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‘राज्य और माफिया दोनों का डर’: अधिकारी ने की काजीरंगा के पास खनन की गुप्त शिकायत
एक गुमनाम सरकारी अधिकारी द्वारा काजीरंगा राष्ट्रीय उद्यान के पास धड़ल्ले से हो रहे अवैध खनन की शिकायत के करीब पांच महीने बाद सुप्रीम कोर्ट की केंद्रीय सशक्त समिति (सीईसी) ने असम के पुलिस महानिदेशक और मुख्य सचिव को 2019 के खनन प्रतिबंध को सख्ती से लागू कराने का निर्देश दिया है.
अधिकारी ने अपनी पहचान इसलिए नहीं उजागर की, क्योंकि उन्हें सरकार और "खनन माफिया" दोनों से प्रतिशोध का डर था.
शिकायत में लिखा था, "मैं आपको गुमनाम रूप से पत्र लिख रहा हूं क्योंकि मैं एक सरकारी कर्मचारी हूं और मुझे डर है कि राज्य की कार्रवाइयों को उजागर करने के लिए मेरे खिलाफ सख्त कार्रवाई हो सकती है... मुझे यह भी डर है कि यदि खनन माफिया को पता चल गया कि मैंने उनके खिलाफ शिकायत की है, तो मेरी जान को गंभीर खतरा हो सकता है. इसलिए मैं आपसे अनुरोध करता हूं कि भले ही यह शिकायत गुमनाम है, कृपया इस पर कार्रवाई करें."
दिसंबर में लिखी गई इस शिकायत और 30 मई को सुप्रीम कोर्ट में दायर सीईसी की रिपोर्ट में की गई टिप्पणियां इस ओर इशारा करती हैं कि संरक्षणवादियों की यह बात सही थी कि क्षेत्र में अवैध खनन अब भी सरकारी मिलीभगत से जारी है.
यह सब उस समय हो रहा है जबकि सुप्रीम कोर्ट ने उद्यान की दक्षिणी सीमा, वहां की जलधाराओं के जलग्रहण क्षेत्रों और चिन्हित पशु गलियारों में किसी भी प्रकार के खनन और निजी ज़मीनों पर नई निर्माण गतिविधियों पर पूरी तरह रोक लगा दी है.
शिकायत में आरोप लगाया गया कि उद्यान की दक्षिणी सीमा (विशेष रूप से पार्कुप पहाड़ क्षेत्र) में 2019 के प्रतिबंध के बाद अवैध खनन तेज़ी से बढ़ गया. इसमें कहा गया कि अभयारण्य की सीमा के भीतर दर्जनों अवैध खदानें चलाई जा रही हैं और करबी आंगलोंग स्वायत्त परिषद (केएएसी) इन गतिविधियों को अपनी अधिकार सीमा से बाहर जाकर भी सहयोग कर रही है.
शिकायत में कहा गया, “केएएसी की यह कार्रवाई इस ओर संकेत करती है कि वे खनन गिरोह से मिले हुए हैं, जबकि उन्हें राज्य प्राधिकरण के रूप में अपनी संपदा की रक्षा करनी चाहिए थी, न कि उसके नाश की अनुमति देनी चाहिए थी.”
शिकायत में यह भी दावा किया गया कि बोरजुरी जलप्रपात, जो अब खनन क्षेत्र से होकर गुजरता है, उसे जानबूझकर अधिसूचित सीमा क्षेत्र से बाहर रखा गया ताकि खनन हितों को लाभ हो सके.
जैसा कि शिकायत में भी लिखा गया, “इसके अलावा, खनन माफिया ने क्षेत्र में दो पुलों का निर्माण किया ताकि जलप्रपात का पानी बहता रहे और वे आस-पास के क्षेत्रों में काम कर सकें. यह तथ्य यहां संलग्न गूगल अर्थ की छवियों से स्पष्ट रूप से सिद्ध किया जा सकता है.”
