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खंडित जनमत

मेरठ लोकसभा: भाजपा की मामूली अंतर से जीत, शहर के दो बूथों पर 27% फर्जी मतदाता

क्या आपको अपना वोटर आईडी कार्ड देखने पर पूरा पता दिखाई देता है? अगर आप मेरठ में हैं, तो शायद आपको पता दिखाई न दे. कम से कम तब तक, जब तक कि आप यह न मान लें कि सिर्फ “उत्तर प्रदेश”, या “झुग्गी” या “नया” ही एक पता है.

बिलकुल खाली कॉलम या ऐसे ही शब्द, मेरठ लोकसभा सीट के अंदर आने वाली मेरठ कैंट विधानसभा सीट के बूथ 305 की मतदाता सूची में 86 मतदाताओं के पते थे. इसी बूथ पर करीब 240 मतदाता आरएचए कॉलोनी के पते के साथ पंजीकृत हैं. लेकिन असल में ऐसी कोई कॉलोनी है ही नहीं.

आरएचए कॉलोनी के वोटर्स

मेरठ में, भाजपा के अरुण गोविल ने समाजवादी पार्टी की सुनीता वर्मा को 10,000 से अधिक मतों के अंतर से हराकर जीत हासिल की. लेकिन इससे पहले चुनाव आयोग ने कुल 61,365 मतदाताओं के नाम सूची से हटाए. साथ ही 1 लाख से अधिक नए मतदाता जोड़े गए. लेकिन न्यूज़लॉन्ड्री ने जब इस पूरे निर्वाचन क्षेत्र में पड़ने वाले 2,042 बूथों की पड़ताल की तो अजीबोगरीब रुझान मिले.

उदाहरण के लिए, सिर्फ दो बूथों पर 336 फर्जी मतदाता थे.

ये दो बूथ उन तीन बूथों- 286, 304 और 305- में से थे, जिन्हें न्यूज़लॉन्ड्री ने अपने हर पते पर जाकर सर्वेक्षण के लिए चुना गया था. इन्हें हमारी कार्यप्रणाली के अनुसार चुना गया था. इस साल इन बूथों पर सबसे ज्यादा मतदाताओं के नाम हटाए गए और ये मेरठ कैंट सीट का हिस्सा थे. यह एक ऐसा विधानसभा क्षेत्र है, जिस पर मेरठ की पांच विधानसभा सीटों में से सबसे ज्यादा नाम हटे. लेकिन इतनी बड़ी संख्या में नाम हटाए जाने के बावजूद भी मतदाता सूचियों में फर्जी मतदाता बने रहे.

मेरठ कैंट में करीब 30 प्रतिशत मतदाता अनुसूचित जाति या मुसलमान हैं. यहां 3.8 प्रतिशत (16,521 मतदाता) के नाम हटाए गए. इसके बाद हापुड़ का नंबर आया. जहां अनुसूचित जाति और मुसलमान कुल मतदाताओं के 50 प्रतिशत हैं. यहां मतदाता सूची में 3.2 प्रतिशत (12,023 मतदाता) के नाम हटाए गए. मेरठ में और जगहों पर नाम हटाए जाने की दर 3 प्रतिशत से कम थी.

हमारे छोटे सैंपल साइज़ में बड़े अंतर पाए गए. हालांकि, ये चुनाव आयोग की जिम्मेदारी है कि वो पूरी लोकसभा सीट में फर्जी मतदाताओं का पता लगाने के लिए जांच करे.

‘मैं इन मतदाताओं को कहां ढूंढूं?’

भारतीय चुनाव आयोग, हर साल पुराने नाम हटाकर और नए मतदाताओं को जोड़कर मतदाता सूची जारी करता है. ऐसा करने के कई कारण हैं. जैसे कि वो मतदाता, जिन्हें अपना निवास स्थान बदलने के कारण हटाया जाता है या वो जिन्हें कानूनी रूप से मतदान करने की उम्र होने पर जोड़ा जाता है.

