Report
मुस्लिम परिवारों का दावा- ‘बहिष्कार, धमकियों’ की वजह से गांव छोड़ने पर मजबूर होना पड़ा
फहीमुद्दीन अंसारी के लिए ताजी पकी हुई रोटी की खुशबू सिर्फ़ रोज़ी-रोटी नहीं, बल्कि एक विरासत थी. साठ साल पहले उनके पिता पुणे में साइकिल चलाकर पाव, बिस्कुट और केक बेचते थे. अंसारी परिवार ने बाद में पुणे के खूबसूरत मुलशी तालुका के पौड़ गांव में बसकर दो दशक पहले न्यू संगम बेकरी खोली. लेकिन पिछले दो महीनों से यह बेकरी ठंडी पड़ गई है.
60 वर्षीय अंसारी को स्थानीय लोगों ने कथित तौर पर मई की शुरुआत से ही अपनी बेकरी खोलने से रोक दिया. यह घटना एक मुस्लिम युवक द्वारा हिंदू मूर्ति को अपवित्र करने के बाद भड़के सांप्रदायिक तनाव के बाद हुई थी. उन्होंने पुलिस, जिला प्रशासन और यहां तक कि पुणे के संरक्षक मंत्री और उप-मुख्यमंत्री अजित पवार को भी इसको लेकर अलग-अलग शिकायतें दी हैं. लेकिन उसके बारे में उनका कहना है कि उन्हें इसके बदले सिर्फ "खोखले आश्वासन" मिले हैं.
अंसारी की यह पीड़ा पौड़ के दर्जनों अन्य मुस्लिम परिवारों की पीड़ा जैसी ही है, जिनकी आबादी लगभग 3,000 है. न्यूज़लॉन्ड्री से बात करने वाले स्थानीय मुसलमानों के मुताबिक पिछले दो महीनों में तोड़फोड़, धमकियों, बहिष्कार और धंधे बंद करने के दबाव के बाद गांव के 350 मुस्लिम निवासियों में से कम से कम 250 को कथित तौर पर गांव छोड़ने के लिए मजबूर होना पड़ा है.
यह सब कुछ 3 मई को पौड़ के नागेश्वर मंदिर में देवी अन्नपूर्णा की मूर्ति का अपमान करने के आरोप में एक 19 वर्षीय मुस्लिम युवक की गिरफ्तारी के बाद हुआ.
पौड़ के ज्यादातर मुसलमान दशकों से यहां रह रहे हैं, और बेकरी, कबाड़ की दुकान, सैलून और खाने-पीने की दुकानें जैसे छोटे-मोटे व्यवसाय चलाते हैं. गांव में रहने वाले लोगों का कहना है कि कथित धमकियों और सरकारी निष्क्रियता के बीच वे अनिश्चितता के साये में जी रहे हैं.
पिछले दो महीनों में पुलिस को कम से कम 10 शिकायतें मिलने के बावजूद पुलिस कार्रवाई न होने के बारे में पूछे जाने पर, पुणे ग्रामीण के एसपी संदीप सिंह गिल ने कहा, "यह एक संवेदनशील मुद्दा है और हम इसे चरणबद्ध तरीके से सुलझा रहे हैं. शुरुआत में मुलशी तालुका के कई गांवों में पोस्टर लगे थे, जिनमें कहा गया था कि गैर-निवासी मुसलमानों को मस्जिद में नमाज़ पढ़ने की इजाज़त नहीं है. ग्राम पंचायत अधिकारियों के साथ चर्चा के बाद उन पोस्टरों को हटा दिया गया. अब हम पौड़ में गांव के बुजुर्गों और सरोकार रखने वाले ख़ास लोगों के साथ एक बैठक करने की योजना बना रहे हैं, और हम इस मुद्दे का समाधान निकालने के लिए भी प्रतिबद्ध हैं."
