Report
छुट्टियों में रामायण-वेद कार्यशाला: संस्कृति से जुड़ाव या स्कूलों में धार्मिक घुसपैठ
उत्तर प्रदेश के संस्कृति विभाग के अंतर्गत आने वाले अंतरराष्ट्रीय रामायण एवं वैदिक शोध संस्थान, अयोध्या द्वारा राज्य के सभी 75 जिलों को एक पत्र भेजा गया है. इसमें ग्रीष्मकालीन कार्यशाला के आयोजन की बात कही गई है, जिसमें छात्रों को रामायण और वेदों की जानकारी दी जाएगी. इस पहल पर बहस शुरू हो गई है. क्या यह सांस्कृतिक शिक्षा का प्रयास है या सरकारी संस्थानों में धर्म की घुसपैठ है.
5 मई को भेजे गए नोटिस का विषय है- ग्रीष्मकालीन रामायण एवं वेद कार्यशाला के आयोजन के संबंध में.
जानकारी दी गई है कि ग्रीष्मकालीन रामायण एवं वेद अभिरुचि कार्यशाला का आयोजन प्रदेश के सभी 75 जनपदों में किया जाना प्रस्तावित है. इसके अंतर्गत रामलीला कार्यशाला, रामचरितमानस गान एवं वाचन कार्यशाला, रामायण चित्रकला कार्यशाला, रामायण प्ले मॉडलिंग कार्यशाला, रामायण मुख सज्जा एवं हैंडप्रॉब्स, मुखौटा कार्यशाला, वेदगान एवं वेद सामान्य ज्ञान कार्यशाला का आयोजन किया जाना है. जिसकी अवधि 5 से 10 दिनों की होगी.
पत्र में अनुरोध किया गया है कि बच्चों में अपनी संस्कृति के संस्कार पिरोने और कला के प्रति रुचि विकसित करने के लिए विद्यालयों में कार्यशाला आयोजन में समन्वयक समेत प्रबंधकीय सहयोग प्रदान करने हेतु संबंधित को निर्देश प्रदान करने का कष्ट करें.
यह पत्र प्रमुख सचिव, संस्कृति विभाग, उत्तर प्रदेश शासन लखनऊ, निदेशक, संस्कृति निदेशालय उत्तर प्रदेश, जवाहर भवन लखनऊ और सभी 75 जिलों के जिलाधिकारियों को भेजा गया है.
इस नोटिस के संबंध में हमने और ज्यादा जानकारी जुटाने की गरज से जिलों के बेसिक शिक्षा अधिकारियों से संपर्क किया. बरेली के बेसिक शिक्षा अधिकारी (बीएसए) संजय सिंह कहते हैं, “हम गर्मियों की छुट्टियां होते ही स्कूलों में यह समर कैंप लगाएंगे, इनमें हाईस्कूल और इंटर पास जो वॉलिंयर हैं उनकी हमने सूची ली है, इसमें उनका सहयोग लिया जाएगा. इसके अलावा कुछ एनजीओ, हमारे स्कूल के टीचरों, शिक्षामित्रों का भी सहयोग लिया जाएगा.”
उन्होंने आगे कहा, “कार्यक्रम में जिन लोगों की भी मदद ली जा रही है, उनकी एक एनजीओ के माध्यम से पहले ट्रेनिंग होगी. यह ट्रेनिंग 18 तारीख से शुरू हो चुकी है. यह कैंप जूनियर और प्राइमरी दोनों स्कूलों के लिए है.”
हमने उनसे पूछा कि क्या यह कैंप सबके लिए अनिवार्य है? ऐसा पूछने के पीछे हमारा मकसद था स्कूलों में हिंदुओं के अलावा पढ़ने वाले मुस्लिम, सिख और ईसाई धर्मों के छात्रों के बारे में जानना. दूसरे धर्मों के छात्रों के लिए रामायण और वेद की कार्यशालाएं कितना उचित है?
इस पर सिंह कहते हैं, “देखिए, हर किसी को दूसरों के धर्म के बारे में जानना भी जरूरी है, चाहें वह किसी भी कम्यूनिटी के लोग हों. जानेंगे और पार्टिसिपेट करेंगे तो अच्छी बात है. यह सभी बच्चों के लिए अनिवार्य है.”
इसके अलावा हमने अन्य जिलों अमरोहा और बुलंदशहर के बेसिक शिक्षा अधिकारियों से भी संपर्क किया. इन अधिकारियों ने कैंपों के आयोजन की बात तो स्वीकार की लेकिन मौखिक रूप से कोई भी जानकारी साझा करने से इनकार कर दिया.
बेसिक शिक्षा अधिकारी द्वारा भेजा गया नोटिस
समर कैंप के आयोजनों को लेकर हमें बुलंदशहर के बेसिक शिक्षा अधिकारी कार्यालय द्वारा समस्त खंड शिक्षा अधिकारी, ब्लॉक-ग्रामीण/ नगर क्षेत्र, जनपद बुलंदशहर को भेजा गया नोटिस भी प्राप्त हुआ.
प्राप्त नोटिस के मुताबिक, 21 मई से 15 जून के बीच तीन सप्ताह का समर कैंप आयोजित किया जाएगा. समर कैंप की अवधि रोजाना 7:30 से 10:30 तक तीन घंटे की होगी. इसके लिए विद्यालयों के शिक्षामित्रों, अनुदेशकों एवं स्वप्रेरित शिक्षकों की मदद ली जाएगी. समर कैंप में विभिन्न गतिविधियों के आयोजन हेतु समुदाय के स्वप्रेरित स्नातक छात्र छात्राओं, एनसीसी प्रमाण पत्र धारकों का भी सहयोग प्राप्त किया जा सकता है. इसके अलावा शिक्षकों द्वारा स्थानीय स्तर पर सक्रिय स्वैच्छिक संगठनों का सहयोग भी प्राप्त किया जा सकता है. एक समर कैंप के संचालन हेतु 2 कार्मिक (अनुदेशक एवं शिक्षामित्र) नियोजित किया जाएगा.
