Opinion
एएनआई बनाम कंटेंट क्रिएटर्स: यूट्यूब भारतीय कानून में ‘सेफ हार्बर’ प्रावधानों की अनदेखी क्यों कर रहा है?
पिछले कुछ दिनों से यूट्यूब पर एक घमासान मचा हुआ है, जिसमें कई लोकप्रिय कंटेंट क्रिएटर्स ने समाचार एजेंसी एएनआई पर आरोप लगाया है कि वह उन पर महंगे कॉपीराइट लाइसेंस खरीदने के लिए दबाव डाल रही है. वरना उनका चैनल डिलीट हो जाएगा. यह दबाव कथित तौर पर बिना कॉपीराइट लाइसेंस के एएनआई का कंटेंट का उपयोग करने के कारण बनाया जा रहा है.
वर्तमान में यूट्यूब की कॉपीराइट उल्लंघन को लेकर ‘थ्री-स्ट्राइक’ की नीति है. इसके तहत यदि कॉपीराइट मालिक की अनुमति के बिना उनकी सामग्री का उपयोग किया जाता है तो वह इसे कॉपीराइट हटाने का अनुरोध कर सकता है. इस पर यूट्यूब की कानूनी टीम यह निर्धारित करती है कि कोई वैध मामला है और फिर कॉपीराइट की गई सामग्री का उपयोग करने वाले चैनल को ‘कॉपीराइट स्ट्राइक’ जारी होता है. यदि चैनल को 90 दिनों के भीतर तीन ‘कॉपीराइट स्ट्राइक’ प्राप्त होते हैं, तो यूट्यूब उस चैनल को और उसके सारे कंटेंट को हटा सकता है. ऐसी स्थिति से बचने के लिए कंटेंट क्रिएटर के पास बहुत कम विकल्प होते हैं.
अब तक, कंटेंट क्रिएटर्स अपने बचाव में मुख्य रूप से एक ही तर्क का इस्तेमाल करते आ रहे हैं जिसे ‘फेयर यूज़’ पॉलिसी कहते हैं. यह भारत के कॉपीराइट कानून में अपवाद स्वरूप जुड़ा है, इसकी इजाजत है. यह कंटेंट क्रिएटर्स के लिए एक वैध बचाव हो सकता है, लेकिन कॉपीराइट अधिनियम में 2012 में शामिल किए गए ‘सेफ हार्बर’ खंड पर लोगों ने बहुत कम ध्यान दिया है.
'सेफ हार्बर' खंड क्या है?
कॉपीराउट कानून में शामिल किया ‘सेफ हार्बर’ खंड एक ऐसा प्रावधान है जो कानून के उल्लंघन के बावजूद कानूनी कार्रवाई से काफी हद तक बचाव का रास्ता मुहैया करता है.
अमेरिकी कांग्रेस द्वारा 1998 में लागू किए गए डिजिटल मिलेनियम कॉपीराइट अधिनियम ने इंटरनेट के मामले में तमाम तरह की इंटरमीडियरीज़ प्लेटफॉर्म के लिए ‘सेफ हार्बर’ खंड का प्रावधान किया था. यह उन्हें कॉपीराइट उल्लंघन के दावों से सीमित कानूनी प्रतिरक्षा प्रदान करता है. इस मामले में ‘इंटरमीडियरीज़' सेवा प्रदाता भी है जो उपयोगकर्ताओं (यूजर्स) को इंटरनेट तक पहुंचने, कंटेट को साझा करने और उसको स्टोर करने कि लिए बुनियादी ढांचा मुहैया करवाते हैं. उदाहरण के लिए इंटरनेट सेवा प्रदाता (आईएसपी) और यूट्यूब जैसे प्लेटफॉर्म जो कि तमाम लोगों का कंटेंट शेयर करते हैं, ये इंटरमीडियरीज़ की योग्यता रखते हैं.
1998 में तर्क यह था कि चूंकि ऑनलाइन इंटरमीडियरीज़ के पास अपने यूजर्स की गतिविधियों पर कोई नियंत्रण या जानकारी नहीं थी. इसलिए उन्हें तब तक संरक्षण प्रदान किया जाना चाहिए जब तक कि उन्हें अवैध गतिविधि के बारे में सूचित न कर दिया जाए. इस 'सेफ हार्बर' खंड के बिना, यूट्यूब जैसे प्लेटफ़ॉर्म आर्थिक रूप से सफल नहीं होते क्योंकि तब यूट्यूब अपने उपयोगकर्ताओं द्वारा किए गए कॉपीराइट उल्लंघन का स्वयं भी हिस्सेदार होता. उसे उत्तरदायी ठहराया जा सकता था. उस स्थिति में यह बहुत महंगा सौदा होता, खासकर अमेरिकी संदर्भ में. डीएमसीए (DMCA) कानून प्रभावी होने के बाद बिग टेक कंपनियों की कंटेंट निगरानी संबंधी नीतियां मुख्य रूप से अमेरिकी कानूनों के मुताबिक ही बनाई जाने लगीं.
लेकिन कॉपीराइट कानून स्वभाव से क्षेत्रीय है, इसका अर्थ है कि प्रत्येक देश अपना स्वयं का कॉपीराइट कानून बना सकता है और यह निर्धारित कर सकता है कि इंटरमीडियरीज़ किस हद तक 'सेफ हार्बर' खंड के तहत सुरक्षा मांग सकते हैं.
