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क्या अयोध्या एक किन्नर को मेयर चुनेगा?

भारतीय जनता पार्टी की चिर प्रतिद्वंद्वी समाजवादी पार्टी ने अयोध्या नगर निगम चुनाव में मेयर के पद पर एक किन्नर को टिकट देकर राजनीतिक बहस को ही नया रुख दे दिया है. रविवार शाम को उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव की पार्टी ने गुलशन उर्फ़ बिंदु के नाम की घोषणा की. यह मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ द्वारा अयोध्या में विशाल दिवाली समारोह के बाद हो रहा है. माना जा रहा है कि यह दौरा उत्तर प्रदेश निकाय चुनावों के पहले एक बार फिर से जनता को अयोध्या और राम जन्मभूमि मामले पर गोलबंद करने की कोशिश थी.

हाल में ही योगी आदित्यनाथ की सरकार ने फैजाबाद नगर निगम का विलय अयोध्या नगर निगम के साथ किया था. इसे विपक्षी दलों ने चालाकी भरा राजनीतिक कदम बताया था.

50 वर्षीय गुलशन को मेयर पद का मजबूत दावेदार माना जा रहा है. इसकी एक वजह उनका पूर्व प्रदर्शन भी है. 2012 निकाय चुनावों में उपविजेता रहीं थीं, उस वक्त अयोध्या नगर परिषद का अध्यक्ष पद भाजपा ने महज 4000 वोटों से जीता था. तब उनका नारा था- “ना मुसलमान, न हिंदू, अबकी गुलशन बिंदू”, यह नारा उस समय निर्वाचन क्षेत्र में काफी मशहूर हुआ था.

अगर चुन ली गई तो वे अयोध्या नगर निगम परिषद की पहली किन्नर अध्यक्ष होंगी. उस अयोध्या की जिसे इस देश की बहुसंख्य आबादी भगवान राम शासित अवध की राजधानी मानता है.

हालांकि इस ख़बर को लिखने से पहले बिंदू से बातचीत की कई कोशिशें की गईं पर उनसे संपर्क नहीं हो सका. समाजवादी पार्टी के प्रवक्ता सुनील सिंह साजन ने खबर की पुष्टि करते हुए कहा, “हमने बिंदू को जीतने की संभावना और अन्य राजनीतिक समीकरणों के आधार पर मेयर पद का उम्मीदवार बनाया है. हम एक किन्नर को मौका देकर उदाहरण भी पेश करना चाहते हैं.”

भाजपा ने अबतक अपने उम्मीदवार का एलान नहीं किया है. इसकी वजह पार्टी के भीतर आधा दर्जन महत्वाकांक्षी उम्मीदवारों की कलह को माना जा रहा है. कांग्रेस ने शैलेंद्र मणि पांडेय को अपना उम्मीदवार बनाया है.

दावेदारियों को देखते हुए इस बार अयोध्या के चुनाव को बहुत महत्वपूर्ण माना जा रहा है. बिंदु को उम्मीदवार बनाए जाने से भगवा कैंप सर्तक हो गया है, जिसे इस बार विरोधी लहर का भी सामना करना पड़ेगा.

एक स्थानीय भाजपा नेता ने बताया, “यह हमारे लिए एक तरफ कुंआ और दूसरी तरफ खाई जैसी स्थिति है. पार्टी कई शॉट और लॉन्ग टर्म फायदों के लिए इस बार मेयर पद का चुनाव जीतना चाहती है. हमें डर है कि पार्टी द्वारा टिकट का एलान किए जाने के बाद हमारे कुछ सदस्य गुप्त रूप से बिंदु की मदद कर सकते हैं. त्रिकोणीय मुकाबला होने की वजह से अनुमान लगा पाना मुश्किल हो गया है और किसी भी तरह की चूक पार्टी को भारी पड़ सकती है.”

अयोध्या और फैजाबाद दोनों ही पुराने शहर हैं और पिछले कुछ दशकों से मंदिर विवाद की वजह से चर्चा में रहने के बावजूद विकास के पैमाने पर काफी पीछे हैं.

पर्यटन, स्वास्थ्य, शिक्षा संबंधी ढांचागत कमियां, उद्योगों की कमी और बेहतर जीवनयापन के लिए जरूरी संसाधनों की कमी दोनों ही शहरों की आम समस्या है.

जानकार कहते हैं कि पूर्ववर्ती बहुजन समाज पार्टी और समाजवादी पार्टी की सरकारों ने अयोध्या के लिए कुछ भी नहीं किया और भाजपा की सरकार ने मंदिर मुद्दे को राजनीतिक फायदे के लिए भुनाने के अलावा कुछ नहीं किया. “इसके अतिरिक्त लोग पूर्ववर्ती मेयरों के कार्यकाल से भी नाखुश हैं, इसलिए हो सकता है वे बिंदु पर भरोसा कर उसे अपना समर्थन दें,” अयोध्या के एक स्थानीय निवासी ने कहा.

बिंदु 2014 में बसपा से जुड़ी, बाद में सपा में शामिल हो गईं. वे फैजाबाद के गुलाब बाड़ी में एक छोटे से घर में रहती हैं. इसी क्षेत्र में अवध के नबाव, शुज़ा-उद-दौला का मकबरा स्थित है. स्थानीय लोग बताते हैं कि वे करीब एक दशक पहले अयोध्या में जाकर बस गईं थीं.

“वे भगवान राम की पत्नी सीता के घर बिहार के मिथिला की रहने वाली हैं,” बिंदु के करीबी डॉ. अमरजीत मौर्य बताते हैं. वे अयोध्या और फैजाबाद की प्राचीन इमारतों के संरक्षण के लिए विशेष आर्थिक पैकेज की मांग कर रही हैं. भला हो उनके देश भ्रमण का, उन्हें दर्जनों भारतीय भाषाएं आतीं हैं.

2012 के विधानसभा चुनाव में उनके द्वारा दायर चुनावी हलफनामे में उन्हें शिक्षित और किन्नर के पारंपरिक व्यवसाय से जुड़ा बताया गया है. उन पर कोई भी आपराधिक मुकदमा दर्ज नहीं है. बिंदु के पास कोई अचल संपत्ति नहीं है. उनके पास पांच साल पहले तक 1.8 लाख की चल संपत्ति थी. मेयर पद के लिए अभी तक बिंदु ने नामंकन पत्र दाखिल नहीं किया है.

उत्तर प्रदेश निकाय चुनाव नवंबर के आखिरी सप्ताह में कई चरणों में होंगे. पार्षद और मेयर पदों का नामांकन रविवार से शुरू होने जा रहा है. परिणामों की दृष्टि से 2019 आम चुनावों के पहले यह एक छोटी-मोटी जोर आजमाइश है, इसलिए इसे महत्वपूर्ण चुनाव माना जा रहा है.