शिकायत में 2018 से 2024 के बीच के भू-चिह्नित (जियो टैग्ड) फोटोग्राफ और उपग्रह चित्र शामिल थे, जो खनन से हुए भौगोलिक बदलाव को दर्शाते हैं, साथ ही बोरजुरी जलप्रपात का विवरण भी था.
उल्लंघन जारी, कार्रवाई नाकाफी
मामले की जांच के बाद सीईसी ने 30 मई को सुप्रीम कोर्ट में रिपोर्ट दायर की, जिसमें कहा गया कि कुछ अवैध खदानों ने दोबारा काम शुरू कर दिया है और राज्य की कार्रवाई अब भी अपर्याप्त है.
समिति ने पहले राज्य के प्रधान मुख्य वन संरक्षक (पीसीसीएफ) और डीजीपी से रिपोर्ट मांगी थी और करबी आंगलोंग स्वायत्त परिषद (केएएसी) तथा खनन विभाग सहित संबंधित पक्षों के साथ बैठकें की थीं.
पीसीसीएफ ने फरवरी में दायर एक रिपोर्ट में बताया था कि प्रभावित क्षेत्र में खनन पट्टों को निलंबित कर दिया गया है. लेकिन सीईसी ने मार्च में एक पत्राचार के माध्यम से इस कार्रवाई को अपर्याप्त बताते हुए आलोचना की और कहा कि चूंकि ये पट्टे प्रस्तावित ईको-सेंसिटिव ज़ोन में आते हैं, इसलिए इन्हें पूरी तरह रद्द कर देना चाहिए था.
समिति ने राज्य अधिकारियों को याद दिलाया कि सुप्रीम कोर्ट के 2019 के निर्देशों के अनुसार, इस क्षेत्र में किसी भी नए खनन पट्टे को मंज़ूरी नहीं दी जानी चाहिए.
इस बीच, संविधान की छठी अनुसूची के तहत स्वायत्त वन प्रशासन चलाने वाली केएएसी ने संरक्षित क्षेत्रों में खनन को अनुमति देने से इनकार किया है.
सीईसी को अपनी बाद की रिपोर्ट में परिषद ने दावा किया कि उसने 2018 और 2019 में काजीरंगा के 10 किलोमीटर के दायरे में स्थित 10 खदानों और बोरजुरी जलप्रपात के पास की चार खदानों के परमिट रद्द कर दिए थे और उन्हें बंद करने के नोटिस जारी किए थे.
केएएसी ने यह भी कहा कि 2019 के प्रतिबंध के बाद से कोई भी नया खनन परमिट जारी नहीं किया गया. हालांकि, परिषद ने स्वीकार किया कि दो मामले अब भी गुवाहाटी हाईकोर्ट में लंबित हैं और उन्हें असम लघु खनिज रियायत नियमावली, 2013 के तहत सुलझाया जाएगा.
5 मई 2025 के गुवाहाटी हाईकोर्ट के आदेश ने उन दो मामलों में खनन की अनुमति दी थी, लेकिन सीईसी ने यह इंगित किया कि हाईकोर्ट को सुप्रीम कोर्ट के 2019 के निर्देशों की जानकारी नहीं दी गई थी. इसलिए, सीईसी ने असम वन विभाग और केएएसी को यह मामला तुरंत हाई कोर्ट के संज्ञान में लाने को कहा.
अपनी सिफारिशों के तहत सीईसी ने केएएसी से कहा कि वह अक्टूबर 2025 तक एक जलग्रहण निकासी विश्लेषण रिपोर्ट प्रस्तुत करे, जिसमें पार्क में प्रवाहित होने वाले सभी जलमार्गों का मानचित्रण किया गया हो. जब तक जलग्रहण क्षेत्रों की सीमाओं का सत्यापन नहीं हो जाता, तब तक सीईसी ने केएएसी को इस क्षेत्र में किसी भी नए खनन पट्टे या बसावट की अनुमति देने से रोक दिया.
