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ऑपरेशन सिंदूर: कूटनीतिक संदेश लेकिन आतंकवाद पर आखिरी चोट नहीं
पाकिस्तान और पाक अधिकृत जम्मू- कश्मीर (पीओके) में स्थित 9 आतंकी ठिकानों पर एक के बाद एक 24 सटीक हमले. 25 मिनट के इस हाई-प्रोफाइल सैन्य मिशन को ‘ऑपरेशन सिंदूर’ का नाम दिया गया. इसे बीते 22 अप्रैल को पहलगाम में हुए आतंकी हमले की जवाबी कार्रवाई कहा जा रहा है. इस हमले में कुल 26 लोगों की मौत हो गई थी.
पहलगाम के हमले में अपने पतियों को खोने वाली महिलाओं को श्रद्धांजलि के रूप में इसे ‘ऑपरेशन सिंदूर’ का नाम दिए जाने और इस सैन्य कार्रवाई के बाद भारत में पहली प्रेसवार्ता का नेतृत्व दो महिला अधिकारियों द्वारा किए जाने के निर्णय को भारत की तरफ से पाकिस्तान के लिए मजबूत रणनीतिक संकेत के रूप में देखा जा रहा है.
प्रेसवार्ता की शुरुआत में विदेश सचिव विक्रम मिस्री ने कहा, ‘भारत की ओर से की गई ये कार्रवाई नपी-तुली, नॉन एस्कलेटरी यानि गैर भड़काऊ, अनुपातिक और जिम्मेदारीपूर्ण है. यह आंतकवाद के इंफ्रास्ट्रक्चर को समाप्त करने और भारत में भेजे जाने वाले संभावित आतंकवादियों को अक्षम बनाने पर केंद्रित है.’
सेना की कर्नल सोफिया कुरैशी ने कहा कि भारतीय सेना, नौसेना और वायु सेना ने बुधवार को सुबह 1.05 बजे से 1.30 बजे के बीच आतंकवादी शिविरों को सफलतापूर्वक नष्ट किया. खुफिया सूचनाओं के आधार पर इन लक्ष्यों का चयन किया गया था. इस बात का खास ख्याल रखा गया निर्दोष नागरिकों और सिविलियन इंस्टॉलेशन को नुकसान ना पहुंचे.
विंग कमांडर व्योमिका सिंह ने भी यही बात दोहराई और कहा, ‘किसी भी सैन्य ठिकाने पर हमला नहीं किया गया और न ही किसी भी नागरिक की जान को नुकसान पहुंचाया गया.’
पीओके में मुजफ्फराबाद, कोटली और भिम्बर जिलों में पांच स्थानों पर कई हमले किए गए. जिसमें लश्कर-ए-तैयबा (एलईटी) और जैश-ए-मोहम्मद (जेईएम) के प्रशिक्षण शिविरों को निशाना बनाया गया.
पाकिस्तान के पंजाब प्रांत में सियालकोट, मुरीदके और बहावलपुर में चार अन्य स्थानों पर हमला किया गया. यहां लश्कर और जैश के मुख्यालय, मदरसे और हिजबुल मुजाहिदीन समूह के एक प्रशिक्षण शिविर को निशाना बनाया गया.
पाक अधिकृत जम्मू-कश्मीर में इन ठिकानों को बनाया निशाना
सवाई नाला कैंप, मुजफ्फराबाद
सैयदना बिलाल कैंप, जाफराबाद
कोटली गुलपुर
बरनाला कैंप, भिम्बर
अब्बास कैंप, कोटली
पाकिस्तान में इन ठिकानों को बनाया निशाना
सरजल कैंप, सियालकोट
महमूना जोया, सियालकोट
मरकज़-ए- तैयबा, मुरीदके
मरकज़ सुभान अल्लाह, बहावलपुर
नॉन कॉन्टैक्ट वारफेयर
सैन्य अधिकारियों ने बताया कि नियंत्रण रेखा (एलओसी) के पास पीओके में स्थित आतंकवादी शिविरों के अलावा, 1971 के बाद यह पहली बार है कि बिना जमीनी सुरक्षाबलों को तैनात किए या सीमा पार किए पंजाब के अंदरूनी इलाकों में सैन्य हमले किए गए हैं.
लेखक और सेवानिवृत्त ब्रिगेडियर विवेक वर्मा ने कहा कि अंतरराष्ट्रीय सीमा से 100 किलोमीटर दूर बहावलपुर तक लंबी दूरी की मिसाइलों से किए गए हमले सशस्त्र बलों द्वारा गतिज गैर-संपर्क युद्ध यानि काइनेटिक नॉन-कॉन्टैक्ट वारफेयर की रणनीति के इस्तेमाल को दर्शाते हैं.
