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मेटा और भाजपा को लोगो. पृष्ठभूमि में ढेर सारा रुपया.
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चुनावी विज्ञापन: फेसबुक पर खर्च के मामले में कांग्रेस से सौ गुणा आगे भाजपा

भारत में 2024 के लोकसभा चुनाव का आगाज हो चुका है. सभी राजनीतिक पार्टियां इसकी तैयारी में जुट गई हैं. भारत दुनिया के सबसे बड़े इंटरनेट कंज़्यूमर्स में से एक है. ऐसे में राजनीतिक पार्टियों ने भी सोशल मीडिया की ताकत को पहचान लिया है और अपने डिजिटल कैम्पेन पर मोटी रकम खर्च कर रहे हैं. चुनाव से पहले पार्टियों को मतदाताओं तक अपने एजेंडा को पहुंचाने में सोशल मीडिया विज्ञापन एक अहम सुविधा प्रदान कर सकती है.

फेसबुक, इंस्टाग्राम और अन्य सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स करोड़ों मतदाताओं तक पहुंचने के लिए विज्ञापनदाताओं को टारगेटेड विज्ञापन चलाने के लिए पर्याप्त जानकारी प्रदान करती है. विज्ञापनों के अधिकतम प्रभाव सुनिश्चित करने के लिए ये प्लेटफॉर्म्स विज्ञापनदाताओं को स्थान, जनसांख्यिकी, लिंग, रुचियां, भाषा और व्यवहार के आधार पर टारगेटेड विज्ञापन चलाने की अनुमति देते हैं.

किसने कितना खर्च किया

मेथडोलॉजी

ऑल्ट न्यूज़ ने 19 मार्च 2024 को मेटा एड लाइब्रेरी द्वारा पब्लिश किए गए पिछले 90 दिनों में चलाए गए राजनीतिक विज्ञापन के डाटा में से सबसे ज्यादा खर्च करने वाले टॉप 100 पेज का डाटा खंगाला. इस डाटा में से व्यक्तिगत क्षमता से नेताओं द्वारा चलाए गए विज्ञापन को हटा दिया गया है. राहुल गांधी का पेज इस डाटा में इसलिए मौजूद है क्योंकि उनके द्वारा चलाए गए विज्ञापन के डिस्क्लेमर में कांग्रेस पार्टी का नाम है.

राजनीतिक विज्ञापन चलाने वाले फ़ेसबुक पेज दो प्रकार के होते हैं. पहला होता है पार्टियों का आधिकारिक पेज, जिसके जरिए पार्टी लाइन के मुताबिक पोस्ट और पार्टी का प्रचार-प्रसार किया जाता है. जबकि दूसरे प्रकार के वो पेज होते हैं जिसके सभी पोस्ट और विज्ञापन एक विशेष पार्टी का समर्थन करते हैं, लेकिन सार्वजनिक तौर पर इस पेज और पार्टी के बीच कोई आधिकारिक संबंध नहीं होता. इन पेजों पर विज्ञापनों पर होने वाला सारा खर्च चुनाव आयोग द्वारा नहीं गिना जाता है. ऐसे पेजों को हमने प्रॉक्सी पेज के रूप में वर्गीकृत किया है.

इस डाटा के विश्लेषण से पता चलता है कि भाजपा ने राजनीतिक विज्ञापनों पर सबसे ज़्यादा खर्च किया है. भाजपा के प्रॉक्सी पेजों के ज़रिए चलने वाले विज्ञापनों पर होने वाला खर्च भाजपा के आधिकारिक विज्ञापनों पर होने वाले खर्च से भी ज़्यादा है.

प्रॉक्सी पेज और भाजपा द्वारा खर्च दर्शाता एक टेबल

पार्टियों और सरकारी विज्ञापनों का खर्च

भाजपा (इसमें आधिकारिक पेज और प्रॉक्सी पेज शामिल हैं)

भारतीय जनता पार्टी ने इन 90 दिन के अंदर आधिकारिक पेजों से 10884 विज्ञापन चलाते हुए 74407939 रुपये खर्च किए हैं. वहीं, विपक्षी पार्टियों एवं नेताओं को टारगेट करते हुए और भाजपा का प्रचार करने वाले प्रॉक्सी पेजों ने 10884 विज्ञापन चलाते हुए 84175893 रुपये खर्च किए हैं.

