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गांधीनगर: गृहमंत्री अमित शाह के लोकसभा क्षेत्र में कांग्रेस समेत समूचा विपक्ष 'नजरबंद'
गुजरात की गांधीनगर लोकसभा सीट बीते करीब तीन दशक से भारतीय जनता पार्टी का गढ़ है. साल 1989 से यहां भाजपा की जीत का शुरू हुआ सिलसिला बदस्तूर जारी है. यहां से भाजपा के शीर्ष नेता अटल बिहारी वाजपेयी भी सांसद रहे हैं. वहीं, 1998 से लेकर 2014 तक लालकृष्ण आडवाणी यहां से लगातार जीतते रहे.
इसी गांधीनगर सीट पर वर्तमान लोकसभा चुनाव में अखिल भारतीय परिवार पार्टी नामक एक अनजान संगठन से किस्मत आजमा रहे जितेंद्र सिंह चौहान का एक वीडियो पिछले दिनों सोशल मीडिया पर खूब वायरल हुआ. चौहान इस वीडियो में रोते हुए अपनी जान को खतरा बताते हैं. उनका कहना था कि उनसे जबरदस्ती नामांकन वापस कराया जा रहा है और अमित शाह के लोगों ने उन्हें बंधक बना लिया है. उनके मुताबिक, उनकी जान को खतरा है. हालांकि, हम उन लोगों की पुष्टि नहीं कर पाए जिन्होंने उन्हें जान से मारने की धमकी दी थी.
निर्दलीयों का नामांकन वापस कराया गया!
गांधीनगर लोकसभा सीट का दौरा करने पर हमने पाया कि यहां से कुल 39 उम्मीदवारों ने नामांकन किया था. लेकिन फिलहाल सिर्फ 14 उम्मीदवार ही मैदान में हैं. 16 उम्मीदवारो ने अपना नामांकन वापस ले लिया जबकि नौ का नामांकन रद्द हो गया. नामांकन वापस लेने वालों में वो जितेंद्र सिंह चौहान भी शामिल हैं, जिनका वीडियो वायरल हुआ था.
मूलतः मध्य प्रदेश के भिंड जिले के रहने वाले चौहान, सालों पहले गुजरात आ गए थे. वे ठेके पर रंगाई-पुताई का काम करवाते हैं. उनसे हमारी मुलाकात ऐसी ही एक जगह पर हुई. वो कहते हैं, ‘‘वीडियो वायरल होने के बाद मुझे काम मिलना बंद हो गया है. जिनके यहां काम कर चुका हूं वो भी अब फोन नहीं उठा रहे हैं. घर चलाने के लिए मजबूरन आज पत्नी के खाते से 30 हज़ार रुपये निकाले हैं.’’
वायरल वीडियो के बारे में पूछने पर सिंह कहते हैं, ‘‘मुझे पहले स्थानीय भाजपा के नेता धमकाते रहे. उसके बाद मेरे घर पर बापूनगर के भाजपा विधायक दिनेश कुशवाहा आए. तब मैं घर पर नहीं था. तब उनका फोन आया. मैं उनसे अखबार नगर में मिला, जहां से उनकी कार में बैठकर भाजपा के एक दफ्तर में गया. वहां उन्होंने कहा कि आप ये चुनाव मत लड़िए. अपना पर्चा वापस ले लीजिए. उनके कहने पर मैं अपना पर्चा वापस लेने के लिए तैयार हो गया. उन्होंने वहां पर्चा वापसी वाले दस्तावेज पर हस्ताक्षर भी करा लिए. इसके बाद वो वापस मुझे अखबार नगर लाए.’’