पौड़ में कथित धमकियों से पहले मुलशी तालुका के कुछ अन्य गांवों में भी मुसलमानों के आर्थिक बहिष्कार का आह्वान करने वाले पोस्टर लगे थे. कुछ पंचायतों ने पहले ही सार्वजनिक नोटिस जारी कर "बाहरी" मुसलमानों के नमाज़ पढ़ने पर प्रतिबंध लगा दिया था.
‘सरपंच से कई बार संपर्क किया’
फहीमुद्दीन अंसारी ने चार महीने पहले अपनी बेकरी की मरम्मत के लिए 5 लाख रुपये का लोन लिया था. अब उनकी आय शून्य है, लेकिन उन्हें हर महीने 14,000 रुपये की किश्त देनी पड़ती है और गुजारा करने के लिए उन्हें उससे ऊपर अतिरिक्त उधार लेना पड़ता है.
60 वर्षीय अंसारी ने दावा किया, “दो दशक पहले, हमने जमीन खरीदी और यहां अपनी बेकरी बनाई ताकि हमें हर दिन घूमना न पड़े. सब कुछ ठीक चल रहा था, लेकिन अचानक हमारे व्यवसाय बंद हो गए, जबकि हमने कुछ भी गलत नहीं किया. पहले ही दो महीने हो चुके हैं, हम और कितना इंतजार करेंगे? बुनियादी चीजें, खाना और दवाइयां तक मिलना भी मुश्किल हो रहा है.”
अंसारी आगे कहते हैं, “मंदिर में उस जघन्य कृत्य को करने वाले लड़के को सख्त से सख्त सजा मिलनी चाहिए… लेकिन एक इंसान के अपराध के लिए पूरे समुदाय को क्यों दंडित किया जा रहा है? हम दशकों से अन्य ग्रामीणों के साथ यहां शांतिपूर्वक रह रहे हैं. लेकिन अब रातों-रात, हमारे साथ बाहरी लोगों जैसा व्यवहार किया जा रहा है, और हमें अपनी आजीविका बंद करने के लिए मजबूर किया जा रहा है.”
जून में बेकरी को फिर से खोलने की कोशिश करने के लिए अंसारी वहां गए थे. उन्होंने आरोप लगाया, “जब मैं दुकान की सफाई कर रहा था तो तीन युवक आए और पूछा कि मैं वहां क्यों आया हूं. उन्होंने मुझे बेकरी बंद करने को कहा और जाने से पहले एक वीडियो रिकॉर्ड किया. बाद में मेरे भाई को सरपंच का फोन आया और उसने मुझे मिलने के लिए कहा. जब मैंने बताया कि अंदर 2 लाख रुपये का सामान है और खराब हो जाएगा, तो सरपंच ने मुझसे कहा, “अगर 2 लाख रुपये का सामान और खराब हो जाता है, तो भी कोई बात नहीं. लेकिन अगर आप बेकरी खोलते हैं तो इससे और परेशानी हो सकती है.”
पौड़ के सरपंच बाबा अगने ने सारे आरोपों और अंसारी से जुड़ी ऐसी किसी भी घटना की जानकारी से इनकार किया. अगने ने कहा, “मैंने इसके बारे में कुछ नहीं सुना है. लेकिन अगर कोई मुझसे संपर्क करता है, तो मैं कानून के दायरे में जो भी संभव होगा, करूंगा.”
हालांकि, गांव के मुसलमान बाशिंदों ने दावा किया कि उन्होंने कई बार सरपंच से संपर्क किया था. न्यूज़लॉन्ड्री ने उनकी शिकायतों की प्रतियां देखी हैं.
एक सी शिकायतें, हिंदुओं की नौकरियों पर असर
42 वर्षीय रिजवान शेख को जब पौड में 3 मई को कथित तौर पर उनकी न्यू भारत बेकरी को बंद करने के लिए मजबूर किया गया, तब वे अपनी बेटी की शादी के लिए उत्तर प्रदेश में थे. उन्होंने यह भी दावा किया कि उनकी 22 बकरियों में से 18 चोरी हो गईं, और उनकी गैरमौजूदगी में उनकी बेकरी में तोड़फोड़ की गई. उन्होंने पुलिस और जिला कलेक्टर के पास शिकायत दर्ज कराई, लेकिन कोई कार्रवाई नहीं की गई.
