Report
गुलमोहर पार्क और नीति बाग में फुटपाथ पर कब्जा, कहीं पार्किंग तो कहीं गमले सजे
दिल्ली के गुलमोहर पार्क की एक कोठी के बाहर लगे पौधे दूर से किसी बगीचे जैसे लगते हैं. पहली नज़र में लगता है मानो यह घर नहीं बल्कि किसी पार्क का हिस्सा हो. लेकिन यह नज़ारा दरअसल सार्वजनिक फुटपाथ पर निजी कब्ज़े की तस्वीर है.
गुलमोहर पार्क रेज़िडेंट्स वेलफेयर एसोसिएशन (आरडब्ल्यूए) की अध्यक्ष निरुपमा वर्मा कहती हैं, “यह विशेषाधिकार की समस्या है. जो लोग विशेषाधिकार प्राप्त हैं, वे खुद को हर चीज़ का हक़दार समझते हैं और सार्वजनिक जगह पर भी कब्ज़ा कर लेते हैं.”
दिल्ली का यह इलाका फिल्मों की शूटिंग के लिए भी मशहूर है. पिंक और विकी डोनर जैसी फ़िल्में यहीं शूट हुईं. साथ ही यह कई नामी हस्तियों और नेताओं का ठिकाना भी है. लेकिन गुलमोहर पार्क की शुरुआत उतनी आलीशान नहीं थी. असल में यह दिल्ली की पहली पत्रकार कॉलोनी थी, जिसका नाम यहां की सड़कों पर लगे चमकदार गुलमोहर के पेड़ों से पड़ा.
1960 के दशक में जब पत्रकारों को मामूली वेतन मिलता था और वे सरकारी आवास पाने के पात्र नहीं थे, तब उन्होंने सहकारी समितियां बनाकर दिल्ली विकास प्राधिकरण (डीडीए) से ज़मीन हासिल की. साल 1969 तक यहां 325 प्लॉट सिर्फ़ 35 रुपये प्रति वर्ग गज (यानी 41.87 रुपये प्रति वर्ग मीटर) की दर से आवंटित किए गए. आज उसी कॉलोनी में ज़मीन की कीमत कम से कम 7 लाख रुपये प्रति वर्ग मीटर तक पहुंच चुकी है.
बाहर से देखने पर गुलमोहर पार्क आज भी बेहद आकर्षक दिखता है, साफ-सुथरे घर, सफेद दीवारों पर सजे गमले और हर गेट पर खड़े सुरक्षाकर्मी. लेकिन पैदल चलकर देखिए तो सच्चाई सामने आती है. फुटपाथ गार्ड केबिन, गमलों, ड्राइववे और यहां तक कि निजी बगीचों से घिरे हैं. इस कारण आम पैदल यात्री को लगता है मानो वह किसी के घर में घुसपैठ कर रहा हो.
भारतीय सड़क कांग्रेस ने फुटपाथ की चौड़ाई 1.8 मीटर और ऊंचाई 150 मिलीमीटर से अधिक न रखने की सिफारिश की है. लेकिन गुलमोहर पार्क में इन मानकों का पालन शायद ही कहीं होता है. कई जगह तो फुटपाथ पूरी तरह गायब हैं.
बी-ब्लॉक के बलबीर सक्सेना मार्ग पर घरों के सामने फुटपाथ तो है, लेकिन अक्सर वहां कारें खड़ी रहती हैं. इसके उलट, विंग कमांडर महेंद्र कुमार जैन मार्ग पर अतिक्रमण और भी बढ़ा हुआ है. यहां करीब 50 मीटर सड़क तकरीबन बंद पाई गई. यही नहीं, एक राज्यसभा सांसद के घर के सामने का फुटपाथ भी ड्राइववे, सुरक्षा बूथ और गमलों ने घेर रखा था. सभी अतिक्रमणों की लंबाई गूगल मैप्स से नापी गई है.
न्यूज़लॉन्ड्री ने इस सांसद से उनकी प्रतिक्रिया जानने के लिए संपर्क किया है. जवाब मिलने पर यह रिपोर्ट अपडेट की जाएगी.
बी-ब्लॉक के गेट नंबर 7 से अंदर जाने पर विशालकाय घर नज़र आते हैं, लेकिन फुटपाथ लगभग पूरी तरह गायब हो जाते हैं. यहां तीन गलियों में कम से कम 359 मीटर तक अतिक्रमण फैला हुआ मिला. 30 घरों में बड़े-बड़े गमले और चौड़े ड्राइववे बने हुए हैं, जिनकी वजह से फुटपाथ की ऊंचाई असमान हो गई है और पैदल चलना खतरनाक साबित होता है.
