Report
चश्मदीद छात्रों की जुबानी: ‘दरवाजे में कोई बायोमेट्रिक लॉक नहीं था’
शनिवार शाम ओल्ड राजेंद्र नगर के एक कोचिंग संस्थान राव आईएएस स्टडी सर्कल के बेसमेंट में जल भराव के कारण तीन छात्रों की दुखद मौत हो गई. दिल्ली पुलिस ने कार्रवाई करते हुए कोचिंग संस्थान के मालिक, कोऑर्डिनेटर, एक एसयूवी चालक सहित कई लोगों को गिरफ्तार किया है.
उल्लेखनीय है कि अभी तक यह साफ नहीं हो सका है कि शनिवार शाम उस कोचिंग संस्थान के बेसमेंट में क्या हुआ था. न्यूज़लॉन्ड्री ने पहली बार ऐसे चार छात्रों से बातचीत की है जो शनिवार की शाम उस दुखद घटना के वक्त मौके पर मौजूद थे. ये चारों छात्र न सिर्फ घटनास्थल पर मौजूद थे बल्कि ये बेसमेंट में फंसे छात्रों को बाहर निकालने में भी अंत तक मदद करते रहे. इन छात्रों के नाम किंग्सली कन्नन (21), विजय कुमार (22), दीनदयालन (25) और हरि (25) हैं. सुरक्षा की दृष्टि से हमने इनमें से कुछ छात्रों के नाम बदल दिए हैं.
ये चारों पिछले एक साल से राव आईएएस अकादमी में पढ़ रहे हैं और मूल रूप से तमिलनाडु के रहने वाले हैं. अभ्यर्थियों की बातचीत के आधार पर हम इस पूरे घटनाक्रम को तीन हिस्सों में बांट सकते हैं.
शुरुआती पांच मिनट
इस घटना की सबसे पहली कड़ी है किंग्सली कन्नन. कन्नन संयोग से उस वक्त कोचिंग सेंटर के ग्राउंड फ्लोर पर बनी पार्किंग में खड़े थे, जब बारिश का पानी लाइब्रेरी में भरना शुरू हुआ. बकौल कन्नन- "लाइब्रेरी की टाइमिंग सुबह दस बजे से लेकर शाम सात बजे तक होती है. शाम करीब 6:50 पर वह अपना सामान पैक करके लाइब्रेरी से ऊपर पार्किंग में आ गए थे क्योंकि उन्हें अपने परिजनों से फोन पर बात करनी थी. उन्हें करोल बाग मेट्रो स्टेशन निकलना था. लेकिन बारिश के कारण वो पार्किंग में रुक गए. धीरे-धीरे पार्किंग में पानी भरने लगा तो वह पास ही खड़ी एक स्कूटी पर बैठ गए."
कन्नन बताते हैं, “बारिश के मौसम में पार्किंग में टखनों तक पानी भर जाना आम है. ऐसा कई बार हुआ है. मैं आसपास ही था कि थोड़ी देर बाद बारिश रुक जाएगी फिर पानी बाहर निकल जाएगा, तब मैं मेट्रो के लिए निकल जाऊंगा. लेकिन ऐसा नहीं हुआ. थोड़ी देर बाद बाहर की सड़क पर एक गाड़ी गुजरी, जिसकी वजह से सड़क पर जमा बारिश का बहुत सारा पानी तेजी से कोचिंग सेंटर में आने लगा. इससे बाहर का मेन गेट टूट गया. इसलिए पानी बहुत तेजी से बेसमेंट में घुसने लगा.”
बेसमेंट में क्या हो रहा था?
बेसमेंट की लंबाई 60 फीट और चौड़ाई करीब 30 फुट है. इसमें दो गेट हैं, एक एंट्री के के लिए जो सामने की तरफ है तो दूसरा एग्जिट के लिए, जो बिल्डिंग के पिछले हिस्से में है.
विजय कुमार लाइब्रेरी के फ्रंट गेट के पास बैठकर पढ़ाई कर रहे थे. शाम के करीब 6:51 बजे लाइब्रेरियन उनके पास आए और कहा कि बाहर बारिश हो रही है और बेसमेंट में पानी भरने लगा है, इसलिए सब लोग जल्दी से अपना सामान पैक कीजिए और लाइब्रेरी खाली कर दीजिए.
