Political-funding
इलेक्टोरल बॉन्ड: भारती समूह का भाजपा को 150 करोड़ का चंदा और मोदी सरकार का यू-टर्न
2012 में सुप्रीम कोर्ट ने कांग्रेस नेतृत्व वाली यूपीए सरकार द्वारा आवंटित 122 टेलीकॉम लाइसेंस रद्द कर दिए थे. कोर्ट ने आदेश दिया कि टेलीकॉम स्पेक्ट्रम की नीलामी की जाए. तब मीडिया रिपोर्टों ने कोर्ट के इस फैसले को "भ्रष्टाचार के खिलाफ एक निर्णायक कदम" बताया था. आम तौर पर 2जी स्पेक्ट्रम घोटाला के नाम से प्रसिद्ध मामले में अदालत के आदेश ने भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन में नाटकीय रूप से योगदान दिया. इसके बाद नरेंद्र मोदी केंद्र की सत्ता तक पहुंचे.
एक दशक से भी ज्यादा का वक्त बीत जाने के बाद, साल 2023 की गर्मियों में मोदी सरकार ने भारत के दूरसंचार सेक्टर में एक ‘नया क्रांतिकारी फैसला’ लिया. ये फैसला था- ब्रॉडबैंड सेवाएं प्रदान करने के लिए उपग्रहों के उपयोग का.
सुप्रीम कोर्ट द्वारा 2012 में स्पेक्ट्रम की अनिवार्य नीलामी के आदेश के बावजूद मोदी सरकार कांग्रेस द्वारा अपनाए गए मार्ग पर वापस आ गई यानि फिर से ‘मनमाफिक’ आवंटन की नीति.
दिसंबर, 2023 में मोदी सरकार ने आनन-फानन में संसद के माध्यम से एक नया दूरसंचार कानून पास करवाया. कानून के बनते ही प्रशासनिक आदेश के माध्यम से सैटेलाइट स्पेक्ट्रम को आवंटित करने की अनुमति मिल गई और निलामी वाली प्रक्रिया से छुटकारा. इसने नीलामी से हटने के लिए न्यायिक मंजूरी की मांग करते हुए सुप्रीम कोर्ट में एक रेफरेंस दायर किया.
नए कानून के चलते, सैटेलाइट स्पेक्ट्रम की होड़ में केवल एक कंपनी शामिल हो पायी. वनवेब इंडिया को स्पेक्ट्रम पाने के लिए जरूरी लाइसेंस और स्पेस ऑथराइजेशन, दोनों मिलीं.
वनवेब इंडिया अंतरराष्ट्रीय उपग्रह कंपनी यूटेलसैट वनवेब की भारतीय सहायक कंपनी है. इसका मुख्यालय लंदन में है.
यूटेलसैट वनवेब में सबसे बड़ी शेयरधारक भारती एंटरप्राइजेज है. यह दूरसंचार सेवा प्रदाता एयरटेल की मूल कंपनी है. भारती एंटरप्राइजेज, एक बहुराष्ट्रीय समूह है. इसका मुख्यालय दिल्ली में है. इसका व्यापार दूरसंचार, डिजिटल इन्फ्रास्ट्रक्चर, अंतरिक्ष संचार, वित्तीय सेवाओं और रियल एस्टेट तक फैला हुआ है.
24 अगस्त, 2021 को, वनवेब दूरसंचार विभाग से सैटेलाइट या जीएमपीसीएस लाइसेंस द्वारा ग्लोबल मोबाइल पर्सनल कम्युनिकेशंस प्राप्त करने वाली पहली कंपनी बन गई.
21 नवंबर, 2023 को भारतीय राष्ट्रीय अंतरिक्ष संवर्धन और प्राधिकरण केंद्र यानि IN-SPACe द्वारा उपग्रह क्षमता के उपयोग के लिए मंजूरी दी गई. अब तक यह मंजूरी पाने वाली एकमात्र कंपनी है.
गौरतलब है कि सैटेलाइट-आधारित ब्रॉडबैंड सेवाओं हेतु स्पेक्ट्रम के लिए आवेदन करना हो तो ये दोनों चरण उसकी आवश्यक शर्तों में शामिल हैं.
प्रेस को जारी एक बयान में, फर्म ने कहा, "यूटेलसैट वनवेब स्पेक्ट्रम का आवंटन होने के बाद वो कॉमर्शल सर्विसेज़ को लॉन्च करने के लिए तैयार है."
