भाजपा के उम्मीदवार मुकेश दलाल (बाएं) और कांग्रेस प्रत्याशी नीलेेश कुम्भानी
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सूरत का सूरत-ए-हाल: नामांकन के दिन ही ‘फिक्स’ था चुनाव

गुजरात की 26 सीटों पर चौथे चरण में 7 मई को लोकसभा के लिए चुनाव होना है. 4 जून को नतीजे आएंगे. लेकिन करीब डेढ़ महीना पहले ही 22 अप्रैल को सूरत लोकसभा क्षेत्र से भारतीय जनता पार्टी के उम्मीदवार मुकेश दलाल निर्विरोध विजेता घोषित हो गए. 23 अप्रैल को कांग्रेस कार्यकर्ताओं ने अपने उम्मीदवार के घर पहुंचकर विरोध प्रदर्शन किया. उसे ‘गद्दार’ और ‘लोकतंत्र का अपमान’ करने वाला बताया.

21 अप्रैल को सूरत से कांग्रेस के उम्मीदवार नीलेश कुम्भानी का नामांकन रद्द हो गया. कुम्भानी के अलावा एक और उम्मीदवार सुरेशभाई पडसाला का नामांकन भी रद्द कर दिया गया. पडसाला कांग्रेस की तरफ से डमी उम्मीदवार थे. 

इसके बाद बसपा उम्मीदवार ने अपना नामांकन वापस ले लिया. उनके साथ-साथ सात अन्य निर्दलीय प्रत्याशियों ने भी अपना नामांकन वापस ले लिया. इस तरह मुकेश दलाल के निर्विरोध निर्वाचन का रास्ता साफ हो गया. यह सब कितना आसानी से चुपचाप होता दिख रहा है. लेकिन क्या यह सच है.

इस घटना ने कई सारे सवाल पैदा किए हैं. मसलन सूरत में जो कुछ हुआ क्या सब पहले से तय था? क्या इसमें कांग्रेस के उम्मीदवार कुम्भानी की मिलीभगत थी? आखिर कुम्भानी नामांकन रद्द होने के बाद से गायब क्यों हैं?

हमारी यह रिपोर्ट इन्हीं कुछ सवालों के जवाब तलाशने की कोशिश है. 

चार संकेत जो बताते हैं कि सब कुछ स्क्रिप्टेड था

जिस दिन से सूरत में भाजपा निर्विरोध चुनी गई है, उसी दिन से कांग्रेस प्रत्याशी कुम्भानी पार्टी नेताओं के संपर्क से बाहर हैं. हम सूरत स्थित कुम्भानी के आवास पर गए तो वहां हमें ताला लटका मिला. गार्ड ने हमें बताया कि चार दिन पहले ही सारे लोग परिवार की शादी में चले गए हैं. 

1- परिस्थितियां इशारा करती हैं कि कुम्भानी इस खेल में भाजपा के साथ मिले हुए थे. मसलन, आखिरी वक्त तक उन्होंने अपना चुनावी कार्यालय नहीं खोला था. सूरत के योगी चौक में उनका एक छोटा सा कार्यालय हुआ करता था. 21 अप्रैल तक यहां उनके होर्डिंग्स लगे हुए थे. दस-पंद्रह कुर्सियां भी थी. एकाध बार वो खुद यहां आए थे. लेकिन 21 अप्रैल की रात में चुनाव से संबंधित उनका सामान हटा दिया गया. होर्डिंग्स उतारकर खुले मैदान में फेंक दिया गया.

कांग्रेस प्रत्याशी कुम्भानी पार्टी नेताओं के संपर्क से बाहर हैं.

एक और बात से इस शक को बल मिल रहा है कि जो कुछ हुआ वो पहले से तय था. कांग्रेस के नेताओं को इसका कुछ-कुछ अंदाजा होने लगा था. इसकी शुरुआत 18 अप्रैल को हुई. जब कुम्भानी ने नामांकन दाखिल किया.

2- कुम्भानी ने तीन फॉर्म दाखिल किए थे. सबमें एक-एक प्रस्तावक थे. इन्हें गुजरात में ‘टेकेदार’ कहते हैं. नॉमिनेशन फॉर्म पर इन्हीं का हस्ताक्षर होता है. आमतौर पर प्रस्तावक पार्टी के विश्वस्त कार्यकर्ता होते हैं लेकिन कुम्भानी ने अपने रिश्तेदार और बिजनेस पार्टनर को प्रस्तावक बनाया.