सिंह आगे कहते हैं, ‘‘अखबार नगर में क्राइम ब्रांच के कई लोग मौजूद थे. दिनेश कुशवाहा ने कहा कि आप इनके साथ कहीं घूम आइएगा. मैंने इनकार कर दिया. तब कुशवाहा ने कहा यही व्यवस्था है. 20 अप्रैल की शाम से क्राइम ब्रांच के लोग मेरे पीछे पड़ गए. 21 अप्रैल की रात जैसे-तैसे मैं इनसे बचकर निकल गया. मुझे लगने लगा था कि मेरे साथ गलत हो रहा है. इसके बाद मैंने फिर से चुनाव लड़ने का मन बना लिया. इसी बीच मेरे प्रस्तावकों पर दबाव बनाया गया, जिसमें एक 80 साल की बुजुर्ग महिला थी. मजबूरन मैंने 22 अप्रैल को अपना नामांकन वापस ले लिया.’’
सिंह बेहद भावुक व्यक्ति हैं. भगत सिंह इनके आदर्श हैं. जब हम इनसे मिलकर लौटने लगे तो इन्होंने कहा, ‘‘कुछ भी कहिए ये देश संविधान से नहीं चल रहा है. आम लोगों की कोई सुनवाई नहीं है.’’
प्यार से प्रेशर बनाया गया
परेश कुमार नानूभाई मुलानी बापूनगर के रहने वाले हैं. बापूनगर थाने से महज पांच सौ मीटर दूर स्थित एक अपार्टमेंट में रहते हैं. मुलानी कहते हैं, ‘‘मुझ पर प्रेम से प्रेशर बनाया गया. दिनेश कुशवाहा मेरे घर पर दो दिन आए थे. उन्होंने मुझसे और मेरी मां से नामांकन फार्म वापस लेने के लिए कहा. मजबूरन मैं कुशवाहा की गाड़ी में बैठकर गांधीनगर डीएम दफ्तर गया और 20 अप्रैल को अपना नामांकन वापस ले लिया.”
मुलानी ने भारतीय राष्ट्रीय दल की ओर से नामांकन दाखिल किया था. इसकी अध्यक्ष इनकी माताजी हैं.
प्यार से कैसे प्रेशर बनाया गया? इस पर मुलानी कहते हैं, ‘‘नामांकन हो जाने के बाद भाजपा की तरफ से कहा गया कि अपना नामांकन वापस ले लो. हमारे क्षेत्र के कॉर्पोरेटर श्विन भाई पेठानी और विधायक दिनेश सिंह कुशवाहा, उन्होंने प्यार से समझाया. कुशवाहा मेरे घर दो बार मीटिंग करने के लिए आए. मैंने उनसे नामांकन वापस करने को लेकर वजह पूछी तो उन्होंने बताया कि ज्यादा नामांकन हो जाने से दो ईवीएम बन जाएगा. जिससे वोटर भ्रमित होंगे और वोटों का बंटवारा हो जाएगा. उनके कहने के बाद मैं नामांकन वापस लेने के लिए तैयार हो गया.’’
जिन 16 लोगों ने नामांकन वापस लिया है उसमें से दस लोगों से हमने बात की. इनमें से पांच लोगों ने बताया कि उन पर भाजपा की तरफ से प्रेशर था. वहीं, एक सुरेंद्रभाई केशवलाल शाह ने कहा कि मैं अमित भाई शाह का रिश्तेदार हूं. ऐसे में मैंने अपना नामांकन वापस ले लिया. नरेश प्रियदर्शी ने तो नामांकन वापस लेने के बाद भाजपा ही ज्वाइन कर ली.
एक और उम्मीदवार गोस्वामी अमित भारती महेंद्र भारती ने कहा कि प्रेशर था, जिस कारण से नामकंन वापस ले लिया. हमने पूछा कि किसका प्रेशर था तो उन्होंने यह कहकर फोन काट दिया कि आप सब जानते ही हैं.
