Video
‘दाढ़ी, टोपी... तो सवाल भी उन्हीं से होगा..’: जब रिपोर्टिंग छोड़ बदनाम करने पर उतर आए चैनल और पत्रकार
देश की राजधानी दिल्ली अभी सोमवार शाम को लाल किला मेट्रो स्टेशन के पास हुए कार धमाके के सदमे से उबर रही है. हादसे में मरने वालों की संख्या अब 13 तक पहुंच चुकी है. वहीं, कई घायलों का अभी भी अस्पताल में इलाज चल रहा है.
राष्ट्रीय जांच एजेंसी को इस पूरे की जांच सौंप दी गई है. हादसे की असल वजह और स्पष्ट कारणों पर अभी कोई आधिकारिक जानकारी सामने नहीं आई है.
लेकिन इस बीच टीवी समाचार चैनलों और यूट्यूबर्स का एक समूह इस पूरी घटना को सांप्रदायिक रंग देने की कोशिश में जुट गया है. इनके चलते एक पूरे समुदाय पर संदेह पैदा हो रहा है और इस घटना को लेकर भी भ्रामक दावे फैल रहे हैं.
धमाके के कुछ ही वक्त बाद एनडीटीवी के पत्रकारों की एक टीम घटनास्थल पर पहुंची. यहां उन्हें धमाके बाद अवशेषों और सबूतों को छूते देखा गया. वहीं, भुजिया जिहाद जैसे दावे करने वाले सुरेश चव्हाणके भी बगैर किसी ठोस सबूत के ये बताने से नहीं चूक रहे थे कि "असली निशाना" तो लाल किले नहीं बल्कि इसके पास बना गौरी शंकर मंदिर था. रिपब्लिक टीवी का एक रिपोर्टर और इंडिया टुडे ने भी घटनास्थल के पास मंदिर की मौजूदगी पर काफी ज़ोर दिया लेकिन इनमें से किसी ने भी वहीं मौजूद गुरुद्वारे और मस्जिदों का ज़िक्र नहीं किया. नेटवर्क 18 के राहुल शिवशंकर ने तो अपने "रॉ डिस्पैच फ्रॉम माई डेस्क" में एक कदम और आगे बढ़कर ये तक कह दिया कि "आतंक का धर्म होता है."
जी न्यूज तो कश्मीर में कथित संदिग्ध के परिवार को परेशान करते हुए भी देखा गया. जैसे वह परिवार से पूछ रहे थे कि आरोपी किस तरह की किताबें पढ़ता था? धार्मिक किताबें या चिकित्सा संबंधी किताबें?
मंगलवार को जब न्यूज़लॉन्ड्री ने घटनास्थल का दौरा किया तो कैमरे लगातार चल रहे थे, फोन रिकॉर्डिंग कर रहे थे और वहां से लगातार टिप्पणियां हो रही थीं. आस- पास के लोगों का हुजूम गौरी शंकर मंदिर, लाजपत राय मार्केट के सामने जमा था.
यहां यूट्यूबर प्रशांत धीमान भी मौजूद थे. वह "हमारा हिंदुस्तान" चैनल के चेहरा हैं, जिसके 32.3 हज़ार से ज़्यादा सब्सक्राइबर हैं. घटनास्थल से उसकी रिपोर्टिंग में ज्यादातर या तो प्रत्यक्षदर्शियों के बयान थे या समुदाय विशेष पर भद्दी टिप्पणियां थीं. प्रशांत ने विस्फोट के बारे में लगातार सवाल पूछकर मुस्लिम राहगीरों को निशाना बनाया.
जब उनसे पूछा गया कि प्रशांत किसी एक समुदाय को क्यों निशाना बना रहे हैं, तो उन्होंने न्यूज़लॉन्ड्री से कहा, "हम ये नहीं कह रहे कि पूरा मुस्लिम समाज ही दोषी है. लेकिन अब तक जिन भी आतंकवादियों के नाम सामने आए हैं, वे सभी 'इस्लामी टोपी' पहने, दाढ़ी रखते और अपने नाम 'मोहम्मद' से शुरू करते देखे जा सकते हैं, जो एक पैगम्बर है और उसके बाद मुसलमान आते हैं. इसलिए, मुसलमानों से ये सवाल पूछे जाने चाहिए. वो सिर्फ़ इसलिए क्योंकि ब्लास्ट करने वाले उनके जैसे दिखते थे और उनके नाम भी मिलते-जुलते थे."
तभी भीड़ में से एक आदमी ने कहा, "बम आपका धर्म पूछकर नहीं मारता," तो उन्होंने कहा, "लेकिन पहलगाम में लोगों को उनके नाम पूछकर मारा गया."
