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प्रयागराज: कुंभ का पानी नहाने लायक नहीं, रिपोर्ट में मानव मल की अति का जिक्र
महाकुंभ में स्नान के लिए लोगों की भारी भीड़ हर रोज प्रयागराज पहुंच रही है. लोग घंटों-घंटों पैदल चल रहे हैं. इस बीच कहीं भगदड़ में लोग मारे भी जा रहे हैं. बावजूद इसके लोगों का प्रयागराज जाना जारी है. इसी दौरान केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) े राष्ट्रीय हरित प्राधिकरण (एनजीटी) को एक रिपोर्ट सौंपी है. इसके मुताबिक, कुंभ के दौरान नदी का पानी नहाने लायक नहीं बचा है.
रिपोर्ट के मुताबिक, कुछ स्थानों पर, फीकल कोलिफॉर्म (जो मानव मल के पानी में मौजूद होने का संकेत है) का स्तर सुरक्षित सीमा से 13 गुणा अधिक था.
बीती 28 जनवरी को दिल्ली प्रदूषण नियंत्रण कमेटी (डीपीसीसी) ने उत्तर प्रदेश प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड को एक पत्र लिखा. इसमें बताया गया कि महाकुंभ मेला, 2025 के दौरान प्रयागराज में गंगा नदी के पांच और यमुना नदी के दो घाटों पर पानी की जांच की गई. यह जांच 12 से 15 जनवरी और 19 से 20 जनवरी, 2025 तक की गई.
बता दें कि कुंभ की शुरुआत 13 जनवरी को हुई है, यह 26 फरवरी तक चलेगा.
डीपीसीसी ने अपनी जांच के बाद पाया कि गंगा नदी के चार स्थानों (श्रृंग्वेरपुर घाट, शास्त्री ब्रिज से पहले, संगम, डीहा घाट) और यमुना नदी पर दो स्थानों (पुराना नैनी ब्रिज एवं संगम पर गंगा नदी के संगम से पहले) पर बायोकेमिकल ऑक्सीजन डिमांड यानि बीओडी स्नान के लिए प्राथमिक जल गुणवत्ता मानदंडों के अनुरूप नहीं है. सिर्फ लॉर्ड कर्जन पुल पर ही पानी नहाने के लायक पाया गया.
मालूम हो कि बीओडी एक सामान्य जैविक परीक्षण है, जो दिए गए जल नमूने में मौजूद घुलित ऑक्सीजन की कुल मात्रा को मापने के लिए किया जाता है.
वहीं, फीकल कोलीफॉर्म की मात्रा इस दौरान इतनी ज्यादा थी कि पानी स्नान करने लायक नहीं था.
डीपीसीसी के आंकड़े बताते हैं कि फीकल कोलीफॉर्म की मात्रा 100 मि.ली. में 2500 एमपीएन से ज्यादा नहीं होना चाहिए. जबकि यहां लिए गए नमूनों में इसकी मात्रा कभी 23000 तो कभी 33000 एमपीएन तक दर्ज की गई.
मालूम हो कि फीकल कोलीफॉर्म एक नुकसानदायक बैक्टीरिया है, जो इंसानों और जानवरों के मल से बनता है. इससे कई तरह की बीमारियां फैलने की संभावना होती है. डीपीसीसी की ये रिपोर्ट 28 जनवरी को तैयार की गई थी. इसे अब एनजीटी में दायर किया गया है. एनजीटी, प्रयागराज में गंगा और यमुना के जल की गुणवत्ता पर सुनवाई कर रहा है.
याचिकाकर्ता सौरभ तिवारी ने आरोप लगाया था कि 8 किलोमीटर के दायरे में 50 नाले गंदे पानी को नदियों में मिला रहे हैं और 10 सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट (एसटीपी) सही तरीके से काम नहीं कर रहे हैं.
जिसके बाद 12 दिसंबर 2024 को एनजीटी ने यूपीपीसीबीऔर सीपीसीबी से जल गुणवत्ता की निरंतर निगरानी करने का निर्देश दिया था.