सिंह और मुलानी दोनों ने बापूनगर के विधायक दिनेश कुशवाहा का नाम लिया. सिंह ने यह भी कहा कि कुशवाहा अपनी गाड़ी में उन्हें नामांकन वापस कराने के लिए ले गए थे. कुशवाहा का पक्ष जानने के लिए जब हम उनके दफ्तर पहुंचे तो उन्होंने तबियत खराब होने की बात कहकर मिलने से मना कर दिया. फोन पर हमने उनके ऊपर लगे आरोपों के बारे में पूछा तो उन्होंने ऐसी किसी भी जानकारी से इनकार करते हुए कहा लोग तो कुछ भी कहते हैं.
नामांकन वापस लेने वाले एक और निर्दलीय उम्मीदवार से हम साबरमती आश्रम में मिले. उनका आरोप है कि भाजपा की तरफ से प्रेशर बनाकर नामांकन वापस करा दिया गया. डर के कारण इन्होंने अपनी पहचान जाहिर नहीं की.
न्यूज़लॉन्ड्री को इन्होंने बताया, “मुझ तक भाजपा के विधायक (नाम नहीं बताते हैं) एक रिश्तेदार के जरिए पहुंचे. रिश्तेदार जो सरकारी नौकरी करते हैं, उन पर प्रेशर बनाया गया. वो मेरे पास आए और बोले कि इस बार मेरे लिए अपना नामांकन वापस ले लो. मुझे परेशानी हो रही है. उसके बाद विधायक के साथ उन्होंने बैठक कराई. बैठक में मुझसे नामांकन वापस लेने के लिए कहा गया और वजह दी कि दो ईवीएम मशीन हो जाएगा जिससे वोट बंट जाएगा.”
ये आगे बताते हैं, ‘‘मुझसे कहा गया कि अमित भाई को इस बार 10 लाख के अंतर से जिताना है. ऐसे में हम नहीं चाहते कि वोटर इधर- उधर में भटके. रिश्तेदार की नौकरी के कारण मैं नामांकन वापस लेने के लिए तैयार हो गया.’’
इन्हें नामांकन वापस लेने से पहली वाली रात को अहमदाबाद के एक सैटेलाइट एरिया में एक नेता के घर पर रखा गया. इन्होंने बताया, ‘‘21 अप्रैल को मैं एक शादी में गया हुआ था. वहां से लौटा तो मेरे रिश्तेदार मुझे लेने आए. एक भाजपा नेता के घर पर मुझे ले जाया गया. वहां मुझे नामकंन वापस लेने वाले फार्म पर हस्ताक्षर कराया गया और रात में वहीं रुकने के लिए कहा गया. अगली सुबह मैंने अपना नामांकन वापस ले लिया.’’
सिर्फ निर्दलीय या छोटी पार्टियों से जुड़े उम्मीदवारों का नामांकन वापस नहीं कराया गया बल्कि कथित तौर पर अमित शाह की जीत का अंतर 10 लाख तक करने का प्रेशर कांग्रेस जैसी राष्ट्रीय पार्टी पर भी हो रहा है. गांधीनगर में कांग्रेस नेताओं और कार्यकर्ताओं पर प्रचार नहीं करने का दबाव है. कांग्रेस नेताओं की मानें तो यह दबाव पुलिस के जरिए डाला जा रहा है.
यहां से कांग्रेस ने सोनल पटेल को उम्मीदवार बनाया है. सानंद में चुनाव प्रचार के दौरान हमारी मुलाकात पटेल से हुई. अहमदाबाद से सानंद और गांधीनगर तक कहीं भी हमें कांग्रेस का झंडा नज़र नहीं आता है. जगह-जगह पीएम मोदी की बड़ी सी तस्वीर और अलग-अलग नारे लिखे होर्डिंग्स ज़रूर दिख जाते हैं.