सीईसी ने परिषद से यह भी कहा कि वह मुख्य सचिव के माध्यम से प्रत्येक तिमाही में स्थिति रिपोर्ट दाखिल करे, जिसमें उल्लंघनों पर की गई कार्रवाई का विवरण हो. पिछले साल, सीईसी को दर्ज एक शिकायत में पार्क के आसपास के जलग्रहण क्षेत्रों में बड़े पैमाने पर हो रहे खनन की ओर इशारा किया गया था.
काजीरंगा के पास अवैध खनन को लेकर चिंता पहली बार 2018 में सामने आई थी जब आरटीआई और वन्यजीव कार्यकर्ता रोहित चौधरी ने काजीरंगा-करबी आंगलोंग क्षेत्र में बड़े पैमाने पर खनन का खुलासा किया था.
इसके जवाब में, नेशनल टाइगर कंजर्वेशन अथॉरिटी (एनटीसीए) ने असम सरकार को एक रिपोर्ट सौंपी जिसमें चेताया गया कि ये गतिविधियां बाघों के आवास, अन्य शिकारी प्रजातियों, शिकार प्रजातियों और वार्षिक बाढ़ के दौरान महत्वपूर्ण वन्यजीव आवाजाही को गंभीर रूप से प्रभावित कर रही हैं. एनटीसीए ने राज्य सरकार से क्षेत्र में सभी खनन, पत्थर निकालने और क्रशिंग गतिविधियों को रोकने का आग्रह किया.
चौधरी की शिकायत के आधार पर, सीईसी ने 2018 में अपनी जांच की और पाया कि वन (संरक्षण) अधिनियम, 1980 के तहत आवश्यक स्वीकृतियों के बिना वन क्षेत्रों में बड़े पैमाने पर अवैध खनन किया जा रहा था.
सीईसी ने रिपोर्ट किया कि करबी आंगलोंग प्राधिकरण द्वारा जारी किए गए खनन परमिट वन्यजीव और पर्यावरण कानूनों का उल्लंघन करते हैं, विशेष रूप से उन महत्वपूर्ण गलियारों में जो काजीरंगा नेशनल पार्क और करबी आंगलोंग पहाड़ियों को जोड़ते हैं.
कई खदानें पारिस्थितिक रूप से संवेदनशील क्षेत्रों (ईको-सेंसिटिव ज़ोन) में नेशनल बोर्ड फॉर वाइल्डलाइफ़ की अनुमति के बिना संचालित हो रही थीं.
रिपोर्ट में चेतावनी दी गई कि ढलानों को काटने के कारण जलधाराओं में गाद भरना, कृषि भूमि का नाश और वन्यजीवों की आवाजाही में बाधा जैसी स्थितियां अपूरणीय पारिस्थितिकीय क्षति पैदा कर सकती हैं.
काजीरंगा राष्ट्रीय उद्यान और उससे सटे करबी आंगलोंग की पहाड़ियां एक महत्वपूर्ण वन्यजीव गलियारा बनाती हैं, जो विशेष रूप से मानसून की बाढ़ के दौरान जानवरों की आवाजाही के लिए जरूरी है.
हालांकि, करबी आंगलोंग क्षेत्र में बड़े पैमाने पर हो रहे अवैध खनन ने इन प्राकृतिक रास्तों को बुरी तरह बाधित कर दिया है, जिससे जानवरों के पारंपरिक ऊंचे क्षेत्रों में शरण लेने की क्षमता बाधित हुई है.
2019 में, जब सुप्रीम कोर्ट ने खनन गतिविधियों पर प्रतिबंध लगाया, तो इन गलियारों में वन्यजीवों की वापसी साफ़ तौर पर देखी गई. उस समय की रिपोर्टों में हाथियों, हिरणों और यहां तक कि बाघों को भी उन इलाकों में देखा गया जहां पहले खदानें चलती थीं.
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