बाद में स्थानीय लोगों ने शेख से कहा कि वे तभी दुकान खोल सकते हैं, जब वे गांव के भीतर से ही कामगारों को काम पर रखें. लेकिन उन्होंने दावा किया कि जब उन्होंने दुकान खोली, तब भी उन्हें इसकी अनुमति नहीं दी गई.
उनका दावा है, "मैं हर महीने करीब 50,000 रुपये कमाता था. लेकिन पिछले दो महीनों से मैंने कुछ भी नहीं कमाया है. मैंने अपनी बेटी की शादी के लिए 2.3 लाख रुपये का कर्ज लिया था, जिसे मुझे अभी भी चुकाना है. मेरे बेटे और बेटी को 9वीं और 11वीं की कक्षाएं शुरू करनी थीं, लेकिन मुझे उनसे कहना पड़ा कि वे पढ़ाई छोड़कर घर पर ही रहें. मैं उनकी स्कूल फीस का इंतजाम नहीं कर सका और न ही कोर्स की किताबें खरीद सका."
उनकी पत्नी तरन्नुम ने आरोप लगाया कि उन्हें दूसरे गांव से राशन खरीदना पड़ता है क्योंकि स्थानीय दुकानदार उनके परिवार का बहिष्कार कर रहे हैं.
शेख ने दावा किया, “मैं 11 साल की उम्र से इस गांव में रह रहा हूं. मैं यहीं पला-बढ़ा हूं. हम गरीब थे और मैं गांव में साइकिल चलाकर पाव और बिस्कुट बेचता था. अब अचानक मैं बाहरी हो गया हूं. मेरे हिंदू दोस्त अब भी मुझसे बात करते हैं, लेकिन खुलकर नहीं. वे कहते हैं कि चूंकि मुसलमानों का बहिष्कार किया जा रहा है, इसलिए अगर वे हमारे साथ देखे गए तो उनका भी बहिष्कार किया जाएगा.”
स्थानीय मुसलमानों के बहिष्कार ने कुछ हिंदू कामगारों को भी प्रभावित किया है. मसलन, प्रयागराज के प्रवासी श्रमिक गोपाल भारतीय और विनोद कुमार, जो पौड़ में मोहसिन शेख की रोशन बेकरी में काम करते थे.
32 साल के गोपाल भारतीय ने कहा, "मैं पिछले चार सालों से बेकरी में काम कर रहा था. मोहसिन भाई हमारे खाने-पीने, रहने और तनख्वाह का सारा खर्च उठाते थे. लेकिन जब से बेकरी जबरन बंद हुई है, तब से हम बेरोजगार हैं. अब दो महीने हो गए हैं. शुक्र है कि अपना कारोबार खोने के बाद भी मोहसिन भाई ने इस मुश्किल समय में हमारी आर्थिक मदद की है."
25 वर्षीय विनोद कुमार ने कहा, "आजकल काम मिलना वाकई मुश्किल है. प्रयागराज में हमारे गांव में मेरा पूरा परिवार इसी काम से होने वाली आमदनी पर निर्भर था. अब जब यह काम बंद हो गया है तो हम संघर्ष कर रहे हैं."
‘उन्होंने पहचान पत्र की जांच की’
3 मई को जब भीड़ ने घुसकर कामगारों के पहचान पत्र की जांच की और धमकी दी कि अगर मुसलमान नहीं गए तो वे हिंसा करेंगे, तब शराफत मंसूरी ने अपनी बेकरी बंद कर दी. उन्होंने दावा किया कि 6 मई को जब वही झुण्ड फिर से उनकी बेकरी में घुसा, तो वे अपने परिवार के साथ गांव छोड़कर भाग गए. उन्होंने अपनी पत्नी को उत्तर प्रदेश में अपने मायके भेज दिया, जबकि वे खुद आज पुणे में अपने एक रिश्तेदार के घर पर रह रहे हैं.
