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सीमांचल, बिहार: भय, असुरक्षा, असमंजस के बीच मुसलमानों के मतदान की चुनौती

पहले चरण की 102 सीटों पर 19 अप्रैल मतदान हो चुका है. दूसरे चरण का मतदान आगामी 26 अप्रैल को होना है. एक तरफ इंडिया गठबंधन है जो बेरोजगारी, महंगाई के साथ लोकतंत्र और संविधान बचाने का दावा कर रहा है, दूसरी तरफ एनडीए गठबंधन है जो 400 पार के नारे के साथ तीसरी बार सत्ता में आने का दावा कर रहा है. 

इसी बीच प्रधानमंत्री मोदी ने राजस्थान के बांसवाड़ा में एक रैली को संबोधित करते हुए कहा, “पहले जब उनकी (कांग्रेस) सरकार थी तब उन्होंने कहा था कि देश की संपत्ति पर पहला अधिकार मुसलमानों का है. इसका मतलब ये संपत्ति इकट्ठी करके किसको बांटेंगे? जिनके ज्यादा बच्चे हैं, उनको बांटेंगे. घुसपैठियों को बाटेंगे… ये अर्बन नक्सल आपकी बहू बेटियों का मंगलसूत्र भी बेच देंगे.”

प्रधानमंत्री मोदी के इस भाषण ने एक बार फिर से मुस्लिम समुदाय को अपनी मुस्लिम पहचान, सुरक्षा और भारत में उनके भविष्य को लेकर चिंता पैदा की है. 

बिहार के किशनगंज जिले के रहने वाले 25 वर्षीय फैज़ान अहमद गहरी चिंता जताते हुए कहते हैं, “दाढ़ी टोपी के साथ जब हम ट्रेन में सफर करते हैं तो लगता है कि हमारे साथ कोई घटना न घट जाए. जब हम खबरें सुनते हैं की किसी को दाढ़ी की वजह से मार दिया गया, किसी का नाम मुसलमान होने की वजह से मार दिया गया, तो लगता है कि मुसलमान बिल्कुल सुरक्षित नहीं है.”

स्थानीय निवासी फारुख कहते हैं, “देश में जिस तरह के कानून सरकार लेकर आ रही है (सीएए-एनआरसी) उससे हमें चिंता होती है कि पता नहीं इस देश में हमारा क्या होगा.” 

वहीं मसूद आलम कहते हैं, “मुसलमान इस देश में धरना नहीं दे सकता, अपने ऊपर हुए जुल्म के खिलाफ आवाज नहीं उठा सकता. अगर वह आवाज उठाता है तो या तो उसे जेल में डाल दिया जाता है या फिर उसके घर पर बुलडोजर चला दिया जाता है. क्या यही भारत का लोकतंत्र है?” 

जब हम उपरोक्त चिंताओं को समझने के लिए इलाके में घूमते हैं, लोगों से मिलते हैं तब हमें पता चलता है कि यह बातें महज तीन लोगों की नहीं हैं बल्कि एक पूरे समुदाय की सामूहिक मानसिकता है. 

ऐसे में इस लोकसभा चुनाव में यह जानना बेहद जरूरी हो जाता है कि आज एक आम मुस्लिम मतदाता का मन किन सवालों से जूझ रहा है. क्या मुस्लिम समुदाय इस लोकसभा चुनाव के जरिए फिर से भारतीय राजनीति में खुद की प्रासंगिकता साबित कर पाएगा? मुस्लिम अस्मिता के इतर महंगाई बेरोजगारी और गरीबी जैसे मुद्दे भी एक आम मुस्लिम वोटर के लिए कितना मायने रखते हैं? सीएए, एनआरसी, समान नागरिक संहिता और गाहे-बगाहे सत्ताधारी नेताओं के द्वारा संविधान बदलने की बातों का मुस्लिम मतदाता पर क्या प्रभाव पड़ता है? असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी एआईएमआईएम को लेकर मुस्लिम क्या सोचते हैं? क्या मुसलमान देश में अपनी अलग लीडरशिप चुनेगा या फिर सेकुलर दलों के साथ जाएगा?

ऐसे तमाम सवाल हैं जिनका जवाब जानने के लिए हमने राजधानी दिल्ली से करीब 2000 किलोमीटर दूर बिहार के मुस्लिम बहुल सीमांचल क्षेत्र की चार लोकसभा सीटों किशनगंज, अररिया, पूर्णिया और कटिहार की जमीनी पड़ताल की.