कुम्भानी के तीन प्रस्तावक- रमेश भाई बापचंद भाई, धामेलिया ध्रवील धीरूभाई और जगदीश भाई नांजीभाई सावलिया थे. बता दें कि रमेश, कुम्भानी के बिजनेस पार्टनर हैं. धामेलिया उनके सगे भांजे और जगदीश भाई उनके बहनोई हैं.

3- इसी तरह कांग्रेस के जो डमी कैंडिडेट थे, उनका भी चयन खुद कुम्भानी ने ही किया था. इनका नाम है सुरेशभाई पडसाला. कांग्रेस पार्टी ने पहले डमी प्रत्याशी के लिए सूरत शहर के कार्यकारी अध्यक्ष दिनेश सावलिया को तय किया था. लेकिन कुम्भानी ने दबाव डालकर सुरेशभाई पडसाला को डमी कैंडिडेट बनाया. कांग्रेस के सीनियर कार्यकर्ता बताते हैं कि इसे लेकर दिनेश और कुम्भानी के बीच बहस भी हुई थी.

दिनेश सावलिया ने न्यूज़लॉन्ड्री को बताया, ‘‘पडसाला, कांग्रेस से जुड़े जरूर थे लेकिन कुम्भानी के करीबी थे. आप कह सकते हैं कि उनके खास थे.’’ 

वो आगे जोड़ते हैं, ‘‘पडसाला के प्रस्तावक भी कुम्भानी के ही करीबी थे. इनका नाम विशाल भाई चिमनभाई कोलाडिया है. ये भी कुम्भानी के ही रिश्तेदार हैं.

4- समान्यतः जब कोई भी उम्मीदवार नामांकन दाखिल करने जाता है तो वो अपने साथ प्रस्तावक को लेकर जाता है. चुनाव अधिकारी भी प्रस्तावक से बात करते हैं. इस पूरी प्रक्रिया की वीडियोग्राफी होती है. कुम्भानी के प्रस्तावक उस दिन जिलाधिकारी दफ्तर में तो आए थे लेकिन नामांकन के समय वो कैमरे के सामने मौजूद नहीं हुए. 

इसी के साथ इस असाधारण घटनाक्रम की शुरुआत हो गई थी. 

विधानसभा चुनाव में भी हुई थी ऐसी ही कोशिश

2022 में गुजरात विधानसभा चुनाव के दौरान सूरत पूर्व सीट से कांग्रेस के उम्मीदवार रहे असलम साईकिलवाला न्यूज़लॉन्ड्री को बताते हैं, ‘‘ऐसा ही खेल 2022 के विधानसभा चुनाव के दौरान मेरे क्षेत्र में करने की कोशिश हुई थी. तब आम आदमी पार्टी के उम्मीदवार कंचन जरीवाला थे. जरीवाला का भाई ही उनका ‘टेकेदार’ (प्रस्तावक) था. वो चुनाव अधिकारी के पास यह कहने के लिए गया कि मेरा हस्ताक्षर गलत हुआ है. लेकिन उस बार हुआ यूं था कि नामांकन के समय कंचन जरीवाला के साथ उसका भाई मौजूद था. हमने छह घंटे आंदोलन किया. वीडियो निकलवाए तब जाकर उसका नामांकन वैध हुआ. हालांकि आगे चलकर उसने नाम वापस ले लिया. शायद उस गलती से सीख लेकर इन्होंने इस बार प्रस्तावक को कैमरे के सामने आने ही नहीं दिया. उसी दिन से इसकी प्लानिंग हो रखी थी.’’

20 अप्रैल को चुनाव अधिकारी ने सुबह ग्यारह बजे उम्मीदवारों को नामांकन पत्रों की जांच के लिए बुलाया था. कुम्भानी नहीं पहुंचे. इसी बीच 11:42 बजे भाजपा उम्मीदवार के चुनावी एजेंट और सूरत के पूर्व उप मेयर दिनेशभाई जोधानी ने अधिकारी को एक हस्तलिखित शिकायत दी. जिसमें बताया गया कि कुम्भानी के आवेदन में टेकेदार सही नहीं है. उसकी जांच की जाए.

दिनेश भाई जोधानी द्वारा अधिकारी को दी गई शिकायत की प्रति.

इस शिकायत के घंटे भर बाद दोपहर करीब एक बजे चारों प्रस्तावक- रमेश भाई बापचंद भाई, धामेलिया ध्रुवीन धीरूभाई, जगदीश भाई नांजीभाई सावलिया और विशाल भाई चिमनभाई कोलाडिया एफिडेविट लेकर पहुंचे. उन्होंने बताया कि कुम्भानी और पडसाला के नॉमिनेशन फॉर्म पर जो हस्ताक्षर हैं, वो हमारे नहीं हैं.