उनका परिवार दोस्तों और रिश्तेदारों से पैसे उधार लेकर गुजारा कर रहा है.
मंसूरी का दावा है कि उन्होंने पुलिस, जिला कलेक्टर और अन्य अधिकारियों के समक्ष शिकायत दर्ज कराई है, “पौड़ में मेरा घर है, लेकिन धमकियों के चलते मैं पूरे परिवार के साथ गांव छोड़कर चला गया हूं. मुझे अपनी तीन छोटी बेटियों को पौड़ के एक प्राथमिक विद्यालय से निकालना पड़ा और गांव छोड़ना पड़ा. मुझे नहीं पता कि मैं कब वापस आ पाऊंगा.”
इस बीच कबाड़ी अनवर अंसारी के गोदाम में तनाव बढ़ने के कुछ दिनों बाद कथित तौर पर आग लग गई, जिससे लगभग 20 लाख रुपये का नुकसान हुआ. उन्होंने भी पुलिस में शिकायत दर्ज कराई है और अब वे अपने एक रिश्तेदार के घर पर रह रहे हैं.
उन्होंने आरोप लगाया, “यह सिर्फ़ एक दुकान नहीं थी, यह मेरा जिंदगी भर का काम था. और एक रात में मैंने जो कुछ भी बनाया था, सब जलकर राख हो गया. मुझे नहीं पता कि क्या करना है, या मदद के लिए कहां जाना है. कोई भी आगे नहीं आया. मैं न सिर्फ अपनी आजीविका के लिए, बल्कि अपने परिवार की सुरक्षा के लिए भी डरा हुआ हूं. मैं फ़िलहाल एक रिश्तेदार के यहां रहने के लिए कामशेत चला आया हूं. हमें बिना किसी गलती के निशाना बनाया जा रहा है. ऐसा लगता है कि हम कहीं के नहीं रहे.”
पौड़ में 18 साल तक सैलून चलाने वाले नसीर अंसारी अब बेरोज़गार और गुमसुम होकर अपने भाई के साथ मुंबई में रहते हैं. उन्होंने कहा, “मैं खुद से पूछता रहता हूं, मैंने क्या गलत किया? मुझे उस चीज की सजा क्यों दी जा रही है जिससे मेरा कोई लेना-देना नहीं था? सिर्फ इसलिए कि वह लड़का मुसलमान था? क्या इसका मतलब ये है कि इस देश के सभी मुसलमानों को उसके कामों के लिए दोषी ठहराया जाना चाहिए?”
22 साल से बेकरी का सामान बेचने वाले नईम अहमद अंसारी को जान से मारने की धमकियों के बाद घर छोड़ना पड़ा. वह उत्तर प्रदेश के बिजनौर चले गए हैं, और अपनी बचत व रिश्तेदारों से उधार लेकर अपना गुजारा कर रहे हैं.
उन्होंने दावा किया, "4 मई को कुछ लोग मेरे घर आए और मेरा पहचान पत्र मांगा. उन्होंने मुझसे कहा कि मैं गांव छोड़कर चला जाऊं, नहीं तो मेरी जान को खतरा हो सकता है. मैं हमले के डर से उसी दिन गांव छोड़कर चला गया."
नसीर और नईम ने कोई शिकायत दर्ज नहीं कराई है, लेकिन फहीमुद्दीन, रिजवान और मोहसिन की शिकायतों में उनका नाम शामिल है.