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के पिछले दो कार्यकाल की तमाम उपलब्धियों और आलोचनाओं के बीच उनका महत्वपूर्ण चुनावी हथियार मुसलमानों के खिलाफ डॉग व्हिसल और धार्मिक आधार पर ध्रुवीकरण है. मोदीराज के 10 सालों में भारत में धार्मिक ध्रुवीकरण और इस्लामोफोबिया काफी हद तक बढ़ा है. देश की संसद में सांसद को इसके लिए अपमानित किया जा चुका है. सड़कों पर मुस्लिम पहचान वालों की लिंचिंग हो चुकी है. मस्जिदों के बाहर हुड़दंग और हमले हो चुके हैं. पुलिसकर्मी नमाजियों को लात मार कर उठा चुके हैं. ट्रेन में जवान मुसलमानों को चुनकर गोली मार चुका है. धर्म संसदों में मुसलमानों के संहार की अपीलें हो चुकी हैं. 

इन सब घटनाओं में विक्टिम मुसलमान है. जबकि 2014 से पहले भारतीय राजनीति में मुस्लिम वोटर किंग मेकर की भूमिका में था. लेकिन 2014 के बाद भारतीय जनता पार्टी की माइनस मुस्लिम पॉलिटिक्स ने भारतीय राजनीति में मुस्लिम वोटर की प्रासंगिकता को हाशिए पर पहुंचा दिया. लगे हाथ मुसलमानों के राजनीतिक प्रतिनिधित्व को भी न्यूनतम स्तर पर ला दिया है. 

2014 में भारत की लोकसभा में केवल 22 मुस्लिम सांसद चुने गए वहीं 2019 में मुस्लिम सांसदों की संख्या 27 जरूर रही लेकिन फिर भी यह संख्या 2014 के कार्यकाल के पहले के मुकाबले कम ही रही. 

यही कारण है की करीब 20 करोड़ आबादी वाले भारतीय मुस्लिम समुदाय के भीतर अपने भविष्य और वर्तमान को लेकर चिंता की भावना शायद कभी इतनी गहरी नहीं रही जितनी आज है.

बिहार जाति आधारित गणना 2022-23 के मुताबिक राज्य में मुस्लिम समुदाय की आबादी 17.7088 प्रतिशत है. वहीं हिंदू समुदाय की आबादी 81.9986 प्रतिशत है. बिहार में कुल 40 लोकसभा सीटें हैं जिनमें से 31 सीटें ऐसी हैं जहां हिंदू समुदाय की आबादी 40% से ज्यादा है वहीं 9 सीटें ऐसी हैं जहां मुस्लिम समुदाय की आबादी 20% से ज्यादा है. सीमांचल में चार लोकसभा क्षेत्र हैं किशनगंज, अररिया, कटिहार और पूर्णिया. इनमें मुसलमानों की आबादी क्रमशः 68%, 43%, 45% और 39% है. मुस्लिम समुदाय की सबसे ज्यादा आबादी किशनगंज लोकसभा क्षेत्र में है. बिहार जाति आधारित गणना 2022-23 के मुताबिक इस क्षेत्र में मुस्लिम आबादी मुख्यतः तीन जातियों में विभाजित है. सूरजापूरी जिनकी आबादी 24,46,212 है . शेरशाहबादी जिनकी आबादी 13,02,644 है. और कुल्हैया जिनकी आबादी 12,53,781 है.

मानव विकास सूचकांक में बिहार देश का सबसे पिछड़ा राज्य है और सीमांचल बिहार का सबसे पिछड़ा क्षेत्र है. बेरोजगारी, महगांई, गरीबी जैसी देशव्यापी समस्याओं के साथ-साथ इस क्षेत्र की स्थानीय समस्याएं भी काफी जटिल हैं. इंफ्रास्ट्रक्चर, आवास, अशिक्षा और पलायन यहां की सबसे बड़ी समस्याएं हैं. यहां पर बांस के पुल हैं, बांस के घर, दुकान, दुकानों की बेंच और यहां तक की कुछ स्कूल भी बांस से ही बने हैं.

बाढ़ प्रभावित क्षेत्र होने के कारण यहां के लोग हर साल बाढ़ की तबाही झेलते हैं. बिहार जाति आधारित गणना 2022-23 के मुताबिक इस क्षेत्र की 68-75% मुस्लिम आबादी के पास पक्का घर नहीं है. ये लोग बांस, टीन और फूस से बनी झोपड़ियों में रहते हैं. दर्जनभर जगहों पर पुल की जरूरत है लेकिन पुल नहीं बना है जिससे बड़ी आबादी बांस के बने पुल से नदी पार करती है. 