इसी पैटर्न को ए और डी ब्लॉक में भी देखा गया. ए-ब्लॉक के 30 घरों ने करीब 370 मीटर तक और डी-ब्लॉक के 32 घरों ने लगभग 330 मीटर तक सार्वजनिक जगह पर कब्ज़ा कर लिया है. कई घरों ने तो गमलों और छोटे-छोटे पेड़ों की मदद से अपनी बाउंड्री वॉल्स (बाह्य दीवारें) सड़क तक बढ़ा ली हैं.
स्थिति इतनी गंभीर है कि जब सड़क पर दो गाड़ियां आमने-सामने आती हैं तो पैदल चलने वालों को ड्राइववे पर उतरना पड़ता है- बशर्ते वहां पहले से कारें खड़ी न हों.
गुलमोहर पार्क क्लब में बाहरी निवासियों के लिए सदस्यता शुल्क करीब 12 लाख रुपये है, इसके अलावा सालाना फीस भी देनी पड़ती है. लेकिन विडंबना यह है कि क्लब के बाहर भी कम से कम 90 मीटर फुटपाथ पर कब्ज़ा है और वहां कारें खड़ी रहती हैं. आरडब्ल्यूए अध्यक्ष निरुपमा वर्मा भी मानती हैं कि अतिक्रमण हर जगह है, यहां तक कि क्लब के बाहर भी.
फुटपाथ पर कब्ज़े से दूसरी समस्याएं भी पैदा हो रही हैं. आरडब्ल्यूए की महासचिव अनीता धर कौल बताती हैं, “लोगों ने तूफ़ानी पानी की नालियों (स्टॉर्म वॉटर ड्रेन) पर ड्राइववे बना लिए हैं, जिससे कॉलोनी की जल निकासी व्यवस्था पूरी तरह बिगड़ गई है.” उनका कहना है कि पिछले एक साल में एमसीडी को 10 से अधिक शिकायतें दी गईं, लेकिन कोई ठोस कार्रवाई नहीं हुई.
वर्मा कहती हैं, “हमारे पास कानूनी अधिकार नहीं हैं; ज़िम्मेदारी एमसीडी की है, लेकिन समस्या जस की तस बनी हुई है.”
एक स्थानीय निवासी ने न्यूज़लॉन्ड्री को बताया कि अतिक्रमण केवल रिहायशी प्लॉट तक सीमित नहीं है. कॉलोनी के पार्कों के किनारे बने फुटपाथों को भी आसपास के घरों ने बड़े-बड़े गमले रखकर घेर लिया है. डी-ब्लॉक में एक गली में, जो पार्क के पास है, लगभग 140 मीटर फुटपाथ इसी तरह कब्ज़ा कर लिया गया.
नीति बाग में भी वही हाल
गुलमोहर पार्क के ठीक बगल में बसी है एक और नामी कॉलोनी- नीति बाग. यह रिहायशी सोसाइटी सुप्रीम कोर्ट में प्रैक्टिस करने वाले वकीलों ने बसाई थी. सोच यह थी कि क़ानून पेशे से जुड़े लोगों के लिए एक सुव्यवस्थित और आत्मनिर्भर बस्ती बने. दिल्ली विकास प्राधिकरण (डीडीए) ने मकान और केवल सदस्यों के लिए एक विशेष क्लब बनाने के लिए 18.84 एकड़ ज़मीन दी.
यह कॉलोनी 1957 में बनी. फिलहाल यहां कुल 144 मकान हैं. मौजूदा आरडब्ल्यूए सदस्यों के मुताबिक, शुरुआती कई सालों तक यहां औपचारिक एसोसिएशन नहीं थी. कॉलोनी शुरू में केवल वकीलों के लिए थी. लेकिन अब सिर्फ़ 30 फ़ीसदी निवासी ही क़ानून पेशे से जुड़े हैं. समय के साथ ज़्यादातर लोग यहां से चले गए. उनकी जगह बिल्डर और डेवलपर ने नए मकान बना लिए. यहां ज़मीन का न्यूनतम दाम क़रीब साढ़े सात लाख रुपये प्रति वर्ग मीटर है.