हालांकि सरकार ने अभी सैटेलाइट स्पेक्ट्रम का आवंटन नहीं किया है. लेकिन इलेक्टोरल बॉन्ड पर जारी डाटा कुछ सवाल जरूर खड़ा करते हैं. इस डाटा से पता चलता है कि भारती समूह ने सत्ताधारी भारतीय जनता पार्टी को दो बार में बॉन्ड के जरिए 150 करोड़ रुपये का चंदा दिया. ये बॉन्ड सैटेलाइट स्पेक्ट्रम की नीलामी की अनिवार्यता खत्म करने वाले नए कानून को पेश करने से पहले और बाद में खरीदे गए. और महीने भर के भीतर सरकार ने वनवेब को स्पेक्ट्रम पाने के लिए जरूरी मंजूरी भी दे डाली.
भारती एंटरप्राइजेज के अलावा, यूटेलसैट वनवेब के शेयरधारकों में यूके सरकार, फ्रांसीसी सैटेलाइट कंपनी यूटेलसैट और जापानी निवेश बैंक सॉफ्टबैंक शामिल हैं. इन देशों में भ्रष्टाचार विरोधी कड़े मानकों को देखते हुए पारदर्शिता विशेषज्ञों का कहना है कि चुनावी बॉन्ड से संबंधित खुलासों का विदेशों में भी व्यापक प्रभाव हो सकता है.
ट्रांसपरेंसी इंटरनेशनल के लीगल एक्सपर्ट कुश अमीन कहते हैं, “यह कहना उचित होगा कि अगर यूटेलसैट वनवेब को भारती द्वारा चुनावी बॉन्ड की खरीद और भाजपा को उनके दान के बारे में पता था, तो यूके ब्राइबरी एक्ट के तहत उनके अपराधी होने की संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता.”
2023 उपग्रह स्पेक्ट्रम का आवंटन
रिलायंस जियो जैसे घरेलू टेलीकॉम दिग्गजों से लेकर एलन मस्क की स्टारलिंक समेत कई विदेशी कंपनियां भारत में सैटेलाइट स्पेक्ट्रम की होड़ में शामिल थीं.
इस स्पेक्ट्रम का आवंटन कैसे किया जाना चाहिए, इसको लेकर मोदी सरकार ने अप्रैल 2023 में एक सार्वजनिक परामर्श शुरू किया. दो कंपनियों- रिलायंस जियो और वोडाफोन इंडिया- ने नीलामी की वकालत की जबकि भारती, अमेजॉन और स्टारलिंक सहित कई अन्य कंपनियों ने इसके खिलाफ तर्क दिया.
भारती ने अपने सुझाव में कहा, "सैटेलाइट स्पेक्ट्रम की नीलामी करना न तो उचित है और न ही पूरी तरह से निष्पक्ष, क्योंकि सैटेलाइट स्पेक्ट्रम एक साझा संसाधन है." भारती ने तर्क दिया कि नीलामी से स्पेक्ट्रम एक विशिष्ट संसाधन बन जाएगा और प्रतिस्पर्धी ताकतों को स्पेक्ट्रम क्षमता को अवरुद्ध करने या जमाखोरी करने का रास्ता मिल जाएगा.
रिलायंस जियो ने अपने जवाब में कहा कि "यह सुनिश्चित करना महत्वपूर्ण है कि प्रतिस्पर्धी सेवाओं की पेशकश करने वाले नेटवर्क के लिए स्पेक्ट्रम असाइनमेंट नियम किसी भी हितधारक को तरजीह दिए बिना एक समान और निष्पक्ष हों." इसने तर्क दिया कि स्पेक्ट्रम की नीलामी "एक जैसी सेवा प्रदान करने वालों के बीच संतुलित प्रतिस्पर्धी परिदृश्य की गारंटी के लिए एकमात्र व्यवहार्य रणनीति" थी.
मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, रिलायंस ने न्यायमूर्ति केएस राधाकृष्णन की कानूनी राय भी प्रस्तुत की. राधाकृष्णन ने कहा कि नीलामी "उपग्रह-आधारित संचार के लिए स्पेक्ट्रम आवंटित करने का एकमात्र स्वीकार्य तरीका" था. उन्होंने बताया कि उपग्रह और स्थलीय स्पेक्ट्रम के बीच कोई स्पष्ट अंतर नहीं है इसलिए, दोनों पर एक ही प्रक्रिया लागू होनी चाहिए. सुप्रीम कोर्ट के पूर्व न्यायाधीस केएस राधाकृष्णन 2जी स्पेक्ट्रम मामले की सुनवाई में भी शामिल थे.