लेकिन मेरठ में इस अभियान में कई खामियां हैं. जैसा कि हमने तीन बूथों के अंतर्गत आने वाले इलाकों और मतदाता पंजीकरण अधिकारी और बूथ-स्तरीय अधिकारियों (बीएलओ) से बातचीत करने पर पाया. ये वे लोग हैं जो जमीनी स्तर पर इलेक्टोरल रोल संशोधन में सबसे महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं.

चुनाव आयोग को इस बात का श्रेय बिलकुल जाता है कि हमने जिन तीन बूथों का सर्वेक्षण किया और जिन पर 2,800 से अधिक मतदाता थे, उन पर इस साल लोकसभा चुनाव से पहले 1,348 मतदाताओं को हटा दिया गया. इन 1,348 में से कम से कम 700 के पते गुमनाम थे (शेष मतदाताओं के बारे में इस रिपोर्ट में आगे अधिक जानकारी दी जाएगी). इसे इस तरह समझें कि चुनाव आयोग के ‘सफाई अभियान’ से पहले, इन तीन बूथों में 25 प्रतिशत मतदाता फर्जी थे.

इसके बावजूद, इन तीन बूथों में से दो में अभी भी कुल 1,217 नामों में से कम से कम 336 मतदाता फर्जी पते वाले थे. यह उन दो बूथों में अपडेट की गई मतदाता सूची का 27 प्रतिशत है, जबकि हमें तीसरे बूथ पर कोई गलत पता नहीं मिला.

इन 336 मतदाताओं में आरएचए कॉलोनी (जो है ही नहीं) के अनेक मकान नंबरों वाले 240 मतदाता और "नया" जैसी अस्पष्ट पता एंट्रियों वाले 96 मतदाता शामिल हैं.

डाकिया विकास चौधरी

जब हमारी संवाददाता ने मेरठ कैंटोनमेंट के बीचों-बीच स्थित आधिकारिक डाक सेवा के मुख्यालय का दौरा किया तो वहां के कर्मचारियों ने एक लंबे कद के डाकिये की ओर इशारा किया. जो एक कोने में ढेर सारी चिट्ठियों के साथ बैठे थे. उन्होंने विकास चौधरी के बारे में कहा, "वह इलाके को अच्छी तरह जानता है. क्योंकि वह बीते दस साल से भी ज़्यादा वक्त से यही काम कर रहा है."

काफी मददगार प्रवृत्ति वाले चौधरी ने तीनों बूथों की मतदाता सूचियों को खंगाला और हंसते हुए कहा, "आप सही कह रही हैं. आरएचए कॉलोनी मौजूद नहीं है… पूरे मेरठ में फर्जी मतदाता एक बड़ी समस्या बन गए हैं. कुछ महीने पहले मुझे चुनाव आयोग द्वारा भेजे गए नए मतदाता कार्ड बांटने का काम सौंपा गया था, लेकिन मुझे उनमें से हजारों को स्थानीय चुनाव कार्यालय में डालना पड़ा क्योंकि मुझे उनके पते ही नहीं मिले."

मतदाताओं को फॉर्म 6 या फॉर्म 8 जैसे आवेदनों के ज़रिए मतदाता सूची में जोड़ा जा सकता है. इसके लिए नाम, उम्र, जन्म की तारीख और पते के प्रमाण पत्र की जरूरत होती है. इन पर निर्वाचन पंजीकरण अधिकारियों के हस्ताक्षर होते हैं और बीएलओ जैसे फ़ील्ड अधिकारियों की टिप्पणियां होती हैं. केवल बेघर मतदाताओं की श्रेणी के लिए किसी दस्तावेज़ी सबूत की ज़रूरत नहीं होती. मतदाता द्वारा गलत जानकारी देना जन-प्रतिनिधित्व अधिनियम के तहत एक दंडनीय अपराध है.