विजय कुमार बताते हैं, “यह बहुत सामान्य बात थी. क्योंकि जब भी बारिश होती है तो बेसमेंट में पानी भर जाता है, इसलिए हम ज्यादा परेशान नहीं हुए. हमें नहीं पता था कि इतनी बड़ी दुर्घटना हो जाएगी.”
विजय के मुताबिक वो अपना सामान पैक कर रहे थे, तभी अचानक से बहुत तेजी के साथ पानी का स्तर बढ़ने लगा. कुछ ही सेकंड में पानी कमर तक आ गया. उस वक्त लाइब्रेरी में करीब 35 छात्र मौजूद थे.
अचानक आए पानी से लाइब्रेरी के अंदर अफरा-तफरी मच गई. सारे अभ्यर्थी फ्रंट गेट से बाहर निकलने की कोशिश करने लगे. जान बचाने के लिए विजय कुमार भी फ्रंट गेट की तरफ भागे. फ्रंट गेट के पास एक दरवाजा रखा हुआ था, जो उनके ऊपर गिर गया और वह घायल हो गए.
विजय के मुताबिक, उनके निकलने से पहले करीब 20-25 अभ्यर्थी फ्रंट गेट से बाहर निकल चुके थे. वह भी किसी तरह बाहर निकलने में सफल रहे लेकिन 10-11 छात्र उनके पीछे फंसे रह गए.
फ्रंट गेट से निकलना मुश्किल था इसलिए वह सारे लोग लाइब्रेरी में मौजूद बैक डोर की ओर भागे. लेकिन तब तक पानी का स्तर काफी बढ़ चुका था.
दीनदयालन, उस वक्त लाइब्रेरी के पिछले हिस्से में मौजूद थे. उन्होंने हमें बताया कि लाइब्रेरी की बनावट कुछ ऐसी है कि वह छोटे-छोटे केबिन में बंटी हुई है. इसलिए उनके आगे वाले हिस्से में क्या हो रहा है, पीछे वाले को पता नहीं चलता. जब यह सब कुछ हो रहा था तब उन्हें बस लाइब्रेरियन की एक आवाज सुनाई दी- “सब लोग जल्दी से लाइब्रेरी खाली कर दो, पानी भर रहा है.”
वहां पर दीनदयालन, उनके दोस्त हरि के साथ 10-11 अन्य अभ्यर्थी भी मौजूद थे. इससे पहले वह अपना सामान पैक करते पानी उनकी कमर तक आ गया. वो लोग फ्रंट गेट की तरफ भागे. कांच का गेट बंद था. वह अपनी पूरी ताकत से गेट खोलने की कोशिश करने लगे. गेट बाहर की तरफ खुलता था. बाहर से पानी के दबाव के कारण थोड़ी देर में गेट टूट गया.
दीनदयालन के मुताबिक, गेट टूटने के बाद कुछ अभ्यर्थी, जिनमें लड़कियां भी शामिल थीं, सीढ़ियों से पानी के साथ फिसलते हुए लाइब्रेरी के अंदर आ गए. दूसरी तरफ शीशे का गेट टूटने के बावजूद, उसका कुछ हिस्सा दीवार में चिपका रह गया. दीनदयाल ने सोचा कि अभ्यर्थी इस गेट से टकरा कर चोटिल हो सकते हैं लिहाजा वो गेट के बाकी बचे हिस्से को वह जल्दी-जल्दी तोड़ने लगे. लेकिन वो ऐसा कर पाते इसके पहले ही पानी का स्तर गर्दन तक पहुंच गया.
फ्रंट गेट से निकलना मुश्किल था इसलिए वह सारे लोग लाइब्रेरी में मौजूद बैक डोर की ओर भागे. लेकिन तब तक पानी का स्तर काफी बढ़ चुका था. लाइब्रेरी में मौजूद फर्नीचर तैरने लगा था. इसलिए बहुत मुश्किल से दीनदयालन और उनके साथी बैक गेट तक पहुंचे.