उन्होंने आगे कहा, ‘हम सालों से कहते आ रहे हैं कि पाकिस्तान को आतंकवाद के रास्ते बंद कर देने चाहिए. इसलिए इन हमलों में सिर्फ केवल गैर-सरकारी तत्वों (नॉन स्टेट एक्टर्स) और उनके बुनियादी ढांचे को ही मिसाइलों के जरिए सटीकता से निशाना बनाया गया वो भी बिना नियंत्रण रेखा पार किए.’
वर्मा ने कहा कि ‘नॉन-एस्कलेटरी, नॉन-कॉन्टैक्ट अप्रोच’ इस मामले को ज्यादा बढ़ने से रोकने और सैन्य कर्मियों की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए जरूरी थी. यह रणनीति वर्तमान में प्रचलित उस वैश्विक प्रवृत्ति से प्रेरित है, जिसका इस्तेमाल इन दिनों राज्य, आतंकवादी या उग्रवादी समूहों द्वारा किया जा रहा है.
बीते साल अक्टूबर में, ईरान ने गाजा पर आक्रमण के जवाब में इजरायल के अंदर 200 मिसाइलें दागीं, वो भी बिना जमीन पर कोई सैनिक तैनात किए. इसी तरह, सऊदी अरब भी बिना किसी जमीनी सुरक्षाबल को शामिल किए यमन में मिसाइल हमलों के जरिए हूतियों से लड़ रहा है.
साल 2019 में बालाकोट एयर स्ट्राइक के दौरान भारतीय वायुसेना ने मनसेहरा जिले में जैश-ए-मोहम्मद के शिविर पर बमबारी की. इस दौरान विंग कमांडर अभिनंदन का मिग-21 बाइसन लड़ाकू विमान निशाना बना और वे गलती से दुश्मन के इलाके में उतर गए.
वर्मा ने कहा कि इस बार सुरक्षाबल अपने जवानों को खतरे में डाले बिना ‘शूट एंड स्कूट’ ऑपरेशन को अंजाम देने में सक्षम थे. ‘शूट एंड स्कूट’ एक सैन्य रणनीति होती है, जिसमें एक लक्ष्य पर हमला किया जाता है और दुश्मन के जवाबी हमले से बचने के लिए जगह बदल ली जाती है.
पंजाब, भारत के खिलाफ जिहाद का केंद्र
दिल्ली पॉलिसी ग्रुप के रिसर्च एसोसिएट श्रेयस देशमुख का कहना है कि आतंकी समूहों के बुनियादी ढांचे को ध्वस्त करने के लिए पाकिस्तान स्थित पंजाब प्रांत को निशाना बनाना महत्वपूर्ण था.
कश्मीर और अफ़गानिस्तान का नाम लेकर जिहाद के नाम पर शामिल किए ज़्यादातर पाकिस्तानी आतंकवादी पंजाब से ही आते हैं.
मुरीदके में लश्कर-ए-तैयबा का मुख्यालय और बहावलपुर में जैश-ए-मोहम्मद का अड्डा ऐसे विशाल परिसर हैं, जहां स्थित मकतब और मदरसों में वैचारिक प्रशिक्षण दिया जाता और इनका इस्तेमाल भर्ती के केंद्र के रूप में भी होता है.
बीबीसी ने एक रिपोर्ट में कहा कि जैश-ए-मोहम्मद के प्रमुख मसूद अजहर की ओर से जारी बयान में दावा किया कि बहावलपुर में सुभान अल्लाह मस्जिद पर हमले में उसके परिवार के 10 सदस्य और चार करीबी सहयोगी मारे गए.
देशमुख ने कहा, ‘पंजाब प्रांत ही मुख्य रूप से कश्मीर केंद्रित आतंकी समूहों का प्राथमिक केंद्र है. यहां भारत विरोधी भावनाएं प्रबल हैं. इन समूहों को सहायता देने के लिए यहां बुनियादी ढांचा भी है. इसके अलावा स्थानीय लोगों से ज़कात और ईद के दान के रूप में आर्थिक सहायता भी मिलती है, जिससे ये सब चलता रहता है.’
शोधकर्ताओं का कहना है कि पंजाब के अन्य जिले जैसै गुजरांवाला, सरगोधा और झंग भी भारत में घुसपैठ करने और हमले करने के लिए आतंकवादियों को प्रशिक्षण देने और कट्टरपंथी बनाने के केंद्र बने हुए हैं.
रिटायर्ड लेफ्टिनेंट जनरल (डॉ) राकेश शर्मा ने कहा कि मुरीदके, बहावलपुर और मुजफ्फराबाद बीते दो दशकों से अधिक समय से वैध रूप से निशाना रहे हैं लेकिन अभी यह कहना जल्दबाजी होगी कि यहां हमला करने से आतंकवाद खत्म हो गया है.
उन्होंने कहा कि बालाकोट जैसी सर्जिकल स्ट्राइक्स की डर पैदा करने वाली ताकत सीमित होती है.
लंबे वक्त तक की धमकी या एक लंबा युद्ध?
बालाकोट हमले और 2019 में जम्मू-कश्मीर के विशेष दर्जे को समाप्त करने (धारा 370 हटाने) के बाद यहां आतंकवादी गतिविधियों में कमी तो आई लेकिन वे रुकी नहीं.