लेकिन इस विकास के बावजूद, नीति बाग़ में फुटपाथों पर अतिक्रमण आम है. कॉलोनी तीन ब्लॉकों में बंटी है. न्यूज़लॉन्ड्री ने इनका दौरा किया. हर जगह वही नज़ारा दिखा- लंबी ड्राइववे और गमलों से घिरे फुटपाथ. पैदल चलने वालों के रास्ते बंद पड़े हैं.
ए-ब्लॉक में न्यूज़लॉन्ड्री ने दो गलियों का सर्वे किया, जिनमें कुल 10 घर शामिल थे. यहां लगभग 200 मीटर तक फुटपाथ पर अतिक्रमण पाया गया. बी-ब्लॉक में आठ घरों वाली एक गली में 140 मीटर तक कब्ज़ा था, जबकि दूसरी गली में भी 140 मीटर का अतिक्रमण मिला. यानी कुल मिलाकर बी-ब्लॉक में 280 मीटर तक फुटपाथ घेर लिया गया था.
सी-ब्लॉक में नीती बाग क्लब स्थित है. क्लब की वेबसाइट के अनुसार, एसोसिएट सदस्यता शुल्क 5 लाख रुपये है. लेकिन क्लब के पीछे की सड़क, जो पार्क के सामने पड़ती है, वहां करीब 100 मीटर सड़क पूरी तरह खड़ी गाड़ियों से कब्ज़ा ली गई थी.
आरडब्ल्यूए ने न्यूज़लॉन्ड्री को बताया कि कॉलोनी की कम से कम तीन पिछली गलियों पर मकान मालिकों ने पूरी तरह कब्ज़ा कर लिया है. उन्होंने “गैरकानूनी तरीके से अपनी बाउन्ड्री वॉल बढ़ाकर इन गलियों को पूरी तरह से घेर लिया है.”
सी-ब्लॉक में क्लब के पास की दो गलियों में भी अतिक्रमण साफ दिखता है. छह घरों के सामने एक गली में 70 मीटर और दूसरी गली में 109 मीटर तक ड्राइववे और गमलों ने फुटपाथों को घेर रखा था.
नीती बाग आरडब्ल्यूए की महासचिव पूनम गुप्ता मानती हैं कि अतिक्रमण की समस्या लगातार बनी हुई है, खासकर पार्क के आसपास. लेकिन, वे कहती हैं, “एमसीडी शायद ही कोई कदम उठाती है.” उनका कहना है कि पेड़ों की छंटाई से लेकर स्पीड ब्रेकर बनाने जैसे दूसरे कामों में भी इसी तरह देरी होती है. “हमें इन कामों को पूरा करवाने के लिए बहुत संघर्ष करना पड़ता है.”
गुप्ता के मुताबिक, आरडब्ल्यूए अक्सर अपने फंड से या स्थानीय विधायक के हस्तक्षेप से काम करवाती है, क्योंकि इलाके के पार्षद शायद ही कोई कार्रवाई करते हैं. पार्किंग से जुड़ी दिक़्क़तों को कम करने के लिए आरडब्ल्यूए विचार कर रही है कि जिन निवासियों के पास तीन से ज़्यादा गाड़ियां हैं, उनसे हर साल अतिरिक्त शुल्क वसूला जाए. गुप्ता कहती हैं, “अगर लोग अपनी गाड़ियां ड्राइववे में रखने की बजाय कहीं भी खड़ी करते हैं, तो वे अतिक्रमण कर रहे हैं. इसे हतोत्साहित करने के लिए हम वार्षिक शुल्क लगाने की योजना बना रहे हैं.”
विशेषज्ञों की राय
सीएसआईआर-सीआरआरआई के मुख्य वैज्ञानिक और ट्रैफिक इंजीनियरिंग एवं सेफ्टी डिवीजन के प्रमुख डॉ. एस वेल्मुरुगन कहते हैं, “एमसीडी अतिक्रमण रोकने या कार पार्किंग को नियंत्रित करने के लिए कोई ठोस दख़ल नहीं करती. लोग अक्सर अपने घरों के सामने गमले रख देते हैं या पक्का फर्श बिछा देते हैं, जिससे उनका निजी रास्ता गेट तक बढ़ जाता है. इसका नतीजा यह होता है कि सार्वजनिक जगह पर गैरकानूनी कब्ज़ा हो जाता है और निरंतर फुटपाथ गायब हो जाते हैं.”