कांग्रेस प्रचार-प्रसार से नदारद क्यों है? इस सवाल पर पटेल कहती हैं, ‘‘आप जिस होर्डिंग की बात कर रहे हैं वो तो पार्टी (भाजपा) के द्वारा लगाए गए हैं. और बहुत समय से उन्होंने लगवाए हैं. उनके पास संसाधन बहुत ज़्यादा हैं. यह तो कुछ भी नहीं है, अभी तो बहुत सारा हट गया है. होर्डिंग्स और बैनर लगाने के लिए भाजपा वाले किसी से इज़ाज़त नहीं लेते. लेकिन हमें परमिशन लेना पड़ता है. लोग हमारा होर्डिंग्स लगाने से झिझकते और डरते हैं. भले ही वो कांग्रेस के समर्थक हों लेकिन वो किसी परेशानी में नहीं पड़ना चाहते हैं. यह बहुत बड़ी दिक्कत है.’’
पटेल आगे कहती हैं, ‘‘यहां भय का माहौल है. हमारे नेताओं और कार्यकर्ताओं पर पुलिस मशीनरी का बहुत प्रेशर है. नेताओं को फोन कर बुलाया जाता है. आईजी स्तर के अधिकारी भी फोन करते हैं. जिस स्तर का नेता है उस स्तर के अधिकारी के फोन आते हैं. बुलाकर हमारे नेताओं को धमकाया जाता है, पुराने केस खोल देंगे. तुम प्रचार न करो. यह सीट तो अमित शाह ऐसे ही जीतने वाले हैं. आप लोग हट जाओ. साहब को पूरे इंडिया में सबसे ज़्यादा मार्जिन से जिताएंगे.’’
न्यूज़लॉन्ड्री गांधीनगर के कलोल विधानसभा क्षेत्र पहुंचा. यहां से कांग्रेस के विधायक रहे बलदेवजी ठाकोर के दफ्तर में हमारी मुलाकात कई कांग्रेस के कायर्कताओं से हुई. ज़्यादातर के पास पुलिस द्वारा परेशान किए जाने की कहानी है. लेकिन कोई भी कैमरे के सामने नहीं बोलना चाहता है.
यहां हम एक महिला कांग्रेस कार्यकर्ता से मिले. उनके बेटे ने कुछ साल पहले अंतरजातीय शादी कर ली थी. महिला का आरोप है कि इसी बात का डर दिखाकर उन्हें प्रचार करने से रोका जा रहा है. न्यूज़लॉन्ड्री से बात करते हुए वो कहती हैं, ‘‘भैया बहुत परेशान किया जा रहा है. छुपछुप कर पार्टी का प्रचार कर रहे हैं. बेटे का पुराना मामला है उसी का भय दिखा रहे हैं. कांग्रेस से सालों से जुड़े हैं तो अभी पार्टी का थोड़ा बुरा समय चल रहा है तो इसे कैसे छोड़ दें. इतने तो नमकहराम नहीं है. डर-डर कर काम कर रहे हैं. मैं आपको इंटरव्यू देती लेकिन बहुत प्रेशर है.’’
यहीं पर हमारी मुलाकात कांग्रेस की एक अन्य महिला नेता से हुई. डर के कारण वो अपनी पहचान उजागर नहीं करती हैं. अपने फोन के व्हाट्सएप कॉल डिटेल्स दिखाते हुए वो एक नंबर की तरफ इशारा करते हुए कहती हैं, “यह एक पीएसआई (पुलिस सब इंसपेक्टर) का नंबर है. दिन में दस बार कॉल करता है. मैं उठाती नहीं, अगर उठा लेती हूं तो सामने से जवाब आता है मैडम आराम करो. क्यों इतनी मेहनत कर रही हो. वैसे भी हार ही रही हो.’’
कलोल विधानसभा क्षेत्र में हर दिन कांग्रेस नेता पार्टी छोड़ भाजपा ज्वाइन कर रहे हैं. जिस दिन हम यहां मौजूद थे उसी दिन जय शाह की उपस्थिति में कलोल विधानसभा के कांग्रेस पार्टी अध्यक्ष रहे अशोक भाई ने भाजपा का दामन थाम लिया.