गंगा के जल गुणवत्ता जांच के लिए स्थानों में श्रृंग्वेरपुर घाट, लॉर्ड कर्ज़न ब्रिज, नागवासुकी मंदिर, संगम और डीहा घाट शामिल हैं. वहीं, यमुना नदी से पानी के नमूने पुराने नैनी ब्रिज और संगम से पहले के स्थान से लिए गए थे.
रिपोर्ट में बताया गया है कि बड़ी संख्या में लोगों के आने की वजह से फीकल कोलिफॉर्म का स्तर बढ़ा है. रिपोर्ट में लिखा है, "प्रयागराज में महाकुंभ मेला के दौरान बड़े पैमाने पर लोग स्नान कर रहे हैं, जिसमें शुभ स्नान दिवस भी शामिल हैं, जिससे पानी में फीकल कोलिफॉर्म का स्तर बढ़ गया है."
पर्यावरण विशेषज्ञ हिमांशु ठाकुर ने कहा कि अगर ऐसा है तो फिर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ लोगों को संगम में स्नान करने के लिए क्यों आमंत्रित कर रहे हैं. उन्होंने कहा, ‘मुख्यमंत्री, प्रधानमंत्री और अन्य मंत्री लोगों को कुम्भ में आने के लिए आमंत्रित कर रहे हैं, उन्हें यह सुनिश्चित करना चाहिए था कि लोग ऐसे नदी में स्नान करें जिसका पानी नहाने के लायक हो.’
विशेषज्ञों ने सीपीसीबी के आंकड़ों की गुणवत्ता पर भी सवाल उठाए हैं. उदाहरण के लिए, श्रींंगवेरपुर घाट पर 12 जनवरी को फीकल कोलिफॉर्म का स्तर 1.8 एमपीएन/100मि.ली. (न्यूनतम) था. अगले दिन जब कुम्भ शुरू हुआ, तो यह 23,000 एमपीएन/100मि.ली. था.
एक और उदाहरण संगम का है. 13 जनवरी को संगम पर फीकल कोलिफॉर्म का स्तर 1.8 एमपीएन/100मि.ली. था. अगले दिन यानि 14 जनवरी को यह 11,000 एमपीएन/100मि.ली. पाया गया, यानि तय सीमा के मुकाबले चार गुणा से भी ज्यादा. हालांकि, स्नान के लिए आदर्श सीमा 500 एमपीएन/100मि.ली. है.
गौरतलब है कि इसी दिन मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने एक ट्वीट किया. जिसमें उन्होंने दावा किया कि 14 जनवरी को 3.5 करोड़ श्रद्धालुओं ने स्नान किया. उन्होंने लिखा, ‘प्रथम अमृत स्नान पर्व पर आज 3.50 करोड़ से अधिक पूज्य संतों/श्रद्धालुओं ने अविरल-निर्मल त्रिवेणी में स्नान का पुण्य लाभ अर्जित किया.’
उल्लेखनीय है कि सीपीसीबी की रिपोर्ट में केवल 15 जनवरी तक की जल गुणवत्ता रीडिंग दिखाई गई है. सीपीसीबी की वेबसाइट बताती है कि संगम पर फीकल कोलीफॉर्म की मात्रा सुरक्षित सीमा से लगभग 20 गुना अधिक थी यानि 49,000 एमपीएन/100 मिली तक.
विशेषज्ञों ने यह भी सवाल उठाया है कि चूंकि चयनित स्थान एक-दूसरे के बहुत करीब हैं और 8 किलोमीटर के दायरे में हैं, फिर भी आंकड़ों में इतना अंतर क्यों है.
मंथन अध्ययन केंद्र की शोधकर्ता अवली वर्मा ने कहा कि इसके कई कारक हो सकते हैं. जैसे नमूने लेने की जगह के चुनाव ने फीकल कोलिफॉर्म के स्तर में इतनी बड़ी अंतर को जन्म दिया हो.
उन्होंने कहा ‘‘अगर संगम को लेकर तुरंत ही स्थानीय स्तर पर कुछ उपाय किए गए थे तो यह दिखाता है कि ये यह कितने अस्थायी होते हैं, क्योंकि पानी की गुणवत्ता एक स्नान के साथ ही अचानक बदल जाती है.’’
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