तनाव की स्थिति
न्यूज़लॉन्ड्री ने पहले रिपोर्ट किया था कि कैसे पौड़ के पास नेरे दत्तावाड़ी गांव में “धर्म की रक्षा के लिए एक कदम” कहे जाने वाले प्रस्ताव में गैर-स्थानीय मुसलमानों के आर्थिक बहिष्कार की घोषणा की गई थी. तीन अन्य ग्राम पंचायतों ने “सुरक्षा” की चिंताओं का हवाला देते हुए गांव की मस्जिदों में “बाहरी” मुसलमानों के नमाज़ पढ़ने पर रोक लगाने के लिए सार्वजनिक नोटिस लगाए.
भूकुम गांव में एक ग्राम सभा के प्रस्ताव ने इसके बाद मुस्लिम निवासियों और व्यवसायों पर नज़र रखने, मुसलमानों को संपत्ति की बिक्री या किराए पर देने, और मस्जिदों या दरगाहों पर प्रतिबंध लगाने के लिए एक “मुस्लिम समुदाय नियंत्रण समिति” का गठन किया.
कार्यकर्ता मिलिंद चंपानेरकर ने दावा किया कि एक समुदाय को निशाना बनाने का “पैटर्न”, “आस-पास के गांवों में फैल रहा है”. “अगर अधिकारी तेजी से कार्रवाई नहीं करते हैं, तो यह पुणे के ग्रामीण इलाकों और उससे आगे तक फैल सकता है.”
हमने अजीत पवार के नेतृत्व वाले एनसीपी गुट के विधायक शंकर मंडेकर, जो इस क्षेत्र का प्रतिनिधित्व करते हैं, से इस मामले पर टिप्पणी लेने के लिए सम्पर्क किया, उन्होंने कहा कि उन्हें इस मुद्दे की जानकारी है. “मुस्लिम समुदाय के सदस्यों ने कुछ दिन पहले मुझसे मुलाकात की थी. मैं अभी विधानसभा के चल रहे मानसून सत्र में व्यस्त हूं, लेकिन मैं जल्द ही इसे देखूंगा. मेरी योजना दोनों समुदायों के लोगों को एक साथ लाने और बातचीत के जरिए मामले को सुलझाने में मदद करने की है.”
न्यूज़लॉन्ड्री ने एनसीपी (शरद पवार) की नेत्री सुप्रिया सुले से भी संपर्क किया है, क्योंकि मुलशी तालुका उनके संसदीय क्षेत्र बारामती के अंतर्गत आती है. हमने अजीत पवार से भी संपर्क किया. न्यूज़लॉन्ड्री ने जिला कलेक्टर जितेन्द्र डूडी से कई बार संपर्क करने का प्रयास किया. अगर वे जवाब देते हैं तो उनके जवाबों को इस रिपोर्ट में जोड़ दिया जाएगा.
सामाजिक कार्यकर्ता अज़हर तंबोली ने दावा किया, “पुणे के ग्रामीण क्षेत्र में एक खतरनाक समानांतर सत्ता संरचना, आर्थिक बहिष्कार और अवैध प्रस्तावों के जरिए मुसलमानों को निशाना बना रही है. भुकुम जैसे गांवों ने व्यापार और संपत्ति के लेन-देन को रोकने के लिए तथाकथित मुस्लिम नियंत्रण समितियां स्थापित की हैं… अधिकारियों ने आंखें मूंद ली हैं. अगर ऐसा ही जारी रहा, तो हम अदालत जाएंगे.”
जनता के हक की ऐसी रिपोर्टिंग आसान नहीं होती, वक्त भी लगता है, मेहनत भी. अगर आप चाहते हैं कि सच्चाई सामने आती रहे, तो हमारा साथ दें. आज ही सब्सक्राइब करें, ताकि हम आपके लिए जनहित की और भी कहानियां ला सकें.
Also Read
-
India’s trains are running on luck? RTI points to rampant drunk train driving
-
Is Modi saving print media? Congrats, you’re paying for it
-
98% processed is 100% lie: Investigating Gurugram’s broken waste system
-
SIT files charges against activists in Dharmasthala skull case
-
Standoff at COP30 as conservatives push to equate gender with biological sex