लोकसभा चुनाव के बाद अगस्त में मेरठ कैंट के लिए निर्वाचन पंजीकरण अधिकारी के रूप में प्रतिनियुक्त उप-विभागीय मजिस्ट्रेट रश्मि कुमारी ने फर्जी मतदाताओं की मौजूदगी के बारे में पूछे जाने पर कहा कि वह संबंधित बीएलओ से चर्चा के बाद इन बूथों की जांच करेंगी. वह कहती हैं, "इन वोटों को हटा दिया जाना चाहिए था क्योंकि मतदान के दिन इनका इस्तेमाल आसानी से फर्जी मतदान के लिए किया जा सकता है. जब उनके पते ही अंकित नहीं हैं तो उन्हें मतदाता सूची में रखने का क्या मतलब है?"

जब न्यूजलॉन्ड्री ने इन पतों वाले मतदाताओं को उत्तर प्रदेश के मुख्य निर्वाचन अधिकारी नवदीप रिनवा को दिखाया तो उन्होंने कहा, "भारत के चुनाव आयोग द्वारा ऐसे मतदाताओं को हटाने के लिए कोई स्पष्ट एसओपी नहीं है. अगर पंजीकरण के समय मतदाता का पूरा पता दर्ज नहीं किया जाता है तो नाम हटाने के समय यह बहुत बड़ी समस्या बन जाती है. क्योंकि बीएलओ घर-घर जाकर उनका सत्यापन कैसे करेंगे और हम उन्हें उनके वोट के कटने की सूचना देने के लिए नोटिस कहां भेजेंगे? और अधूरे पते वाले ऐसे मतदाता शहरी क्षेत्रों में एक व्यापक समस्या हैं, और यह केवल मेरठ तक सीमित नहीं है. इसलिए हम भारतीय चुनाव आयोग से इसे ठीक करने का अनुरोध करेंगे.”

बूथ 305 के बीएलओ मयंक तोमर ने कहा, "मैं इन मतदाताओं को कहां ढूंढूं? अपने आठ सालों में इन दो बूथों पर मैं उन्हें कभी ढूंढ नहीं पाया." बूथ 304 की बीएलओ पूनम अग्रवाल की भी ऐसी ही चिंताएं थीं.

तीनों बूथों के बीएलओ ने दावा किया कि हर साल वे इन बूथों पर फर्जी मतदाताओं को हटाने का अनुरोध करते हैं, लेकिन जिला प्रशासन उनके अनुरोधों को अस्वीकार कर देता है.

बूथ 286 के बीएलओ विशाल चौधरी ने दावा किया, "हमने पहले भी जिला प्रशासन से इन मतदाताओं को हटाने का अनुरोध किया था. लेकिन जिला प्रशासन ने हमें कभी इसकी अनुमति नहीं दी." अन्य बीएलओ ने भी इस बात पर सहमति जताई.

रात 8 बजे कोई भी व्यक्ति मेरे घर में सैकड़ों फॉर्म पर हस्ताक्षर करवाने के लिए आता था और हमें उसका पालन करना पड़ता था.
पूनम अग्रवाल, बीएलओ

वे सूची में शामिल कैसे हुए?

एक दशक से अधिक समय से बूथ 304 पर बीएलओ रहने वाली पूनम अग्रवाल ने बताया कि ये मतदाता आखिर सूची में किस तरह जुड़े. उन्होंने इसके लिए कुछ वरिष्ठ अधिकारियों पर आरोप लगाया. पूनम ने कहा कि मतदान तंत्र से जुड़े और उनके सीनियर जिला के अधिकारियों ने उन्हें 2014 के लोकसभा चुनावों से पहले नए मतदाताओं को पंजीकृत करने के लिए अनिवार्य आवेदन फॉर्म 6 पर दस्तखत करने का आदेश दिया था. “मुझे याद है कि मैंने कुछ दिनों के भीतर 1,800 फॉर्मों पर दस्तखत किए थे. फिर इन नए मतदाताओं को मतदान केंद्रों में वितरित किया गया. जब भी हम किसी नए मतदाता के लिए फॉर्म 6 पर हस्ताक्षर करते हैं, तो हम उन्हें पंजीकृत करने से पहले उचित सत्यापन करते हैं. लेकिन इन मतदाताओं के लिए ऐसा कुछ नहीं किया गया. रात 8 बजे कोई भी व्यक्ति मेरे घर में सैकड़ों फॉर्म पर हस्ताक्षर करवाने के लिए आता था और हमें उसका पालन करना पड़ता था.” जब हमने पूछा कि ये “अजनबी लोग” कौन थे, तो बीएलओ उनकी पहचान नहीं कर पाईं.

