Saransh
उत्तराखंड के कई जंगलों में नहीं है कोई फायर लाइन?
उत्तराखंड में फॉरेस्ट फायर को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने राज्य और केंद्र सरकार से कड़े सवाल पूछे और मुख्य सचिव से जवाब तलब किया. सरकारी आंकड़ों के मुताबिक, इस साल करीब 1500 हेक्टेयर में जंगल जल गए और आग से निपटने की तैयारियों में कमी उजागर हुई. न्यूज़लॉन्ड्री को पता चला है कि कई फॉरेस्ट रेंज ऐसी हैं, जहां फायर लाइन यानी अग्नि रेखा तक नहीं खींची गईं हैं.
ये फायर लाइन जंगल की आग को एक जगह से दूसरी जगह फैलने से रोकती हैं लेकिन आज़ादी के बाद से अब तक इनकी कोई समीक्षा नहीं हुई जबकि जंगल का स्वरूप काफी हद तक बदला है. 1980 के दशक में 1000 मीटर से अधिक ऊंचाई पर हरे पेड़ों को काटने पर लगी पाबंदी के बाद जंगलों का विस्तार हुआ और कई फायर लाइन गायब हो गईं. इनका रिव्यू किए जाने की सख्त ज़रूरत थी लेकिन ऐसा हुआ नहीं.
उत्तराखंड के जंगल भारत के सबसे समृद्ध जंगलों में हैं. यहां 27 रिज़र्व फॉरेस्ट डिविज़न हैं लेकिन कई जगह एक भी फायर लाइन नहीं है. मिसाल के तौर पर पिथौरागढ़ वन प्रभाग के सात फॉरेस्ट रेंज में से मुनस्यारी और धारचूला फॉरेस्ट रेंज में कोई फायर लाइन नहीं है. जबकि बेरीनाग और गंगोलीहाट में फायर लाइन आधा किलोमीटर से भी कम लंबाई की हैं.
हालांकि, उत्तर कुमायूं सर्किल के वन संरक्षक कोको रोज़ कहते हैं, “फायर लाइन ज़रूरी हैं लेकिन यह फायर लाइंस होंगी तो आग लगेगी ही नहीं ऐसा समझना भी गलत है. फायर लाइन आग को एक जगह से दूसरी जगह फैलने से रोकती हैं. इन्हें आप हर जगह नहीं बना सकते.”
जंगलों में आग का बड़ा संकट गांवों से पलायन होना भी है. उत्तराखंड में 1000 से अधिक गांव पूरी तरह खाली हो चुके हैं. और बहुत सारे गांवों में इक्का-दुक्का या दो-चार परिवार रहते हैं. इन खाली होते गांवों में उग रही घास-फूस आग के लिये पेट्रोल की तरह काम करती है. जलवायु परिवर्तन प्रभावों से खुश्क होता मौसम, जाड़ों में बरसात न होना और कम बर्फबारी सारे कारण जंगलों की आग को भड़का रहे हैं.
पिछले 50 सालों से हिमालयी पारिस्थितिकी का अध्ययन कर रहे इतिहासकार शेखर पाठक कहते हैं, “जंगलों को बचाने के लिये एक यूनाइटेड फ्रंट चाहिये. इस फ्रंट में वन विभाग, प्रशासन, ग्रामीणों और विद्यार्थियों के साथ वैज्ञानिक संस्थानों की भागेदारी होनी चाहिये. जब तक ये यूनाइटेड फ्रंट नहीं बनेगा कोई सेना भी आग नहीं बुझा सकती.”
इन सब कारकों की पड़ताल करती हृदयेश जोशी की ये वीडियो रिपोर्ट.
Also Read
-
Gujarat’s invisible walls: Muslims pushed out, then left behind
-
Let Me Explain: Banu Mushtaq at Mysuru Dasara and controversy around tradition, identity, politics
-
गुरुग्राम: चमकदार मगर लाचार मिलेनियम सिटी
-
Gurugram’s Smart City illusion: Gleaming outside, broken within
-
Full pages for GST cheer, crores for newspapers: Tracking a fortnight of Modi-centric ads