सवाल उठता है कि इन चारों ने अगर हस्ताक्षर नहीं किया था तो इन्हें कैसे पता चला कि किसी ने इनके नाम से हस्ताक्षर किया है? यह सवाल इसलिए महत्वपूर्ण है क्योंकि प्रस्तावकों की जानकारी चुनाव आयोग सार्वजनिक नहीं करता है. 

क्या उम्मीदवारों को एक दूसरे की फाइल देखने को दी जाती है. इस सवाल का जवाब सूरत के जिलाधिकारी डॉ. सौरभ पारधी ‘हां’ में देते हैं. वे बताते हैं, ‘‘भाजपा उम्मीदवार के चुनाव एजेंट ने इनकी (कांग्रेस) फाइल मांगी और देखने के बाद बताया कि जिन प्रस्तावकों के हस्ताक्षर हुए हैं, वो सही नहीं लग रहे हैं. कुछ गड़बड़ है. आप जांच करवाइए. जिसके बाद मैंने एक बजे का समय दिया.’’

यहां समय में एक संकेत छिपा है. 11 बजे भाजपा उम्मीदवार के चुनाव एजेंट को शक होता है कि हस्ताक्षर में गड़बड़ी है. उन्होंने 11:42 बजे इसकी शिकायत की. लेकिन इन चारों प्रस्तावकों के हलफनामे 11 बजे से पहले ही बन चुके थे. इतना ही नहीं, ये सारे हलफनामे भाजपा के नेता और पेशे से वकील किरण घोघारी के यहां बने. इनके हलफनामे पर नोटरी के तौर पर घोघारी के हस्ताक्षर हैं.

हमारे पास चारों के हलफनामे मौजूद हैं. इन पर जारी होने की तारीख, समय और क्रमांक दर्ज है. विशाल भाई का स्टाम्प पेपर 20 अप्रैल की सुबह 10:46 पर, जगदीश भाई का 10:48 पर, धर्मेलिया ध्रुविन का 10:50 पर और रमेश भाई का 10:51 पर ख़रीदा गया. इन चारों के सीरियल नंबर भी 49, 50, 51 और 52 हैं. यानी साथ-साथ बने हैं. 

इस पूरे मामले पर बातचीत करने के लिए हमारी टीम किरण घोघारी के दफ्तर पहुंची. घोघारी तो वहां नहीं मिले लेकिन उनके दफ्तर में मौजूद स्टाफ ने पुष्टि की कि ये सारे हलफनामे उन्हीं के यहां से बने हैं. किरण से मिलने या बातचीत के अनुरोध पर उन्होंने टीम को अपॉइंटमेंट लेकर आने को कहा.

यह संयोगों का दुर्लभ संयोग है कि भाजपा उम्मीदवार के एजेंट दिनेशभाई जोधानी को जो जानकारी 11 बजे के बाद मिली. 11:42 में उन्होंने इस सन्दर्भ में शिकायत दर्ज कराई लेकिन उससे एक घंटा पहले ही इन चारों लोगों का एफिडेविट भाजपा नेता के यहां बन कर तैयार था. जोधानी ने हमें बताया, “मैं भाजपा का चुनावी एजेंट था. मेरी जिम्मेदारी थी तो मैंने शिकायत दर्ज कराई.”

भाजपा नेता किरण घोघारी

आपको यह जानकारी कैसे मिली कि इन चारों का हस्ताक्षर गलत हैं? जोधानी कहते हैं, “चार लोग आए थे, उन्होंने बताया कि उनके हस्ताक्षर नहीं हैं.’’ जब हमने स्पष्ट करना चाहा कि इन चार लोगों के सामने आने पर शिकायत दी या पहले शिकायत दी क्योंकि इनका हलफनामा भाजपा नेता के यहां बना है तो उन्होंने कहा, “आप ज़्यादा सवाल करोगे तो दिक्कत होगी.’’ इसके बाद वे हमसे बात नहीं करते. 

चारों का हलफनामा जमा होने के बाद चुनाव अधिकारी ने एक पत्र कुम्भानी को लिखा. यह पत्र कुम्भानी के चुनाव एजेंट भौतिक कोलड़िया के जरिए भेजा गया. इस पत्र में कहा गया, “आपके प्रस्तावक ने बताया है कि उन्होंने नामांकन के समय हस्ताक्षर नहीं किया है. आप शाम चार बजे तक अपना पक्ष रखें.”