पूनम ने दावा किया कि उनके पास कोई और विकल्प नहीं था. “मैं प्रशासन के आदेशों को कैसे मना कर सकती थी? इससे मैं मुश्किल में पड़ जाती. और ऐसा 2014 के बाद से केवल एक बार हुआ है.”

बीएलओ तोमर और बीएलओ चौधरी ने दावा किया कि बूथ 286 और 305 के बारे में उनसे पहले इन पदों पर रहने वालों ने भी यही कहा था.

इन तीनों बूथों से कुल 1,348 मतदाताओं के नाम काटे गए. बूथ 286 पर 87 प्रतिशत की दर से सबसे अधिक मतदाता काटे गए, जहां 817 में से 711 मतदाता सूची से हटाए गए. बूथ 304 पर 60 प्रतिशत मतदाता काटे गए जबकि बूथ 305 पर 26 प्रतिशत मतदाता काटे गए.

बीएलओ तोमर ने कहा, "अगर उन्होंने इन बूथों से और अधिक मतदाताओं के नाम काटे जाने की अनुमति दी होती तो शायद पूरा बूथ ही हटा दिया जाता." उन्होंने कुछ मामलों में असामान्य लिंग अनुपात की ओर भी इशारा किया. उदाहरण के लिए, बूथ 286 में शिवाजी कॉलोनी के मकान नंबर 22 में 48 मतदाता रहते थे, जिनमें से एक महिला थी. "ऐसा कोई घर होता है क्या?"

मतदाता सूची के अनुसार, मकान संख्या 25/5 में 44 मतदाता रहते थे, जबकि मकान संख्या 25 में 46 मतदाता रहते थे. अब इन सभी के नाम हटा दिए गए हैं.

इसी तरह, सूची के अनुसार बूथ 305 के 105 मतदाता “आरएचए कॉलोनी” के मकान संख्या 9 में रहते हैं. इनमें से 89 पुरुष और 16 महिलाएं हैं. इनमें से 42 के नाम हटा दिए गए हैं. बीएलओ तोमर ने कहा कि बाकी मतदाताओं के नाम भी हटा दिए जाने चाहिए क्योंकि उन्हें अपने सर्वेक्षणों में ये मतदाता नहीं मिले हैं.

आरए बाजार के बूथ 305 में बीएलओ अग्रवाल ने अन्य अजीबोगरीब मामलों की ओर इशारा किया, मसलन आरए बाजार के मकान संख्या 54 में 36 मतदाता रहते हैं, और आरए बाजार के मकान संख्या 49 में 23 मतदाता रहते हैं, जबकि दोनों मामलों में कोई महिला मतदाता नहीं है. ये सभी मतदाता हटाए गए मतदाताओं में से थे.

ईआरओ कुमारी ने बताया कि नाम हटाए जाने के बावजूद भी फर्जी मतदाता मौजूद थे. “शेष गैर-पता योग्य मतदाताओं को नहीं हटाया गया, क्योंकि इस बार प्रशासन ने उनमें से एक बड़ी संख्या को पहले ही हटा दिया था. और पूर्व ईआरओ सभी नामों को हटाना नहीं चाहते थे, इसलिए शेष को हटाने से छूट मिल गई.”