भारत ने पारंपरिक रूप से सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम, 2001 की धारा 79 के जरिए बहुत सीमित मात्रा मेें 'सेफ हार्बर' सुरक्षा प्रदान किया है. 2012 में इसमें बदलाव कर दिया गया. इसके बाद कॉपीराइट अधिनियम में धारा 52(1)(सी) के रूप में कॉपीराइट उल्लंघन के लिए एक बहुत ही विशिष्ट 'सेफ हार्बर' खंड का प्रावधान कर दिया गया. इस प्रावधान के तहत यूट्यूब को केवल 21 दिनों के लिए विवादित कंटेंट को हटाने का अधिकार है. ताकि इस अवधि के भीतर कॉपीराइट का मालिक कोर्ट से अपने दावे के समर्थन में आदेश ला सके. यदि इस समय सीमा के भीतर न्यायालय से कोई आदेश प्राप्त नहीं होता है, तो यूट्यूब उस कंटेंट को फिर से बहाल कर सकता है.
इस प्रावधान को शब्दश: नीचे दिया गया है:
(सी) इलेक्ट्रॉनिक लिंक, पहुंच या एकीकरण प्रदान करने के उद्देश्य से किसी कार्य या प्रदर्शन का क्षणिक या आकस्मिक भंडारण, जहां ऐसे लिंक, पहुंच या एकीकरण को अधिकार धारक द्वारा स्पष्ट रूप से प्रतिबंधित नहीं किया गया है, जब तक कि जिम्मेदार व्यक्ति को पता न हो या उसके पास यह मानने के लिए उचित आधार न हों कि ऐसा भंडारण गैरकानूनी कॉपी है:
बशर्ते कि यदि प्रतिलिपि के भंडारण के लिए जिम्मेदार व्यक्ति को कार्य में कॉपीराइट के स्वामी से लिखित शिकायत प्राप्त हुई हो, जिसमें शिकायत की गई हो कि ऐसा क्षणिक या आकस्मिक भंडारण उल्लंघन है, तो भंडारण के लिए जिम्मेदार ऐसा व्यक्ति इक्कीस दिनों की अवधि के लिए या जब तक उसे सक्षम न्यायालय से सुगम पहुंच से परहेज करने का आदेश प्राप्त न हो जाए, तब तक ऐसी पहुंच की सुविधा प्रदान करने से परहेज करेगा और यदि इक्कीस दिनों की ऐसी अवधि की समाप्ति से पहले ऐसा कोई आदेश प्राप्त नहीं होता है, तो वह ऐसी पहुंच की सुविधा प्रदान करना जारी रख सकता है;
सीधे शब्दों में कहें तो, यह प्रावधान यूट्यूब को कॉपीराइट उल्लंघन का कानूनी निर्धारण करने के विवादास्पद काम से बचाता है क्योंकि अब उस लागत को कॉपीराइट मालिकों और करदाताओं को वहन करना होगा जिनके टैक्स से अदालतें चल रही हैं. इससे उन्हें कॉपीराइट उल्लंघन का निर्धारण करने के लिए आवश्यक कानूनी टीम में निवेश से छुटकारा मिल सकता है. फिर भी, जैसा कि कॉपीराइट की गई सामग्री के लिए यूट्यूब की तीन-स्ट्राइक नीति को पढ़ने से स्पष्ट है, प्लेटफ़ॉर्म ने भारतीय कॉपीराइट कानून में 'सेफ हार्बर' प्रावधान को अनदेखा कर दिया है, इसके बजाय अमेरिकी डीएमसीए की आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए बनाई गई तीन-स्ट्राइक नीति को जारी रखने का विकल्प चुना है.
यदि यूट्यूब वास्तव में धारा 52(1)(सी) की आवश्यकताओं का पालन कर रहा होता, तो उसे 'तीन-स्ट्राइक' कॉपीराइट नीति का पालन करने की आवश्यकता नहीं होती, जिसके परिणामस्वरूप किसी सामग्री निर्माता के पूरे चैनल को हटाने का खतरा होता. यूट्यूब की 'तीन-स्ट्राइक' कॉपीराइट नीति के खतरे के बिना, एएनआई कंटेंट निर्माताओं के साथ लेनदेन में हासिल बढ़त को गंवा देगा. यह बढ़त न हो और साथ में अदालतों (बहुत अनिश्चित) की मुकदमेबाजी में आने वाला खर्च जोड़ लें तो एएनआई शायद ऐसा कभी नहीं करेगा और तब वह शायद कंटेंट निर्माताओं से उचित मांग करेगा.
ऐसा कहा जाता है कि, यदि कंटेंट निर्माता अपने चैनलों के खिलाफ कार्रवाई को रोकना चाहते हैं, तो वे कॉपीराइट अधिनियम की धारा 60 के तहत उनके खिलाफ आरोपों को 'निराधार' बताते हुए कानूनी राहत मांग सकते हैं. वे यूट्यूब को अपना चैनल हटाने से रोकने के लिए आदेश प्राप्त कर सकते हैं. तब तक के लिए जब तक कि कोर्ट यह निर्धारित नहीं कर लेता कि चैनल वास्तव में कॉपीराइट उल्लंघन के लिए उत्तरदायी हैं या नहीं. वे यूट्यूब पर भारतीय कानून का अनुपालन करने के लिए अपनी 'तीन-स्ट्राइक' कॉपीराइट नीति को संशोधित करने के लिए भी दबाव डाल सकते हैं.
(लेखक क्रिएट, कॉपी, डिसरप्ट: इंडियाज इंटेलेक्चुअल प्रॉपर्टी डिलेमाज़, ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी प्रेस; 2017 के सह-लेखक हैं.)
Also Read
-
TV Newsance 320: Bihar elections turn into a meme fest
-
We already have ‘Make in India’. Do we need ‘Design in India’?
-
Not just freebies. It was Zohran Mamdani’s moral pull that made the young campaign for him
-
“कोई मर्यादा न लांघे” R K Singh के बाग़ी तेवर
-
South Central 50: Kerala ends extreme poverty, Zohran Mamdani’s win