“ये सवाल मुसलमानों से पूछे जाने चाहिएं. सिर्फ़ इसलिए कि ब्लास्ट करने वाले उनके जैसे दिखते थे और उनके नाम भी मिलते-जुलते थे.” – प्रशांत धीमान, हमारा हिंदुस्तान
ज़मीन पर फैली बेचैनी
सड़क पर आम लोग देश के हिंदी मेनस्ट्रीम मीडिया द्वारा फैलाए जा रहे सांप्रदायिक एंगल से नाखुश हैं. न्यूज़लॉन्ड्री से बात करते हुए 26 वर्षीय सूरज कहते हैं, "फ़िलहाल, मीडिया इसे हिंदू-मुस्लिम मुद्दे में बदल रहा है. नेशनल मीडिया सही जानकारी पेश नहीं कर रहा है. ये स्पष्ट नहीं है कि उनके पास सही स्रोत हैं भी या नहीं... मीडिया का प्रमुख काम सच दिखाना है."
एक अन्य व्यक्ति प्रभात ने न्यूज़लॉन्ड्री को बताया, "वे [मीडिया] हमसे पूछ रहे हैं कि इसमें कौन शामिल हो सकता है, कौन सा समूह या पार्टी? कुछ लोग तो इसे हिंदू-मुस्लिम मुद्दे में बदलने की कोशिश कर रहे हैं, यह कहते हुए कि इसके पीछे हिंदू नहीं, बल्कि मुसलमान हैं, ऐसा सब. लेकिन कोई भी तथ्यों पर बात नहीं कर रहा कि कितने लोग मारे गए हैं, कितने गंभीर रूप से घायल हैं?...ये सब सिर्फ़ अटकलें और अराजकता है."
राकेश सिंह, जो कि एक छोटे स्तर के अभिनेता हैं, उन्होंने जनता की सुरक्षा को लेकर एक ज़्यादा महत्तवपूर्ण सवाल पूछा, जो कि मीडिया को पूछना चाहिए था. उन्होंने कहा, "जब जनता सड़क पर चलती है, तो किसी की सुरक्षा की कोई गारंटी नहीं होती. यही असली मुद्दा है. जब नेता लाल किले पर भाषण देने आते हैं, तो एक महीने पहले से ही सुरक्षा व्यवस्था हाई अलर्ट पर हो जाती है. भाषण खत्म होने तक पुलिस अलर्ट रहती है, हर कोने पर गश्त होती है, नाके और नाके लगाए जाते हैं. लेकिन उसके बाद सब खत्म हो जाता है. अभी ये घटना हुई है लेकिन एक महीने बाद सब इसे भूल जाएंगे."
राकेश आगे कहते हैं, "ज़रा सोचिए, अगर हम अभी यहां खड़े हों और हमारे साथ कुछ हो जाए, तो कौन ज़िम्मेदार होगा? नेताओं की सुरक्षा में कभी कोई चूक नहीं होती, लेकिन आम नागरिकों के साथ ऐसी चूक क्यों होती है?"
काम पर लगे टीवी स्टूडियो
कल रात नोएडा के स्टूडियो में, ब्लास्ट के बाद के घंटों में ब्लास्ट में क्षतिग्रस्त हुई हुंडई i20 कार के असली मालिक को लेकर भारी भ्रम वाली स्थिति बनी रही. यहां तक कि कई चैनलों ने तो इसके मालिक को जानने तक का दावा किया जबकि अभी तक जांच एजेंसियों की ओर से कोई आधिकारिक सूचना नहीं दी गई. रिपब्लिक टीवी जैसे चैनलों के प्रमुखों ने तुरंत पाकिस्तान पर उंगली उठाई और दावा कर दिया कि उसने "भारत की राजधानी पर सीधा युद्ध किया है", जबकि जांच एजेंसियों की ओर से एक बार फिर कोई आधिकारिक पुष्टि नहीं हुई. टीवी-9 भारतवर्ष ने तो एक और ज्यादा अजीबोगरीब कदम उठाते हुए, आधिकारिक जांच शुरू होने से पहले ही, ब्लास्ट पर "विशेषज्ञ विश्लेषण" करने के लिए एक निजी जासूस को ही चैनल पर बिठा कर लिया.