अशोक ने कांग्रेस की अपनी महिला साथी को इस इवेंट की तस्वीर भेजकर उन्हें भी भाजपा में आने के लिए कहा. ये महिला नेता बताती हैं, ‘‘हमारी पार्टी ने कलोल विधानसभा में चार कार्यकारी अध्यक्ष बनाए थे. उनमें से दो भाजपा में जा चुके हैं. यहां ज्यादातर नेता राजनीति के साथ-साथ बिजनेस भी करते हैं. बिजनेस को दबाना सिस्टम के लिए बहुत आसान होता है. यहां गांधीनगर में लुखी दादागिरी चल रही है. हमें डर है कि चुनाव वाले दिन बूथ पर कोई हमारा कोई कार्यकर्ता बैठने को तैयार होगा या नहीं.’’
गांधीनगर के कांग्रेस दफ्तर में हमारी मुलाकात मुकेश मारु से हुई. कांग्रेस सेवा दल से जुड़े मारु पूर्व में गुजरात सरकार में कर्मचारी रहे हैं. वो बताते हैं, ‘‘जब से चुनाव की घोषणा हुई तब से हमारे नेताओं और कार्यकर्ताओ को पुलिस धमका रही है. हम गांधीनगर में एक मीटिंग करने वाले थे. हॉल बुक कर लिया. लोगों के लिए खाना भी बनवा लिया. अंत में हॉल के मालिक ने मना कर दिया. हमने पूछा तो बोला पुलिस का दबाव है. उसके बाद हम यहां के दो हॉल में गए. अंबडेकर भवन के लिए गए लेकिन सबने पुलिस के डर से मना कर दिया. मजबूरन हमें वो कार्यक्रम पार्टी दफ्तर में करना पड़ा. वो बहुत छोटी जगह है. हमारा खाना भी बर्बाद हुआ.’’
मारु बताते हैं, ‘‘पुलिस द्वारा नेताओं को बुलाकर धमकी देने से कायकर्ताओं पर बुरा असर पड़ता हैं. उनका मनोबल टूटता है. उन्हें लगता है कि जब नेताओं को नहीं छोड़ रहे तो हमारे साथ क्या करेंगे. उनका मकसद भी यही है कि कार्यकर्ता डर जाए.’’
पुलिस का इनकार
लोकसभा चुनाव के दौरान गुजरात पुलिस पर लगातार सवाल खड़े हो रहे हैं. सूरत में पुलिस पर आरोप लगा था कि वही बसपा के उम्मीदवार को ढूंढ़ कर लाई थी. जिसने बाद में अपना नामकंन वापस ले लिया था.
गांधीनगर में भी ऐसे ही लोग आरोप लगा रहे हैं. इसको लेकर हमने गुजरात के डीजीपी विकास सहाय से बात की. उनका जवाब था, ‘‘इस पर मुझे कुछ नहीं कहना. पुलिस निष्पक्ष होकर काम कर रही है.’’
गांधीनगर के चुनाव अधिकारी या कलक्टर मेहुल के. दवे से जब हमने यही सवाल किया तो उन्होंने कहा, “मेरे पास लोग आए और नामांकन वापस किया. मुझे किसी ने ऐसी कोई जानकारी नहीं दी. अगर जानकारी आती है तो हम कार्रवाई करेंगे.”
गांधीनगर के पुलिस अधीक्षक रवि तेजा वसामसेट्टी ने भी पुलिस द्वारा कांग्रेस के नेताओं को फोन करने और चुनाव से दूर रहने के सवाल पर वही बात दोहराई, ‘‘अगर ऐसी कोई बात होती तो किसी न किसी ने शिकायत तो दी होती. अभी तक किसी ने शिकायत नहीं दी है.’’
हालांकि, इस मामले में दिल्ली में रहने वाली सामाजिक कार्यकर्ता शबनम हाशमी ने चुनाव आयोग को लिखित शिकायत 19 अप्रैल को दी है. यह शिकायत उन्होंने कांग्रेस के नेताओं और सामाजिक कार्यकर्ताओं से बात करके दी है.