‘अंदर फंसे लोगों को निकालना चाहते थे पर…’
करीब 6:55 पर पार्किंग में बैठे कन्नन ने देखा कि उनके दोस्त दीनदयालन और हरि बैक गेट की सीढ़ियों से गिरते, पड़ते ऊपर आ रहे हैं. दीनदयालन मदद के लिए गुहार लगा रहे थे और लगातार बस यही बोल रहे थे कि नीचे और भी लोग फंसे हुए हैं.
दीनदयालन ने हमें बताया कि जब वह बाहर आए तब तक पूरा बेसमेंट पानी में डूब चुका था. बारिश के पानी में सीवेज का पानी भी मिल चुका था, इसलिए भयानक बदबू के साथ साथ दम घुटने लगा था. आंखों में जलन हो रही थी. तब तक कोचिंग सेंटर में मौजूद फैकल्टी मैनेजमेंट और बाकी स्टाफ भी छात्रों को बाहर निकालने की कोशिश में जुट गए. चूंकि बेसमेंट में कोई रस्सी, सीढ़ी या बचाव का अन्य साधन मौजूद नहीं था. इसलिए कन्नन ने बेसमेंट में मौजूद फायर हौज में लगे पानी के पाइप को रस्सी की तरह इस्तेमाल करना शुरू कर दिया.
दीनदयालन और हरि तैरना जानते थे, इसलिए वह दोनों रस्सी पकड़कर दोबारा बेसमेंट के अंदर गए. वहां फंसे हुए छात्रों को ढूंढने लगे. शॉर्ट सर्किट के डर से बिल्डिंग की लाइट पहले ही काट दी गई थी. लेकिन शाम का वक्त और गंदे पानी की वजह से साफ-साफ नहीं दिख रहा था. इसके अलावा लाइब्रेरी का फर्नीचर भी तैर रहा था. जिससे फंसे हुए लोगों को ढूंढना काफी मुश्किल हो रहा था.
हरि बताते हैं, “हमने अपनी क्षमता से अधिक कोशिश की. लेकिन इंसानी कोशिशों की एक सीमा होती है. हम चाह कर भी बाकी लोगों की मदद नहीं कर पाए. उस वक्त हमारे साहस के अलावा हमारे पास और कोई साधन नहीं था.”
पुलिस और रेस्क्यू टीम कब पहुंची?
हरि बताते हैं, “जब हम फंसे हुए अभ्यर्थियों को निकालने की कोशिश कर रहे थे. इस दौरान मैनेजमेंट में से किसी ने पुलिस को सूचना दे दी थी. सात बजे के आसपास स्थानीय करोल बाग थाने के दो-तीन पुलिसकर्मी पहुंचे. उनमें से एक पुलिसकर्मी ने काफी तेजी दिखाई और बिना किसी साधन के हमारे साथ पानी के अंदर गए. वहां फंसे हुए छात्रों को निकालने में मदद की. लेकिन एक वक्त के बाद पानी इतना ज्यादा भर गया था कि वो भी असफल रहे.”
इसके करीब आधे घंटे बाद दिल्ली फायर सर्विस की टीम मौके पर पहुंची. हालांकि, वह भी छात्रों को निकालने में कोई मदद नहीं कर पा रही थी क्योंकि इस तरह की स्थिति से निपटने के लिए उसके पास जरूरी संसाधन नहीं थे.
दिल्ली फायर सर्विस की टीम पानी के अंदर नहीं जा पाई लेकिन उन्होंने पंप मंगवाया और बेसमेंट से पानी निकालने की कोशिश करने लगे.
कन्नन बताते हैं, “साढ़े सात बजे के करीब फायर सर्विस पहुंच गई थी पर वह लोग हमारी कोई मदद नहीं कर पाए.”
आप सोचिए कि यह कितना असंवेदनशील है कि मीडिया कह रहा है कि अभ्यर्थियों को बचाने के लिए कोचिंग सेंटर की फैकल्टी और मैनेजमेंट ने कोई मदद नहीं की. क्या किसी इंसान के लिए यह संभव है कि वह किसी को मरते हुए देखे और मदद करने की कोशिश ना करे?हरि
फायर सर्विस के पहुंचने के करीब 40 मिनट बाद एनडीआरएफ की टीम पहुंची. एनडीआरएफ की टीम में गोताखोर मौजूद थे. उन्होंने अंदर जाकर फंसे हुए छात्रों को निकाला. उनकी पहचान उत्तर प्रदेश के अंबेडकरनगर की रहने वाली श्रेया यादव, तेलंगाना की तान्या सोनी और केरल के नवीन डॉलविन के रूप में हुई. लेकिन जब तक इन तीनों को निकाला गया तब तक इनकी मौत हो चुकी थी.
