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एन एल चर्चा 18: मुख्य न्यायाधीश पर महाभियोग प्रस्ताव, असीमानंद की रिहाई व अन्य
सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा के खिलाफ सात विपक्षी दलों द्वारा महाभियोग लाने का प्रस्ताव, जज लोया की संदिग्ध मौत की जांच की मांग वाली याचिकाओं को सुप्रीम कोर्ट द्वारा खारिज किया जाना, प्रधानमंत्री का विदेश दौरा और वेस्टमिंस्टर सेंट्रल हॉल में उनका साक्षात्कार और मक्का मस्जिद केस के आरोपी असीमानंद समेत सभी आरोपियों को कोर्ट द्वारा बरी किया जाना इस हफ्ते न्यूज़लॉन्ड्री चर्चा के प्रमुख विषय रहे.
चर्चा में शामिल रहे ओपिनियन राइटर आनंद वर्धन, कैच न्यूज़ के असिस्टेंट एडिटर चारू कार्तिकेय और संवाददाता अमित भारद्वाज. चर्चा का संचालन न्यूज़लॉन्ड्री के कार्यकारी संपादक अतुल चौरसिया ने किया.
चर्चा की शुरुआत मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा के खिलाफ विपक्षी दलों द्वारा प्रस्तावित महाभियोग प्रस्ताव से हुई. इस विषय में आनंद वर्धन की स्पष्ट राय थी कि यह असफल होगा. उन्होंने महाभियोग लाने की वजहों के बारे में बताया. आनंद के मुताबिक महाभियोग की दो परिस्थितियां होती हैं या तो अक्षमता या कामकाज में अनियमितता. कांग्रेस पार्टी ने चीफ जस्टिस के खिलाफ अनियमितता के आदार पर आरोप लगाया. है, लेकिन यह सिर्फ आरोप के स्तर पर है. यह साबित नहीं किया हुआ है. आनंद के मुताबिक यह महाभियोग प्रस्ताव राजनीति से प्रेरित है. “सरकारें पांच साल रहती हैं लेकिन संस्थाएं सरकारों के जाने के बाद भी अपना काम करती रहती हैं,” आनंद ने जोड़ा.
चारू ने सातों विपक्षी दलों के प्रस्ताव पर अपनी राय रखते हुए कहा कि कांग्रेस पार्टी भाजपा को हराने की चेष्टा में इस प्रस्ताव को लेकर आई है. दस दिन पहले तक कांग्रेस पार्टी का कहना था कि महाभियोग का प्रस्ताव उसने ठंडे बस्ते में डाल दिया है. फिर अचानक आज वे प्रस्ताव लेकर आ गए. इसका एक सिरा जज लोया की मौत के मामले में एक दिन पहले आया सुप्रीम कोर्ट से भी जुड़ता है.
चारू ने कांग्रेस और विपक्षी दलों के महाभियोग प्रस्ताव पर एकजुटता में कमी की ओर ध्यान दिलाया. उन्होंने कहा, कांग्रेस पार्टी भीतर से इस मसले पर बंटी है. टीडीपी और टीएमसी ने महाभियोग के प्रस्ताव पर हस्ताक्षर करने से इनकार कर दिया है. खुद पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह और वरिष्ठ अधिवक्ता और कांग्रेस नेता अभिषेक मनु सिंघवी ने इस प्रस्ताव पर हस्ताक्षर नहीं किए हैं. जिन सात पार्टियों के हस्ताक्षर करने का जिक्र है, उनके नाम भी स्पष्ट नहीं हैं.
अतुल ने चीफ जस्टिस के ऊपर लग रहे कथित आरोपों की चर्चा की. इस पूरे विवाद की शुरुआत पिछले साल नवंबर महीने में हुई जब पहली बार कुछ वकीलों ने जस्टिस चेलमेश्वर की कोर्ट में रोस्टर संबंधित याचिका दायर की. इस पर मुख्य न्यायाधीश ने हस्तक्षेप करते हुए स्पष्ट किया कि रोस्टर तय करने का अधिकार सिर्फ और सिर्फ चीफ जस्टिस को है. इसके बाद इस साल जनवरी महीने में सुप्रीम कोर्ट के चार वरिष्ठ जजों ने प्रेस कॉन्फ्रेंस की. इस पूरे मामले में मुख्य न्यायाधीश द्वारा बेंच तय करने में किया जा रहा कथित पक्षपात, प्रसाद एजुकेशन ट्रस्ट मामले से उनकी कथित संबद्धता के अलावा जज लोया की कथित संदिग्ध मौत का मामला भी प्रमुखता से जुड़ा.
अतुल के मुताबिक इन परिस्थितियों में लोया मामले का निर्णय आने के एक दिन बाद ही कांग्रेस पार्टी द्वारा महाभियोग प्रस्ताव लाने के निर्णय की राजनीतिक निहितार्थ हर हाल में निकाले जाएंगे और कांग्रेस पार्टी को इससे बचना मुश्किल होगा.
अमित भारद्वाज ने जज लोया मामले के दौरान कोर्ट में घटित घटनाओं का जिक्र करते हुए इस मामले के एक याचिकाकर्ता और अधिवक्ता से हुई अपनी बातचीत का जिक्र किया. उन्होंने बताया कि अगर महाभियोग प्रस्ताव जांच के लिए स्वीकार कर लिया जाता है और कमेटी बैठती है तो मामला सीबीआई के पास जाएगा. उस स्थिति में चीफ जस्टिस के लिए मुश्किलें बढ़ सकती हैं. क्योंकि उनके खिलाफ इतने पुख्ता और पर्याप्त सबूत हैं जिसके आधार पर चीफ जस्टिस की गिरफ्तारी भी हो सकती है. अमित के अनुसार सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस के खिलाफ महाभियोग का प्रस्ताव असाधारण है. उन्होंने जस्टिस चेलमेश्वर के ऑक्सफोर्ड टॉक का जिक्र किया जहां जस्टिस चेलमेश्वर ने कहा था कि मुझे नहीं मालूम मुझे केस क्यों नहीं दिया जाता.
बाकी विषयों को विस्तार से जानने के लिए सुनिए न्यूज़लॉन्ड्री की चर्चा.
पत्रकारों की राय, क्या देखा, सुना या पढ़ा जाय-
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