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टीआरपी की लालसा और पत्रकारिता की कब्र के बीच पुल बनाता न्यूज़ नेशन

ऐसा नहीं है कि नेशन में न्यूज़ का अकाल था. कल यानी शुक्रवार को हिंदुस्तान में बहुत कुछ घट रहा था. नए साल की संध्या से ठीक पहले मुंबई के लोवर परेल इलाके में एक रेस्त्रां में भीषण आग लगी. इस हादसे में 14 लोगों की दुखद मौत हो गई. एक ही दिन पहले संसद ने तीन तलाक बिल पास किया था. दिल्ली की सरकार और उपराज्यपाल के बीच 50 जरूरी सेवाओं को घर के दरवाजे पर उपलब्ध करवाने को लेकर खींचतान जारी थी. कहने का अर्थ है कि ऐसी तमाम ख़बरें थी जो जनहित से जुड़ी थी, नेशन से जुड़ी न्यूज़ थी.

हमारे हिंदी चैनलों के बीच एक किशोरवय चैनल है न्यूज़ नेशन. इसे इतनी ख़बरों के बीच कोई भी ख़बर चैनल के प्राइम टाइम पर विचारयोग्य नहीं लगी. यहां जानते चलें कि चैनल के संपादक अजय कुमार हैं. अजय कुमार इससे पहले आजतक और तब के स्टार न्यूज़ में भी काम कर चुके हैं. तो उन्हीं अजय कुमार के चैनल पर शुक्रवार की शाम प्राइम टाइम में जो कुछ चल रहा था उसे जानना-समझना जरूरी है. यह इसलिए भी जरूरी है कि किस तरह से हिंदी के समाचार चैनल अपनी टीआरपी की लालसा में न सिर्फ ख़बरों की हत्या कर रहे हैं बल्कि अनर्गल ख़बरों को एक प्री स्क्रिप्टेड शो का बायस बना चुके हैं.

यह सारा काम बिग बॉस या अंग्रेजी के शौकीन हैं तो यूट्यूब पर उपलब्ध बिग ब्रदर ज्यादा पेशेवर तरीके से कर रहे हैं. शुक्रवार की शाम न्यूज़ नेशन बेहद भौंडे तरीके से वही सारा काम अपने प्राइम टाइम पर कर रहा था. ख़तरा यह भी है कि चैनल इसे ख़बरों की शक्ल में पेश कर रहा था और संपादक अजय कुमार खुद को एक जिम्मेदार पत्रकार के रूप में संजीदगी का चोला ओढ़े हुए यह सब कर रहे थे.

प्राइम टाइम शो का मुद्दा था दिल्ली में एक कथित बाबा वीरेंद्र देव दीक्षित के आश्रम से बच्चियों की बरामदगी के बाद उसकी फरारी. वीरेंद्र दीक्षित के समर्थन में एक और पाखंडी बाबा ओम सामने आया है. ये वही ओम बाबा है जो बिग बॉस के पिछले सीज़न में हिस्सा ले चुका है. कई मौकों पर इसकी मार-पिटाई के कस्से आम हैं. लब्बोलुआब यह कि एक बदनाम बाबा और उसी तरह के कुछ अनजान धर्माधिकारियों की संगत में अजय कुमार ने प्राइम टाइम पर मजमा लगाया. चैनल ने ओबी से त्रिकाल भंवता नाम की एक साध्वी को भी लाइनअप कर रखा था जो हाथ में त्रिशूल लेकर शिव की भांति जटा सिर पर बांधे कुपित मुद्रा में नज़र आ रही थी. बात-बात पर आहत होने वाली भावनाओं के इस संवेदनशील दौर में एक महिला द्वारा शिव की भंगिमा धारण करने पर किसी की भावना आहत नहीं हुई, यह खुशी की बात है.

कार्यक्रम की शुरुआत ही किसी समझदार व्यक्ति के लिए इसके क्लाइमैक्स का संकेत था. अंत आते-आते तीन तथाकथित संत, बाबा ओम की ओर दौड़े और जवाब में अपनी बदनाम शैली में बाबा ओम ने ऑन एयर कुर्सी उठाकर दूसरे बाबाओं पर तान दी (वीडियो देखें).

चुनांचे बात जो दिल को छू रही थी वह थी चैनल की नैतिक जिम्मेदारी का अहसास. धर्म के नाम पर बदसूरत अट्ठहास कर रही धर्माधिकारियों की मंडली की आवाज़ चैनल जबतब म्यूट में तब्दील होते हुए पीपी के समवेत कोरस में तब्दील हो जा रहा था.

किसका गला 56 इंच का?

इन दिनों हर एंकर और एंकरानियों के सिरमौर अर्नब गोस्वामी हैं लिहाजा इस शो में भी उस स्तर को छूने की कोशिशें की गईं. चूंकि अजय कुमार का स्वर उस पंचम सुर को छूने में असमर्थ है (इसमें कोई बुराई नहीं, पत्रकारिता गला फाड़ने का नाम नहीं है) लिहाजा एक साथी महिला एंकर इस कमी को पूरा करने की रणनीति के तहत साथ में बिठाई गई थी. वो इस दिशा में हाड़तोड़ कोशिश भी कर रही थीं. कह सकते हैं कि उनकी लय अर्नब के टक्कर में थी और शीर्ष पर जाकर सम पर विसर्जित हो जा रही थी.

कार्यक्रम का अंत इसी तरह के कुर्सी उठाने-रखवाने के क्रम में हुआ जिसकी आशंका थी. बाद में अजय कुमार अपनी पत्रकारीय नैतिकता के नाते एक छोटा सा भाषण भी देते हैं कि वे कितने जिम्मेदार पत्रकार हैं और अपने शो पर वो किसी भी तरह की अवमानना को बर्दाश्त नहीं करते.

खबरों को नाटक बनाने का जो कारोबार शुरू हुआ है उसमें अपना हिस्सा पाने की अजय कुमार और न्यूज़ नेशन की यह कोशिश ऐतिहासिक है. साल के अंत और नए साल के आगमन में उन्हें त्रिकाल भवंता का आशीर्वाद मिलता रहे.