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क्लाउड सीडिंग पर वैज्ञानिक नजरिया, क्या कहते हैं पूर्व मौसम महानिदेशक केजे रमेश
दिल्ली में लगातार बढ़ते प्रदूषण से निपटने के लिए दिल्ली सरकार ने आईआईटी कानपुर के साथ मिलकर क्लाउड सीडिंग का प्रयोग किया, हालांकि इसके तीनों ट्रायल नाकाम रहे. क्लाउड सीडिंग क्या है? क्या यह प्रदूषण से निपटने का स्थायी समाधान हो सकता है? इसी मुद्दे पर हमने मौसम विभाग के पूर्व महानिदेशक केजे रमेश से बातचीत की.
सरकार का दावा है कि क्लाउड सीडिंग के बाद दिल्ली में प्रदूषण के स्तर में 6 से 10 फीसदी तक की कमी आई है. इस पर केजे रमेश कहते हैं, “बिना बारिश के प्रदूषण कम होने का सवाल ही नहीं उठता. यदि बारिश नहीं हुई, तो इसका कोई असर नहीं माना जा सकता.”
नोएडा में हुई बारिश पर वे कहते हैं, “जिस सामग्री (मैटेरियल) को क्लाउड के भीतर इंजेक्ट किया गया है, उसका सैंपल बारिश के पानी में मिलना चाहिए. तभी वैज्ञानिक दृष्टि से यह कहा जा सकता है कि बारिश क्लाउड सीडिंग से हुई है.”
अंत में वे स्पष्ट रूप से कहते हैं, “सरकार क्लाउड सीडिंग पर जो भी खर्च कर रही है, वह पूरी तरह पैसों की बर्बादी है.”
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