सेवानिवृत्त न्यायाधीश की राय हो या स्पेक्ट्रम की अनिवार्य नीलामी का सुप्रीम कोर्ट का आदेश, मोदी सरकार पर किसी का असर नहीं पड़ा.
21 नवंबर, 2023 को यूटेलसैट वनवेब, केंद्र सरकार से सैटेलाइट ब्रॉडबैंड लाइसेंस प्राप्त करने में कामयाब हो गई.
आम चुनावों का ऐलान हो चुका है. एक बार फिर न्यूज़लॉन्ड्री और द न्यूज़ मिनट के पास उन मुद्दों पर ध्यान केंद्रित करने के लिए सेना प्रोजेक्ट्स हैं, जो वास्तव में आपके लिए मायने रखते हैं. यहां क्लिक करके हमारे किसी एक सेना प्रोजेक्ट को चुनें, जिसे समर्थन देना चाहते हैं.
18 दिसंबर, 2023 को लोकसभा में एक नया दूरसंचार विधेयक पेश किया गया. विधेयक में न केवल इंटरनेट निलंबन और निगरानी के लिए कठोर शक्तियां तय हैं, बल्कि स्पेक्ट्रम प्रबंधन के लिए सरकार के दृष्टिकोण में भी बदलाव देखने को मिला. इस विधेयक से "कुछ उपग्रह-आधारित सेवाओं" के लिए स्पेक्ट्रम के प्रशासनिक आवंटन का रास्ता खुल गया और नीलामी की प्रक्रिया पीछे छूट गई, जिसमे कंपनियां एक-दूसरे से प्रतिस्पर्धा करतीं.
विधेयक में कहा गया, "केंद्र सरकार पहली अनुसूची में सूचीबद्ध प्रविष्टियों को छोड़कर नीलामी के माध्यम से दूरसंचार के लिए स्पेक्ट्रम आवंटित करेगी. इसके लिए असाइनमेंट प्रशासनिक प्रक्रिया द्वारा किया जाएगा." पहली अनुसूची में सैटेलाइट्स द्वारा ग्लोबल मोबाइल पर्सनल कम्युनिकेशन या जीएमपीसीएस शामिल है. जिसका लाइसेंस वनवेब को पहले ही मिल चुका था.
संसद में विधेयक का बचाव करते हुए, दूरसंचार मंत्री अश्विनी वैष्णव ने कहा, “दुनिया भर में, उपग्रह स्पेक्ट्रम को प्रशासनिक रूप से आवंटित किया गया है. कहीं भी इसकी नीलामी नहीं की गई है.”
दोनों सदनों से 143 विपक्षी सांसदों के निलंबन के बाद 20 दिसंबर को ये बिल लोकसभा में ध्वनिमत से पारित हो गया. एक दिन बाद, राज्यसभा ने भी इसे पारित कर दिया. क्रिसमस की पूर्व संध्या पर राष्ट्रपति ने इस विधेयक पर हस्ताक्षर कर इसे कानून बना दिया.
सरकार ने न सिर्फ पूरी रफ्तार से इस नए विधेयक को आगे बढ़ाया बल्कि तुरंत ही उसने सुप्रीम कोर्ट का भी रुख किया. कोर्ट से अनुरोध किया कि वह "उचित स्पष्टीकरण जारी करे ताकि सरकार एक प्रशासनिक प्रक्रिया के माध्यम से स्पेक्ट्रम के असाइनमेंट पर विचार कर सके."
150 करोड़ के बॉन्ड की खरीद
उसी महीने, जनता की नज़र से दूर कुछ और घटनाएं घटीं. 9 नवंबर को भारती समूह ने 100 करोड़ रुपये के चुनावी बॉन्ड खरीदे. ये सारी रकम भाजपा के खाते में गई. चार दिन बाद 13 नवंबर को भाजपा ने सारे बॉन्ड भुना लिए.
आठ दिन बाद यानि 21 नवंबर को वनवेब भारत के अंतरिक्ष नियामक से सैटेलाइट अधिकार पाने वाली पहली कंपनी बन गई. साथ ही यह सरकार से सैटेलाइट स्पेक्ट्रम पाने के लिए एकमात्र योग्य कंपनी भी बन गई.
