Video

कुरुक्षेत्र की महिला मजदूरों के चुनावी मुद्दे: शराब के ठेके बंद और महंगाई कम हो

हरियाणा के कुरुक्षेत्र जिला मुख्यालय से करीब 15 किलोमीटर दूर मथाना गांव के बाहर खेतों में काम कर रही महिलाएं लोकतंत्र के उत्सव चुनाव से दूर हैं. न्यूज़लॉन्ड्री से बातचीत में कहती हैं कि अगर दिहाड़ी नहीं करेंगी तो घर में चूल्हा नहीं जलेगा. बच्चों को खाली पेट सोना पड़ेगा.

इनसे हमारी भरी दोपहर में खेतों में काम करते वक्त हुई. जब ये खेतों में प्याज निकालने का काम कर रही थी. वही प्याज, जिसकी कीमत बढ़ जाए तो दिल्ली में राजनीतिक तापमान बढ़ जाता है. 

सुबह घर से बासी भोजन कर निकली ये महिलाएं बताती हैं कि शाम चार बजे तक ये घर पहुंचेगी. फिर रात का खाना बनाएंगी. कुछ ने बताया कि उनके पति शराब पीते हैं, इसीलिए वह तंग आ गई हैं. वह चाहती हैं कि गांव में शराब के ठेके बंद हों. 

यहां मिली एक महिला मज़दूर शकुंतला कहती हैं, ‘‘आप ठेके बंद करवा दो न. सारी औरतें थक गई हैं. मेरा वाला (पति) तो कभी-कभी पीता है. इनका (सामने महिलाओं की तरफ इशारा कर) तो रोज पीता है. थक चुकी हैं ये.’’

शकुंतला के अलावा अन्य महिलाएं भी शराब को लेकर शिकायत करती हैं. 

ज़्यादातर महिलाओं को नहीं पता कि इनकी कुरुक्षेत्र लोकसभा से उम्मीदवार कौन है. हालांकि, महंगाई को लेकर सब परेशान दिखती हैं. 

सोमना देवी कहती हैं, ‘‘महंगाई बहुत है जी. घर परिवार बस ऐसे ही चल रहा है. महंगाई तो बहुत ज़्यादा चल रही है. कभी भूखे तो कभी कुछ खाके घर चला रहे हैं. दिहाड़ी करते हैं तो घर चलता है.’’

सोमना की तरह सोनी देवी भी भूखे रहने का जिक्र करती हैं. लेकिन केंद्र की मोदी सरकार तो मुफ्त राशन योजना का प्रचार कर रही है. आप लोगों को राशन नहीं मिलता है? इस पर सोनी कहती हैं, ‘‘पांच किलो राशन मिलता है. अभी बाजरा मिल रहा है. इतनी गर्मी में कौन बाजरा खाएगा. वैसे भी पांच किलो राशन से घर चलता है क्या किसी का? दिहाड़ी करते हैं तो खाते है नहीं तो भूखे पेट रहना पड़ता है.’’

केंद्र की मोदी सरकार तीसरी बार सत्ता में आने के लिए अपनी कई योजनाओं का जमकर प्रचार कर रही है. जिसमें मुफ्त का इलाज, आवास योजना, उज्जवला योजना, हर घर शौचालय जैसी योजनाएं शामिल हैं. 

देखिए ये वीडियो रिपोर्ट.

Also Read: एक और चुनावी शो: ममता, मोदी और मीडिया पर सीनियर जर्नलिस्ट सुमन चट्टोपाध्याय से बातचीत

Also Read: एक और चुनावी शो: अग्निवीर, पेपरलीक या बेरोजगारी, युवाओं को कौन ज्यादा सता रहा?