इसी गणना के मुताबिक 4.24% सूरजापूरी मुस्लिम, 2.94 प्रतिशत शेरशाहबादी  मुस्लिम और केवल 3.76 प्रतिशत कुल्हैया मुस्लिम 11वीं या 12वीं तक ही पढ़ाई कर पाते हैं. वहीं औसत रूप से तीनों जातियां के करीब दो प्रतिशत लोग ही स्नातक तक पढ़ाई करते हैं. क्षेत्र में इंडस्ट्री और कारखाने नहीं होने की वजह से यहां के ज्यादातर लोग या तो निर्माण कार्य में मजदूरी करते हैं या फिर खेतिहर मजदूर हैं.

बिहार में मुस्लिम प्रत्याशी और 2019 के नतीजे 

अगर सीटों के बंटवारे की बात करें तो इंडिया गठबंधन में बिहार की 40 सीटों में से 26 सीटें राजद, 9 सीटें कांग्रेस और 5 सीटें वाम दलों के पास हैं. एनडीए में 17 सीटें भाजपा, 16 सीटें जदयू, 3 सीटें लोजपा (आर) और बाकी सीटें अन्य सहयोगियों के पास हैं. बिहार में इंडिया गठबंधन ने चार सीटों पर मुस्लिम प्रत्याशी उतारे हैं जबकि एनडीए गठबंधन ने केवल एक सीट पर मुस्लिम प्रत्याशी उतारा है. राष्ट्रीय जनता दल ने 2 सीटें अररिया से शाहनवाज आलम और मधुबनी से एमएए फातमी को टिकट दिया है. कांग्रेस ने कटिहार से 5 बार के सांसद तारीख अनवर और किशनगंज से वर्तमान सांसद डॉक्टर जावेद को प्रत्याशी बनाया है. जबकि एनडीए की तरफ से केवल जदयू ने एक लोकसभा क्षेत्र किशनगंज से मुजाहिद आलम को प्रत्याशी बनाया है. बीजेपी और लोजपा (आर) ने एक भी मुस्लिम प्रत्याशी को टिकट नहीं दिया है.

2019 में  एनडीए गठबंधन ने सभी हिंदू बहुल सीटों पर और 9 में से 8 मुस्लिम बहुल सीटों पर जीत दर्ज की थी. वहीं राजद कांग्रेस गठबंधन ने केवल एक सीट किशनगंज पर जीत दर्ज की थी. 

लोकसभा में मुस्लिम सांसदों की संख्या की बात करें तो यह लगातार कम हो रही है. चुनाव आयोग के मुताबिक मुस्लिम सांसदों की संख्या 1998 में 29, 1999 में 32, 2004 में 36, 2009 में 30 और 2014 में सबसे कम 22 सांसद चुने गए जबकि 2019 में केवल में 27 सांसद चुने गए.

सीएसडीएस-लोकनीति की इस साल की रिपोर्ट के मुताबिक 2019 के लोकसभा चुनाव के बाद मुस्लिम वोटरों ने उस विपक्षी पार्टी को सबसे ज्यादा वोट दिया है जिसमें बीजेपी को हराने की संभावना नजर आ रही थी. 2020 के बिहार विधानसभा चुनाव में 77% मुस्लिम मतदाताओं ने महागठबंधन को वोट किया. 2021 के पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव में 75% मुस्लिम मतदाताओं ने टीएमसी को वोट किया. वहीं 2022 के उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में 79% मुस्लिम मतदाताओं ने समाजवादी को पार्टी को वोट किया. 

बिहार में यह ट्रेंड बरकरार रहे इस बात की गारंटी नहीं दी जा सकती. क्योंकि बिहार में जदयू और एआईएमआईएम भी मुस्लिम वोटरों मैं अच्छी पैठ रखते हैं. भाजपा के साथ रहते हुए भी नीतीश कुमार को मुस्लिम वोट मिलता है. उनकी सरकार में कई मुस्लिम नेता मंत्री भी बने हैं. वहीं सीमांचल क्षेत्र में एआईएमआईएम ने 2020 के बिहार विधानसभा चुनाव में 5 सीटें जीतकर सबको चौंका दिया था. इस बार भी किशनगंज से एआईएमआईएम के विधायक अख्तरुल ईमान चुनावी मैदान में हैं. इन सभी बातों को ध्यान में रखते हुए हमने यह वीडियो रिपोर्ट तैयार की है.

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