कांग्रेस

कांग्रेस पार्टी ने 456 विज्ञापन चलाकर 7,12,480 रुपये खर्च किए. वहीं, राहुल गांधी के पेज पर 158 विज्ञापनों पर 3585788 रुपये खर्च किए गए हैं.

तृणमूल कांग्रेस पार्टी

ममता बनर्जी की पार्टी तृणमूल कांग्रेस ने 423 विज्ञापन चलाकर 6373293 रुपये खर्च किए.

युवाजना श्रामिका रैतु कांग्रेस पार्टी 

आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री जगन मोहन रेड्डी की वाईएसआरसीपी ने 566 विज्ञापन चलाकर 16999080 रुपये खर्च किए.

सरकारी विज्ञापन

इन 90 दिनों के अंदर केंद्र और अलग-अलग राज्यों की सरकार ने कुल मिलाकर 1223 विज्ञापन चलाए. जिसमें कुल 46140328 रुपये खर्च हुए.

प्रॉक्सी पेज

राजनीतिक पार्टियों के आधिकारिक पेज के अलावे, विवादास्पद विज्ञापन चलाने के लिए प्रॉक्सी और मीम पेजों का एक इकोसिस्टम उभर कर सामने आया है. इन पेजों का इस्तेमाल विपक्षी पार्टियों को टारगेट करते हुए विज्ञापन चलाने के अलावा अक्सर विवादास्पद नैरेटिव को आगे बढ़ाने के लिए किया जाता है. राजनीतिक पार्टी द्वारा असली पहचान छिपाकर, इन पेजों के माध्यम से ऐसे विज्ञापन चलाए जाते हैं, जिसे आधिकारिक चैनलों के माध्यम से नहीं चलाया जा सकता है. हास्य, व्यंग्य और कटाक्ष के जरिए इन पेजों के विज्ञापन द्वारा विपक्षी पार्टियों और उनके नेताओं का मजाक उड़ाया जाता है. इसके साथ ही इन पेजों के विज्ञापनों में अक्सर सांप्रदायिक एंगल मौजूद होता है.

इस लिस्ट में कई ऐसे पेज हैं जो विपक्ष पर हमला करते हैं और भाजपा के प्रॉपगेंडा को आगे बढ़ाने का काम करते हैं. इन पेजों द्वारा विज्ञापन पर खर्च की गई रकम, भाजपा के आधिकारिक पेजों की तुलना में ज्यादा है. इनमें से कई पेज को ऑल्ट न्यूज़ ने अप्रैल 2023 के एक इनवेस्टिगेशन में एक्सपोज़ किया था कि किस प्रकार इन पेजों के तार सीधे तौर पर भाजपा से जुड़े हुए थे.

संवेदनशील विज्ञापन
इन पेजों द्वारा चलाए गए कुछ विज्ञापन इतने उत्तेजक और संवेदनशील होते हैं कि उन्हें राजनीतिक पार्टियां अपने आधिकारिक पेज से पोस्ट नहीं कर सकतीं. पार्टियों द्वारा प्रॉक्सी पेजों के जरिए चलाए जाने वाले विज्ञापन अक्सर विभाजनकारी मुद्दों को छूते हैं और पूर्वाग्रहों का फायदा उठाते हैं. ऑल्ट न्यूज़ ने मार्च 2024 में इस आर्टिकल में बताया था कि किस प्रकार ऊपर दिए गए लिस्ट में से एक पेज के राजनीतिक विज्ञापन में लाइव मर्डर दिखाया गया था और इसे 30 लाख से ज़्यादा बार देखा जा चुका था. इतना ही नहीं उस विज्ञापन में हिंसा का महिमामंडन किया गया था.