बुलंदशहर की एक टीचर ने हमें बताया कि कैंप के लिए स्कूलों में तैयारियां चल रही हैं. इसकी जिम्मेदारी शिक्षामित्रों और अनुदेशकों को दी गई है. जिले की एक शिक्षामित्र तरुणा रानी ने भी इसकी पुष्टि की है.
वे बताती हैं कि इस कैंप के लिए हम दो शिक्षामित्रों को जिम्मेदारी दी गई है. उनके अलावा शिक्षामित्र साधना की भी ड्यूटी लगी है. इसके लिए उन्हें 6-6 हजार रुपये दिए जाएंगे.
इस कार्यक्रम का आयोजन मुख्य रूप से अंतरराष्ट्रीय रामायण एवं वैदिक शोध संस्थान, तुलसी स्मारक भवन, अयोध्या की ओर से किया जा रहा है. संस्थान के सलाहकार आशुतोष द्विवेदी से न्यूज़लॉन्ड्री ने बात की.
द्विवेदी के मुताबिक 5 मई को सभी 75 जिलों के बीएसए को लिखे गए पत्र से पहले यह पत्र समर कैंप को लेकर लिख चुके थे. उनकी सलाह के बाद फिर यह पत्र बीएसए को भेजा गया.
वे बताते हैं कि मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ जी का एक इनिशिएटिव था कि सांस्कृतिक माहौल बनाने के लिए विभिन्न तरह के सांस्कृति कार्यक्रम आयोजित हों. हालांकि, लगातार संस्कृति विभाग ऐसा कर रहा है. लेकिन योगी जी का कहना था कि यूपी के सभी 75 जिलों में छोटे बच्चों को भी इससे जोड़ा जाए.
द्विवेदी ने बताया कि इसकी जिम्मेदारी एडूलीडर्स नाम की संस्था को दी गई है. इस संस्था में उत्तर प्रदेश के सरकारी, प्राइमरी और हाईस्कूल के टीचर हैं जो राष्ट्रपति अथवा राज्य सरकार से पुरस्कृत हैं. यह उनकी संस्था या कह सकते हैं कि संगठन है. यह सभी कार्यरत शिक्षक हैं.
इस कार्यक्रम के लिए हमने एक जिले से एक स्कूल को चुना है. बाकी जिले के अन्य 8-10 स्कूलों के बच्चे भी इन कार्यशालाओं में शामिल हो रहे हैं.
वे कहते हैं कि हम सभी स्कूलों में करना चाहते थे लेकिन इसके लिए हम जो मानदेय दे रहे हैं उसमें बजट काफी ज्यादा हो रहा था. इसलिए अभी सिर्फ शुरुआत की गई है. अगली बार हो सकता है कि हम सभी जिलों के सभी स्कूलों में अलग-अलग करें.
“प्रशिक्षण के लिए प्रतिदिन 1000 रुपये और सहायक के लिए प्रतिदिन 500 रुपये दिए जाएंगे. इसके अलावा 5 से 8 हजार रुपये स्कूलों को सामानों के लिए अलग से दिए जा रहे हैं.” उन्होंने कहा.
कुल कितना बजट है? इस पर वे कहते हैं, “हमने सभी 75 जिलों के लिए 24 लाख रुपये का बजट दिया था. जिसे स्वीकार कर लिया.”
क्या सभी बच्चों का आना यहां जरूरी है. क्योंकि स्कूल में तो सभी धर्मों के बच्चे पढ़ते हैं जबकि आपका कार्यक्रम धार्मिक है. इस पर द्विवेदी कहते हैं, “देखिए हम मुस्लिम बच्चों को रामलीला दिखाएंगे और ब्राह्मणों बच्चों को मोहम्मद साहब के जीवन पर आधारित नाटक भी करवाएंगे. ईद से संबंधित कोई नाटक होगा तो उसमें शिवम शुक्ला भी भाग लेगा और रामलीला होगी तो उसमें शाहरूख और फारूख भी भाग लेंगे. मैं बस्ती में एक कार्यक्रम में चीफ गेस्ट बनकर गया था वहां देखा कि बुर्के वाली महिलाएं भी आई थीं तो मैं खुद वहां पर अचंभित था. दो मुस्लिम बच्चों की माएं भी वहां थी जिनका बच्चा बच्चा केवट और लक्ष्मण बने थे.”
भ्रामक और गलत सूचनाओं के इस दौर में आपको ऐसी खबरों की ज़रूरत है जो तथ्यपरक और भरोसेमंद हों. न्यूज़लॉन्ड्री को सब्सक्राइब करें और हमारी भरोसेमंद पत्रकारिता का आनंद लें.
Also Read
-
Long hours, low earnings, paying to work: The brutal life of an Urban Company beautician
-
Why are tribal students dropping out after primary school?
-
TV Newsance 304: Anchors add spin to bland diplomacy and the Kanwar Yatra outrage
-
How Muslims struggle to buy property in Gujarat
-
‘Opaque editorial decisions, by design’: BBC staff’s open letter on Israel-Palestine coverage