मेरठ के जिला चुनाव अधिकारी वेद पाल सिंह.
मेरठ का जिला निर्वाचन कार्यालय

सेना के मतदाता

तीनों बूथों पर हटाए गए 1,348 नामों में से 600 एसआरसी लाइन, चंडीगढ़ लाइन और आरए लाइन जैसे सेना के इलाकों से थे. बाकी शिवाजी कॉलोनी, झुग्गी तोपखाना और आरए बाजार जैसे रिहायशी इलाकों से थे, जिनमें करीब 700 फर्जी मतदाता और करीब 100 ऐसे मतदाता थे जो अपना घर बदल चुके थे या जिनकी मृत्यु हो चुकी थी.

2014 के लोकसभा चुनाव से पहले सुप्रीम कोर्ट ने चुनाव आयोग को निर्देश दिया था कि वह शांति वाले इलाकों में रक्षा कर्मियों को आम मतदाता के तौर पर वोट करने की अनुमति दे. इसलिए सेना के मतदाता चाहें तो आम मतदाता के तौर पर अपना नाम दर्ज करा सकते हैं.

हमने यूपी के मुख्य चुनाव अधिकारी नवदीप रिनवा से पूछा कि इन मतदाताओं को पहले क्यों जोड़ा गया और बाद में क्यों नहीं हटाया गया. उन्होंने बताया, "छावनी इलाकों में यह चलन है कि जब सेना के लोग आते हैं, तो वे खुद को मतदाता के तौर पर पंजीकृत करा लेते हैं. बाद में कोई भी उन्हें हटाने के लिए ज़रूरी काम नहीं करता. लेकिन इस बार हमने उन्हें हटाने के लिए कार्रवाई की. मैंने जिला चुनाव अधिकारियों से खास तौर पर कहा कि कैंटोनमेंट क्षेत्र के बूथों के मतदान के आंकड़ों से पता चलता है कि वास्तव में ये मतदाता यहां रहते ही नहीं हैं, इसलिए उन्हें घर-घर जाकर सर्वेक्षण करना होगा, न कि केवल कागजों पर.”

हालांकि, मेरठ के जिला चुनाव अधिकारी वेद पाल सिंह ने दावा किया कि सेना के अधिकारी आमतौर पर डाक मतपत्रों के माध्यम से ही मतदान करते हैं. “सेना के मतदाता, जब तक कि वे स्थायी रूप से यहां नहीं रहने लगते तब तक डाक मतपत्रों के माध्यम से मतदान करते हैं. बीएलओ सेना के मतदाताओं का पंजीकरण नहीं करते, क्योंकि उन्हें उन क्षेत्रों में प्रवेश करने की अनुमति ही नहीं है.”

इन तीनों बूथों के बीएलओ ने यह भी कहा कि उन्होंने सेना के मतदाताओं का कभी पंजीकरण नहीं किया.

इस पर यूपी के सीईओ रिनवा ने जवाब दिया, “मैं 2014 में [यूपी सीईओ] नहीं था. लेकिन मुझे पता चला है कि उस साल सेना के मतदाताओं को बढ़ाने के लिए कुछ खास कार्यक्रम चलाए गए थे. लेकिन लंबे समय तक इन मतदाताओं को हटाया नहीं गया, इसलिए इस बार हमने उन्हें हटा दिया. और अपनी समीक्षा में मैंने विशेष रूप से उल्लेख किया था कि कैंटोनमेंट क्षेत्रों में मतदान वास्तव में बहुत कम है, इसलिए इस पर विशेष ध्यान देने की आवश्यकता है और लोगों को जाकर उचित सर्वेक्षण करना होगा.”

यह पूछे जाने पर कि अगर सेना की आवाजाही के कारण नामांकन में संशोधन होता है, तो इस बार सूची में कोई नाम क्यों नहीं जोड़ा गया? रिनवा ने कहा कि चुनाव आयोग को इस बार आवेदन नहीं मिले. "अगर वे आवेदन नहीं करते हैं, तो हम उन्हें ऐसा करने के लिए मजबूर नहीं कर सकते."