एनडीटीवी
इसके अलावा, एनडीटीवी के एंकर सैयद सुहैल को ब्लास्ट के बाद के घंटों में जिस कार में ब्लास हुआ था उस कार के टुकड़ों को छूते हुए देखा गया. एक्स पर पोस्ट की गई एक क्लिप में, एंकर और उनकी टीम को उस गाड़ी के वाइपर को छूते और विस्फोटक अवशेषों को संभालते हुए देखा गया. जोकि उनके ही अनुसार विस्फोटक अवशेष था. इस तरह उन्होंने महत्वपूर्ण सबूतों के साथ लापरवाही से छेड़छाड़ की. एक्स पर पोस्ट की गई एक दूसरी क्लिप में, वे कार की बॉडी के एक हिस्से के साथ भी छेड़छाड़ करते दिखाई दे रहे हैं. सोशल मीडिया पर यूजर्स ने बुनियादी प्रोटोकॉल का पालन ना करने और घटनास्थल को दूषित करने के लिए उनकी कड़ी आलोचना की.
सुदर्शन न्यूज़
सुदर्शन न्यूज़ के एंकर सागर कुमार ने विस्फोट स्थल के पास स्थित गौरी शंकर मंदिर में लोगों से उनके अनुभवों के बारे में बात की. सागर की कहानी पोस्ट करते हुए चव्हाणके ने पूछा कि क्या गौरी शंकर मंदिर आतंकवादियों के निशाने पर था? जबकि हकीकत ये है कि विस्फोट स्थल के आसपास अन्य धार्मिक स्थल भी मौजूद थे. इसके बाद एक पोस्ट में, उन्होंने स्पष्ट रूप से कहा कि हमले का निशाना मंदिर था ना कि लाल किला. हालांकि, इसके कोई सबूत नहीं हैं.
नेटवर्क 18
नेटवर्क 18 के सलाहकार संपादक राहुल शिवशंकर तो खबरों को सांप्रदायिक रंग देने में माहिर हैं. ब्लास्ट के एक घंटे से भी कम समय में उन्होंने अपने डेस्क से एक्स पर एक "रॉ डिस्पैच" पोस्ट किया, जिसमें दावा किया गया कि "आतंकवाद का धर्म होता है", जबकि अभी तक विस्फोट और इसमें शामिल लोगों के बारे में जानकारी पता लगाने की कोशिश की ही जा रही थी.
वो वीडियो में कहते हैं, "दर्शकों, आतंकवाद का धर्म होता है, और ताज़ा सबूत भारत के पेशेवर हलकों में चल रहे ‘सफेदपोश जिहाद’ के एक खौफनाक खुलासे से सामने आया है." वो आगे कहते हैं, "आतंकवाद के खिलाफ युद्ध, वैचारिक कैदियों को भी सहन नहीं कर सकता. आखिरकार, यहां भारत दांव पर है." बेशक, उन्होंने खुफिया विफलता पर कोई सवाल नहीं पूछा. इसके तुरंत बाद, उन्होंने सीएनएन-न्यूज़18 पर एक प्राइम-टाइम शो का प्रचार एक भड़काऊ शीर्षक के साथ किया, जो था, "'जिहाद' में 'डॉक्टरेट': आतंक का कोई धर्म नहीं होता." यह एक ऐसे मुद्दे को सांप्रदायिक रूप देने की उनकी कोशिश के दोहरापन को दिखाता है जिसकी जांच चल रही है.
इस बीच, उनके ही सहयोगी चैनल न्यूज़18 इंडिया ने यूट्यूब पर लाइव कवरेज चलाया, जिसमें एक थंबनेल था जिसमें चिल्ला-चिल्लाकर बताया गया था कि क्या यह ब्लास्ट लाखों हिंदुओं की हत्या की एक ख़तरनाक साज़िश था. लेकिन यहाँ ये ध्यान रखना भी ज़रूरी है कि मृतकों और घायलों में मुसलमान भी शामिल थे.
ये दोहराना ज़रूरी है कि दिल्ली की मुख्यमंत्री ने लोगों से शांति बनाए रखने और अफ़वाहों से बचने की अपील की है. लेकिन इसके बजाय, कुछ चुनिंदा न्यूज़ चैनल और कंटेंट निर्माता और कुछ नहीं बल्कि केवल मतभेदों को और गहरा कर रहे हैं, और सुरक्षा व ख़ुफ़िया विफलताओं, और किसी भी आतंकी हमले के बाद जवाबदेही जैसे असली सवालों से ध्यान भटका रहे हैं.
इनपुट्स: रिनचेन नोरबू, आस्था सब्यसाची और समर्थ ग्रोवर
मूल रूप से अंग्रेजी में प्रकाशित ख़बर को पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.
Also Read
-
In Pulwama’s ‘village of doctors’, shock over terror probe, ‘Doctor Doom’ headlines
-
6 great ideas to make Indian media more inclusive: The Media Rumble’s closing panel
-
Friends on a bike, pharmacist who left early: Those who never came home after Red Fort blast
-
‘They all wear Islamic topis…beard’: When reporting turns into profiling
-
Axis predicts NDA lead, but fewer seats for BJP this time