इस मौके पर कुम्भानी की भूमिका फिर से संदेहास्पद हो जाती है. उन्होंने यह जानकारी पार्टी और उसके शीर्ष नेताओं को नहीं दी. इसी बीच जिलाधिकारी दफ्तर से यह खबर लीक हो गई. आनन-फानन में कांग्रेस लीगल सेल के सदस्य अजय गोंडलिया, ज़मीर शेख और दूसरे अन्य नेता जिलाधिकारी कार्यालय पहुंचे. कुम्भानी उस वक्त तक भी वहां नहीं पहुंचे थे. 

वहां, मौजूद कांग्रेस के एक नेता ने न्यूज़लॉन्ड्री को बताया कि हम बार-बार कुम्भानी को फोन कर रहे थे. दोपहर ढाई बजे के बाद जाकर कुम्भानी पहुंचे. उन्होंने बताया कि सारे प्रस्तावक संपर्क से बाहर हैं. वे कोशिश कर रहे हैं, जल्द ही वो सब संपर्क में आ जाएंगे. कांग्रेस लीगल सेल के लोगों ने पूछा कि क्या उनको डराया-धमकाया गया है या कहीं रोककर रखा हुआ है? इन सवालों का जवाब कुम्भानी ने ‘ना’ में दिया. पार्टी कार्यकर्ताओं के दबाव डालने के बाद उमरा थाने में उन्होंने अर्जी दी कि उनके तीन प्रस्तावक गायब हैं.

शाम के पांच बजे कुम्भानी यह कहकर घर चले गए कि वो प्रस्तावकों को ढूंढ़ने जा रहे हैं. उसके बाद से वो भी ‘गायब’ हैं. 

चुनाव अधिकारी यानी जिले के डीएम ने कांग्रेस को 21 अप्रैल की सुबह 09 बजे तक अपना पक्ष रखने का समय दिया. समय के मुताबिक, कांग्रेस लीगल सेल की तरफ से चुनाव अधिकारी को विस्तार से मामले की जानकारी दी गई. जिसमें अतीत में हुई इस तरह की घटनाओं का जिक्र था. बताया गया कि इस पूरे घटनाक्रम में भाजपा नेताओं की संलिप्तता है और प्रस्तावक भाजपा नेताओं के संपर्क में हैं.

कांग्रेस के जवाब से जिलाधिकारी संतुष्ट नहीं हुए. डॉ. सौरभ पारधी ने न्यूज़लॉन्ड्री को बताया, ‘‘कांग्रेस के एजेंट, उनके वकील और बाकी उम्मीदवारों के एजेंट के सामने, वीडियो कैमरा पर मैंने पूछा कि आपको किसी ने डराया तो नहीं? किसी प्रकार का भय तो नहीं है? उन्होंने कहा कि हम अपने मन से हलफनामा लेकर आए हैं. हमने कांग्रेस एजेंट की मांग पर एक दिन बाद का समय दिया. उनका पक्ष आया. लेकिन इनके दस्तावेजों और नामांकन पत्र पर हुए हस्ताक्षर मुझे एक नहीं लगे. जिसके बाद नामांकन रद्द हुआ.’’

गौरतलब है कि 22 अप्रैल को नामांकन वापसी का आखिरी दिन था. उसी दिन बसपा और सात निर्दलीय उम्मीदवारों ने भी अपना नामांकन वापस ले लिया. कांग्रेस का आरोप है कि लालच देकर सबकी उम्मीदवारी वापस कराई गई. 

असलम साईकिल वाला कहते हैं, “भाजपा के कई मोर्चे हैं लेकिन इस बार एक नया मोर्चा सामने आया- वो है पुलिस मोर्चा. जिसने इस बार खूब सक्रिय भूमिका निभाई. पुलिस मोर्चा ने ड्यूटी की बजाए कुछ नेताओं की चापलूसी करने के लिए काम किया. इससे लोकशाही का कत्लेआम हुआ है.’’

बरैया रमेशभाई परसोत्तमभाई ने भी निर्दलीय के तौर पर नामांकन दाखिल किया था. उन्होंने हमें बताया, ‘‘मैं भावनगर के अपने  गांव में आया हूं. गेहूं कटाई का काम था.’’ आपने अपना नामाकंन वापस क्यों ले लिया. इसपर वो कहते हैं, ‘‘मुझे घर पर ज़रूरी काम आ गया था.’’