मीडिया कवरेज से नाराज हैं छात्र
ओल्ड राजेंद्र नगर और मुखर्जी नगर में हजारों छात्र इस दुर्घटना के बाद से प्रदर्शन कर रहे हैं. उनका कहना है कि कोचिंग संस्थान की मनमानी और प्रशासन की लापरवाही इसके लिए जिम्मेदार है. छात्रों की मांग है कि दोषियों को सजा देने के अलावा ‘यूपीएससी हब’ कहे जाने वाले राजेंद्र नगर में चल रहे तमाम कोचिंग संस्थानों, पीजी और लाइब्रेरी का सुरक्षा ऑडिट होना चाहिए.
न्यूज़लॉन्ड्री से बात करने वाले छात्रों की एक शिकायत मीडिया से भी है. इस मामले में मीडिया जिस तरह से कवरेज कर रहा है, वह असंवेदनशील और गैर जिम्मेदाराना है. मीडिया में यह बार-बार कहा जा रहा है कि लाइब्रेरी में बायोमेट्रिक लॉक सिस्टम लगा था. शॉर्ट सर्किट होने की वजह से दरवाजा लॉक हुआ. जिसकी वजह से छात्र बेसमेंट में फंस गए. जबकि यह तथ्य सरासर गलत है.
विजय बताते हैं, “लाइब्रेरी में किसी तरह का कोई बायोमेट्रिक लॉक नहीं लगा है. वहां पर सिर्फ एक साधारण सा कांच का दरवाजा लगा हुआ था. अभ्यर्थी बेसमेंट में इसलिए फंसे क्योंकि वहां एक ‘फ्लैश फ्लड’ जैसी सिचुएशन थी.”
हरि कहते हैं, “आप सोचिए कि यह कितना असंवेदनशील है कि मीडिया कह रहा है कि अभ्यर्थियों को बचाने के लिए कोचिंग सेंटर की फैकल्टी और मैनेजमेंट ने कोई मदद नहीं की. क्या किसी इंसान के लिए यह संभव है कि वह किसी को मरते हुए देखे और मदद करने की कोशिश ना करे?”
वह कहते हैं, “जब हम लोग बेसमेंट के अंदर फंसे हुए छात्रों को निकालने की कोशिश कर रहे थे तो वहां सिर्फ हम चार नहीं थे. करीब 15 लोग इस राहत बचाव कार्य में मदद कर रहे थे.”
वह आगे कहते हैं, “हमारे लाइब्रेरियन, जिनकी उम्र करीब 60 साल है. वह अंत तक हम लोगों के साथ पानी के अंदर फंसे हुए लोगों को ढूंढते रहे और सबसे अंत में वही निकले.”
यह चारों छात्र कोचिंग सेंटर पर देर रात तक मौजूद रहे. जब तक बचाव राहत का कार्य पूरा नहीं हो गया तब तक लोगों की मदद करते रहे. बार-बार पानी में गोता लगाने की वजह से हरि और दीनदयालन के शरीर में काफी गंदा पानी घुस गया था, जिसकी वजह से उन्हें अगले दिन उल्टियां होती रही. इन चारों छात्रों को लगता है कि अगर राहत बचाव कार्य शुरुआत के 30 मिनट के अंदर हुआ होता तो किसी की भी जान नहीं जाती.
इस ख़बर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.
मीडिया के बारे में शिकायत करना आसान है, क्या आप इसे बेहतर बनाने के लिए कुछ करते हैं? आज ही न्यूज़लॉन्ड्री की सदस्यता लें और स्वतंत्र मीडिया का समर्थन करें.
Also Read
-
BJP faces defeat in Jharkhand: Five key factors behind their setback
-
Newsance 275: Maha-mess in Maharashtra, breathing in Delhi is injurious to health
-
Decoding Maharashtra and Jharkhand assembly polls results
-
Pixel 9 Pro XL Review: If it ain’t broke, why fix it?
-
How Ajit Pawar became the comeback king of Maharashtra