नये साल की शुरुआत में भारती एयरटेल लिमिटेड ने फिर से 50 करोड़ रुपये के चुनावी बॉन्ड खरीदे. यह भी भाजपा के खाते में गया. इसे भाजपा ने 12 जनवरी को भुना लिया.
लाइसेंस और स्पेस अथॉराइजेशन मिलने से यूटेलसैट वनवेब को सैटेलाइट ब्रॉडबैंड इंडस्ट्री में सबसे पहले उतरने का लाभ मिला. हालांकि, रिलायंस जियो को भी 2022 में दूरसंचार विभाग से जीएमपीसीएस लाइसेंस मिला. लेकिन कुछ मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक इसे अभी भी स्पेस अथराइजेशन का इंतजार है.
लाभार्थी
वनवेब- जो कि अब यूटेलसैट वनवेब है, अमेरिकी उद्यमी द्वारा स्थापित एक सैटेलाइट कंपनी है. इसकी स्थापना साल 2012 में हुई थी. साल 2020 में दिवालिया घोषित होने के बाद भारती एंटरप्राइजेज और यूके सरकार ने एक बिलियन अमेरिकी डॉलर में इसका टेकओवर कर लिया.
नवंबर 2020 में, भारती ग्लोबल के पास कंपनी में 42 प्रतिशत और यूके सरकार के पास भी 42 प्रतिशत हिस्सेदारी थी. जून 2021 तक फ्रांसीसी सैटेलाइट सर्विस प्रोवाइडर यूटेलसैट और जापानी बहुराष्ट्रीय कंपनी सॉफ्टबैंक भी इसके बोर्ड सदस्यों में शामिल हो गए. इसके चलते शेयरों की हिस्सेदारी में बदलाव हुआ.
सितंबर 2023 में, यूटेलसैट और वनवेब का विलय हो गया. यूटेलसैट की ओर से जारी एक बयान में कहा गया, "वनवेब व्यावसायिक रूप से अब यूटेलसैट-वनवेब के रूप में काम करने वाली एक सहायक कंपनी होगी. इसका केंद्र लंदन में रहेगा."
यूटेलसैट वनवेब की वेबसाइट के अनुसार- 18 मार्च 2024 तक भारती 23.8 प्रतिशत शेयरों के साथ यूटेलसैट वनवेब की सबसे बड़ी शेयरधारक कंपनी है. वहीं, यूके सरकार की 10.9 फीसदी, बीपीआई फ्रांस की 13.6 फीसदी और सॉफ्टबैंक की 10.8 फीसदी हिस्सेदारी है.
ट्रांसपरेंसी इंटरनेशनल के लीगल एक्सपर्ट कुश अमीन बताते हैं कि स्वामित्व का ये पैटर्न "मूल कंपनी यूटेलसैट की जवाबदेही की संभावना तय करता है, अगर यह साबित किया जा सके कि वह भारती द्वारा भाजपा को दिए गए दान के बारे में जानते थे.”
बॉन्ड, ट्रस्ट और भारती एयरटेल
भारती एंटरप्राइजेज ने हाल के सालों में भारतीय राजनीतिक दलों को औपचारिक रूप से फंड देने के लिए दो तरीकों का इस्तेमाल किया है. पहला- इलेक्टोरल बॉन्ड और दूसरा इलेक्टोरल ट्रस्ट. इलेक्टोरल ट्रस्ट एक गैर-लाभकारी संस्था के तौर पर काम करता है. इसके माध्यम से कंपनियां और व्यक्ति एक हद तक गुमनाम रहते हुए राजनीतिक दलों को दान दे सकते हैं. जिस पर उन्हें टैक्स में छूट मिलती है.
देश में सबसे बड़ा चुनावी ट्रस्ट प्रूडेंट इलेक्टोरल ट्रस्ट है. जिसे 2013 में भारती समूह ने स्थापित किया था. यह आज भी इसके सबसे बड़े चंदा दाताओं में से एक है.
प्रूडेंट ने लगातार अपना ज्यादातर चंदा भाजपा को दिया है. 2019 में जब भाजपा बड़े बहुमत के साथ सत्ता में लौटी तो प्रूडेंट ने पार्टी को लगभग 218 करोड़ रुपये का दान दिया. उस साल भारती ने प्रूडेंट को 27.25 करोड़ रुपये का दान दिया था.
