मन मुताबिक किये गए विश्लेषण पर आधारित है. जैसे कि खबर बताती है कि- ‘इतना है कि बच्ची का हाइमन (योनी की झिल्ली) फटा हुआ है.’
फिर संवाददाता एक डॉक्टर के हवाले से बताता है कि हाइमन किन-किन परिस्थितियों में फट सकता है. लेकिन जिस डॉक्टर के हवाले से ये बात कही गयी है, उसकी पहचान छिपाई गई है और पहचान छिपाने कि कोई वजह भी नहीं बताई गई है. ऐसा लगता है रिपोर्टर ने अपनी बात डॉक्टर के मुंह में डाल दी है.
ऐसी व्याख्या करने का काम जांच एजेंसियों का है जो परिस्थितिजन्य सबूतों तथा अन्य साक्ष्यों के आधार पर निष्कर्ष निकालती है. यह व्याख्या करना पत्रकार का काम नहीं है. इसके अलावा ख़बर में यह भी लिखा गया है कि- ‘बच्ची के गुप्तांग में हल्का खून का धब्बा जरूर है.’ अख़बार का विश्लेषण है कि इसे बलात्कार का सबूत नहीं माना जाना चाहिए क्योंकि ये चोट लगने के कारण भी हो सकता है. यहां अख़बार गलती कर रहा है क्योंकि चार्जशीट में बलात्कार का ये एकमात्र आधार नहीं है.
प्रेस काउंसिल का दिशानिर्देश है कि कोई भी संस्थान अपुष्ट, निराधार, भ्रामक या तथ्यों को तोड़मरोड़ कर पेश नहीं करेगा. अख़बार की जिम्मेदारी है कि तमाम पक्षों को छापा जाए. कोरी अफवाह और अनुमानों को तथ्य की तरह पेश नहीं करना चाहिए. दैनिक जागरण की पूरी ख़बर ही अनुमानों और अटकलों पर आधारित है.
3. अख़बार ने ख़बर और सम्पादकीय के बीच के फर्क को भुला दिया है.
अख़बार ने यह सबकुछ समाचार और रिपोर्टिंग के स्पेस में छापा है. जबकि उसने यहां पर ख़बर देने की जगह अपनी राय जताई है. यही बातें अगर सम्पादकीय पेज पर छपा होता तो फिर भी इसे तकनीकी तौर पर जायज ठहराया जा सकता था. हालांकि तब भी ये अनैतिक और गलत ही होता.
4. इस ख़बर में अख़बार ने दूसरे पक्ष से कोई बातचीत नहीं की.
पूरी ख़बर अभियुक्तों के पक्ष से लिखी गई है. इस मामले में दूसरा पक्ष पुलिस है, या फिर बच्ची के परिवार वाले हैं. संवाददाता यह भी नहीं बताता कि दूसरे पक्ष से बात करने की उसने कोई कोशिश की भी थी या नहीं. किसी भी आधिकारिक पक्ष से बात किये बगैर ही यह ख़बर लिख डाली गयी है. यह भी प्रेस परिषद के मानदंडों के खिलाफ है.
5. न्यायाधीन मामले को प्रभावित करने की कोशिश
प्रेस काउंसिल का निर्देश है कि ऐसी ख़बर न छापी जाए जिससे न्याय प्रक्रिया बाधित होने या उसके किसी तरफ गलत तरीके से झुक जाने की आशंका हो. साथ ही यह भी कहा गया है कि जब मामला अदालत में हो तो उसके बारे में अटकल या अनुमान नहीं लगाया जाना चाहिए. मौजूदा ख़बर में इन मानदंडों का उल्लंघन हुआ है. इस रिपोर्ट में न्याय प्रक्रिया को प्रभावित करने की कोशिश साफ़ नज़र आती है. क्राइम ब्रांच ने कहा है की वह सप्लीमेंट्री चार्जशीट अदालत में दाखिल करने की प्रक्रिया में है. ऐसे समय में जब पुलिस सप्लीमेंट्री चार्जशीट दाखिल करने की प्रक्रिया में है, उस समय कोई भी इस तरह की निर्णायक बात कहना ना सिर्फ गलत है बल्कि कानूनी प्रक्रिया का उल्लंघन भी है.
सवाल उठता है कि ब्रिटेन के एक अखबार ने नैतिकता के नाते जब इतना बड़ा कदम उठा लिया और खुद का प्रकाशन बंद कर लिया तो क्या पत्रकारिता के वे मापदंड भारत में लागू नहीं होते. भारत ने अपनी विधि प्रक्रियाएं और यहां तक कि शासन पद्धति में बहुत कुछ ब्रिटेन से लिया है. लेकिन लगता नहीं है कि हमारी पत्रकारिता ने किसी तरह का मापदंड तय किया है. अन्यथा इस ख़बर के लिए अख़बार को माफी जरूर मांगनी चाहिए थी. दैनिक जागरण ने ऐसा कुछ नहीं किया है जिससे लगे कि उसे अपनी पत्रकारिता पर अफसोस है.
(साभार: फेसबुक वॉल)
Also Read
-
Mandate 2024, Ep 2: BJP’s ‘parivaarvaad’ paradox, and the dynasties holding its fort
-
The Cooking of Books: Ram Guha’s love letter to the peculiarity of editors
-
TV Newsance 250: Fact-checking Modi’s speech, Godi media’s Modi bhakti at Surya Tilak ceremony
-
What’s Your Ism? Ep 8 feat. Sumeet Mhasker on caste, reservation, Hindutva
-
‘1 lakh suicides; both state, central govts neglect farmers’: TN farmers protest in Delhi