नामाकंन वापस लेने वालों में एक जयेश भाई मेवाड़ा भी हैं. वह ग्लोबल रिपब्लिकन पार्टी के उम्मीदवार थे. नामांकन वापसी की वजह पूछने पर वह कहते हैं, “सबने वापस ले लिया तो मैंने भी ले लिया. अब इसके बारे में बात करने का कोई मतलब नहीं है.’’ इतना कहकर वह फोन काट देते हैं. हालांकि, वह अपने पर किसी भी दबाव की बात से इनकार करते हैं.  

कुम्भानी के नामांकन वापस लेने पर कांग्रेस कार्यकर्ताओं में क्षोभ है.

कांग्रेस की चूक  

सवाल उठता है कि कांग्रेस ने सबकुछ कुम्भानी के मन से क्यों होने दिया. प्रस्तावक जब पार्टी का कार्यकर्ता होता है तो उनके रिश्तेदारों को प्रस्तावक क्यों बनने दिया? उनके हिसाब से डमी उम्मीदवार क्यों उतारा गया?

इस सवाल के जवाब में कांग्रेस के जिला प्रमुख श्री धनसुखभाई भगवती प्रसाद राजपूत कहते हैं, ‘‘प्रस्तावक उस दिन जिला अधिकारी के कार्यालय में मौजूद थे. लेकिन उनके दफ्तर में सिर्फ पांच लोगों को ही जाने दिया. मैं भी था उसमें. ऐसे में वह बाहर ही रह गए. हमारे उम्मीदवार ने जिलाधिकारी से पूछा कि इसमें कोई गलती हो तो देख कर बताए. करीब 20 मिनट बाद उन्होंने कहा- सब ठीक है, तब हम वापस आए.’’

रिश्तेदारों को प्रस्तावक बनाने के सवाल पर धनसुखभाई कहते हैं, ‘‘पार्टी ने नीलेश कुम्भानी पर भरोसा करके ही टिकट दिया था. अगर वो कहता है कि ये मेरा बहनोई है और मेरा टेकेदार है तो क्या हम उस पर भरोसा नहीं करेंगे? उसके बहनोई थे, भांजे थे, तभी तो हमने उसे ‘लेट गो’ किया. जब कांग्रेस अध्यक्ष ने उसे टिकट दे दिया तो हमारा उस पर भरोसा नहीं करने का कोई सवाल ही नहीं उठता है.’’

कांग्रेस के कार्यकारी जिला अध्यक्ष दिनेश सवालिया कांग्रेस की चूक पर कहते हैं, ‘‘इन लोगों ने आखिरी तक हमें भनक नहीं लगने दी कि ऐसा हो सकता है. किसी उम्मीदवार के प्रस्तावक ही मुकर जाएंगे ये तो मुझे लगता है कि देश की पहली घटना होगी. जैसे-जैसे समय गुजर रहा है हमें लग रहा कि कुम्भानी, भाजपा नेताओं के साथ मिलकर यह सब कर रहे थे. उन्होंने यहां से निकलते हुए कहा कि हाईकोर्ट जा रहा हूं लेकिन 22 अप्रैल के बाद कुम्भानी या डमी उम्मीवार हमारे सम्पर्क में नहीं हैं.’’ 

कांग्रेस और आप कार्यकर्ताओं में क्षोभ 

साल 1989 से सूरत लोकसभा पर भाजपा के उम्मीदवार ही जीत रहे हैं. भाजपा के दर्शन विक्रम जरदोश ने साल 2019 में पांच लाख से ज़्यादा अंतर से जीत दर्ज की थी. इस बार यहां से भाजपा से अपना उम्मीदवार बदल दिया था. 

सूरत में कैब चलाने वाले रणदीप पटेल कहते हैं, ‘‘ऐसा नहीं था कि अगर चुनाव होता तो भाजपा हार जाती. ऐसी कोई विपक्ष की लहर भी नहीं चल रही है. लेकिन जिस तरह से चुनाव में जीत हासिल हुआ है अभी वो लोकशाही का अपमान है. पांच साल में लोगों को मत देने का मौका मिलता है. वो भी छीन लिया गया. सब लोग अपने मन से एक साथ चुनाव से हट जाएं यह थोड़ा मुश्किल लगता है.’’

वहीं, कांग्रेस के समर्थक असलम भाई भी अफसोस करते हुए कहते हैं, ‘‘इतनी महंगाई है. कमाई नहीं है. नौकरी नहीं है. नाराजगी जाहिर करने, प्रदर्शन करने जाए तो घर में चूल्हा नहीं जलेगा. ऐसे में हम लोग चुनाव में ही वोट के जरिए अपनी बात दर्ज कराते हैं. लेकिन अब तो इधर चुनाव ही नहीं होगा. यह मतदाताओं के साथ धोखा है.’’

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