मनीषा पांडे, अतुल चौरसिया और एक कश्मीर छात्र.
Another Election show

एक और चुनावी शो: धारा 370, बेरोजगारी और 10 साल बाद चुनाव पर कश्मीर के युवा

जम्मू कश्मीर की राजनीति में वहां के युवाओं की अहम भूमिका है. ‘एक और चुनावी शो’ के सफर में हमने इस बार युवाओं और छात्रों के मन की बात टटोलने की कोशिश की. इसके लिए हमने कश्मीर यूनिवर्सिटी के विधि,पत्रकारिता और मनोविज्ञान संकाय के छात्रों से बातचीत की. 

इस पूरी बातचीत का मकसद कश्मीर में हो रहे चुनाव को लेकर उनकी  सोच, उनके अपने मुद्दे और सबसे बढ़कर धारा 370 के हटने के बाद उनका जीवन किस हद तक प्रभावित हुआ ये समझना था.  

बातचीत के दौरान कश्मीर में हो रहे चुनाव से संबंधित सवाल के जवाब में एक छात्र कहते हैं, “हमने पिछले दस सालों से चुनाव नहीं देखा है. 2019 के बाद से कश्मीरियों को अपनी बात कहने का कोई मौका नहीं मिला है. यह चुनाव खुद को अभिव्यक्त करने का एक मौका है.”

इन छात्रों का मानना है कि कश्मीर में सबसे बड़ा मुद्दा उनकी बात सुनने का है. पिछले दस सालो से इन्हें अपना  प्रतिनिधि चुनने का मौका नहीं दिया गया है. इस बार इन्हें  यह मौका दिया जा रहा है, जिससे वो खुश हैं. 

एक अन्य छात्र ने कहा, “आप देख रहे हैं कि कैसे सारी राजनीतिक पार्टियां हमारे पास वोट मांगने आ रही हैं लेकिन कश्मीरी लोग राजनैतिक रूप से काफी परिपक़्व होते हैं, जिसका असर आपको चुनावी परिणाम में देखने को मिलेगा.”

देखिए उनसे हुई हमारी पूरी बातचीत. 

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