ऑल्ट न्यूज़ द्वारा मेटा को इन्फॉर्म करने पर मेटा का जवाब आया था कि उन्होंने इसका संज्ञान लिया और पाया कि इस विज्ञापन ने मेटा के स्टैंडर्ड्स का उल्लंघन किया था और इसपर कार्रवाई की गई है.

ऐसे कई विज्ञापन हैं जिसमें हिंसा दिखाई गई है और इसके जरिए राजनीतिक प्रतिद्वन्द्वियों पर निशाना साधा गया है. कुछ विज्ञापनों के उदाहरण नीचे मौजूद हैं. इनमें से कई विज्ञापन पर मेटा ने बाद में कार्रवाई की, हालांकि इन विज्ञापनों पर तबतक कुल मिलाकर लाखों व्यूज़ आ चुके थे.

संवेदनशील विज्ञापनों का एक उदाहरण

एक जैसे डिसक्लेमर वाले पेज

यहां हमने उन पेजों की लिस्ट रखी है जिनके डिसक्लेमर एक हैं. इनके डिसक्लेमर में 'Ulta Chashmaa' लिखा है. इन सभी के डिसक्लेमर डिटेल्स को चेक करने पर मालूम चलता है कि विपक्षी पार्टियों को टारगेट करने वाले और भाजपा का प्रॉपगेंडा चलाने वाले ये पेज एक ही एडमिन द्वारा चलाया जा रहा है. ये सभी पेज भाजपा के प्रॉक्सी पेजों की लिस्ट में शामिल हैं. ऐसा ही एक पेज है ‘सीधा चश्मा’, इस पेज को 5 मार्च को बनाया गया था और अबतक इस पेज द्वारा 15 लाख से ज़्यादा रुपया विज्ञापन पर खर्च किया जा चुका है.

इस पेज के डिसक्लेमर में भी ‘उल्टा चश्मा’ से जुड़े डिटेल्स मौजूद हैं, यानी, ये पेज भी भाजपा के प्रॉक्सी पेज का हिस्सा है. इसमें एक पेज ‘Sonar Bangla – সোনার বাংলা’ को अब डिलीट कर दिया गया है. इस पेज द्वारा 5 से 7 मार्च के बीच फ़ेसबुक और इंस्टाग्राम पर 9 विज्ञापन चलाकर 3 लाख 27 हज़ार रुपये खर्च किये गए थे. हालांकि, इस पेज के बारे में गौर करने वाली बात ये है कि जब इस पेज के डाटा को मेटा एड लाइब्रेरी में डेट रेंज के हिसाब से सर्च किया जाए तो इसमें सिर्फ 4 विज्ञापन बताया गया है, लेकिन पूरी रिपोर्ट खोलने पर मालूम पड़ता है कि इस पेज द्वारा 9 विज्ञापन चलाए गए थे. ये मेटा द्वारा रिलीज किये गए डाटा पर संदेह पैदा करता है.

समान डिस्क्लेमर वाले पेज

राजनीतिक पार्टियां ऑनलाइन विज्ञापन में मोटी रकम खर्च कर रहीं हैं जिसमें प्रॉक्सी पेज भी शामिल हैं. बड़ा सवाल ये भी है कि क्या पार्टियां प्रॉक्सी पेज द्वारा चलाए जा रहे विज्ञापन का खाता रखती है? ये खर्च चुनावी पारदर्शिता पर सवाल खड़ा करती है. जैसे-जैसे भारत में चुनाव नज़दीक आता जा रहा है, सभी पार्टियां डिजिटल विज्ञापनों पर और भी ज़्यादा जोर लगा रही हैं. इसमें प्रॉक्सी पेजों की भी भूमिका बढ़ती जा रही है. सोशल मीडिया पर राजनीतिक विज्ञापनों के खर्च में पारदर्शिता और कॉन्टेन्ट को लेकर जवाबदेही का अभाव जांच का विषय बनी रहेगी.

साभार: ALT News Hindi

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