वे बताते हैं कि यह समस्या ख़राब शहरी योजना और ढीले प्रवर्तन से पैदा होती है. “उदाहरण के लिए, अब बिल्डिंग अप्रूवल में फ़्लोर एरिया रेशियो को 1 से बढ़ाकर 3.4 या 4.5 तक कर दिया जाता है, लेकिन आसपास के बुनियादी ढांचे पर विचार नहीं किया जाता. यह अनियंत्रित वर्टिकल ग्रोथ समस्या का बड़ा कारण है.”
नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ अर्बन अफेयर्स के पूर्व निदेशक हितेश वैद्य कहते हैं, “दिल्ली में रोज़ाना की एक-तिहाई यात्राएं पैदल होती हैं. लेकिन अतिक्रमण- जैसे चेन, सुरक्षा गेट या खड़ी गाड़ियां खासकर एलीट मोहल्लों में सार्वजनिक पहुंच में बाधा डालती हैं. यह सिर्फ़ कानूनी उल्लंघन नहीं है, बल्कि संवैधानिक अधिकारों का हनन है और कमजोर वर्गों को सार्वजनिक जीवन से बाहर करता है.”
उनका कहना है कि आरडब्ल्यूए या निजी लोग जब फुटपाथों का इस्तेमाल गेट, बैरिकेड या पार्किंग के लिए करते हैं तो यह भारतीय क़ानून और संवैधानिक संरक्षण का उल्लंघन है, साथ ही यह भारत की समावेशी शहरीकरण की अंतरराष्ट्रीय प्रतिबद्धताओं के भी ख़िलाफ़ है. उन्होंने दिल्ली मास्टर प्लान 2041 का हवाला दिया, जिसमें निरंतर, सुरक्षित और सभी के लिए सुलभ पैदल मार्गों के विकास पर ज़ोर दिया गया है. “न्यायिक और नीतिगत आदेशों का यह तालमेल सार्वजनिक रास्तों के किसी भी अनधिकृत निजीकरण को रोकने का स्पष्ट निर्देश देता है.”
गुलमोहर पार्क और नीती बाग, दोनों हौज़ खास विधानसभा क्षेत्र में आते हैं. एमसीडी पार्षद कमल भारद्वाज का कहना है, “हम इन कॉलोनियों में अभियान चलाने की योजना बना रहे हैं. समस्या यह है कि ये रैंप और ड्राइववे 10-15 साल से बने हुए हैं और उस समय कोई शिकायत नहीं हुई थी. अब दिक़्क़तें सामने आ रही हैं, इसलिए इन्हें हटाने की योजना है.”
दिल्ली सरकार शहर की मुख्य सड़कों पर कम से कम 200 किलोमीटर फुटपाथों को सुधारने की योजना बना रही है, लेकिन यह देखना होगा कि इन एलीट कॉलोनियों की आंतरिक गलियों का क्या होगा.
न्यूज़लॉन्ड्री ने एमसीडी साउथ ज़ोन के अतिरिक्त आयुक्त जितेंद्र यादव और एमसीडी के प्रेस एवं सूचना निदेशालय के निदेशक सुमित कुमार से प्रतिक्रिया के लिए संपर्क किया है. जवाब मिलने पर यह रिपोर्ट अपडेट की जाएगी.
मूल रूप से अंग्रेजी में प्रकाशित इस ख़बर को पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.
यह रिपोर्ट हमारे नवीनतम सेना प्रोजेक्ट ‘रईसों की जागीर बनते शहरों के फुटपाथ’ का हिस्सा है, इस प्रोजेक्ट के तहत हम पता लगाएंगे कि किस तरह शहरों की सार्वजनिक जगहें देखते ही देखते रईसों की चारागाह बन जाती हैं, और इसकी कीमत कौन चुकाता है. इस एनएल सेना प्रोजेक्ट को मदद कीजिए ताकि जो जगहें आम लोगों की हैं उन पर उनका हक़ फिर से कायम हो.
Also Read
-
TV Newsance 325 | Indigo delays, primetime 'dissent' and Vande Mataram marathon
-
The 2019 rule change that accelerated Indian aviation’s growth journey, helped fuel IndiGo’s supremacy
-
You can rebook an Indigo flight. You can’t rebook your lungs
-
‘Overcrowded, underfed’: Manipur planned to shut relief camps in Dec, but many still ‘trapped’
-
Since Modi can’t stop talking about Nehru, here’s Nehru talking back