आईडीएसए के सीनियर फेलो और लंबे समय से पाकिस्तान पर नज़र रखने वाले अशोक बेहुरिया ने कहा कि पाकिस्तान के आतंकी समूहों को समर्थन देने के इतिहास को देखते हुए कहा जा सकता है कि ‘ऑपरेशन सिंदूर’ जैसी सैन्य कार्रवाइयों से उसके स्थायी रूप से रुकने की संभावना नहीं है. हालांकि, घुसपैठ और हमलों में कुछ समय के लिए कमी आ सकती है लेकिन जब परिस्थितियां अनुकूल होंगी तो इनके फिर से शुरू होने की संभावना है.
उन्होंने कहा, ‘आतंकवाद ऐसा राक्षस है जिसके कई सिर हैं. यह एक सस्ती रणनीति है जिसे कुछ देशों की सरकारें अपनाती हैं, और यह बार-बार भारत के हितों को नुकसान पहुंचाने के लिए लौट आता है. अफगानिस्तान में तालिबान और सीरिया की सरकार विरोधी ताकतों ने जिहादी ताकतों की सत्ता पर पकड़ को वैधता दी है. पाकिस्तान के लिए आतंकवादी समूहों को अपनी शक्ति व्यवस्था से अलग करना मुश्किल है.’
कई विश्लेषकों और सेना से जुड़े वरिष्ठ लोगों ने भी यही बात दोहराई है कि कश्मीर पर पाकिस्तान के ज़ोरदार दावों और भारत को 'हज़ार घावों' से नुकसान पहुंचाने की उसकी नीति को देखते हुए, भारत को एक दीर्घकालिक और लचीली रणनीति अपनानी चाहिए. भारत को समय-समय पर दबाव बनाए रखते हुए, कूटनीतिक, राजनीतिक और आर्थिक तरीकों का इस्तेमाल करना चाहिए, और साथ ही अपनी सैन्य तैयारियों को भी लगातार मज़बूत और आधुनिक बनाते रहना चाहिए ताकि इस्लामाबाद को रोका जा सके.
पुलवामा हमले के समय पाकिस्तान में भारत के उच्चायुक्त रहे अजय बिसारिया ने कहा कि बालाकोट स्ट्राइक के ज़रिए भारत ने आतंकवादी ठिकानों को निशाना बनाकर एक मज़बूत संदेश देना चाहा था, जिससे दुश्मन को रोका जा सके, और साथ ही यह एक तनाव कम करने वाला कदम भी था. इस बार ‘ऑपरेशन सिंदूर’ के माध्यम से भारत ने उस डर को दोबारा कायम किया है, जो पाकिस्तान के आंतरिक संकट के चलते कमज़ोर पड़ गया था.
पाकिस्तान इस वक्त आंतरिक तौर पर गंभीर राजनीतिक अस्थिरता और आर्थिक संकट से जूझ रहा है. महंगाई चरम पर है और विदेशी कर्ज लगातार बढ़ रहा है. 2023 में पूर्व प्रधानमंत्री इमरान खान की भ्रष्टाचार के आरोप में गिरफ्तारी के बाद देश गहरे संकट में डूब गया. हाल ही में उन्हें 14 साल की सजा सुनाई गई है. इसके बाद पाकिस्तान मुस्लिम लीग-नवाज़ के शहबाज शरीफ़ प्रधानमंत्री बने. हालांकि, उनकी सरकार को कमजोर और सेना के प्रभाव में माना जा रहा है, और नीति निर्धारण में उसकी स्वतंत्रता पर सवाल उठते हैं.
पिछले महीने ओवरसीज पाकिस्तानी सम्मेलन में सेना और राजनीतिक नेतृत्व के बीच तनाव साफ दिखा. यहां शहबाज शरीफ़ की चुप्पी दिखी तो पाकिस्तान के सेनाध्यक्ष जनरल असीम मुनीर ने कश्मीर को इस्लामाबाद की 'शिरा' (जगुलर वेन) बताया.
मुनीर ने पाकिस्तानियों को द्वि-राष्ट्र सिद्धांत (टू नेशन थ्योरी) की याद दिलाई और कश्मीर को 'आजाद' कराने की लड़ाई में समर्थन देने की बात कही.
पहलगाम हमले को भी जनरल मुनीर की इस भड़काऊ बयानबाज़ी और सेना से प्रेरित प्रतिक्रिया के तौर पर देखा गया.
बिसारिया ने कहा कि पाकिस्तान अब ऐसा कुछ कर सकता है जिससे यह लगे कि उसने 'ऑपरेशन सिंदूर' से भी एक कदम आगे बढ़कर कुछ किया है. उन्होंने चेतावनी दी कि अब चुनौती उस अगले स्तर के तनाव को संभालने की होगी और यह संकट-कालीन कूटनीति की एक असली परीक्षा भी साबित होगी.
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