मतदान और रुझान

लेकिन सबसे अजीब बात इन तीन बूथों के मतदान के आंकड़े हैं. बूथ 304 का मतदान 2019 के लोकसभा चुनावों में 1.9 प्रतिशत से लेकर 2022 के यूपी विधानसभा चुनावों में 43 प्रतिशत तक उतार-चढ़ाव करता रहा. बूथ 286 और 305 में भी इसी तरह के रुझान देखे गए.

पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त एसवाई कुरैशी ने कहा कि 1.6 प्रतिशत से 43 प्रतिशत तक मतदान का बढ़ना "इसका मतलब है कि यहां कुछ गड़बड़ है. चुनाव आयोग को इस तरह के बूथों पर स्वतः ही ध्यान देना चाहिए. क्योंकि किसी भी असाधारण चीज को संदेह की दृष्टि से देखा जाना चाहिए."

बूथ 286 के बीएलओ चौधरी ने कहा, "मेरे बूथ पर 2014 में सबसे अधिक मतदान हुआ था. लेकिन 2014 के लोकसभा चुनाव के बाद ये मतदाता जादुई रूप से गायब हो गए."

बूथ 305 के बीएलओ तोमर ने मतदान में उतार-चढ़ाव को समझाने की कोशिश की. उन्होंने दावा किया, "कभी-कभी, मैं पंजाब से किसी अनजान व्यक्ति को अपने बूथ पर मतदान करने आते हुए देखता हूं."

मेरठ लोकसभा सीट पर 2009 से भाजपा का कब्जा है और पार्टी ने 1993 से इन तीन बूथों वाली मेरठ छावनी सीट से भी लगातार जीत हासिल की है. हालांकि भाजपा की जीत के अंतर में गिरावट आई है, जो 2014 में 16 प्रतिशत से 2019 और 2024 के लोकसभा चुनावों में 1 प्रतिशत से भी कम रहा, लेकिन हाल के सालों में इन तीन बूथों पर अधिकांश वोट हमेशा भाजपा को ही मिले हैं.

2014 के लोकसभा चुनाव में भाजपा के राजेंद्र अग्रवाल ने बसपा के मोहम्मद शाहिद अखलाक को 2.3 लाख से ज़्यादा वोटों के अंतर से हराया था. हालांकि मेरठ कैंट विधानसभा सीट पर राजेंद्र अग्रवाल की जीत का अंतर सिर्फ 5,000 वोटों का था, जिसमें से 865 वोट फर्जी वोटरों वाले तीन में से दो बूथों से थे.

पांच साल बाद, 2019 के लोकसभा चुनाव में, भाजपा के राजेंद्र अग्रवाल ने बसपा के हाजी याकूब कुरैशी के खिलाफ अपनी सीट बचाने के लिए संघर्ष किया. अग्रवाल सिर्फ़ 4,729 वोटों से जीते. आईएएनएस ने उस चुनाव में फर्जी वोटरों का आरोप लगाया था, जिस पर अग्रवाल ने "मानवीय भूल" या "कार्यकर्ताओं की साजिश" की ओर इशारा किया था.

2024 के लोकसभा चुनाव में भाजपा के अरुण गोविल 10,585 के मामूली अंतर से जीते, वहीं मेरठ कैंट में सपा का वोट शेयर तब बढ़ा जब पार्टी ने जाटव उम्मीदवार सुनीता वर्मा को मैदान में उतारा.

न्यूज़लॉन्ड्री यह पता नहीं लगा सकी कि इस साल के लोकसभा चुनाव या पिछले चुनावों में फर्जी मतदाताओं ने मताधिकार का प्रयोग किया था या नहीं. यह केवल चुनाव आयोग के हस्तक्षेप से ही स्पष्ट हो सकता है, कि ऐसा हुआ था या नहीं.

अनमोल प्रितम के सहयोग के साथ.

अनुवाद- चंदन कुमार

मूल रूप से अंग्रेजी में प्रकाशित ख़बर पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.

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