शिकायत देने के 10 दिन बाद न्यूज़लॉन्ड्री ने शबनम से बात की. वो कहती है, ‘‘मैं गांधीनगर लोकसभा क्षेत्र गई थी और वहां 14 से 18 अप्रैल के बीच तक़रीबन 200 लोगों से मिली थी. वहां मुझे लोगों ने बताया कि उन पर पुलिस बेजा प्रेशर डाल रही है. खासकर क्राइम ब्रांच के द्वारा और लोगों से कहा जा रहा है कि निष्क्रिय हो जाइये. कांग्रेस के लिए काम मत कीजिए. कांग्रेस की उम्मीदवार सोनल पटेल से भी मेरी बात हुई. लोगों से बात करने के बाद मैंने चुनाव आयोग को पत्र लिखा. अब तक इसका मेरे पास आधिकारिक तौर पर जवाब तो नहीं आया लेकिन मुझे यह पता चला है कि कलोल और दूसरी जगहों पर राम मंदिर को लेकर भाजपा ने बड़ी-बड़ी होर्डिंग्स लगा रखी थी, वो हटा दिया गया है. देखें तो असर तो हुआ लेकिन मुझे लिखित रूप में कोई जवाब नहीं मिला है.’’
10 लाख वोटों का गणित
अटकलें है कि 10 लाख से ज़्यादा के अंतर से चुनाव जीतने के लिए यह सब हथकंडे भाजपा द्वारा अपनाये जा रहे हैं. लेकिन क्या यह संभव है. गांधीनगर में करीब 25 लाख मतदाता है. अभी तक का रिकॉर्ड देखें तो यहां सबसे ज़्यादा 2019 में तक़रीबन 13 लाख वोटिंग हुई थी. यहां औसतन 50 से 55 प्रतिशत वोटिंग होती हैं.
यहां कांग्रेस को एक निर्धारित वोट मिलते ही हैं. 2014 में यहां मोदी लहर के बावजूद कांग्रेस को 25 प्रतिशत मत मिले. वहीं 2019 में यह बढ़कर 26 प्रतिशत हुआ. ऐसे में कांग्रेस नेताओं की मानें तो 10 लाख के अंतर से जीतना दूर की कौड़ी है.
लेकिन यहां एक बात और ध्यान देने वाली हैं. अभी गांधीनगर से 14 उम्मीदवार मैदान में हैं और इसमें से सात मुस्लिम हैं. वहीं, अगर नामांकन वापस लेने वाले मुस्लिम उम्मीदवारों की बात करें तो इनकी संख्या 3 है और रिजेक्ट सिर्फ एक का हुआ है. कांग्रेस इसे मुस्लिम वोटों के बंटवारे के लिए भाजपा का खेल बता रही है. यानी भाजपा ने अपरोक्ष तरीके से मुस्लिम उम्मीदवार खड़े करवाए हैं. एक मुस्लिम उम्मीदवार तो कांग्रेस के कार्पोरेटर थे इसके बावजूद उन्होंने निर्दलीय नामांकन भर दिया.
गुजरात की 26 लोकसभा सीटों में से 25 पर सात मई को मतदान है. गांधीनगर की बात करें तो यह सीट लंबे समय से भाजपा के पास है. कांग्रेस ने यह सीट हासिल करने के लिए 1996 में फिल्मस्टार राजेश खन्ना को मैदान में उतारा था लेकिन कामयाब नहीं हुई. 1998 में प्रसिद्ध चुनाव आयुक्त टीएन शेषन पर दांव लगाया, लेकिन यहां की जनता ने भाजपा पर ही भरोसा किया.
2019 में भाजपा दिग्गज लाल कृष्ण आडवाणी की जगह अमित शाह यहां से चुनाव लड़े और तकरीबन पांच लाख के अंतर से चुनाव जीते. एक बार फिर शाह यहां से चुनावी मैदान में हैं. दस लाख वोट से जीत की अटकलों पर सब दम साधे बैठे हैं, विपक्ष नदारद है, उसके साथ चुनाव आयोग भी.
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