उसी साल भारती ने इलेक्टोरल बॉन्ड के जरिए भाजपा को 51.4 करोड़ रुपये दिए. इसके अलावा कांग्रेस को 8 करोड़ रुपये, जनता दल (यूनाइटेड) और शिरोमणि अकाली दल को 1-1 करोड़ रुपये, नेशनल कॉन्फ्रेंस को 50 लाख रुपये और राष्ट्रीय जनता दल को 10 लाख रुपये दिए.
इसके अगले साल भारती ने प्रूडेंट को 10 करोड़ रुपये का दान दिया लेकिन कोई इलेक्टोरल बॉन्ड नहीं खरीदा. समूह ने साल 2021 और 2022, में इलेक्टोरल बॉन्ड के माध्यम से भाजपा को 35 करोड़ रुपये दिए.
2023 में कंपनी ने सीधे 100 करोड़ रुपये के बॉन्ड खरीदे. जो कि यूटेलसैट वनवेब को ब्रॉडबैंड डील मिलने से कुछ दिन पहले खरीदे गए.
यूटेलसैट वनवेब में सबसे बड़ी शेयरधारक कंपनी भारती एंटरप्राइजेज इलेक्टोरल बॉन्ड के भी सबसे बड़े खरीदारों में से एक है.
चुनाव आयोग द्वारा जारी इलेक्टोरल बॉन्ड डाटा का एक विश्लेषण बताता है कि 2019 और 2024 के बीच समूह की कंपनियों भारती एयरटेल लिमिटेड, भारती इंफ्राटेल लिमिटेड और भारती टेलीमीडिया लिमिटेड ने 247 करोड़ रुपये के बॉन्ड खरीदे. जिसमें 236.4 करोड़ रुपये - या 95% से अधिक- सत्तारूढ़ भाजपा को मिले.
प्रोजेक्ट इलेक्टोरल बॉन्ड ने भारती एंटरप्राइजेज, यूटेलसैट वनवेब, सॉफ्टबैंक के साथ-साथ केंद्रीय दूरसंचार मंत्री अश्विनी वैष्णव और यूके सरकार से उनकी प्रतिक्रिया के लिए संपर्क किया है. अगर उनका कोई जवाब आता है उसे इस रिपोर्ट में शामिल कर लिया जाएगा.
यह रिपोर्ट एक सहयोगी परियोजना का हिस्सा है जिसमें तीन समाचार संगठन - न्यूज़लॉन्ड्री, स्क्रॉल, द न्यूज़ मिनट - और स्वतंत्र पत्रकार शामिल हैं.
प्रोजेक्ट इलेक्टोरल बॉन्ड में अबान उस्मानी, आनंद मंगनाले, अनीशा शेठ, अंजना मीनाक्षी, आयुष तिवारी, अजीफा फातिमा, बसंत कुमार, धन्या राजेंद्रन, जयश्री अरुणाचलम, जोयल जॉर्ज, एम. राजशेखर, मारिया टेरेसा राजू, नंदिनी चंद्रशेखर, नील माधव, निकिता सक्सेना, पार्थ एमएन, पूजा प्रसन्ना, प्रज्वल भट्ट, प्रतीक गोयल, प्रत्युष दीप, रागामालिका कार्तिकेयन, रमन किरपाल, रवि नायर, साची हेगड़े, शब्बीर अहमद, शिवनारायण राजपुरोहित, सिद्धार्थ मिश्रा, सुप्रिया शर्मा, सुदीप्तो मंडल, तबस्सुम बरनगरवाला और वैष्णवी राठौड़ शामिल हैं.
आम चुनावों का ऐलान हो चुका है. एक बार फिर न्यूज़लॉन्ड्री और द न्यूज़ मिनट के पास उन मुद्दों पर ध्यान केंद्रित करने के लिए सेना प्रोजेक्ट्स हैं, जो वास्तव में आपके लिए मायने रखते हैं. यहां क्लिक करके हमारे किसी एक सेना प्रोजेक्ट को चुनें, जिसे समर्थन देना चाहते हैं.
Also Read
-
BJP faces defeat in Jharkhand: Five key factors behind their setback
-
Newsance 275: Maha-mess in Maharashtra, breathing in Delhi is injurious to health
-
Decoding Maharashtra and Jharkhand assembly polls results
-
Pixel 9 Pro XL Review: If it ain’t broke, why fix it?
-
How Ajit Pawar became the comeback king of Maharashtra